कुछ दिन पहले एक नामी गिरामी बाबा चल बसे, अब यह कैसे बाबा थे, जो आदमी की जेब देख कर ही दर्शन देते थे, अब जब मर गये तो अपने पीछे आकूत दोलत छोड गये, उस दोलत के लिये उसी के बंदे जो उस के धंधे मे शामिल थे लड रहे हे, सभी को अपनी अपनी पडी हे, यानि वह दोलत जो उस बाबा ने जादू दिखा कर लुटी, भोले भाले लोगो से, लालची लोगो से, दुसरो को लुटने वालो से, इन नेताओ से, वगेरा वगेरा...इस आकूत दोलत मे से एक पैसा भी बाबा के संग नही गया, बस उस बाबा के कर्म ही उस के संग गये हे, ओर इस खेल को मै रोजाना समाचार पत्रो मे पढ रहा हुं, आज एक विचार आया मन मे सो आप सब से बांटना चाहा, हम आराम से अगर रोजाना मजदुरी कर के जितना कमा लेते हे, वो हमारे लिये ओर हमारे परिवर के लिये काफ़ी होता हे,हम उस मे किसी का हक भी नही मारते, फ़िर हमे अच्छॆ कर्म करने की जरुरत भी नही होगी, क्योकि हम पापो से तो दुर ही हे,अगर सभी हमारी तरह से सोचे तो इस भारत क्या पुरी दुनिया मे कोई भुखा ना सोये.
इस बाबा ने तडप तडप कर ही अपने प्राण छोडे हे, उस की आकूत दोलत भी उस के पराण नही बचा पाई, उस की भक्ति भी उसे नही बचा पाई, बाल्कि भगवान भी उसे सबक देना चाहता था, उस के संग हम सब को भी एक सबक इस बाबा की मृत्यु से लेना चाहिये कि हमारे संग कुछ नही जाना, तो क्यो हम दुसरो का हक मार मार कर बेंक बेलेंस बढाने पर लगे हे, क्यो खुद भी सुख से नही रहते ओर हजारो लाखो की वद दुआ भी लेते हे, यह अरब पति, करोड पति, लखपति क्या मेहनत से ईमानदारी से बने हे, यह नेतओ ने जो काला धन स्विस बेंक या अपने रिशते दारो के नाम से जमा कर रखा हे, क्या इस धन से यह आसान मोत मरेगे? या स्वर्ग मे जायेगे? या मरने के बाद अपने परिवार को सुख शांति दे पायेगे? तो क्यो यह दुसरो के मुंह से निवाला छीन कर दुसरो को दुखी करते हे, अपने चंद पल खुशी मे बिताने के लिये क्यो यह लाखॊ अरबो की बद दुयाऎ... नन्हे नन्हे बच्चो के मुंह से दुध छीन कर यह अपने पेग पीते हे, क्या यह सब सुखी रहेगे? कई लोग कुत्तो की तरह से भीख मांग कर खाते हे इन की वजह से, क्या यह अपने परिवार को सुख शांति दे पायेगे,
हम सब की जिन्दगी कितने बरस की हे, ओर उस दोरान हम इस समाज को इस दुनिया को क्या दे रहे हे? जो दे रहे हे, वो तो हम एक कर्ज दे रहे हे, कल को ब्याज के संग हमे वापिस तो मिलेगा ही, उस समय जब हम एक एक सांस के लिये तडपेगे तब पशछताने से क्या लाभ, जानवर भी सदियो के लिये खाना जमा कर के नही रखते, चुहे, ओर चींटिया भी ३, ४ महीने का खाना ही जमा रखती हे, ओर हमारा बस चले तो हम अपनी बीस ्पिढियंओ के लिये जमा रखे, जब कि हमे पता नही हमारी अगली पिढी भी आयेगी जा नही,ओर अगर आई तो वो केसी निकलेगी? कोकि कोई भी हराम की कमाई खा कर हलाल का काम नही करेगा.
हाय पैसा हाय पैसा कया करेगे यह इतने पैसो का, अपने कुछ साल तो ’ऎश मै बिता लेगे, बाकी परिवार इन के जाते हे आपस मे लडेगा; भाई भाई दुशमन बन जाते हे, अपनी जिन्दगी के कुछ साल ऎश मे बीताने के लिये क्यो हजारो लाखॊ को दुखी करते हे,कितने लोग भुख से मरते हे, कितने बच्चे बिना दुध के बिना दवा के मरते हे, उन सब के जिम्मेदार यही लोग हे जो पैसा पैसा करते हे... सीखॊ इस बाबा के अंत से कुछ अब भी सुधर जाओ
इस बाबा ने तडप तडप कर ही अपने प्राण छोडे हे, उस की आकूत दोलत भी उस के पराण नही बचा पाई, उस की भक्ति भी उसे नही बचा पाई, बाल्कि भगवान भी उसे सबक देना चाहता था, उस के संग हम सब को भी एक सबक इस बाबा की मृत्यु से लेना चाहिये कि हमारे संग कुछ नही जाना, तो क्यो हम दुसरो का हक मार मार कर बेंक बेलेंस बढाने पर लगे हे, क्यो खुद भी सुख से नही रहते ओर हजारो लाखो की वद दुआ भी लेते हे, यह अरब पति, करोड पति, लखपति क्या मेहनत से ईमानदारी से बने हे, यह नेतओ ने जो काला धन स्विस बेंक या अपने रिशते दारो के नाम से जमा कर रखा हे, क्या इस धन से यह आसान मोत मरेगे? या स्वर्ग मे जायेगे? या मरने के बाद अपने परिवार को सुख शांति दे पायेगे? तो क्यो यह दुसरो के मुंह से निवाला छीन कर दुसरो को दुखी करते हे, अपने चंद पल खुशी मे बिताने के लिये क्यो यह लाखॊ अरबो की बद दुयाऎ... नन्हे नन्हे बच्चो के मुंह से दुध छीन कर यह अपने पेग पीते हे, क्या यह सब सुखी रहेगे? कई लोग कुत्तो की तरह से भीख मांग कर खाते हे इन की वजह से, क्या यह अपने परिवार को सुख शांति दे पायेगे,
हम सब की जिन्दगी कितने बरस की हे, ओर उस दोरान हम इस समाज को इस दुनिया को क्या दे रहे हे? जो दे रहे हे, वो तो हम एक कर्ज दे रहे हे, कल को ब्याज के संग हमे वापिस तो मिलेगा ही, उस समय जब हम एक एक सांस के लिये तडपेगे तब पशछताने से क्या लाभ, जानवर भी सदियो के लिये खाना जमा कर के नही रखते, चुहे, ओर चींटिया भी ३, ४ महीने का खाना ही जमा रखती हे, ओर हमारा बस चले तो हम अपनी बीस ्पिढियंओ के लिये जमा रखे, जब कि हमे पता नही हमारी अगली पिढी भी आयेगी जा नही,ओर अगर आई तो वो केसी निकलेगी? कोकि कोई भी हराम की कमाई खा कर हलाल का काम नही करेगा.
हाय पैसा हाय पैसा कया करेगे यह इतने पैसो का, अपने कुछ साल तो ’ऎश मै बिता लेगे, बाकी परिवार इन के जाते हे आपस मे लडेगा; भाई भाई दुशमन बन जाते हे, अपनी जिन्दगी के कुछ साल ऎश मे बीताने के लिये क्यो हजारो लाखॊ को दुखी करते हे,कितने लोग भुख से मरते हे, कितने बच्चे बिना दुध के बिना दवा के मरते हे, उन सब के जिम्मेदार यही लोग हे जो पैसा पैसा करते हे... सीखॊ इस बाबा के अंत से कुछ अब भी सुधर जाओ
प्राणी क्या लेकर आया था ? जो कुछ ले जायेगा..
ReplyDeleteबढ़िया सीख देती पोस्ट.
सच है ... खाली हाथ आए हैं हम, खाली हाथ जाना है।
ReplyDeleteइतना पैसा कहां से आया? और यह दान किसका था? देखें, बहुत कुछ सामने आएगा।
कितनी अच्छी बात कही ....सच भी है जाना तो खाली हाथ ही है....
ReplyDeleteयह मृत्यु ही नश्वरता और क्षणभंगुरता से साथ साथ कितने भी बुरे कर्म करले साथ कुछ भी नहीं जाने वाला।
ReplyDeleteकफ़न में जेब सिला कर रखने लगे हैं लोग
ReplyDeleteकुछ ऐसा कर जाएं जो नहीं कर सके हैं लोग॥
सार्थक चिंतन.
ReplyDeleteवाह ... बहुत सुन्दर बात है
ReplyDeleteसार्थक और विचारोत्तेजक भी
nice
ReplyDeleteइस माया मोह से संत भी नहीं बच पाए ..
ReplyDeleteमगर आखिर अंत तो सबका एक सा ही होता है ...
सत्य वचन !
यह बाबा थोडा अलग इसलिए था कि इसने जन कल्याण की कई योजनायें उसी पैसे से चलाई -कुछ तो जनता को वापस किया -उन हरामखोरों से तो अच्छा ही रहा जो भारतीयों का पैसा सिस बैंक और जर्मनी के बैंकों में दबाये बैठे हैं
ReplyDeleteजब लोग अपनी अगली पीढियों के लिये धन जोडने-छोडने की कोशिश करते हैं तो जैसे वो सोच रहे होते हैं कि उनकी अगली पीढियां अपाहिज ही जन्मेंगी और कुछ कमा-धमा नहीं पाएँगी इसलिये हम ही उन्हीं के लिये सब कुछ जुटादें । जबकि एक कपूत भी दस पीढियों के लिये संग्रहित धन को आसानी से ठिकाने लगा देता है । फिर भाई-भाईयों में मरने-मारने की शैली में फैसले भी इसी अनीतिपूर्ण कमाई से छोडे गये धन के कारण परिवार में उपजती है ।
ReplyDeleteसब कुछ जानने समझने के बाद भी बहुसंख्यक इंसान हाय पैसा की जुगत में ही लगे रहते हैं ।
अभी तो राज जी देखिएगा, तीन करोड़ अनुयायियों से नियमित मासिक चंदे के बल पर जो डेढ लाख करोड़ का सरमाया पूरी दुनिया में खड़ा किया है, उसकी बंदरबांट के लिए क्या क्या खेल होंगे...
ReplyDeleteजय हिंद...
हद तो तब होती है जब हमारा मीडिया इन्हें भगवान कहकर प्रचारित करता है। शीर्षक देखिए - "भगवान की मृत्यु पर भगवान रोए"। सचिन को भी भगवान बनाकर पेश किया गया और उनके आँसुओं के सैलाब में सारा मीडिया ही डूब गया। वाह रे भगवान!
ReplyDeleteअपना भी यही फलसफा है जी कि जब मैनें कोई पाप किया ही नहीं तो पुण्य की क्या जरुरत रह गई।
ReplyDeleteमुश्किल से 10% सज्जन होते हैं जो बिना पाप की कमाई किये पुण्य के कार्य करते हैं। 90% दान-पुण्य वही करते हैं, जिन्होंने ज्यादा पाप किये होते हैं।
काला धन कमाने के बाद अचानक सफेद वस्त्र पहनना अच्छा लगने लगता है, ये मेरा अपना अनुभव है।
प्रणाम
जो लोग व्यक्तियों को जीवन दर्शन का पाठ पढ़ाते हैं वह खुद भी इस माया से बहार नहीं निकल सके तो औरों का क्या होगा ...आपने बहुत सटीकता से प्रकाश डाला है ..जीवन की नियति यही है ..लेकिन इस वास्तविकता को समझना आवशयक है ...शुक्रिया
ReplyDeleteयुधिष्टर जी ने कहा था कि हर रोज किसी न किसी प्राणी को हम मरते हुए देखतें हैं, पर यह सोचते हैं कि वो मर गया हम थोडे ही मरेगें, यह दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है। इस लिए आदरणीय राज जी बाबा जी को सामने रख कर किसी बदलाव की उम्मीद न रखें।
ReplyDeleteप्रणाम
सुशील गुप्ता
मै तो इतना जानता हूँ की गीता का कथन है की जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे ये बात इस संसार के लगभग लोग जानते है | फिर भी लोग अपने कुकर्मो को छिपाने के लिए कुतर्को का सहारा लेते है |एक बच्चे से पूछा गया की बेटा तुम्हारा पेट क्यों बढ़ रहा है तो उसने कहा की मै मिट्टी खाता हूँ | अब आप सोचिये जब उस बच्चे को पता है की मिट्टी खाने से पेट बढ़ता है फिर भी वो मिट्टी खा रहा है | यही हाल इस भौतिक संसार का है उसे पता है की गलत कार्यों की सजा इसी योनी में भुगतनी है फिर भी वो गलत कार्य करता है | भले ही वो योगी हो या भोगी हो |
ReplyDeleteहाय ..हाय..ये पैसा ......
ReplyDeleteसब पैसे की ही माया है भाटिया साहब, अब देखिये न कि बाबा तो चला गया मगर ४०००० करोड़ की सम्पति देख सेवकों के मुह से लार टपक रही है :)
ReplyDeleteपूरी पब्लिक ही पागल है !
ये बात जानते सब है पर मानता कौन है | सब तो यही सोचते है जितने दिन जीना है आराम से जी लो मरने और मरने के बाद की चिंता अभी हम क्यों करे तब की तब देखी जाएगी |
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (30.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
खुद को भगवान कहता था।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी सीख दी है...इस पोस्ट के माध्यम से
ReplyDeleteनश्वर तन, बहका है मन,
ReplyDeleteक्या करे हमारा यह जीवन।
राज जी अभी तो यह देखना है की बाबा जी की शिक्षा, जैसे मिलकर रहो ,आपस में प्रेम व्यवहार बनाये रखें ,धन का मोह छोड़ें का प्रभाव उनके चेलों पर कितना पड़ा
ReplyDeleteभाटिया जी ,
ReplyDeleteजब तक व्यक्ति पैसे से ऊपर उठकर नहीं सोचेगा , कभी भी भवसागर पार नहीं हो पायेगा। इस सार्थक आलेख के लिए बधाई एवं आभार।
सत्य कहा...
ReplyDeleteजाते वक़्त साथ सिर्फ किया कर्म ही जाता है...सो बस वही पूंजी जीवन में जुटाना चाहिए..
श्री राज जी,
ReplyDeleteस्वास्थ्य-सुख ब्लाग पर भाभीजी की कलाई के दर्द से सम्बन्धित आपके प्रश्न का उत्तर इसी ब्लाग पर अगली पोस्ट के रुप में देने का प्रयास किया है । आप कृपया उसे देखलें व प्रयोग में भी अवश्य करवाएँ । धन्यवाद सहित...
जीवन का सच मृत्यु... अगर हम इसे समझ लें तो शायद पाप कम हों जायेंगे
ReplyDeleteसटीक लेखन के लिए शुभकामनाएँ
मौत का एक दिन मुऐयन है ...
ReplyDeleteनींद क्यों रात भर नही आती ....
बस वैसे ही ग़ालिब का ये शेर याद आ गया आपकी पोस्ट पढ़ कर .... सार्थक चिंतन और लेखन ....
dunia chhod vairagya liya aur vaha bhi maya jal me fans gaye....ant to vahi hua jo sabka hota hai....sarthak chintan.
ReplyDeleteबाप रे कैसे कैसे कड़े सवाल उठा मारे हैं आपने भी आज. बहुत से बाबा लोगों के भक्तों को आपकी बातें रास नहीं आएंगी.
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है आपने !बहुत सार्थक लेखन है आपका.
ReplyDeleteकडवी सच्चाई को व्यक्त किया है आपने
जाने कब हम इससे सबक सीखेंगे.
कितने दुःख की बात है की आज भी हम सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं.
लोगों को बेवकूफ बना कर गलत कमाई द्वारा परोपकार के काम को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता.
इसे उचित ठहराने की प्रवृत्ति समाज के लिए बहुत घातक सिद्ध होगी....
क्या खूब लिखा है आपने !बहुत सार्थक लेखन है आपका.
ReplyDeleteकडवी सच्चाई को व्यक्त किया है आपने
जाने कब हम इससे सबक सीखेंगे.
कितने दुःख की बात है की आज भी हम सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं.
लोगों को बेवकूफ बना कर गलत कमाई द्वारा परोपकार के काम को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता.
इसे उचित ठहराने की प्रवृत्ति समाज के लिए बहुत घातक सिद्ध होगी....
क्या खूब लिखा है आपने !बहुत सार्थक लेखन है आपका.
ReplyDeleteकडवी सच्चाई को व्यक्त किया है आपने
जाने कब हम इससे सबक सीखेंगे.
कितने दुःख की बात है की आज भी हम सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं.
लोगों को बेवकूफ बना कर गलत कमाई द्वारा परोपकार के काम को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता.
इसे उचित ठहराने की प्रवृत्ति समाज के लिए बहुत घातक सिद्ध होगी....
सार्थक एवं सटीक चिंतन के लिए आभार।
ReplyDeleteताऊ जी प्रणाम ...आप ने बहुत ही बारीकी से जीवन के अंत को प्रस्तुत किया है ! बहुत - बहुत बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक चिंतन...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर यह पंक्तियाँ याद आ गयी ...
"माया मोह महा ठगनी हम जानी
त्रिगुण फाँस लिए डोले बोले मधुर बानी!! "
माया मोह - अगर संत ना भी चाहे तो देने वाले कितने ही हैं .. और फिर वह संत जकड जाता है ऊ सत्ता को बचाने में .. घोड़े वाले हसन ने भी कमाल किया कई हज़ार करोड़ों का इनकम टेक्स डकार गया तो स्विस बेंक की दौलत का कोई हिसाब नहीं... आखिर आदमी को कितनी जरूरत है .. भूख तो रोटी की और प्यास पानी की होती थी ..आज इन लोगों की भूख ही दौलत और प्यास पराया धन हड़पने की है ... और जाते समय क्या ले जाते है .. जैसे आये वैसे गए ..सब यही धरा रह गया ... इस से सच में इंसान को सीख लेनी चाहिए..
ReplyDeleteकाश हर व्यक्ति की पैसों की लालसा मूलभूत साधन और संसाधन तक ही सीमित रहती...ऐसे बाबाओं की वजह से पैसों की लालसा और बढती है लोगों के मन में ...
ReplyDeleteबाबा लोग ज़िन्दा रहते हुये तो कुछ सिखा नही पाते चलो मर कर ही ये शिक्षा तो दे दी। शुभकामनायें।
ReplyDeleteकाश कोई ऐसे दृष्टांतों से शिक्षा लेता ।सबको पता है सिकंदर जब गया दुनिया से दौनों हाथ खाली थे। कविता सुनाई सब ठाठ पडा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा , कहा गया साई इतना दीजिये जामें कुटुम्ब समाय मै भी भूखा न रहूं साधु न भूखा जाये ं मगर ये अर्थ युग है। अर्थ के पीछे हाय हाय । मरने के वाद अरथी कहा गया तो ठीक कहा गया
ReplyDeleteआज जब इन्सान खुद का पेट नहीं पाल पा रहा है ऐसे में एक इन्सान ने करोड़ो लोगों को मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराइ जो खुद सर्कार भी नहीं करा पा रही है ..इस बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता
ReplyDeleteसच्चाई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने! आख़िर सभी खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ ही जाते हैं! बढ़िया लगा!
ReplyDeleteकोई जागे या ना जागे , हम तो आवाज लगाते रहेंगे , बहुत सुंदर आलेख , बधाई
ReplyDeletebilkul sahi baat kahi aapne,par udaaharn......
ReplyDeletekunwar ji,
न हाथी है न घोडा है वहां पैदल ही जाना है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें राज भाई !
क्या करे इंसान किसी न किसी पर भरोसा करना ही पड़ता है श्रद्धा रखनी पड़ती है ऐसे मे बाबा लोगो की बन आती है । पर श्रद्धा लोगो की निजी राय है दूसरो को उस पर आक्षेप नही करना चाहिये ।
ReplyDeleteये नशे के प्रकार हैं। पैसे कमाने का नशा हो या बाबाओं की अंध भक्ति का।
ReplyDeleteमोह,अज्ञान और आसक्ति के कारण ही हम जीवन का ध्येय नहीं समझ पाते.या समझ कर भी अनजान बने रहते हैं.
ReplyDeleteआपने सुन्दर प्रेरणास्पद प्रस्तुति की है.
बहुत बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए.