29/11/09

क्या यह भी हमारे अपने नही,? क्या यह हिंदू नही?

अभी कुछ समय पहले ही, ब्लांग जगत मै एक  हंगामा हुआ था, मुझे उस हंगामे से कोई मतलब नही, क्योकि मै खुले विचारो का हुं, ओर तंग दिली मुझे पसंद नही, इस लिये उस हंगामे से मै दुर रहा, बाल्कि कई लोगो को समझाता भी रहा कि हम सब बराबर है, चलिये छोडिये उस बात को.

अब आप सोच रहे  होंगे कि कोन सा हंगामा हुआ? को कोन से हंगामे की बात यह कर रहा है? क्योकि यहां तो हम रोज एक हंगामा देखते है, अजी आप इस खबर को पढ कर समझ जायेगे कि मै किस हांगामे की बात कर रहा हुं, ओर  फ़िर एक बार चटका लगा दे यहां ओर देखे यह समाचार जहाँ दलितों को दफ़नाया जाता है, 
भगवान, आल्ल्हा किसी को भी इतना गरीब ओर लाचार ना बनाए

29 comments:

  1. काश!! उपर वाला कुछ सुन पाता...

    ReplyDelete
  2. क्‍या कहें..गांव-जवार या कस्‍बे के अस्‍पताल में अमूमन हर रोज पैसे के अभाव में लोगों को दुर्घटना या बीमारी से मरते देखते हैं..

    ReplyDelete
  3. जंगल के पेड काटकर बेच डाले गए पैसों से किसी ने करोडों कमाए .. और किसी को दाह संस्‍कार करने के लिए लकडियां उपलब्‍ध नहीं .. उफ्फ !!

    ReplyDelete
  4. बहुत दुखद स्थिति।

    ReplyDelete
  5. निर्धनता का यह रूप कष्टदायी है।

    ReplyDelete
  6. वाकई बेहद अफ़सोस जनक, और उस बक्त यह सब देख गुस्सा आता है इन धर्म के ठेकेदारों पर की ऐसे समय में ये हिन्दू-हिन्दू कराहने वाले कहाँ मर जाते है ?

    ReplyDelete
  7. राज जी, हमारे छत्तीसगढ़ में भी कई हिन्दू जातियाँ ऐसी हैं जहाँ पर दफ़नाने का ही प्रावधान है।

    हम लोगों में भी, जहाँ कि शव को जलाने का नियम है, यदि किसी छोटे बच्चे की मृत्यु हो जाये तो उसके शव को जलाने के स्थान पर दफ़नाते ही हैं। कर्मकाण्ड का विधान है यह।

    आप तो छोड़िये इन बातों को, बस मस्त रहिये।

    मस्त रहो मस्ती में!
    आग लगे बस्ती में!!

    ReplyDelete
  8. वाकई बेहद अफ़सोस जनक.........

    ReplyDelete
  9. हमारे लिए बहुत शर्मनाक है।

    ReplyDelete
  10. बहुत दुख दायी और शर्मनाक स्थिती है शुभकामनायें

    ReplyDelete
  11. यह स्थिति दुखद है, शर्मनाक है......उपरवाला सुनेगा....देर से , पर सुनता है

    ReplyDelete
  12. भाटिया जी बस इतना हि कहा जा सकता है कि गरीबी जो न कराए़______

    ReplyDelete
  13. बहुत अफ़्सोसजनक.

    रामराम.

    ReplyDelete
  14. दुखों से भरा हालत है! काश भगवान को सुनायी देता!

    ReplyDelete
  15. यह एक कड़वा सत्य है कि गरीबी का कोई धर्म नहीं होता। अब तो शर्म को भी शर्म आती होगी धर्म के तथाकथित ठेकेदारों को देख कर।

    ReplyDelete
  16. आपकी यह पोस्‍ट अनावश्‍यक लगी, क्‍योकि जिस पोस्‍ट की जिक्र आप कर रहे है उसी पोस्‍ट पर मैने टिप्‍पणी की थी, हिन्‍दुओ संस्कृति में अनेक रीतियाँ है। और उसमे दफनाने और जालने की प्रथा है। कहीं ऐसा नही लिखा कि जो जलाये जायेगे वे हिन्‍दू नही होगे।

    ReplyDelete
  17. कहां चले जाते हैं सारे त्रिशूल चमकाने वाले!

    ReplyDelete
  18. ज़िंदगी के सताए हुए जो मर जाएँगे॥
    मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे॥

    posted by madan lal pandia (gogasarpurohit.blogspot.com)

    ReplyDelete
  19. प्रमेंदर भाई जलाने ओर दफ़नाने की बात नही, क्योकि मरने के बाद आदमी को कुछ भी करो, लेकिन यहां मेने यह पोस्ट इस लिये दी थी कि जब वोटो के नाम पर इन्हे ठगा जाता है,वो वादे करने वाले इन के दरद को नही देखते, जब यह अपना धर्म बदलते है तो हम जेसे हिन्दू चिखते है, हमे अब इन का दर्द क्यो नही दिखाई देता, बस इस कारण से ही मेने यह पोस्ट यहां डाली ओर सब ने सही जबाब भी दिया.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  20. जहाँ अपनी मूर्तियाँ बनवाने में करोडो रूपये खर्च किये जाते है ,कि जीवित रहते हुए जिदा रहने का प्रमाण देने के लिए उस जगह पर मरने वालो के बारे में कौन सोचे ?
    रही हिदू धर्म के ठेकेदारों कि तो उन्हें तो गली गली मंदिर बनाने से फुर्सत कहाँ ?पत्थर को सिन्दूर लगाओ और गली गली के नेताओ के साथ भंडारा खाओ|

    ReplyDelete
  21. मुझे दुःख, सिर्फ अत्यंत गरीबी दशा को देख कर है.
    जलाना - दफनाना कभी राष्ट्रीय मुद्दा नहीं हो सकता.
    सारे जरुरी मुद्दे तो भाषणों और तालियों के बीच दम तोड़ रही है.

    हाँ एक बात और मंदिर निर्माण पर चन्दा करने से अधिक सिद्ध कार्य यही होगा कि अंतिम संस्कार कार्यक्रम में गरीबों को सहयोग किया जाये.

    ReplyDelete
  22. बहुत दुखद है ! जीने को जीते है पर कितना असहनीय लगता होगा जब अपने किसी परिजन को अपने धर्म के मुताबिक अंतिम संस्कार न होते होंगे !! खाने के जिनके लल्ले पड़े रहते हैं लक्डीयों का जुगाड़ कहाँ से करें !!! कुछ सरकारी व्यस्था तो होनी चाहिए!!!

    ReplyDelete
  23. काश!! उपर वाला बहुत कुछ सुन पाता...

    ReplyDelete
  24. कष्टदायी..... पर अपवाद नहीं.. रोज घटती हैं.. सारी प्रकाश में नहीं आ पाती, भाटिया जी..

    ReplyDelete
  25. kisi shaayar ne theek hi kaha hai:
    KHUDA TO MILTA HAI, INSAAN HI NAHIN MILTA!

    ReplyDelete
  26. जब यह अपना धर्म बदलते है तो हम जेसे हिन्दू चिखते है, हमे अब इन का दर्द क्यो नही दिखाई देता, बस इस कारण से ही मेने यह पोस्ट यहां डाली ओर सब ने सही जबाब भी दिया.
    आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ ।

    ReplyDelete

नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये