अब आप सोच रहे होंगे कि कोन सा हंगामा हुआ? को कोन से हंगामे की बात यह कर रहा है? क्योकि यहां तो हम रोज एक हंगामा देखते है, अजी आप इस खबर को पढ कर समझ जायेगे कि मै किस हांगामे की बात कर रहा हुं, ओर फ़िर एक बार चटका लगा दे यहां ओर देखे यह समाचार जहाँ दलितों को दफ़नाया जाता है,
भगवान, आल्ल्हा किसी को भी इतना गरीब ओर लाचार ना बनाए
काश!! उपर वाला कुछ सुन पाता...
ReplyDeleteक्या कहें..गांव-जवार या कस्बे के अस्पताल में अमूमन हर रोज पैसे के अभाव में लोगों को दुर्घटना या बीमारी से मरते देखते हैं..
ReplyDeleteजंगल के पेड काटकर बेच डाले गए पैसों से किसी ने करोडों कमाए .. और किसी को दाह संस्कार करने के लिए लकडियां उपलब्ध नहीं .. उफ्फ !!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबहुत दुखद स्थिति।
ReplyDeleteबहुत दुखद
ReplyDeleteनिर्धनता का यह रूप कष्टदायी है।
ReplyDeleteवाकई बेहद अफ़सोस जनक, और उस बक्त यह सब देख गुस्सा आता है इन धर्म के ठेकेदारों पर की ऐसे समय में ये हिन्दू-हिन्दू कराहने वाले कहाँ मर जाते है ?
ReplyDeleteराज जी, हमारे छत्तीसगढ़ में भी कई हिन्दू जातियाँ ऐसी हैं जहाँ पर दफ़नाने का ही प्रावधान है।
ReplyDeleteहम लोगों में भी, जहाँ कि शव को जलाने का नियम है, यदि किसी छोटे बच्चे की मृत्यु हो जाये तो उसके शव को जलाने के स्थान पर दफ़नाते ही हैं। कर्मकाण्ड का विधान है यह।
आप तो छोड़िये इन बातों को, बस मस्त रहिये।
मस्त रहो मस्ती में!
आग लगे बस्ती में!!
वाकई बेहद अफ़सोस जनक.........
ReplyDeleteहमारे लिए बहुत शर्मनाक है।
ReplyDeleteबहुत दुख दायी और शर्मनाक स्थिती है शुभकामनायें
ReplyDeleteयह स्थिति दुखद है, शर्मनाक है......उपरवाला सुनेगा....देर से , पर सुनता है
ReplyDeleteभाटिया जी बस इतना हि कहा जा सकता है कि गरीबी जो न कराए़______
ReplyDeleteबहुत अफ़्सोसजनक.
ReplyDeleteरामराम.
lajja aur sharm ki baat hai ....
ReplyDeleteदुखों से भरा हालत है! काश भगवान को सुनायी देता!
ReplyDeleteयह एक कड़वा सत्य है कि गरीबी का कोई धर्म नहीं होता। अब तो शर्म को भी शर्म आती होगी धर्म के तथाकथित ठेकेदारों को देख कर।
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट अनावश्यक लगी, क्योकि जिस पोस्ट की जिक्र आप कर रहे है उसी पोस्ट पर मैने टिप्पणी की थी, हिन्दुओ संस्कृति में अनेक रीतियाँ है। और उसमे दफनाने और जालने की प्रथा है। कहीं ऐसा नही लिखा कि जो जलाये जायेगे वे हिन्दू नही होगे।
ReplyDeleteकहां चले जाते हैं सारे त्रिशूल चमकाने वाले!
ReplyDeleteज़िंदगी के सताए हुए जो मर जाएँगे॥
ReplyDeleteमर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे॥
posted by madan lal pandia (gogasarpurohit.blogspot.com)
प्रमेंदर भाई जलाने ओर दफ़नाने की बात नही, क्योकि मरने के बाद आदमी को कुछ भी करो, लेकिन यहां मेने यह पोस्ट इस लिये दी थी कि जब वोटो के नाम पर इन्हे ठगा जाता है,वो वादे करने वाले इन के दरद को नही देखते, जब यह अपना धर्म बदलते है तो हम जेसे हिन्दू चिखते है, हमे अब इन का दर्द क्यो नही दिखाई देता, बस इस कारण से ही मेने यह पोस्ट यहां डाली ओर सब ने सही जबाब भी दिया.
ReplyDeleteधन्यवाद
जहाँ अपनी मूर्तियाँ बनवाने में करोडो रूपये खर्च किये जाते है ,कि जीवित रहते हुए जिदा रहने का प्रमाण देने के लिए उस जगह पर मरने वालो के बारे में कौन सोचे ?
ReplyDeleteरही हिदू धर्म के ठेकेदारों कि तो उन्हें तो गली गली मंदिर बनाने से फुर्सत कहाँ ?पत्थर को सिन्दूर लगाओ और गली गली के नेताओ के साथ भंडारा खाओ|
मुझे दुःख, सिर्फ अत्यंत गरीबी दशा को देख कर है.
ReplyDeleteजलाना - दफनाना कभी राष्ट्रीय मुद्दा नहीं हो सकता.
सारे जरुरी मुद्दे तो भाषणों और तालियों के बीच दम तोड़ रही है.
हाँ एक बात और मंदिर निर्माण पर चन्दा करने से अधिक सिद्ध कार्य यही होगा कि अंतिम संस्कार कार्यक्रम में गरीबों को सहयोग किया जाये.
बहुत दुखद है ! जीने को जीते है पर कितना असहनीय लगता होगा जब अपने किसी परिजन को अपने धर्म के मुताबिक अंतिम संस्कार न होते होंगे !! खाने के जिनके लल्ले पड़े रहते हैं लक्डीयों का जुगाड़ कहाँ से करें !!! कुछ सरकारी व्यस्था तो होनी चाहिए!!!
ReplyDeleteकाश!! उपर वाला बहुत कुछ सुन पाता...
ReplyDeleteकष्टदायी..... पर अपवाद नहीं.. रोज घटती हैं.. सारी प्रकाश में नहीं आ पाती, भाटिया जी..
ReplyDeletekisi shaayar ne theek hi kaha hai:
ReplyDeleteKHUDA TO MILTA HAI, INSAAN HI NAHIN MILTA!
जब यह अपना धर्म बदलते है तो हम जेसे हिन्दू चिखते है, हमे अब इन का दर्द क्यो नही दिखाई देता, बस इस कारण से ही मेने यह पोस्ट यहां डाली ओर सब ने सही जबाब भी दिया.
ReplyDeleteआपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ ।