17/09/09

असली सुख

आज का चिंतन, मेने बहुत पहले बचपन मै किसी बाबा के मुख से सुना था, ओर ऎसे चिंतन मै अकसर अपने बच्चो को कहानी के रुप मे सुनाता रहता हुं, पता नही ठीक है या गलत....
चलिये आप को भी यह चिंतन एक कहानी के रुप मै सुनाता हुं, कल ओर शनि वार को मेरे पास समय ना के बराबर होगा, ओर मै कुछ ही समय आप के चिट्टे पढ पाऊंगा.
तो लिजिये आज का चिंतन....

बहुत समय पहले एक सेठ कही जा रहा था, सेठ बहुत अच्छा ओर दयालू था, उसे आगे जा कर एक साधू मिला, फ़िर दोनो साथ साथ चल पडे,बातो बातो मे सेठ ने अपने मन कि बात साधू बाबा को बतलाई कि बाबा मै सब सुख होते भी अंदर से सुखी नही, मेरे पास धन दोलत की कमी नही, लेकिन मुझे असली सुख कि तलाश है, कोई मेरा आधे से ज्यादा धन ले कर भी मुझे असली सुख दे दे तो मै उसे अपना आधा धन खुशी खुशी देने को तेयार हु,

साधू बाबा काफ़ी देर से देख रहे थे कि सेठ अपने हाथ मे पकडी पोटली को बार बार छुपने कि कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसे खोने के डर से हाथ मै ही रखे थे, कि कही रख दी ओर मेरी आंख लग गई तो ... ओर तब मोका देख कर साधू बाबा सेठ की पोटली झपट कर जंगल की तरफ़ भाग गया, पीछे पीछे सेठ भी शोर मचाता भागा, साधू बाबा तो पतले थे सो फ़ुर्ती से भाग गये, सेठ थोडी दुर भागा, फ़िर थक कर बेठ गया, ओर साधू को तो कभी अपने आप को कोसने लग गया, ओर बहुत दुखी हुया कि मेरे तो काफ़ी सारे हीरे जवहरात तो यह साधू ले भागा, ओर सर झुका कर बेठ गया.
तभी सेठ की झोली मे उस के हीरो की पोटली आ कर गिरी, सेठ ने झट से पोटली उठा कर छाती से लगई, ओर फ़िर पोटली खोल कर देखा सब ठीक ठाक है, तभी उसे साधू बाबा की आवाज आई कि सेठ जी आप को सुख मिला ? सेठ ने कहा हां अब मेरी पोटली मुझे मिल गई अब मै बहुत खुश हुं, मुझे इस पोटली के मिलने से बहुत सुख मिला, बाबा ने कहा, लेकिन इस पोटली के खोने से पहले भी तो तुम ने ही कहा था कि तुम्हे असली सुख चाहिये, सेठ अभी भी नही समझे यह धन दोलत तो नकली सुख है, अगर तुम्हे असली सुख चाहिये तो तुम्हे त्याग, सेवा का धन इकट्टा करना पडेगा, इस धन की जरुरत फ़िर नही पडेगी, यह धन तो दुख का भंडार है, ओर तुम दुख के घर मे रह कर सुख की आस केसे कर सकते हो.....

18 comments:

  1. सेवा सुख समान सुख नाहीं>

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  2. बहुत ही बढ़िया पोस्ट, बढ़िया चिंतन !!
    लगे रहे , शुभकामनाएं !!

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  3. बहुत अच्छा लिखा है आपने ।

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  4. वाह ! बहुत बढ़िया लिखा है आपने !

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  5. इसी प्रकार के सांच को समाज में विकसीत करने की आवश्‍यकता है .. बहुत बढिया !!

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  6. जो आवे संतोष धन सब धन धूरि समानं (संतोष के सामने सब धन धूल के सामान हैं -मतलब सतोष ही सबसे बड़ा धन है )

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  7. राज बाबाजी की जय हो :)

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  8. ज्ञानवर्धक कहानी भाटिया साहब, पैसा/धन सारे सुख नहीं देता, सत्य है !

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  9. ज्ञानवर्धक कहानी भाटिया जी,शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. आपकी इस पोस्ट से अमिताभ जी की एक पोस्ट याद आ गई "मेरा सुख", वैसे कहानी अच्छी है। और सच भी कहती है।

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  11. पिछली बार भी कम्मेन्ट पोस्ट नहीं हुया था बहुत अच्छी कहानी है बधाई

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  12. आप भावी पीढ़ी को संस्कारित कर रहे हैं।
    यह आज के युग में बहुत महत्वपूर्ण कार्य है।
    बधाई!
    कम्मेन्ट तो कल भी किया था परन्तु पोस्ट नहीं हुया था।

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  13. एक ऐसे साधू की तलाश में जिन्दगी चल रही है भाटिया जी! बोध कथा पढ़ का सीधे समझ नहीं आता, जब तक साधू एक बार तड़फा कर दौड़ा न मारे!

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  14. bahut achchhi naseehat hai :)

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  15. मैं भी हीरे जवाहरात त्यागने को तैयार बैठा हूं
    बस शर्त ये है कि कोई पहले दे तो सही.

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  16. सच कहा आपने, सच्चा सुख तो त्याग और सेवा से ही मिलता है।

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  17. बहुत बढ़िया... पर हित सरस धर्म नहीं भाई.......

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  18. परोपकार सबसे बड़ा धर्म कहा गया है..
    बढ़िया प्रस्तुति..बधाई..!!

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