यह लेख मुझे डॉ. वेदप्रताप वैदिक दुवारा ई मेल से भेजा गया हे, इन के अच्छे अच्छे लेख समय समय पर मिलते रहते हे, ओर मुझे यह लेख बहुत अच्छा लगा, वेसे सभी लेख इन के बहुत ही अच्छे होते हे, दिल किया कि यह लेख आप सब से भी बांट लूं, तो लिजिये डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी के लेख की कापी हूबहू मे यहां दे रहा हुं, धन्यवाद.
दाल में कुछ काला जरूर है
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
जनसत्ता, 03 फरवरी 2011 : स्विस बैंकों में भारत का कितना धन जमा है ? विभिन्न रपटों के मुताबिक यह लगभग 70 लाख करोड़ रू. है| यह इतनी बड़ी राशि है कि साधारण आदमी इसका हिसाब ही नहीं लगा सकता लेकिन इसे समझने का एक दूसरा तरीका भी है| अगर हम यह कहें तो बात बहुत जल्दी समझ में आ जाएगी कि यदि इस राशि को भारत के गरीबों में बांट दें तो एक ही रात में 70 करोड़ गरीब लोग लखपति बन जाएंगे| जो आदमी 20 रू. रोज़ पर गुजारा कर रहा है, उसके हाथ में एक लाख रू. आ जाए तो वह क्या नहीं कर सकता ? क्या वह भूखा मरेगा ? क्या वह ठंड से ठिठुर कर जान देगा ? क्या वह बिना दवाई के दम तोड़ने को मजबूर होगा ? क्या वह भीख मांगेगा ? क्या वह आत्महत्या करेगा ? भारत के 30-35 करोड़ लोग तो यों ही खुशहाल हैं| वे मध्यम वर्ग के हैं| रोटी, कपड़ा मकान, शिक्षा और चिकित्सा उन्हें सुलभ है| यदि स्विस बैंकों से हमारा पैसा वापस आ जाए तो क्या पूरा भारत स्वर्ग नहीं बन जाएगा ?
हमारा पैसा सिर्फ स्विस बैंकों में ही नहीं है| यह दुनिया के अन्य लगभग 70 देशों के बैंकों में छिपाकर रखा गया है| इनमें से कई राष्ट्र तो दिल्ली के कुछ मोहल्लों से भी छोटे हैं लेकिन उन्होंने भारत जैसे विशाल राष्ट्रों की पूंजी को अपना बंधक बना रखा है| दुनिया के अनेक देश तो इस काले धन को सहज़ने के कारण ही जिंदा है| लिश्टेन्सटाइन, मोनेको, दुबई, वर्जिन आइलैंड, केमेन आइलैंड आदि में अरबों-खरबों रूपया छिपाकर रखा जाता है| इस छिपे हुए कुल धन की राशि लगभग 12 हजार बिलियन डॉलर मानी जाती है| यह विश्व राशि है| अकेले स्विटजरलैंड में जो काला धन जमा है, उसमें भारत सबसे आगे है| रूस के 470 बिलियन, उक्रेन के 100 बिलियन, चीन के 96 बिलियन और अकेले भारत के 1456 बिलियन डॉलर जमा है| याने ये सब मिलकर भी भारत के बराबर नहीं हैं| दुनिया की कुल धनराशि का 57 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ 1 प्रतिशत लोगों की अण्टी में जमा है| ये ही लोग इस धन को इन गोपनीय खातों में जमा करते हैं| यह पैसा हमेशा व्यापार से नहीं कमाया जाता| इसमें से ज्यादातर पैसा तस्करी, रिश्वत, ब्लेकमेलिंग, लूट, चोरी, दलाली और धांधली का होता है| व्यापार से कमाया हुआ पैसा इन बैंकों में इसलिए जमा किया जाता है कि उस पर टैक्स न देना पड़े लेकिन ऐसा पैसा कितना होता है ? इसके बावजूद स्विस बैंक सारे पैसे का टैक्स-बचत का पैसा मानकर चलती है याने उसे वह अपराध नहीं मानती|
भारत सरकार भी उसे शायद अपराध नहीं मानती| इसीलिए उसने स्विटरजरलैंड के उस लचर-पचर समझौते पर दस्तखत कर दिए, जो सिर्फ टैक्स-चोरी के मामले में मदद करने का आश्वासन देता है| इस समझौते का नाम है, ''दोहरे कराधान से बचाव का समझौता''| याने टैक्स-चोरों को पूर्ण संरक्षण| कितनी मजेदार बात है कि टैक्स-चोरों को दो-दो बार टैक्स न भरना पड़ जाए, इसकी चिंता भारत सरकार को है| ऐसी सरकार उन्हें पकड़कर कानून के हवाले क्यों करेेगी ? जर्मनी से हुई संधि में भारत सरकार ने कर-चोरों के नाम छुपाए रखने का भी वादा किया हुआ है| याने सबसे पहले तो अपराधियों को अपराधी कहने में भारत सरकार को वही झिझक है, जो इन बैकों को है| ऐसा करने से इन बैकों को लाखों-करोड़ों डॉलर का फायदा होता है लेकिन भारत सरकार को क्या फायदा है ? भारत सरकार इस मिलीभगत में शामिल क्यों दिखाई पड़ रही है ? हमारे उच्चतम न्यायालय ने ठीक ही कहा है कि 'हमारी राष्ट्रीय संपत्ति की लूट मची हुई है और सरकार अंतरराष्ट्रीय संधियों की रट लगाए हुए है|'
आज हमें यह तय करना है कि इस देश का शासन कौन चलाएगा ? अंतरराष्ट्रीय समझौते चलाएंगे या भारत की संसद चलाएगी ? भारत सार्वभौम राष्ट्र है या नहीं ? यदि है तो उस पर कोई भी अंतरराष्ट्रीय समझौता कैसे थोपा जा सकता है ? अपने राष्ट्रहित की रक्षा के लिए कमजोर राष्ट्र भी युद्घ की घोषणा कर देते हैं लेकिन हम 'दोहरा कराधान समझौता' भंग करने से भी डर रहे हैं| यदि हमने समझौता भंग कर दिया तो क्या होगा ? जर्मनी ने हमें जो 26 नाम दिए हैं, उसके बाद वह नए नाम नहीं देगा| उसे मत देने दें| यदि भारत सरकार देश के अंदर ही काले धन के विरूद्घ पेंच कसकर घुमा दे तो विदेशी बैकों के खाताधारियों के नाम टपाटप टपकने लगेंगे| यदि अंतरराष्ट्रीय दबाव की परवाह किए बिना भारतीय संसद परमाणु हर्जाना कानून पास कर सकती है तो काले धन की वापसी का कठोर कानून क्यों नहीं पास कर सकती ? भारत सरकार का कुल सालाना टैक्स संग्रह 7-8 लाख हजार रूपए होता है| इसका 10-12 गुना विदेशी बैकों में पड़ा हुआ है| यदि यह पैसा वापस आ जाए तो अगले 10 साल तक भारत के किसी भी नागरिक को कोई भी टैक्स देने की जरूरत नहीं है| यदि यह सरकार हमारा पैसा वापस नहीं लाती है तो अब भारत के नागरिकों को चाहिए कि वे सरकार को टैक्स देना बंद कर दे| वैसी ही सिविल नाफरमानी शुरू कर दें जैसे गांधीजी ने अंग्रेजों के विरूद्घ की थी| साफ पता चल जाएगा कि यह सरकार भारत की जनता के प्रति उत्तरदायी है या विदेशों की भ्रष्ट सरकारों के प्रति !
भारत स्विस सरकार से यह क्यों नहीं कह सकता कि अगर वह सभी गुप्त भारतीय खाताधारियों के नाम नहीं बताएगी और सारा पैसा भारत नहीं भेजेगी तो भारत उससे अपने राजनयिक संबंध भंग कर देगा ? इतना ही नहीं, वह संयुक्तराष्ट्र तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्विटजरलैंड को 'विश्व-शत्रु' राष्ट्र घोषित करवाएगा, ऐसा राष्ट्र जो संसार के वित्तीय अपराधों का सबसे घृणित गढ़ है| संयुक्तराष्ट्र ने 2003 में काले धन संबंधी जो भ्रष्ट्राचार-विरोधी प्रस्ताव पारित किया था, उस पर भारत समेत 140 देशों ने हस्ताक्षर किए थे| वे सब देश भारत का समर्थन करेंगे लेकिन अफसोस यह है कि भारत सरकार ने अभी तक उस समझौते का पुष्टिकरण नहीं किया है| भारत को चाहिए कि वह सारी दुनिया की बैंकिंग व्यवस्था के शुद्घिकरण का अभियान चलाए|
दुनिया के बैकों में छिपाया गया पैसा क्या वहां उसी तरह चुपचाप पड़ा रहता है जैसे जमीन में गड़ा हुआ धन ? नहीं, बिल्कुल नहीं| यह पैसा तस्करी, आतंकवाद और रिश्वतखोरी के काम आता है| यह वही पैसा है, जो हमारे चुनावों को भ्रष्ट करता है| जो हमारी लोकतांत्र्िक व्यवस्था को अंदर से खोखला करता है| इस पैसे के दम पर ही दुनिया के तानाशाह अपना सीना ताने रहते हैं| यह कितनी विडंबना है कि लोकतंत्र् और मानवीय मूल्यों की दुहाई देनेवाले पश्चिमी राष्ट्र दुनिया के चोरों और लुटेरों के शरण-स्थल बन गए हैं| ये लोग दुनिया के सबसे शक्तिशाली माफिया हैं| अमेरिका ने कठोर कानून बनाकर इस माफिया से अपने राष्ट्रहित की सुरक्षा तो कर ली लेकिन उसने इस माफिया को सुरक्षित ही छोड़ दिया| भारत तो अपने राष्ट्रहित की रक्षा भी नहीं कर पा रहा है| भारत चाहे तो वह अमेरिका से भी अधिक उग्र भूमिका निभा सकता है| अपने आप को सूचना तकनीक की महाशक्ति माननेवाला भारत इन अवैध अंतरराष्ट्रीय खातों का भंडाफोड़ क्यों नहीं करता ? अपने खाताधारियों की सूचना पाने के लिए उसे पिद्दी-से राष्ट्रों के आगे गिड़गिड़ाना क्यों पड़ रहा है ?
भारत सरकार ने पूंजी पलायन के विरूद्घ 2003 में कानून बनाया और 2005 में उसे लागू कर दिया| फिर भी वह संकोचग्रस्त मालूम पड़ती है| आखिर क्यों ? उसे पता है कि हर साल लगभग 80 हजार भारतीय लोग स्विटजरलैंड जाते हैं और उनमें से 25 हजार कई बार जाते हैं| इन लोगों पर कड़ी निगरानी क्यों नहीं रखी जाती ? संदेहास्पद लोगों को भारत में गिरफ्रतार क्यों नहीं किया जाता ? उनकी चल-अचल संपत्ति जब्त क्यों नहीं की जाती ? उनकी नागरिकता समाप्त क्यों नही की जाती ? उन्हें मजबूर क्यों नहीं किया जाता कि वे सारी संपत्ति वापस लाएं ? उनके नाम बताए बिना भी सरकार सारा काम कर सकती है| यदि यह सरकार असीमानंद और नीरा राडिया के टेप लीक कर सकती है तो इन लुटेरे खाताधारियों के नाम क्यों नहीं लीक कर सकती ? क्या इनसे उसकी कोई मधुर रिश्तेदारी है ? लेकिन सरकार की घिग्घी बंधी हुई लगती है| आखिर क्यों ?
इसका मूल कारण हमारे भ्रष्ट नेता और अफसर हैं| वे अपने काले धन को उजागर क्यों होने देंगे ? वह व्यापार का नहीं, रिश्वत और ब्लैकमेल का पैसा है| तस्करों और आतंकवादियों से सांठ-गांठ का पैसा है ! हथियारों की दलाली का पैसा है ! इस पैसे को बाहर नहीं निकलवाकर कांग्रेस अपनी कब्र खुद खोद रही है| कांग्रेस जैसी महान पार्टी का कितना दुर्भाग्य है कि आज उसके पास चंद्रशेखर और कृष्णकांत जैसे युवा तर्क नहीं हैं और फिरोज घंदी (घंदी) जैसे निर्भीक सांसद नहीं हैं, जो कुंभकर्ण की नींद सोए नेतृत्व को झकझोर डालें| देश का हर दल मांग कर रहा है कि यह पैसा वापस लाओ लेकिन इस मुद्रदे पर अकेली कांग्रेस हकलाती हुई दिखाई पड़ रही है| इसका अर्थ लोग क्या लगाएंगे ? दाल में कुछ काला जरूर है| यह काला धन ही सारे भ्रष्टाचार की जड़ है| वास्तव में यह देश-द्रोह है| यदि कांग्रेस सरकार ने इसके विरूद्घ निर्मम कार्रवाई नहीं की तो अगले चुनाव के बाद वह खुद ही अपने आप को किसी स्विस लॉकर में बंद हुआ पाएगी| अभी भी ढिलाई दिखाकर सरकार ने कर-चोरों के लिए काफी चोर-दरवाज़े खोल दिए हैं| स्विस-बैंकों और भारतीय खाताधारियों को उसने तिकड़म की छूट दे दी है लेकिन अब भी वह चाहे तेा खुद को कलंकित होने से बचा सकती है| भारत सरकार के लिए क्या यह काफी शर्म की बात नहीं होगी कि अगले कुछ हफ्रतों में 'विकीलीक्स' के मालिक जूलियन असांज कुछ भारतीय नामों को उजागर कर देंगे ? उनके पास 2000 गुप्त खातों की सीडी पहुंच चुकी है| भारत का हर नागरिक इन खाताधारियों का भंडाफोड़ चाहता है| यदि असांज ने वैसा कर दिया तो असांज के मुकाबले हमारे प्रधानमंत्री की हैसियत क्या रह जाएगी ?
(लेखक, भारतीय विदेशनीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी
ReplyDeleteख्याति प्राप्त विशेषज्ञय हैं ..आपने उनके लेख को यहाँ जगह देकर बहुत सराहनीय कार्य किया ....जिस और उन्होंने ध्यान आकर्षित किया है ...उनके सभी मतों से सहमति जताना उचित है ....शुक्रिया आपका
लूट सके तो लूट।
ReplyDeleteविचारणीय लेख.... पूरी दाल काली.
ReplyDeleteविचारोत्तेजक आलेख पढवाने का शुक्रिया।
ReplyDeleteवैदिक जी के सुझाव जो व्यावहारिक भी हैं पर अमल किया जाना चाहिए, मगर इसके लिए दृढ इच्छाशक्ति है किसके पास !
ReplyDeleteवैदिक जी की विचारणीय पोस्ट साझा करने का आभार ...
ReplyDeleteसच में देश में लूट ही मची है.....
कांग्रेस की लुटिया इसी से तो डूबेगी !
ReplyDeleteराज जी ,
ReplyDeleteदाल में काला ही काला है । मनमोहन सरकार कों डर है कि वो बेनकाब हो जायेंगे। लेकिन बदनाम तो उन्हें हर हाल में होना ही है , क्यूंकि वो हर मोर्चे पर गलत पाए गए हैं। अब तो उनके लिए अच्छा यही होगा कि तख्ता पलटने के पहले कुछ ढंग का काम करें । देश का पैसा वापस लायें , सभी नामों कों उजागर कर दें । अपने दोषों कों भी कबूल कर लें और एक नए सिरे से सरकार चलायें। इस प्रकार यदि कुछ पुन्य कर लें तो गरीब जनता का भी भला होगा । और इनका भी परलोक सुधर जाएगा।
BTW: इस हमारे प्रधान मंत्री की हैसियत यों भी अभी है क्या ?
ReplyDeleteकांग्रेस इस बात का इन्तज़ार कर रही है कि स्विस बैंक की लिस्ट में 8-10 भाजपाईयों के नाम भी मिल जायें तब 100-150 कांग्रेसियों के नाम भी साथ में ज़ाहिर कर दें… ताकि कहा जा सके कि "देखो-देखो-देखो… वो भी तो चोर है…" :) :) जैसा कि कर्नाटक में हो रहा है… देवेगौड़ा, धरमसिंह, कृष्णा सभी ने मिलकर जमीनें लूटीं, येदियुरप्पा ने लूटी हुई जमीन वापस कर दी, फ़िर भी "भारद्वाज दलाल" के जरिये परेशान किया जा रहा है…
ReplyDeleteयही सब काले धन वालों की सूची में भी होगा… इसलिये कांग्रेस इन्तज़ार कर रही है कि 5-10 नाम तो BJP वालों के मिलें… फ़िर एक साथ घोषित किये जाएं…
सचमुच दाल में काला है।
ReplyDeleteविदेशी बैंकों का पैसा वापस लाने के लिए अब जन आंदोलन होना चाहिए।
क्या लोजिक है.. सुरेश भाई.. वाह...
ReplyDeleteबहुत ही विचारोत्तेजक आलेख...शुक्रिया यहाँ शेयर करने का
ReplyDeleteचोरों से इमानदारी की अपेक्षा क्या करें ???
ReplyDeleteसारे मिल अपनी दुआएं लगा दीजिये कि असांजे या इन जैसा ही कोई कच्चे चिट्ठे खोल डाले...
काली दाल में तो सब काला ही होगा!
ReplyDeleteहम भी यही सोच रहे हैं .....
ReplyDeleteदल में कुछ न कुछ तो गड़बड़ है .....
अपनों ने हमें लूटा (लुटवाया), गैरों में कहां दम था..
ReplyDeleteजुलाहों में अच्छी लट्ठमलट्ठ चल रही है :)
ReplyDeleteaadarniy raj ji
ReplyDeleteaapki post bahut kuchh sochne ko majbur karti hai. vastav me yah ek vicharniy prashn hai ki kya puri daal hi kali hai ya dal me hi kuchh kala hai.
is gahn vishay ko behatreen tareeke se abhivyakt karne ke liye vham sabse sajha karne ke liye aapko bahut bahut badhai----
poonam
jiske paas jitna adhik hota hai uska man utna chhota hota hai .sundar aur sarthak lekh .
ReplyDeleteसमसामयिक चिंतन है आपका . मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान
ReplyDeleteहमारे यहाँ के वो डाकू इनसे लाख गुना अच्छे थे. देश में डाका डाल कर देश का धन देश में ही रखते थे, लेकिन आज के डाकू तो स्विस-बैंक में जमा कर रहे हैं .
ReplyDeleteबदायूनी कहावत है - अन्धाधुन्ध दरबार में गधे पंजीरी खायं ...
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