चलिये आज आप को हम भारत ले चले, एक बात बताने ओर पुछने के लिये....
अभी नवम्बर मे जब मै भारत आया, तो मोसम बहुत अच्छा था, ओर मै इस बार कुछ ज्यादा समय के लिये आया था, काम तो कोई खास नही था, बस युही मन बनाया ओर आ गया, कई बार सोचा कि चलो कही घुम आये, लेकिन बच्चो के बिना कहां मजा घुमने का, फ़िर दोस्तो ने दिल्ली से कहा, ओर ससुराल वालो ने भी कहा कि अरे कहां होटलो का खाना खाओगे, हमारे यहां दिल्ली मे ही रह लो,लेकिन हम ने मुंडी हिला कर मुस्कुरा कर सब को मना कर दिया,ओर बता दिया कि इस बार खाना तो हम घर पर ही बनवायेगे ओर घर पर ही सोयेगे.
दुसरे दिन हम रोहतक पहुच गये, रास्ते मे अन्तर सोहिल जी मिल गये, ओर यह सारा दिन उन के संग रोहतक मे बिताया, रात को वो चलेगये, तो हम भी सोने चलेगये, फ़िर दुसरे दिन नाशते मे सिर्फ़ ब्रेड ओर अंडे ही खाये फ़िर खाने का जुगाड ओर खाना बनाने वाली को ढुढा,
अब कोई काम तो था नही घुमे, खाया घुमे फ़िर खाया फ़िर घुमे... या फ़िर हम अपने बारमदे मे बेठ कर हर आते जाते को देख लेते, जो भी आता जाता हमे नमस्ते करता हम भी हाथ जोड कर जबाब दे देते, पहचानाने के लिये हमे समय लगता था, ओर जिसे पहचान गये उन से चार बाते कर लेते, एक दिन हम बारमदे मे बेठे धुप सेक रहे थे, तभी एक तरफ़ से दो स्कुटर आये, जिस पर दो लडकियां बेठी थी, पुरा मुहं ढ्के ओर ऊपर से सर को भी पुरी तरह से ढक रखा था,बिलकुल सुलताना डाकू की तरह से.
हम ने तो ऎसी नारिया अपनी जिन्दगी मे पहली बार देखी थी, फ़िर हमारे पास समय ही समय था, ओर हमारी रुचि उन सुंदरियो मे बढी, ओर हमारी नजर उन का पीछा करने लगी, (हमारी सडक मे एक तरफ़ सात ही मकान हे, दुसरी तरफ़ भी सात ही मकान हे, ओर हमारा घर बिलकुल बीच वाला हे यानि तीन इधर तीन उधर)
अब वो लडकियां सडक के दुसरे कोने से थोडा पहले ही रुक गई, ओर वही स्कूटर को स्टार्ट रख के खडी हो गई, हम भी उन्हे देख रहे हे चोरी चोरी, तभी देखा कि कोने वाले मकान से एक नोजवान आया ओर कार का दरवाजा खोल कर(लांक) चला गया, फ़िर एक लडकी अपने स्कुटर से नीचे उतरी, स्कुटर को बन्द किया सर से ओर मुंह से दुपटा हटाया ओर कार मे जा कर बेठ गई, थोडी देर बादएक अन्य नोजवान आया ओर उस स्कुटर को ले कर चला गया, फ़िर एक पहले वाला नोजवान आया ओर कार को ले कर वहां से निकला ओर फ़िर वापिस मेरे घर के सामने से चल गया, अब लडकी ने मुंह पर रुमाल रख लिया था, यह सब देखा तो मुझे अजीब लगा....
उसी दिन शाम को करीब ४,५ घंटो के बाद मै अपनी मोसी के घर बेठा था, भाभी चाय बना कर लाई, तो मैने उन से युही बाते कर रहा था, कि तभी वो कार दिखाई दी, मैने भाभी से कहा कि यह कार अब वहां जा कर रुकेगी, फ़िर इस मै से एक लडका निकल कर जायेगा, फ़िर एक दुसरा लडका स्कूटर ले कर आयेगा, फ़िर इस कार से एक लडकी निकलेगी, ओर अपना मुंह डाकू की तरह से ढक लेगी, फ़िर उस स्कूटर पर बेठ कर हमारे सामने से जायेगी, फ़िर पहले वाला लडका उस कार को बंद करने आये गा, मेरी बाते सुन कर भाभी बोली तुझे केसे पता.... तो मैने कहा अब पहले देखो, तो वो कार दो चक्कर मार कर अपनी जगह रुकी.... ओर वही सब जो मैने भाभी को बताया हुआ, अब भाई ने पुछा कि तुझे यह सब केसे पता था? तो मेने बताया कि मैने इन्हे दोपहर को देखा था.... अब यह सब क्या था? मुझे नही पता, ओर मेने वहां कोई पंगा भी नही लिया
अभी नवम्बर मे जब मै भारत आया, तो मोसम बहुत अच्छा था, ओर मै इस बार कुछ ज्यादा समय के लिये आया था, काम तो कोई खास नही था, बस युही मन बनाया ओर आ गया, कई बार सोचा कि चलो कही घुम आये, लेकिन बच्चो के बिना कहां मजा घुमने का, फ़िर दोस्तो ने दिल्ली से कहा, ओर ससुराल वालो ने भी कहा कि अरे कहां होटलो का खाना खाओगे, हमारे यहां दिल्ली मे ही रह लो,लेकिन हम ने मुंडी हिला कर मुस्कुरा कर सब को मना कर दिया,ओर बता दिया कि इस बार खाना तो हम घर पर ही बनवायेगे ओर घर पर ही सोयेगे.
दुसरे दिन हम रोहतक पहुच गये, रास्ते मे अन्तर सोहिल जी मिल गये, ओर यह सारा दिन उन के संग रोहतक मे बिताया, रात को वो चलेगये, तो हम भी सोने चलेगये, फ़िर दुसरे दिन नाशते मे सिर्फ़ ब्रेड ओर अंडे ही खाये फ़िर खाने का जुगाड ओर खाना बनाने वाली को ढुढा,
अब कोई काम तो था नही घुमे, खाया घुमे फ़िर खाया फ़िर घुमे... या फ़िर हम अपने बारमदे मे बेठ कर हर आते जाते को देख लेते, जो भी आता जाता हमे नमस्ते करता हम भी हाथ जोड कर जबाब दे देते, पहचानाने के लिये हमे समय लगता था, ओर जिसे पहचान गये उन से चार बाते कर लेते, एक दिन हम बारमदे मे बेठे धुप सेक रहे थे, तभी एक तरफ़ से दो स्कुटर आये, जिस पर दो लडकियां बेठी थी, पुरा मुहं ढ्के ओर ऊपर से सर को भी पुरी तरह से ढक रखा था,बिलकुल सुलताना डाकू की तरह से.
हम ने तो ऎसी नारिया अपनी जिन्दगी मे पहली बार देखी थी, फ़िर हमारे पास समय ही समय था, ओर हमारी रुचि उन सुंदरियो मे बढी, ओर हमारी नजर उन का पीछा करने लगी, (हमारी सडक मे एक तरफ़ सात ही मकान हे, दुसरी तरफ़ भी सात ही मकान हे, ओर हमारा घर बिलकुल बीच वाला हे यानि तीन इधर तीन उधर)
अब वो लडकियां सडक के दुसरे कोने से थोडा पहले ही रुक गई, ओर वही स्कूटर को स्टार्ट रख के खडी हो गई, हम भी उन्हे देख रहे हे चोरी चोरी, तभी देखा कि कोने वाले मकान से एक नोजवान आया ओर कार का दरवाजा खोल कर(लांक) चला गया, फ़िर एक लडकी अपने स्कुटर से नीचे उतरी, स्कुटर को बन्द किया सर से ओर मुंह से दुपटा हटाया ओर कार मे जा कर बेठ गई, थोडी देर बादएक अन्य नोजवान आया ओर उस स्कुटर को ले कर चला गया, फ़िर एक पहले वाला नोजवान आया ओर कार को ले कर वहां से निकला ओर फ़िर वापिस मेरे घर के सामने से चल गया, अब लडकी ने मुंह पर रुमाल रख लिया था, यह सब देखा तो मुझे अजीब लगा....
उसी दिन शाम को करीब ४,५ घंटो के बाद मै अपनी मोसी के घर बेठा था, भाभी चाय बना कर लाई, तो मैने उन से युही बाते कर रहा था, कि तभी वो कार दिखाई दी, मैने भाभी से कहा कि यह कार अब वहां जा कर रुकेगी, फ़िर इस मै से एक लडका निकल कर जायेगा, फ़िर एक दुसरा लडका स्कूटर ले कर आयेगा, फ़िर इस कार से एक लडकी निकलेगी, ओर अपना मुंह डाकू की तरह से ढक लेगी, फ़िर उस स्कूटर पर बेठ कर हमारे सामने से जायेगी, फ़िर पहले वाला लडका उस कार को बंद करने आये गा, मेरी बाते सुन कर भाभी बोली तुझे केसे पता.... तो मैने कहा अब पहले देखो, तो वो कार दो चक्कर मार कर अपनी जगह रुकी.... ओर वही सब जो मैने भाभी को बताया हुआ, अब भाई ने पुछा कि तुझे यह सब केसे पता था? तो मेने बताया कि मैने इन्हे दोपहर को देखा था.... अब यह सब क्या था? मुझे नही पता, ओर मेने वहां कोई पंगा भी नही लिया
वक़्त ही ऐसा है ..क्या कहें ...चुप रहा भी न जाये ..कुछ कहा भी न जाये ....दर्द यह कैसा
ReplyDeleteनमस्ते जी,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पर पहली बार आया। आपकी वर्णन शैली मुझे बड़ी प्यारी लगी। वैसे क्या हुआ, मुझे भी पता नहीं चला। धन्यवाद।
रोचक अति रोचक आप शर्लक होम्स बन गए .... :)
ReplyDeleteक्या यह महज संयोग है कि यही मुद्दा समीरलाल जी ने उठाया ,मगर उनका स्पष्टीकरण सही नहीं निकला ..आप तो बिलकुल वही बात प्रमाणित कर दिए जैसा समीर लाल जीकी पोस्ट पर खुशदीप जी ने कमेन्ट किया था .... :)
बहुत कुछ बाक़ी है इस आलेख के पीछे की कहानी, ऐसा प्रतीत हो रहा है।
ReplyDeleteशो पूरा हुआ, पंगा लेने की बात ही क्यों.
ReplyDeleteपरदे के पीछे मत जाना मेरे भाई ...
ReplyDeleteयुवाओं की कल्पनाशीलता पर कोई शक नहीं होना चाहिये आपको।
ReplyDeleteपहले तो आप ये बताईये जी कि आप फरवरी में कब आये ? :)
ReplyDeleteफरवरी तो आज से शुरु हुई है। हा-हा-हा
खैर,
जो घटनायें आपने बताई हैं, ऐसा तरीका
कॉलगर्ल और दलाल टाईप के लोग अपनाते हैं।
आजकल छोटे शहरों में भी वेश्यावृति का धंधा जोरों पर है और अच्छे घरों के बच्चे इन कामों में फंसे हैं।
प्रणाम स्वीकार करें
भाटिया साहब , आप भी कहाँ फँस गए जर्मनी में जाकर ! आपको तो स्क्रिप्ट राइटर होना चाहिए था या, फिर टीवी सीरिअल का कलाकार मसलन राजा रेंचो अथवा एसीपी अर्जुन :)
ReplyDeleteअच्छा किया जी वहां कोई पंगा भी नही लिया :)
ReplyDeleteआपकी उड़ान बहुत सार्थक रही!
ReplyDeleteराज भाई आप पंगा लेकर भी क्या कर लेते? बस जमाने को देखो।
ReplyDeletekya kare bhatiya sir,na jane kya ho gaya hai sabko ,sab ke sab pagal huye ja rehe hai
ReplyDeleteइस वाक्या का वयां आपने बड़े दिलचस्प अंदाज में किया। पसंद आया। बाकी सब के बारे में क्या कहे?
ReplyDeleteभाटिया जी , गंदा है पर धंधा है ।
ReplyDeleteवैसे जर्मनी में भी होता होगा । बस वहां मूंह नहीं ढकती होंगी ।
दाल जल रही है.. बू आ रही है.. कुछ तो है.. पता नहीं क्या..
ReplyDeleteतफतीश कीजिये और बताइए क्या था...
पतन की कोई सीमा नहीं..
ReplyDelete@अन्तर सोहिल जी गलती सुधार ली हे, आप का धन्यवाद,
ReplyDelete@ डॉ टी एस दराल जी यहां सब खुल्म खुला होता हे, हमे बुरा भी नही लगता, इस के दो कारण हे, पहला तो यह इन लोगो का समाज हे, इन का अपना कल्चर हे हम बाहर से आये हे, ओर हमे इन के बारे पुरा ओर सही नही पता,
दुसरा यह हमारे अपने नही, जब की भारत वासी अपने हे, ओर जब कोई भी भारत वासी अच्छा करता हे तो हमारा सर ऊंचा होता हे ओर गंदा करता हे तो शर्मा से झुक जाता हे, ओर उस पर गुस्सा आता हे, अगर मे वहां रहता तो जरुर आवाज उठाता, आप सब का धन्यवाद
आपने शायद दोगले समाज का ही एक सच देखा .....
ReplyDeleteअज कल तो हर गली मोहल्ले मे ऐसे सीन दिखाई दे जाते है। पंगा कौन ले इन से। शुभकामनायें।
ReplyDeleteहमारे आस-पास बहुत सी बातें होती रहती है .....देखने वाला नजरिया चाहिए .....सही-सही विश्लेषण भी ..
ReplyDeleteबस देखते जाइये चुपचाप...
ReplyDeleteनमस्कार भाटिया जी । कृपया मेरे ये दो ब्लाग . ब्लाग परिवार
ReplyDeleteमें शामिल करने की कृपा करें ।
SEARCHOFTRUTH-RAJEEV.blogspot.com
OHMYGOD-RAJEEV.blogspot.com
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ReplyDelete@--भारत वासी अपने हे, ओर जब कोई भी भारत वासी अच्छा करता हे तो हमारा सर ऊंचा होता हे ओर गंदा करता हे तो शर्मा से झुक जाता हे, ओर उस पर गुस्सा आता हे....
भाटिया जी ,
टिपण्णी में लिखी आपकी उपरोक्त बात से पूरी तरह सहमत हूँ। विदेश में क्या हो रहा है , क्या नहीं , कुछ फरक नहीं पड़ता , लेकिन अपने देशवासियों कों जब गलत करते देखते हैं तो दुःख होता है और गुस्सा भी आता है , क्यूंकि वो हमारे अपने हैं।
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क्या किया जाय.... समाज की यह भी एक सच्चाई है. अफ़सोस तो होता है. ......
ReplyDeleteयह बीमारी हर शहर में बढ़ गयी है.
ReplyDeleteनो कमेंट (आज).
ReplyDeleteA nice story.
ReplyDeleteKindly visit http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com/
बसंत पंचमी की आपको भी बहुत बहुत बधाई हो , धन्यवाद भी बहुत बहुत आपका ...
ReplyDeletepichhli kai sari posts padhee ..aap to interesting likhte hain ...