मै २२/११ को दिल्ली आ गया, शाम हो गई थी, दो दिन युही दिल्ली मे रहा, मन तो कब का बच्चो की ओर था,फ़िर आई २५ तारीख, ओर मैने शुक्र किया,पेकिंग तो पहले ही हो गई थी, सीट भी मैने नेट से बुक कर दी थी, ओर चेंक इन भी मैने नेट से ही कर दिया, अब बस समान देना बाकी था, ओर सारा दिन मैने घडी देख कर बिताया.
रात का खाना भी मुझे अच्छा नही लगा, फ़िर वादे के अनुसार आज मुझे गोलगप्पे, चाट, आईस क्रीम ओर भी पता नही क्या क्या खिलाया बच्चो ने, वेसे मै इन सब चीजो से दुर रहता हुं भारत आ कर, फ़िर रात के दस बजे टेक्सी आ गई, ओर हम पहुच गये एयर पोर्ट पर, समान बगेरा दो मिंट मे दे दिया, फ़िर इमिग्रेशन पर पहुचे बाप रे यहां तो पहले से भी ज्यादा भीड थी, हम भी एक विदेशियो की लाईन मै लग गये, लेकिन तभी एक नया काऊंटर खुला** पी आई ओ** के लिये तो हमारा ना० भी झट से आ गया, फ़िर हमारे हेंड बेग की ओर हमारी चेकिंग हुयी, ओर हम चल पडे अपनी बेलगाडी की ओर....
एयर पोर्ट देख कर खुशी हुयी, लेकिन कुछ कमियां रह गई जो इस खुब सुरती पर एक दाग दिखती हे, जेसे जहां भी देखो सफ़ाई कर्मचारी अपने साधारण कपडो मे दिखे, अरे इन्हे कम से कम दो तीन जोडी वर्दी तो दो, फ़िर कलीन देख कर मन खिन्न हुआ, यह जल्द ही गंदा होगा, वेसे भी अच्छा नही लगा, साधारण फ़र्श होता तो बहुत अच्छा लगता ओर सफ़ाई भी खुब रहती, वेसे सफ़ाई तो अब भी बहुत थी, हम अपनी मजिंल कॊ ओर जा रहे थे, चेन से, तभी एक लडकी अपने बेग को उठाये हाफ़ंती हुयी दिखाई दी, कुछ घबराई सी.
मेरे पास आ कर बोली क्या यह रास्ता ७ बी की तरफ़ ही जा रहा हे? मैने मुस्कुरा कर कहा आप को बुरी तरह सांस चढी हे पहले आप आराम से खडी हो कर सांस ले, अरे इस बेग को नीचे रख दे..... फ़िर मैने उस से कहा आप पेरिस जा रही हे ना, तो अभी तो बहुत समय हे फ़लाईट का मस्ती से चलो मैने भी ए एफ़ २२५ से ही जाना हे, तो वो लडकी बोली कि मै पहली बार जहाज मे बेठ रही हुयी, ओर बहुत घवराई हुयी हुं, इतनी देर मै हम बाते करते करते कब वेटिंग रुम मै पहुच गये पता ही नही चला.
फ़िर मैने उस की सीट ना० देखी ओर उसे बताया कि आप की सीट काफ़ी पीछे हे, ओर थोडी बहुत ओर बाते बताई, कि घबराना नही, ओर भी अन्य बाते, फ़िर मै बेमतलब युही इधर उधर घुमता रहा,ओर थोडी देर मै बोर्डिंग का समय हो गया, ओर सब धीरे धीरे अपनी अपनी सीटॊ पर बेठ गये,जाते समय मैने उस लडकी से कहा कोई भी काम हो तो मुझे या साथ वाले से पुछ लेना सभी मदद करेगे.
मेरे साथ वाली दो सीट खाली थी, ओर जहाज के दरवाजे बंद हो गये थे, तो मै मन मे बहुत खुश हुया कि चलो आज भी सोते जायेगे, लेकिन तभी पीछे से एक गोरी ने आ कर एक सीट पर कब्जा कर लिया, ओर अपने पति से बोली तुम आराम से सो जाना, फ़िर अपनी सहेली को बुलाया कि एक सीट ओर खाली हे तुम भी...... तभी मैने उसे जर्मन भाषा मे कहां मादाम यह सीट खाली नही, यहां मेरी दोस्त आने वाली हे, ओर वो लगी एयर होस्टेज को बुलाने.... तो मै चला गया उस लडकी को बुलाने, वो बेचारी जहाज के अंत वाली सीट पर विराज मान थी, मैने उसे अपने साथ वाली सीट पर बेठने का न्योता दिया, तो वो बहुत खुश हुयी, ओर मैने कहा अभी समान यही रहने दो बाद मे उठ लेगे, अभी चलो.
अब उस गोरी मादाम का चेहरा देखने लायक था,लेकिन बोली कुछ नही ओर कोई हाव भाव भी नही आने दिया चेहरे पर, फ़िर बातो बातो मे पता चला कि वो लडकी करनाल से हे, ओर पंजाबी भी बोलती हे, तो मैने उसे बताया कि मै भी पंजाबी ही हुं, पंजाब से, फ़िर हमारा जहाज करीब डेढ , दो घंटे लेट हो गया, ओर बेठे बेठे सभी बोर होने लगे, फ़िर कुछ हरकत हुयी ओर हम चल पडे अपनी मंजिल की ओर यानि अब जहाज रेंगता हुआ रनवे की ओर चल पडा, वो लडकी काफ़ी डरी हुयी थी, ओर आंखे बंद कर के पता नही अपने भगवान को याद कर रही थी या रो रही थी, जब जहाज रनवे पर आया तो मैने उसे टोक कर समझाया कि डरो मत सब ठीक होगा, ओर अगर तबीयत खराब हो तो भी घबराना नही यह आप के लिये ही पडा हे ऊलटी इस मे करना, अपने आस पास वालो पर नही ओर हमारी परवाह भी मत करना, कभी कभी यह सब होता हे, बस अब मस्ती से देखो यह तुम्हारी पहली उडान हे इसे हमेशा याद रखोगी, डरो नही, ओर फ़िर कुछ पल के बाद ही जहाज ने जमीन छॊड दी.
करीब दस पंद्रहा मिंट के बाद लडकी की आवाज सुनाई दी कि मेरे कान बंद हो गये हे, तो मैने उसे बताया कि ऎसे सांस लो कान खुल जायेगे, फ़िर मैने बीयर मंगवाई, ओर लडकी ने शायद ओरेंज जूस, फ़िर खाना आ गया, मैने तो सब चट कर दिया, लडकी को मैने पहले ही कह दिया था कि तुम भारतिया खाना ही लेना, युरोपियन खाना तुम अभी नही खा पाओगी, फ़िर खाना आने पर लडकी ने पुछा क्या खत्म करना जरुरी हे, मैने कहा अरे नही जरुरी नही जितना खाना खाओ, ओर उस बेचारी ने शायद कुछ नही खाया.
फ़िर पता नही कब मेरी आंख लग गई, ओर एक दो घंटे के बाद ऊठा तो लडकी ने कहा कि बाथरुम जाना हे, मैने उसे समझाया ओर बताया कि वहां जाओ, फ़िर मै भी टांगे सीधी करने के लिये उठ गया, मादाम सो रही थी बेचारी को जागना पडा, करीब एक घंटे के बाद मै वापिस आया,अब लडकी को अगली फ़लाईट के बारे समझाया, उस ने सेन फ़्रासिस्को जाना था, ओर मैने मुनिख, मैरे पास समय भी कम था, मैने उसे बडे प्यार से समझाया कि अब डरो मत, तुम्हे आगे भी सभी यात्री मदद करने वाले ही मिलेगे, वो चाहे किसी भी देश के हो, ओर मै चाहता हुं कि तुम्हे भारतिया साथी ही मिले, लेकिन आगे कि यात्रा के लिये डरो मत सब सफ़ल होगा.
फ़िर हमारा जहाज पेरिस एयर पोर्ट पर उतर गया, ओर जब मै अपनी मंजिल की ओर बढा तो लगा कोई मुझे देख रहा हे, मुड कर देखा तो वो लडकी मासूम ओर उदास नजरो से मेरी ओर देख रही थी,मै वापिस आया ओर उसे कहा कि मुझे उस के साथ सफ़र करके बहुत मजा आया, ओर बहुत अच्छा लगा,अब तुम घबराओ नही तुम्हे आगे मुझ से भी अच्छा साथी मिलेगा,जाओ...... अरे अरे अपना नाम तो बताती जाओ, उस ने रुआसीं आवाज मे अपना नाम बताया, लेकिन मुझे सिर्फ़ कोर समझ मै आया, ओर मुझे लगा कि अगर मै ओर रुका तो यह रो ना पडे, मैने उसे अपना नाम बताया शुभ्कामनाये दी ओर मुड कर अपनी मंजिल की ओर चल पडा.
बाद मे मुझे भी वहां दो तीन घंटे बेठना पडा, घर आ कर बीबी को बताया कि मुझे एक मासुम सी भोली भाली ओर जवान लडकी मिली, ओर बहुत डरी हुयी थी, मुझे अपनी बिटिया की तरह लगी, दिल चाहता था उसे बच्चो की तरह सीने से लगा कर समझाऊ, लेकिन कर नही पाया, ओर अंत मे उस की मासुम शकल देख कर समझ गया कि उसे भी बहुत दुख हुया..... लेकिन यह जिन्दगी कुछ ऎसे ही चलती हे, बीबी ने पुछा उस के बारे तो मैने इतना ही कहा कि मै तो उसे होस्स्ला ही देता रहा, कोन हे कहां किस के पास जाना हे मैने यह सब नही पूछा, शायद घर वालो से भी पहली बार बिछडी होगी तभी गुम थी, मेरे साथ भी पहली बार यही हुया था,
जहां भी हो खुश रहे,ओर अगर सेन फ़्रासिसको मे वो बच्ची यह लेख पढे तो, जरुर अपना पुरा नाम बताये, बच्ची मै कह रहा हुं, वो शायद २०, २५ के बीच की होगी, बिलकुल मेरे बच्चो की तरह, ओर मुझे सारे रास्ते ऎसा लगा जेसे मेरी बेटी पहली बार प्लेन मे मेरे संग बेठी हो ,दिल्ली से पेरिस, फ़िर पेरिस से सेन फ़्रासिसको २६/११ फ़्रांस एयर लाईन, ना० AF 225.सब को राम राम
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - पैसे का प्रलोभन ठुकराना भी सबके वश की बात नहीं है - इस हमले से कैसे बचें ?? - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
अंत तक कहानी मर्मस्पर्षी हो चली है !
ReplyDeleteभाटिया साहब आप पाठकों को भी अपने भावुकता के बहाव में बहा ले जाते है |हमारा रोहतक आना इस मायने में भी सार्थक रहा था |
ReplyDeleteराज जी बहुत ही आत्मीयता से भरा यह संस्मरण पढकर मन भींग-सा गया।
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा किया जो बिटिया का हृदय बाँधे रखा। ऐसी यात्राओं में कोई ढाढ़स बँधाने वाला मिल जाये तो घबराहट कम होती है।
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा किया वह बच्ची बाकी रास्ता आपके द्वारा दी गयी हिम्मत से काट लेगी ! प्रेरक प्रसंग के लिए आभार भाटिया जी !
ReplyDeleteकल आपकी यही पोस्ट खुल नहीं रही थी। सच है फ्लाइट में कोई अपना सा मिल जाता है तो सफर आसानी से कट जाता है। परिवार में सभी को हमारा नमस्मार कहें।
ReplyDeleteऐसा काम राज भाटिया जैसे नेक दिल बंदा कर सकता है।
ReplyDeleteआभार
wah bhatiya ji wah.....hame aap par garv hai.....
ReplyDeleteयात्रा विदेश की हो या देश की कई बार बहुत से ऐसे लोग मिल जाते हैं जिन्हें हम चाह कर भी भुला नही पाते। अच्छा लगा संस्मरण। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआदरणीय राज भाटिया जी,
ReplyDeleteआपकी आत्मीयता ने उस लड़की को कितनी हिम्मत बंधाई होगी इसका अनुमान मैं सहज ही लगा सकता हूँ क्योकि १६ महीने पहले जब मेरा बेटा MS करने के लिए sandiago जा रहा था तो उसकी पहली इतनी लम्बी हवाई यात्रा को लेकर हम बहुत ही चिंतित थे और सोचते थे कि काश कोई ऐसा मिल जाता जो साथ में जा रहा होता तो सारीचिंताएं दूर हो जाती !
आपने अपना फ़र्ज़ बखूबी निभाया आपके विशाल हृदय को मेरा नमन !
ऐसे सहज लोग बहुत कम ही मिलते हैं जो किसी अनजान के काम आयें !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
पढ़ कर आनंद आया. यात्राओं में इस प्रकार के अनुभव होते हैं. ऐसा ही कुछ मुझे एकबार हांगकांग हवाई अड्डे पर देखने को मिला जहां एक नवदंपति जोड़ा एकदम नर्वस घूम रहा था. वे केवल पंजाबी जानते थे जबकि उन्हें अंग्रेज़ी में समझाया जा रहा था. उन्हें लग रहा था कि उनकी सिडनी की फ़्लाइट छूट गई है क्योंकि उन्हें बताए गए टर्मिनल पर दिल्ली की फ़्लाइट थी...और कुछ रगड़ा टाइम-ज़ोन का भी था. मैने उन्हें पंजाबी में इत्मीनान से बताया कि, हवाई अड्डे की घड़ी के अनुसार, उनकी फ़्लाइट में अभी 3 घंटे बाकी हैं तब कहीं उनकी जान में जान आई.
ReplyDeletebahot achchi aapbitee.
ReplyDelete... behad rochak va bhaavpoorn abhivyakti !!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा संस्मरण पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा |
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ कर!..किसी की मदद कर के जो खुशी मिलती है, उसका आनंद अवर्णनीय होता है!...बहुर सुंदर पोस्ट!
ReplyDeleteअनुकरणीय प्रसंग !
ReplyDeleteभावुकता से भरा यात्रा संस्मरण ...उस लडकी के लिए आपका दिया हौसला अनुकरणीय है ..
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ कर ... दिल को छु गया आपका लेख ... बहुत कम देखने को मिलता है ऐसा भाटिया जी .. वो भी एक अकेली लड़की के साथ ... .
ReplyDeleteउस बच्ची का मनोबल बढ़ा कर आपने अनुकरणीय कार्य किया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट.
बच्ची का मनोबल बढ़ाना आपके उत्तम सद्भावों का परिचायक था।
ReplyDeleteकिसी के दुविधाभरे क्षणों मे आत्मियता देना ही मानवीय सद्गुण है।
अभिनन्दन!!
भावुक मगर मजेदार संस्मरण भाटिया सहाब ! दोनों ही तरह के लोग मिल जाते है सफ़र में !
ReplyDeleteआप की कामनाओं में हम भी साथ हैं..
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा
ReplyDeleteबुधवार के चर्चामंच पर भी लगाई है!
भावपूर्ण संस्मरण!
ReplyDeleteभाटिया जी बहुत ही सुन्दर और सुखद संस्मरण रहा यह आपका ! आपने जिस सहृदयता और सद्भावना के साथ उस अनजान युवती को हिम्मत और हौसला दिया और उसकी सहायता की यह आपके विशाल हृदय का परिचायक है ! वह युवती भी आपको अवश्य ही आजीवन याद रखेगी ! आपको बहुत बहुत साधुवाद !
ReplyDeleteराज सर ! आप एकदम वैसे ही निकले जैसा मैंने सोचा था.किसी की मदद करके किसी को क्या महसूस होता है नही मालूम.किन्तु खुद को जो आत्मिक सुख मिलता है उसकी तुलना किसी से नही की जा सकती.मैं जानती हूँ आप वही सब महसूस कर रहे हैं.है ना?
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा...काश!! वो बच्ची कभी इसे पढ़े तो पुनः आपके संपर्क में आ जाये.
ReplyDeleteआदरणीय राज भाटिया जी,
ReplyDelete.......दिल को छु गया आपका लेख
jivan ke safar me raahi milte hain bichhad jaane ko
ReplyDeleteaur de jaate hain yaaden
taraanaa yaad aa gayaa so gungunaa rahaa tha aap bhi gunguna lena
सुन्दर यात्रा वृतान्त. पहली बार का सफर हमेशा डरा जाता है, उम्मीद है उस लड़की को कोई आप जैसा सज्जन आगे की यात्रा में मिला हो.
ReplyDeleteमनोज
राज जी, अब तो जलन होने लगी है। आप इतने अच्छे क्यों हैं?
ReplyDeleteRaj Saab
ReplyDeleteWonderful article, heart touching true story gave me immense pleasure.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
bahut hi sundar aatmiyata bhara sansmaran.......aabhar
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