तो जनाब फ़िर हम तलियार झील पहुच गये, फ़िर धीरे धीरे लोगो का आना शुरु हो गया, ओर रोनक बढती रही, बहुत सी बाते हुयी, बहुत से साथियो ने अपनी अपनी रचनाये सुनाई, सब के संग हमे भी चाय पीने को मिल गई, फ़िर सभी ने अपने अपने विचार रखे, अपनी अपनी कमजोरियां भी बताई, अपना अपना परिचय भी दिया, फ़ोटो भी खींचे गये, विडियो फ़िल्म भी बनाई गई.
फ़िर चाय पानी का दोर भी साथ साथ चलता रहा, फ़िर दोपहर के खाने का समय कब आया पता ना चला,खाने के बाद गजलो ओर कविताओ का दोर भी खुब चला, किताबो का आदान प्रदान हुया, लोगो ने एक दुसरे से फ़ोन ना०, ई मेल ओर ब्लांग के लिंक लिये, सभी आपस मै ऎसे मिल रहे थे जेसे हम सब एक दुसरे को बहुत पहले से जानते हो,ढेरो बाते हुयी, फ़िर एक दोर चाय काफ़ी का चला, ओर फ़िर धीरे धीरे विदाई का समय आने लगा, तो सब बे मन से एक दुसरे को विदा कर रहे थे, सभी चाहते थे कि अभी सब ओर रुके, अभी ओर बाते करे....
लेकिन समय कहा रुकता हे धीरे धीरे काफ़ी लोग चले गये, ओर बचे तो केवल राम जी, नीरज जाट, ललित जी ओर अल्बेला खत्री, थोडी देर मै अमित जी ने भी मेरी बात मान ली ओर कुछ समय के लिये वो भी रुके, घर आ कर शाम के खाने की फ़िक्र हुयी तो मैने फ़िर रेखा को फ़ोन लगाया ओर उस से कहा कि आज का खाना भी बनाना हे, वो कुछ समय बाद आई ओर खाना बना कर चली गई, ललित जी की तबियत खराब थी, उन्होने कुछ दवा ओर अजवायन ली पानी के संग, फ़िर चला सब की रचनाओ का दोर, हर किसी को शोक था कि मै अपनी कविता, अपनी गजल, या अपनी कोई कहानी सुनाऊ, लेकिन हमारे ललित जी किसी को मोका ही नही दे रहे थे.
एक हल्का सा दोर चला पेंग शेंग का,साथ मे खाना भी चला, दो दिन से नींद नही आई थी, इस लिये मै तो एक दो बजे सॊने चला गया, लेकिन ललित जी जोर दे रहे थे अरे भाटिया जी बस एक कविता ओर एक कविता ओर.... तो जनाब मै भी आंख बचा कर दुसरे कमरे मै चला गया, ओर लेटा लेटा ही वाह वाह ओर हां हां करता रहा, जाने कब आंख लग गई, जब भी आंख खुलती तो वाह वाह कह देता, लेकिन महफ़िल पुरे जोरो पर थी, ओर सुबह पांच बजे तक सब से खुब लाभ उठाया मोके का, फ़िर सभी सो गये.
फ़िर सुबह सवेरे सात बजे मै उठ गया, कारण हमारे घर के पास से रेल जाती हे हर एक घंटे के बाद, ओर उस के ड्राईवर को पता नही कहा से पता चल गया कि मै आया हुं, इस लिये जब भी वहा से गुजरता है भोपू की पुरी आवाज छोडता हे, ओर मै उठ कर उसे गालिया देता था,तभी अलबेला जी भी उठ गये, ओर मुझे कहने लगे कि रात के बरतन मै साफ़ कर देता हुं, लेकिन मैने ऎसा ना करने दिया, तो ललित जी ने मोके का फ़ायदा उठाया ओर झट से पोस्ट लिख दी, फ़िर चाय बनाई गई, मै बिना दांत साफ़ किये पानी तक नही पीता, ओर चाय पता नही किस ने बनाई मै दांत साफ़ करने गया था, वापिसी पर चाय छानी ढुढ रहे थे तो मैने बिना छाननी के चाय कपो मे डाली, ललित जी ने यहां भी मोका नही छोडा.फ़िर नीरज जाट जी ने एक चाय का दोर चलाया.
आज रेखा के बेटे का चेक अप था इस लिये उस ने नही आना था, तो सब चले एक होटल मे नाशता करने, जहां सब ने गर्मा गर्म परोंठे खाये, लस्सी पी, चाय पी, फ़िर घर आये, ललित जी ने थोडीदेर इंतजार किया कार का ओर फ़िर चल पडे,उन्हे ओर केवल राम जी को विदाई दी लेकिन मन से नही, दिल चाहता था वो ओर रुके... लेकिन सब के अपने अपने काम थे ओर जाना भी जरुरी था,
फ़िर नीरज जाट ओर अलबेला जी ने भी विदाई ली, पहले तो मन था कि एक दिन बाद जाऊं, लेकिन अब मन बहुत उदास हो गया था ओर फ़िर इन के जाते ही मैने बिस्तर बगेरा वापिस किये, ओर निश्चय किया कि मै भी आज ही निकल जाऊ, लेकिन जाऊ केसे? मुझे तो किसी टेक्सी वाले का भी नही पता, ओर बस मै इतना समान ले जा नही सकता, तभी मुझे अमित जी का ख्याल आया, ओर मैने झट से फ़ोन लगाया कि भाई मेरे लिये किसी टेक्सी का इंतजाम तो करो, उन्होने पूछा क्या ललित जी गये तो मैने कहा हां सब गये, अब मेरा मन यहा नही लग रहा, तो उन्होने कहा अभी बात कर के बताता हुं. मैने फ़ोन रखा ही था कि अमित जी का ड्राईवर कार ले कर आ गया, ओर बोला चलिये किस ने रिवाडी चलना हे, मैने फ़िर अमित को फ़ोन लगाया तो पता चला कि यह कार ललित जी के लिये आई हे, तो मैने कहा कि अमित जी, ललित जी तो काफ़ी समय पहले चले गये हे,फ़िर मैने झिझकते हुये पुछा कि क्या इस कार से मै दिल्ली चला जाऊ ? अमित जी ने कहा कि मैने तो तीन दिन के लिये यह कार ललित जी को दी है, अब वो चले गये तो आप ले जा सकते हे, अब मेरे मन मे ख्याल आया कि नीरज ने भी दिल्ली ही जाना हे, तो अमित जी ने नीरज को फ़ोन लगाया,लेकिन बात नही हो पाई, मैने नीरज को फ़ोन लगाया बात नही हो पाई, सोचा वो भी गया, थोडी देर मै मन मे विचार आया कि एक बार अलबेला जी से फ़ोन पर बात कि जाये, फ़ोन लगाया तो पता चल कि वो तो पहले ही घर वापिस आ रहे हे,
अब मैने कार मे ड्राईवर के संग मिल कर समान रखना चाहा तो सारा समान उस बडी कार मै नही समा रहा था, तभी ध्यान आया कि अरे अभी अलबेला जी, ओर नीरज जाट जी आ रहे हे, उन्हे कहां बिठाऊंगा, ओर कहा उन का समान रखूंगा, ( यहां मुझ से गलती हो गई, मुझे अमित जी से कह कर मेटा डोर जेसी मिनी बस मंगवा लेता तो सब आराम से चले जाते) लेकिन यह बात दिमाग मै नही आई, लेकिन अलबेला जी ने सारा समान सेट कर दिया, ओर नीतर्ज जी को सेट कर के खुद भी बेठ गये.
फ़िर दिल्ली जा कर दुसरी गलती हमारे से यह हुयी की अलबेला जी को पंजाबी बाग छोड दिया, इस पार अगर यहां भी दिमाग काम करता तो उन्हे दुसरी तरफ़ ही छोड कर आना चाहिये था, इन सब बातो का बाद मे बहुत पछतावा हुआ, कि अलबेला जी कितनी दुर से चल कर आये ओर हम गल्ती पर गलती करते रहे, अगली बार मिलेगे तो उन से क्षमा मांग लेगे.
हां एक बात यहां जरुर लिखूंगा कि अलबेला जी सच मे अलबेले हे, रेखा जो मेरा खाना बनाती थी, मेरा बहुत ख्याल रखती थी, जेसे एक छोटी बहन रखती हे, उस के लडके का अप्रेशन होना हे, तो अलबेला जी ने उसे उस अप्रेशन पर होने वाले खर्च ओर दवाओ के सारे खर्च के बारे कहा कि वो यह सब समभाल लेगे, अगर दिल्ली या बम्बे अप्रेशन करवाना हो तो उस का खर्च भी वो समभाल लेगे, यह सच्ची पुजा नही तो क्या हे ? एक अंजान, बेसहारा, ओर मजबुर गरीब ऒरत की मदद बिना किसी लालच के आज के युग मे कोन करता हे? अजी करते हे अलबेला जेसे लोग करते हे, मै सलाम करता हुं इन की भावनाओ को.
अगली पोस्ट मे अपनी वापसी यात्रा के बारे लिखू गां जहां मुझे एक भोली भाली जवान लडकी मिली.
अलबेला को हार्दिक शुभकामनायें ...वे वाकई अच्छे है!
ReplyDeleteवाह अलबेला जी.. प्रणाम.. आपको..
ReplyDeleteइस ब्लॉगर मीट के आयोजक से विदा लेने वाला मैं सबसे आखिरी बन्दा था।
ReplyDeleteवाकई मैं सबसे पीछे रहने वाला (बैक बेंचर) ही हूं।
बहुत सुन्दर वर्णन। अलबेला जी का यही अपनत्व उन्हें इतना जीवन्त बनाता है।
ReplyDeleteविस्तृत वर्णन ...अलबेला जी को शुभकामनायें
ReplyDeleteविस्तृत ब्यौरा मिल रहा है.... अलबेला जी को शुभकामनायें
ReplyDeleteकाश मैं भी शामिल हो पाता .... बढ़िया रपट है ...आभार
ReplyDeleteअगली पोस्ट मे अपनी वापसी यात्रा के बारे लिखू गां जहां मुझे एक भोली भाली जवान लडकी मिली.
ReplyDeleteफ़ौरन अगली पोस्ट की डेट बताईये :) :)
इस सुन्दर एवं विस्तृत वृत्तांत के लिए आभार।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट से वाकई कई अनछुए पहलुओं की जानकारी मिल रही है
ReplyDeleteमैं सब ध्यान से पढ रहा हूं, जो जो भी आप लोगों से छूट जायेगा वो सब अंत महाराज लिखेंगे.:)
ReplyDeleteरामराम.
आपके बारे में एक बात का मिलने के बाद पता चला है की आप मुझसे भी ज्यादा भावुक है |अजय भाई की तरह हमें भी अगली पोस्ट का इन्तजार है |
ReplyDeleteराज भाटिया जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बाकी तो जानकारी हर जगह मिली , लेकिन किसी ने भोली भाली जवान लडकी की बात ही नहीं की । आप ईमानदारी और सहृदयता के लिए धन्यवाद के पात्र हैं …
:)
अगली पोस्ट मे अपनी वापसी यात्रा के बारे लिखूगां जहां मुझे एक भोली भाली जवान लडकी मिली
आना ही पड़ेगा अगली पोस्ट देखने …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बढिया प्रस्तुति! हमें तो शामिल न हो पाने का अफसोस रहेगा..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका संस्मरण पढकर।
ReplyDeleteआपका यात्रा संस्मरण बहुत बढ़िया रहा!
ReplyDeleteसंस्मरण कड़ी को आगे भी जारी रक्खें!
अच्छा लगा संस्मरण पढकर।
ReplyDeleteतिलयार मीट के अनछुए पहलुओं को उजागर करती बढ़िया पोस्ट...
ReplyDeleteअगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा
बहुत सुन्दर वर्णन ! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
Swami Albelanand Maharaaj ki Jai.....Swami Lalitanand Kaviraj ki jai...
ReplyDeleteअलबेला जी को ऐसा अवसर मिला है और वे उस का उपयोग कर रहे हैं यह उन की महानता है।
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