मैने देखा है कि सभी लोग जो चाहे किसी भी धर्म को माने , अपने इष्ट की पुजा अपने अपने ढंग से करते है, लेकिन कुछ मेरे जेसे भी है जो अपने भगवान को तो मानते है लेकिन गलत करने वाले को एक्क दो बार जरुर रोकते भी है, ओर खुद कभी वो काम नही करते, जिस से लगे कि यह सही नही.
हिदू मुर्ति की पुजा इस लिये करते है कि, उन्हे उस पत्थर की , मिट्ठी की मुर्ति मै अपने इष्ट की छवि नजर आती है, ओर इस कारण उस मुर्ति को हमेशा ऊच स्थान पर ओर पबित्र स्थान पर रखा जाता है, लेकिन जेसे जेसे हम माड्रन होते जा रहे है, उसी भगवान को हम अपने ही पेरो मै कुचलते भी है, उसे पता नही केसी केसी गंदगी मै फ़ेंक देते है, या तो किसी मुर्ति को पुजो नही, अगर पुजना हे तो कम से कम अपना मतलब मत निकालो, क्योकि उस मुर्ति मै जान नही वो भगवान भी नही, बस उस जेसी छवि है हमारे भगवान की, तो उस छबि को पांव के नीचे मत रोंदो.... आप खुद देख ले.... इस के संग हम पानी को हवा को भी तो दुषित कर रहे है, अगर यही पुजा का तरीका है तो मै उस भगवान का शुक्र करता हुं कि कम से कम मै तो यह काम बिलकुल नही करता.... अगर आप भी करते है तो ध्यान से देखे क्या आप सच मै पुजा कर के उस भगवान को खुश कर रहे है या दुखी कर रहे है.....
अरे अरे कहां गई आप को प्यार करने वालो की भीड?क्यो मुंह छुपाने की कोशिश कर रहे है बाबा.
फ़ेक गये ना आप को फ़िर से
यह बुलडोजर आप को कहां फ़ेंके गा?.... सब को पता है क्या
अब हाथ ऊठा कर किस से फ़रियाद कर रहे है, यह आप के भगत है या दुशमन जो आप का यह हाल कर दिया.....
गणेश बाबा यह हाल तो आप के प्यार करने बालो ने किया है, अगर यह दुशमनो ने किया होता तो आप के नाम का दम भरने वालो ने कितना हंगामा किया होता, आप से निवेदन है कि हर साल अपनी दुर्दशा करवाने मत आया करो, यहां लोग अपने मां बाप को भी आप की तरह से ऊठा कर घर से बाहर फ़ेंक देते है, फ़िर आप की क्या ऒकात आप तो मिट्टी ओर पत्थर की मुर्ति मात्र है, कही ओर जाओ हम कितने सालो से आप को फ़ेक रहे है ओर आप फ़िर आ जाते है, अभी थोडी देर पहले कुत्ता भी तो अपना काम दिखा गया बाबा जी
परम्परा निर्वहन में तो हम माहिर हैं ही. सच्चाई कौन स्वीकार करेगा?
ReplyDelete... kuchhek visangatiyaan hain system men ... sanshodhan kee aavashyakataa nihaayat jaruree hai !!!
ReplyDeleteभेड़ चाल है सब अंधे बनकर किये जा रहे हैं सब वही सालों से.
ReplyDeleteआप ठीक कह रहे हैं। भगवान की यह दुर्दशा कराने से बेहतर है कि उन्हें मन ही मन प्रणाम कर लिया जाए।
ReplyDeleteअपने इष्ट का अनादर तो करते है और उनकी बनाई सृष्टि को भी हर साल प्रदूषित करते है इनको तो खुद इनके इष्ट भी नहीं समझा सकते है |
ReplyDeleteआप ठीक कह रहे हैं।
ReplyDeleteथोड़े से सुधार की आवश्यकता है.... परम्पराओं पर चलते हुये भी यह कार्य किया जा सकता है....
ReplyDeleteVichaarneey baat kahi sir..
ReplyDeleteयह दृश्य तो मुझे बड़ा ख़राब लगा...., मन ख़राब हो गया देखकर.........मूर्तियाँ.......प्लास्टर की जगह मिटटी की बनानी चाहिए.....जो कि पानी में जल्दी घुल जाये......
ReplyDeleteकैसी परंपरा.......चिन्तनीय...
ReplyDeleteक्या कहा जाये...सार्थक आलेख.
ReplyDeleteआस्थाओं का विकृत निरूपण। यदि यही हश्र होना है तो इष्ट बना कर पूजा क्यो?
ReplyDeleteराज जी,
ReplyDeleteआज ही शिखा जी की पोस्ट पढ़ी कि किस तरह शालीनता और सादगी से लंदन में गणपति का विसर्जन किया गया...
हमारे देश में धर्म के नाम पर नदी-समुद्र को किस तरह प्रदूषित किया जाता है, इसका सबूत है पिछले साल अकेले मुंबई में ही एक लाख सत्तासी हज़ार गणपति प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया था...
जय हिंद...
Environment minister kyun nahi ye kanoon banate ki murtiyan sirf mitti kee hi banayee jayen. Aur samudra ke ander tak jakar wisarjit kee jayen.
ReplyDeleteआपसे बिलकुल सहम्त हूँ। अगर परंपरा का ही पालन करना है तो आटे आदि से बना कर मूर्ती विसरजन किया जा सकता है जिसे कम से कम समुद्री जीवों का पेट ही भरे बजाये कि पैरों तले रेंदा जाये। अच्छी पोस्ट। बधाई।
ReplyDeleteअपने इष्ट का अनादर तो करते है और उनकी बनाई सृष्टि को भी हर साल प्रदूषित करते है इनको तो खुद इनके इष्ट भी नहीं समझा सकते है |
ReplyDeleteस्वार्थी कलयुगी लोगो की सरासर मूर्खता है यह भाटिया साहब , हम हिन्दुस्तानी दिखावे में ज्यादा विस्वास रखते है , सड़कों पर हुडदंग मचाया और फ़ेंक दिया मूर्ती को कूड़ेदान में ! इस पर रोक लगनी चाहिए , बेवकूफ लोग वातावरण को भी प्रदूषित कर रहे है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति .......
ReplyDeleteकुछ दिनों पूर्व एक पोस्ट को लेकर ब्लॉग पर विवाद हो गया था, कुछ लोग आहात थे की इसमें भगवन श्री राम का अपमान हुआ है .... भगवन का आपमान .... पर यहाँ आकर लगा की लोगो की सोच कितनी छोटी हो गयी है .... एक हास्य से लोगो को भगवन का अपमान दिख गया पर यहाँ जो गणपति का अनादर हो रहा है वो शायद किसी को दिखाई नहीं दे रहा है .........
पढ़े और बताये कि कैसा लगा :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html
भाटिया साहब आपने दुरस्त फरमाया |यह हाल तो भगवान के भक्तो ने किया है अगर दुशमनों ने किया होता तो कितना दंगा फसाद होता कितनी जाने जाती और राजनीति कि रोटिया सेंकी जाती |
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट ...
ReplyDelete...sundar aalekh..dhanyawaad!
ReplyDeleteराज जी मुझे तो वैसे भी विसर्जन का अर्थ ही समझ नहीं आता। मूर्ति की स्थापना मंदिर में होती है, तो भई वही करो ना। बाजार में करनी है तो उस मूर्ति को मंदिर में स्थापित करना चाहिए। यह तो यूज एण्ड थ्रो का सिद्धान्त हो गया।
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने....
ReplyDeleteबहुत ही दुखद है यह...
अगर यह दुशमनो ने किया होता तो आप के नाम का दम भरने वालो ने कितना हंगामा किया होता....
ReplyDeleteधर्म के ठेकेदारों को "प्रणाम". ये लोग कुछ भी करें गलत कैसे हो सकता है.
बहुत सटीक और सार्थक मुद्दा ऊठाया आपने, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
ऎसी मूर्खतापूर्ण परम्पराएं सिर्फ इसी देश में निभाई जाती हैं....मूर्ख, हाजिल लोग फिर भी अपने आप को "धार्मिक" कहते हैं.
ReplyDeleteभेड़ चाल ..... परंपरा के नाम पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं हम .... और पलट के देखना ... वो तो हमने सीखा ही नही .... शर्म की बात है ये ....
ReplyDeleteNamaskar
ReplyDeleteऎसी मूर्खतापूर्ण परम्पराएं सिर्फ इसी देश में निभाई जाती हैं
हाँ हाँ कोई तो बताये ,सवाल बिलकुल दुरुस्त है !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा सन्देश देती हुई पोस्ट है. हम जिन्हें आदर देते हैं, उन्हें दिल से आदर देना चाहिए, केवल दिखावे के लिए अथवा जोश/उत्साह में आदर देने का यही परिणाम होता है. जैसे मुसलमान अक्सर रमजान समाप्त होते ही मस्जिद का रास्ता भूल जाते हैं और अगले रमजान या जुमा के दिन ही मस्जिद याद आती है. अगर सच्चे मन से सम्मान दिया जाता तो सम्मान बाकी रहता और इस तरह आस्था के साथ मज़ाक नहीं होता.
ReplyDeleteगणपति उत्सव के बाद अक्सर ऐसे ई- मेल आते हैं....फोटो की तरफ तो देखा भी नहीं जाता. जरूरत है लोगों के जागरूक होने की.
ReplyDeleteयही एक बात कभी समझ नही आती।
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही कहा है है! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
थोड़े से सुधार की आवश्यकता है.... परम्पराओं पर चलते हुये भी यह कार्य किया जा सकता है....
ReplyDeletebhartiya nagrik ki is baat se poori tarah sahmat
भाटिया जी आपका विचार बिल्कुल सत्य है बचपन से देख रहा हूं कम होने के बजाय प्रथायें बढती ही चली जारही है ।पहले पूजा का सारा पत्रं पुष्पं फलं तोयं सब कुओं में विसर्जित कर दिया जाता था अव कुये तो रहे नहीं और इस विसर्जन में कई नोनिहालेां का विसर्जन भी हो जाता है
ReplyDeleteअगर यह दुशमनो ने किया होता तो आप के नाम का दम भरने वालो ने कितना हंगामा किया होता....
ReplyDeletebahut hi uchit baate rahi ,is tarah ka haal apne bhagyavidhata ka karange wo naraz na honge isse behtar chhoti si tasvir ki hi pooja karke apne bhav pragat kar de .jo pujniye hai unka samman behtar hona chahiye .man ko bha gayi ,bahut sahi likha hai aapne .
Sach mein kitnna matlabi hai insaan.. nadi paar huyee aur naav ko thokar maar badh liye aage...
ReplyDeletebahut hi chintansheel aalekh... tasveeron ko dekh sach mein man bahut darvit ho utha....uf!kitna kaduwa satya hai yah!!
धार्मिक आडंबरों के आगे इस बातों की परवाह कोई नही करता..बहुत सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की आपने..अगर परंपरा है विसर्जन तो सही तरीके से होना चाहिए ...श्रद्धा यह नही कहता की ऐसी विसर्जन उचित है...बहुत बढ़िया प्रसंग ..राज जी धन्यवाद
ReplyDeleteइष्ट देवों को अपमान से बचाने की कोई तरकीब ढूढनी पड़ेगी .ध्यानाकर्षण के लिए आभार .
ReplyDeleteमूर्तियाँ.......प्लास्टर की जगह मिटटी की बनानी चाहिए
ReplyDeletesahee mashwira
bhatia ji ....aaj bhi navratri ke dino mein hamare yahan gaanv mein mitti ki devi ki moorti banayi jati hai or dashahara pe us mitti ki moorti ko vahi visarjit kiya jata hai jis talab se vo mitti layi jati hai isse kya hota hai ki mitti jahan se aayi vahin vapis chali gayi prakriti ka santulan bana raha or aastha bhi bani rahi or paryavaran bhi bana raha .
ReplyDeleteab kya hai humne bahut tarakki kar lii hai khaskar dikhave ki tarakki ,prakriti se chedchaad ki tarakki or anjaam aapko maloom hi hai ,naa aastha rahi naa suddh hava naa pani or aise hi chalta raha to jald hi prakriti apne aap sab santulit kar degii ...
aapka chintan bahut hi gahra or vicharniiy hai .
मैं २८ साल का हूँ, जब से होश संभाला है इस तरह के कई विरोध दर्ज करा चुका हूँ अपने परिवार के सामने परन्तु बड़े लोग समझते हैं कि ये नई पीढ़ी अपनी संस्कृती का सम्मान नहीं करना चाहती अब उनको कौन समझाए कि मेरी शिकायत और उनकी चिंता अलग अलग हैं|
ReplyDeleteआपके इस ब्लॉग का लिंक मैंने अपने फेसबुक पेज पर दिया है ताकि जागरूकता और फ़ैल सके |
बहुत बढ़िया तस्वेरें लाये है आप इन्हे देखे सब तब ही समझ मे आयगा ।
ReplyDeleteकिसी जमाने में कुम्हार के घर कि रोजी रोटी चले इसलिए दीवाली और अन्य त्योहारों पर मिटटी कि मूर्तियों ka chalan tha जिन्हें pooja के bad नदी में विसर्जित कर दिया जाता tha |लेकिन आज इस परम्परा ka विकृत रूप हमारे सामने आ रहा है jiske liye sbhi nagrik jimmevar hai और fir mumbai to padhe kikho ka shhar hai sath hi vahan के log jagruk bhi pr jab vahan ye hal hai to desh के baki kya hal ?
ReplyDeleteachha alekh hm jaise log bhi kuchh to sikhege .
राज जी मुझे तो वैसे भी विसर्जन का अर्थ ही समझ नहीं आता। मूर्ति की स्थापना मंदिर में होती है, तो भई वही करो ना। बाजार में करनी है तो उस मूर्ति को मंदिर में स्थापित करना चाहिए। यह तो यूज एण्ड थ्रो का सिद्धान्त हो गया।
ReplyDeleteकाफी अच्छा लिखा है आपने आप के इस लेख की जितनी प्रशंसा की जाये कम है ,
शायद इस से लोग कुछ समझ लें
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