नमस्कार, हम लोट तो रविवार को ही आये थे, लेकिन नींद पुरी करने मै समय लगा....
आदत के हिसाब से हम सही समय पर यानि दस बजे यहां से निकले, ओर करीब १५ कि मी जाने के बाद मैने पेट्रोल से टंकी फ़ुल कर ली, ताकि रास्ते मै कही रुकना ना पडे, ओर फ़िर बाकी बचे ३८५ कि मी को पुरा करने के लिये हम हाई वे पर पहुच गये, कभी कभार स्पीड लिम्ट के कारण कार को १२०, १०० तक ले जाते बाकी का रास्ता तो मस्ती से १८० ओर २०० कि मी की रफ़तार से ले जाते रहे, ओर ३०० कि मी हम ने करीब दो घंटे मै ही बिता दिया,
जर्मनी मै टोल टेक्स नही लगता, लेकिन स्विट्रजरलेंड मै टोल टेक्स लगता है, वो भी सिर्फ़ हाईवे पर, ओर वो भी पुरे साल का आप चाहे एक दिन के लिये जाओ या एक घंटे के लिये, फ़िर कुछ हिस्सा आस्ट्रिया का पडता है, वहा भी टोल टेक्स देना पडता है, तो हम ने आगे जा कर हाई वे को छोड दिया लेकिन जल्दी वाला रास्ता पकडा, जहां हम १०० कि मी की रफ़तार से ही चला सकते थे, अभी भी हम ने ८० कि मी आगे जाना था, ओर अभी तक जर्मनी मै ही थे, तो थोडा खुल कर चला रहे थे, ६० कि मी की दुरी पर जा कर हम स्विटजरलेंट मै पहुच गये, यहां पहुच कर हम थोडा चुस्त हो गये, ओर सही स्पीड पर कार को चलाये, फ़िर कुछ इलाका हमे पहाडी का मिला ओर करीब १,३० बजे हम उन्के घर पहुच गये,
नीरज जाट ने कहां था की जब भी हम कही बाहर जाये तो रास्ते के बारे विवरण से लिखे, बाबा हम तो जब १८०, ओर दो सॊ की स्पीड से चलाते है तो हमा ध्यान सिर्फ़ सामने ओर सामने वालो की हर हरकत पर होता है, तो हम आस पास केसे देख सकते है, क्योकि उस समय हमारी एक छॊटी सी भुल भी काफ़ी होती है, लेकिन बीबी ने दो चार चित्र खींचे वो नीचे दे रहा हू.
बाकी पार्टी बहुत अच्छी रही, मुंडन के संग एक का ज्न्म दिन भी था, फ़िर घर आ कर गप्पे मारते रहे, ओर सुबह चार बजे सॊ, लेकिन नींद नही आई, सुबह फ़िर जल्दी ऊठ गये ओर नास्ता वगेरा कर के हम वहां से १२,०० बजे घर की तरफ़ चल पडे, रविवार का दिन होने के कारण ट्रेफ़िक कम था, सो हम ओर भी जल्द पहुचे.
सभी चित्रो को बडा ओर फ़िर ऒर बडा कर के देख सकते है.
घर से चले तो मोसम अच्छा नही था, हाईवे पर पहुचते ही मुसलाधार बरसात होने लगी.
अब मोसम धीरे धीरे साफ़ हो रहा था, ओर आगे जा कर मोसम तो साफ़ हो गया लेकिन सर्दी अभी भी थी.
यह चित्र भी चलती कार से लिया है, साथ मै सेब के बाग ही बाग थे, यह एरिया बोदेन्सी कहलाता है ओर यहां के सेब पुरे युरोप मै बहुत प्रसिद्ध है
यह दो चित्र जो ऊपर है, यह भी बोदेनसी के ही है, पहले चित्र मै अंगुरो की वेले है, यहां अंगुर नाशपति ओर सेब बहुत ज्यादा होते है, ओर उस से नीचे वालाचित्र बोदेनसी का है, यह झील युरोप मै शायद सब से बडी है,इस के एक तरफ़ स्विट्रजरलेंड है, तो दुसरी तरफ़ आस्ट्रिया है ओर तीसरी तरफ़ जर्मनी है, हम ने इस झीळ को कार से किनारे किनारे चल कर पार किया, वेसे यहां सीप भी चलते है, लेकिन मुझे वहां तक जाने मै ओर फ़िर सिप का इंतजार करने मै ज्यादा समय लगता.
फ़िर हम समय से घर पहुचं गये, सब इंतजार कर रहे थे, वहां खाना खाया ओर फ़िर चल पडे उस जगह जहां सब कार्यक्र्म था, इस ऊपर वाले चित्र मै हवन की तेयारियां चल रही है,
ओर फ़िर समय पर सभी मित्र गण आने शुरु हो गये,काले गोरे सभी ने जुते उतारे को हाथ जोड कर फ़र्श पर बेठ गये,जो फ़र्श पर नही बेठ सकते थे वो कुर्सियो पर बेठ गये.
लो जी हम भी अपनी दुलहनिया के संग बेठ गये है, सभी बच्चे हवन के मंत्र सही सही बोल रहे थे, वेसे भी सभी बच्चे हिन्दी बोलते है.
ऎ लो जी छोरा गंजा कर दिया, सभी को बधाई हो, लेकिन छोरा बिलकुल नही रोया, उसे कुछ भी फ़र्क नही पडा
ओर फ़िर दुसरे बच्चे का जन्म दिन भी मना लिया गया, सब काम सही समय पर हुये, ओर फ़िर सब ने खाना खाया चाय पी ओर रात १२,०० बजे हम सब घर आ गये, ओर फ़िर घर आ कर सुबह तीन चार बजे तक घर वालो का गप्पो का दोर चला, हम एक दो घंटे ही सोये, फ़िर सुबह नाशता करके फ़िर से सभी बाते करने लगे कि कहां कहां घुमने जाये, भाई हम तो सब घुम चुके थे, इस लिये हम ने वापिसी का रास्ता ही चुना, दोपहर को वहां से चले, रास्ते मै खेतो से ताजे सेब, नाशपतिया, ओर अंगुर खरीदे, ओर घर की तरफ़ चल पडे ओर करीब ४,०० बजे घर पहुच गये.
@बाकी का रास्ता तो मस्ती से १८० ओर २०० कि मी की रफ़तार से ले जाते रहे।
ReplyDeleteये कौन सी सुपरसोनिक जेट कार है बाउजी। हम तो यहाँ 120 से उपर चलते हैं कहीं कहीं तो जान हथेली पर लेकर चलना पड़ता है। एकाध गाय बैल या कुत्ता आगे आया तो समझो कट गयी टिकिट।
घुम कर आ गए आपको ढेर सारी बधाई।
आज हमारे 36 गढ में "पोला" त्यौहार मनाया जा रहा है।
लाजवाब .
ReplyDeleteपोला की बधाई भी स्वीकार करें .
रोचक रहा यात्रा विवरण.. चित्र कार में बैठे ही लिए सो लग रहा है कि हम भी बैठे हैं पीछे वाली सीट पर... बच्चा बहादुर है जो रोया नहीं.. गोरों को पालथी मार के बैठे देख अच्छा लगा.. आभार सर..
ReplyDeleteवाह आपने तो सीधे खेत से ही सेब, नाशपाती खा लिए। और ये गंजा छोरा तो सचमुच बहादुर लगता है। यात्रा विवरण अच्छा रहा।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteरोचक वृतांत!
ReplyDeleteकभी कभार स्पीड लिम्ट के कारण कार को १२०, १०० तक ले जाते बाकी का रास्ता तो मस्ती से १८० ओर २०० कि मी की रफ़तार से ले जाते रहे, ओर ३०० कि मी हम ने करीब दो घंटे मै ही बिता दिया
ReplyDeleteआप तो हमारी रेलगाडी से भी तेज़ चलाते हैं।
...फ़िर कुछ हिस्सा आस्ट्रेलिया का पडता है
लगता है गलत रेलगाडी में चढ गये! ;)
300 किमी 2 घंटे में, कभी सुना नहीं भारत में। बहुत सुन्दर चित्र।
ReplyDeleteमूंड मुंडाते हुए छोरा नहीं रोया, सोच रहा होगा कि बेकार की खेती थी, कट गयी अच्छा हुआ। प्रारम्भ में कहाँ और क्यों जा रहे थे उसका वर्णन भी कर देते तो अच्छा हो जाता। क्योंकि यह जरूरी नहीं कि आपकी इससे पूर्व की पोस्ट भी सभी ने पढी हो। अच्छी फोटोज है।
ReplyDeleteसुन्दर संस्मरण ,चित्र ,और पराये देश में भारतीय संस्कारों का दर्शन -क्या खूब !
ReplyDeleteमजा आ गया जी. २०० किलोमीटर की रफ़्तार!यहाँ के तो हवाई जहाज भी नहीं चलते.
ReplyDeleteबहुत रोचक पोस्ट ....आभार
ReplyDeleterochak yaatra aur tasweeren
ReplyDeleteमजा आ गया.... इतनी स्पीड में तो आज मैंने पहली बार कार में घुमा.
ReplyDeleteकाले गोरे सभी ने जुते उतारे
सेब नाशपाती अंगूर क्या खूब दिलकश नज़ारें.
रोचक वृत्तांत.
(ऊपर के लाइनों में आस्ट्रेलिया पढ़ चौंक गया था... मतलब आस्ट्रिया से है)
क्या वो पाहाडी वाला रास्ता आल्पस पर्वत का भाग था?
जर्मनी मै टोल टेक्स नही लगता, लेकिन स्विट्रजरलेंड मै टोल टेक्स लगता है, वो भी सिर्फ़ हाईवे पर, ओर वो भी पुरे साल का आप चाहे एक दिन के लिये जाओ या एक घंटे के लिये, फ़िर कुछ हिस्सा आस्ट्रेलिया का पडता है, वहा भी टोल टेक्स देना पडता है,
ReplyDeletegermany, switzerland to dhik lagaa
magar ye austrelia? samaz ke baahar hai
europe se bagair ship aap austrelia
car se kaise gae ji
aapki baat se lagtaa hai aap confuse kar rahe hain
raj ji
use thik karen austelia nischit hi europe se lagaa hua nahi hai.
आप सब से माफ़ी चाहूंगा कि आस्ट्रिया की जगह आस्ट्रेलिया लिख दिया, बहुत बडी भुल थी जो सुधार ली है, वेसे यहां कार ३०० कि मी प्रति घंटा भी चलती है, ओर इन हईवे पर या तेज सडको पर पेदल, साईकिल, स्कुटर, गाय, कुत्ता सब मना है, क्यो कि अगर कोई भी सामने आ गया तो उसे बचाने के चक्कर मै ओर कितने मरेगे??
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण भाटिया साहब, यह देख खुशी हुई कि हमारे लोग वहाँ भी अपनी बहुत सी परम्पराओं को ज़िंदा रखे है !
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुती ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति....हवन और उसमे शामिल...देशी-परदेशी लोगों को देख बड़ा अच्छा लगा.
ReplyDeleteबच्चा बड़ा प्यारा लगा...मेरा बेटा भी बिलकुल नहीं रोया था...पर जब आईना देखा तो रोने लगा...कि ये कौन है :)
आपकी गाडी की स्पीड ... ओह गजब ... बहुत ही रोचक पोस्ट .... फोटो ही जोरदार लगाईं हैं ....आभार
ReplyDeleteवाह ... इतनी हरियाली देख कर मज़ा आ गया ... और मुंडन के फोटो भी क्माल हैं ... अच्छा लगा आपका व्रतांत पढ़ कर ...
ReplyDeleteरोचक पोस्ट.
ReplyDeleteहाई स्पीड में कई देश का भ्रमण करा दिया. इतने किलोमीटर में तो अपन हिंदुस्तान में एक स्टेट से दुसरे स्टेट ही केवल जा पते हैं और वह भी कई बार भरपूर मात्र में टोल टैक्स चूका कर....
चन्द्र मोहन गुप्त
लो जी हम आये तब तक तो आस्ट्रेलिया सुधर कर आस्ट्रिया बन चुका था.")
ReplyDeleteयात्रा वृतांत बहुत ही रोचक रहा शुभकामनाएं.
रामराम.
सचित्र वर्णन बहुत आनंद दायक रहा पर एक बात बताइए १८०/२०० की स्पीड पर आपको स्पीड टिकेट नहीं लगता क्या? यहाँ तो ८० से ऊपर गए थे एक बार जुर्माना घर आ गया था :(
ReplyDeleteशिखा जी पुरे युरोप मै क्या पुरी दुनिया मै जर्मनी ही एक ऎसा देश है जहां हाईवे पर कुछ खास जगह को छोड कर स्पीड लिमट नही, आप १८, ओर २०० की बात कर रही है, यहां तो आप को २५० से ३०० तक की स्पीड मिल जायेगी, मैने २०० से ज्यादा कभी नही चलाई, यहां तक भी डर बहुत लगता है, ओर बहुत चोकन्ना रहना पडता है, मजा तब आता है जब कोई भारत से आये ओर उसे बताता हुं कि अब हम २०० कि मी प्रति घंट से जा रहे है... क्योकि यहां की सडके बहुत अच्छी है, इस लिये पता नही चलता, ओर जब वो मीटर की तरफ़ देखता है तो.... डर कर सीट से पीठ लगा कर चुपचाप बेठ जाता है, ओर हम भी मजा लेते है, कभी गर्मियो मै यहां आये ओर देखे,
ReplyDeleteहां जुरमाना यहां भी लगता है जब हम स्पीड से ज्यादा चलाये, ओर स्पीड की लिम्ट हर जगह अलग अलग होती है, मैने भी कई बार भुगता है, ओर जुर्माना तो बाद मै आता है लेकिन हमे पता चल जाता है कि अब फ़ंस गये, केमरे की फ़लेस जो चमकती है
ReplyDeleteयात्रामयी पोस्ट बहुत अच्छी लगी...
ReplyDelete180 से 200 कि मी! यहाँ तो इस स्पीड की कल्पना करके भी डर लगता है। मुंडन संस्कार की तश्वीरों ने मन मोह लिया। झील वाली तश्वीर भी अच्छी है।
ReplyDeleteबोदेनसी झील..इस के एक तरफ़ स्विट्रजरलेंड है, तो दुसरी तरफ़ आस्ट्रिया है ओर तीसरी तरफ़ जर्मनी है..पढ़कर ही मजा आ रहा है। आप हमें यूँ ही पराए देश की झलक दिखाते रहें..पढ़कर ऐसा लग रहा है कि कोई अपने ही घर का सदस्य हमें पराए देश की जानकारी दे रहा है।
...आभार।
लोट तो रविवार को ही आये थे, लेकिन नींद पुरी करने मै ...लौट, में.
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन के बधाई
356 दिन
ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
ऑटोबान का मजा ही अलग है ..पिछली बार ड्यूसलडोर्फ़ से ब्लैक फोरेस्ट तक गये थे ..तब जर्मनी से लेकर स्विस, आस्ट्रिया और फ़्रांस सब नाप दिए थे ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रों से सजा रोचक संस्मरण।
ReplyDeleteआंच पर संबंध विस्तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!
... sundar post !!!
ReplyDeleteअंदाजा लगा रहे थे कि अगर २०० किमी की रफ़्तार वाला हाईवे हमारे यहाँ हो तो हम मात्र साढ़े तीन घंटे में ही अपने घर पहुँच जायेंगे, जिसे पूरा करने के लिये आज हमारी ट्रेन लगभग पूरे १२ घंटे लेती है।
ReplyDeleteघर के लिये आते समय हम भी बहुत कुछ रास्ते से भर लाते हैं।
एक साथ इतनी सारी यात्रा मजा ही आ गया।
इतने सुन्दर चित्र और विवरण हमारे साथ बांटने के लिए बहुत बहुत आभार..
ReplyDelete200 कि रफ़्तार पर बाईक अलाउड है कि नहीं? अगर नहीं, तो मेरे लिए बेकार है.. :)
ReplyDeleteयात्रा वृतांत बहुत ही रोचक रहा शुभकामनाएं.....
ReplyDelete