कहते है आदमी को गुलामी बहुत कुछ करने पर मजबूर कर देती है, ओर इस पोस्ट के साथ ही मै यह भी बता दुं कि विदेशी भाषा हमेशा गुलाम ही बोलते है, जेसे कि हम अग्रेजी को बोल कर साहब बन जाते है??? लेकिन सिर्फ़ अपनी नजर मै दुनिया की नजर से देखे तो गुलाम ही बनते है, हमारी सरकार भी सभी जगह अग्रेजी मै ही काम काज करती है... याहिन गुलामी का सबूत यह है.....
सुरी नाम एक देश है जि दक्षिण अमेरिका मै है, जहां की भाषा तो वेसे सुरीनामी ही है, लेकिन वहां १००% लोग डच बोलते है, सरकारी काम काज भी डच मै ही होता है, क्योकि वो पहले इन डचो (होलेंड) के गुलाम थे.इस देश के बारे आप पुरी जान कारी यहां से ले सकते है
अब बात शुरु करता हुं अपनी इस पोस्ट के शीर्षक से,इस देश मै भारत से बहुत से लोग गुलामो की तरह से लाये गये थे, जो ज्यादातर बिहार से लाये गये थे, डच लोगो ने यहां गन्ने ओर चाय की खेती शुरु कि थी, ओर उन्हे बहुत से मजदुर चाहिये थे, भारत के बाद यहां पर चीन से भी काफ़ी लोग आये, करीब १५०,२०० साल पहले, फ़िर धीरे धीरे यह लोग् यही के होगे, ओर अपने पीछे सब कुछ भुल से गये या भारत सरकार ने इन्हे भुला दिया, ओर यह पीढी दर पीढी उन जगलियो के संग रहे, लेकिन अपने संग लाये भारत से अच्छॆ संस्कार नही भुले, आज भी यह लोग उन्ही पुराने संस्कारो मै विश्वास रखते है
चलिये पहले तो आप इन भईयो की होली का मजा ले ले जो खेल रहे है, ओर आप को यह भाषा भी जान पहचानी सी लगेगी...
इन के बारे मुझे कुछ नही पता था, एक बार १९८८ मे हम दोनो होलेंड घुमने गये, तो पता पुछने के लिये, एक आदमी को रोका जो देखने मै हमारी तरह ही था लेकिन रंग अफ़्रिकनो की तरह से था, मैने उस से पुछा क्या आप को जर्मन आती है( क्योकि जर्मन ओर होलेंडिस मै थोडा ही फ़र्क है) तो वो बोला आप भारत से है, मेरे हां कहने पर पहले मुझे नमस्कर किया, ओर फ़िर बोला हम भी हिन्दी जानते है, फ़िर वो मुझे मेरे पते पर छोडने आया, फ़िर पता करने पर पता चला कि यह वो भारतिया है जिन्हे हम भुल चुके है.
यह लोग हिन्दी तो जरुर बोलते है, लेकिन बहुत ध्यान से सुनाने मै ही समझ आती है, इन के नाम भी शुद्ध हिन्दू नाम है हमारी तरह से, ओर आज भी यह नाम के आगे भगवान का नाम जरुर रखते है, जेसे राम लाल, ध्नश्याम, होलेंड मै यह लोग बहुत ज्यादा संख्या मै है, क्योकि पह्ले सुरी नाम होलेंड का गुलाम था, सुरी नाम आजाद होने के बाद वहां से काफ़ी सांख्या मै यह लोग यहां आ गये, यह सारे त्योहार भी भारतिया ढंग से मनाते है, होली दिपावली, सभी वर्त भी रखते है, जेसे करवा चोथ वगेरा वगेरा, ओर होलेंड मै इन्होने बहुत से मंदिर भी बना रखे है, शादियाऒ मै भी हमारी तरह से बहुत रोनक होती है.
यह लोग बहुत ही मिलन सार है, शुरु शुरु मे जब भारतिया होलेंड मै आये तो उन्हे वीजा वगेरा की बहुत दिक्कत थी, तो इन्ही लोगो ने उन भारतियो की मदद की अपना समझ कर, ओर हमारे भारतिया भाईयो को इन की लडकियो से बहुत प्यार हो जाता था, ओर यह लोग भी खुशी खुशी उन की शादी कर देते थे.... लेकिन वीजा मिलते ही इन भारतियो का प्यार खत्म हो जाता, इस तरह से इन लोगो को हमारे ही भारतियो ने बहुत धोखे दिये, अब यह लोग भी कुछ सयाने हो गये है.
इन के अपने रेडियो स्टेशन है, अपने टी वी स्टेशन है जो सब हिन्दी मै ही प्रकाशित करते है, पुजा करने का ढंग भी हम से बेहतर है
चलिये आप को एक विडियो ओर दिखाता हुं
मै अग्रेजी का विरोधी बिलकुल नही, हमे हर भाषा सीखनी चाहिये ओर आदमी को जितनी ज्यादा भाषाये आती हो उतना ही अच्छा है, लेकिन हमे अपने सरकारी काम काजो मै, आपस मै सिर्फ़ ओर सिर्फ़ अपनी भाषा ही बोलनी चाहिये, वर्ना एक दिन हम भी विदेशी भाषा बोल कर अन्चाहे ही अपने माथे पर गुलाम लिखबा लेगे, आज भी हमे युरोप वाले हमे यही कहते है कि तुम अग्रेजी इस लिये बोलते हो क्योकि तुम..........., तो आओ ओर आम भारतिया भाषा मै बात करे, हिन्दी है मेरी पहचान, अग्रेजी लानत है हमारे लिये.
इसी धोखेबाजी ने हिन्दुओं को कहीं का नहीं छोड़ा..
ReplyDeleteएक बार फिर बहुत ही बढ़िया जानकारी दी आपने, आभार !
ReplyDeleteबहुत रोचक जानकारी दे रहे हैं आप !!
ReplyDeleteशादी देख आनंद आ गया।
ReplyDeleteहिंदी हमारी मातृभाषा है.... मात्र एक भाषा नहीं....
ReplyDelete--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
अच्छी जानकारी दी..बहुत पूर्वी उत्तरप्रदेश से आ कर भी बसे यहाँ सूरीनाम में.
ReplyDeleteआप यह बात ज्यादा अच्छे से समझ सकते हैं लेकिन यहाँ तो घर की मुर्गी दाल बराबर है.
ReplyDeleteये अच्छी और रोचक जानकारी दी आपने.. शुक्रिया सर..
ReplyDeleteशुक्र है कि हमारी पूजा पद्दति अभी भी जीवित है!
ReplyDeleteसही कह रहे हैं आप।
ReplyDeleteपण्डित जी तो कतई असली इण्डियल लग रहे हैं।
विदेशों में अपनी संस्कृति को देखकर बहुत ही प्रसन्नता होती है। दुःख की बात तो यह है कि हम अपने देश भारत में ही अपनी संस्कृति को भुलाते चले जा रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी और रोचक जानकारी है। धन्यवाद।
ReplyDeleteगुलामी मानसिकता पर आपने सही बात उठाई है. इन विदेशी भारतीय हिन्दुओं के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है.
ReplyDeleteडर्बन(दक्षिण अफ्रीका) से भी एक संपर्क हुआ था पिछले साल जो कि हमारे जिला अररिया(बिहार) से ही हैं उनके दादा जी को गन्ने की खेती के लिए ले जाया गया था.
इसी प्रकार गोरखपुर (पूर्वी उत्तर प्रदेश) से भी बहुत से भोजपुरी भारतीय मॉरिशस आये.
पहले तो सोच के डर लगता है कैसे हमारे लोगों को गुलाम बनाने के लिए ले जाया गया होगा। उनकी बेबसी, उन पर ढाए ज़ुल्म और वर्तमान की ये तस्वीर थोड़ी दिलासा देती है। सचमुच ऐसी चीजें दिखाकर आप हमारे अनुभवों में इज़ाफ़ा करते हैं।
ReplyDeleteभाटिया जी, होली वाले वीडियो में ये हिंदी भाई लोग भोजपुरी बोल रहे हैं (इनका ओरिजिन बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश ही है) हमारी भाषा भोजपुरी ही है. आपने इनलोगों से मिलने की हसरत जगा दीहै.
ReplyDeleteविवाह वाले दृश्य में पंडित जी, "तिलक" और "छेका" (विवाह पूर्व होने वाले कार्यक्रम की बात कर रहे हैं)
ReplyDeleteतिलक(शुभ तिलकोत्सव या तिलक संस्कार) - विवाव पूर्व होने वाले दुल्हे को भेंट उपहार चढाने का कार्यक्रम.
छेका (मंगनी कह सकते हैं) - विवाह पूर्व लड़की या लड़के को छेकने (रिजर्व) करने का कार्यक्रम.
मुझे ऐसी चिट्ठियां बहुत पसन्द आती हैं जी
ReplyDeleteआज की पोस्ट के लिये हार्दिक आभार
बहुत रोचक जानकारी दी है जी आपने
एक बार तो लगा जैसे बिहार के लोगों का वीडियो है।
प्रणाम
isi tarah ki jankariyan dete rahen. hame garv hota hai. kabhi udhar bhi aayenge.mai 2003 mey trinidad (w.i.) gayaa thaa, tab isi tarah ki sankriti mey doobe logo se milane ka avasar mila tha.
ReplyDeletebahut badhiya jaankari di aapne .
ReplyDeleteबिलकुल सही बात कही है आपने ....भारत के लोग हर जगह है जी, में किसी भी देश में चला जाऊं , हर जगह अपने लोग मिल जाते हैं.
ReplyDeleteआपके जर्मनी में पिचली बार मैं Dusseldorf में २-३ महीने था, इस छोटे से शहर में भी ७-८ भारतीय सामन कि दुकानें थी, ८-१० भारतीय रेस्तरां थे ...
कभी कभी लगता है कि बाहर रहने वाले देसी लोग देश से ज्यादा देश कि संस्कृति को मानते हैं
कुछ समय पहले मुझे एमसरडैम हवाई अड्डे पर रुकने का मौका मिला था तब वहां मेरी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई थी।
ReplyDeleteआपने यह बहुत सुन्दर श्रंखला प्रारम्भ की है । नयी और ज्ञानवर्धक । हो सके तो इसमें हर देश का समावेश करें ।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट ने दिल खुश कर दिया ,अभी हम आगरा गये थे तो यूं ही सभी लोग बैठे बात कर रहे थे और मेरे मुंह से निकल गया कि हमें तो दुनिया के हर हिस्से में घूमना है . तुरंत एक सज्जन ने कमेन्ट किया कि देवी जी कहीं जाकर किस भाषा में बात करोगी ,आपको तो बस हिंदी आती है.
ReplyDeleteमैंने तो कह ही दिया कि पेड़-पौधे किसी भी देश के हों मेरी भाषा समझते हैं. लेकिन मन ही मन गुस्सा बहुत लगा कि ऐसे ही लोगों की वजह से हमारी हिंदी अपमानित होती है.
आज आपकी पोस्ट ने मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि कर दी
और हाँ जुलाई की कादम्बिनी में भी लेख निकला है
बहुत ही रोचक जानकारी है भाटिया जी ....
ReplyDeleteअपनी भाषा, अपनी संस्कृति के प्रति लगाव के लिए सुरीनामी धन्यवाद के पात्र हैं. यहाँ तो अपनी संस्कृति की बात करना पिछडापन है और अपनी भाषा की बात करना कम पढ़े लिखे होने की निशानी है.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली यहाँ तो...
ReplyDeleteआपने अपने पोस्ट में बहुत अच्छा उदाहरण दिया है। हम आज भी अंग्रेजों के गुलाम है। वैसे अंग्रेजी कोई बुरी भाषा नहीं है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि इस भाषा के अलावा हमलोग अपनी मातृभाषा को भी उचित सम्मान दें।
ReplyDeleteयह निर्विवाद सत्य है कि अंग्रेज़ी सिर्फ उन्हीं देशों में बोली-पढ़ी-समझी जाती है जो गुलाम रहे हैं. विश्व का एक बहुत बड़ा भू-भाग अपनी, केवल अपनी भाषा में ही बात-चीत करता है लेकिन हम! १००० वर्षों की गुलामी का असर ६३ वर्षों में थोड़े समाप्त हो जाता है.
ReplyDeleteचीन, जापान, कोरिया,फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, स्पेन, पुर्तगाल, अरब यहाँ तक कि अफगानिस्तान और अफ्रीका के नन्हे-मुन्ने देश भी अपनी ही भाषा को महत्व देते हैं. हमें फिजी, मारीशस, सूरीनाम, गुयाना जैसे देशों में बसे गिरमिटिया मजदूरों से सबक लेना चाहिए जो लगभग दो शताब्दियों बाद भी अपनी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कारों को उसी प्रकार गले लगाए हुए है.
बहुत दिनों बाद आ सका हूँ. कुछ नेट से मोह भंग जैसी स्थिति भी लग रही है. क्षमा चाहता हूँ.
आपका कहना सही है । हमें ही अपनी मातृभाषा पर गर्व नही है । जितने भी देश गुलाम रहे हैं कमोबेश सबी का ये हाल है । लेकिन भारतीया लोगों का उदाहरण अनुकरणीय है । आपका लेख आँखे कोल देने वाला है ।
ReplyDeleteदिलचस्प जानकारी...ऑंखें खोलने के लिए काफी हैं.
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