इत्शे डंके! धन्यवाद!
अनुराग जी Danke, दांके कहते है धन्यवाद को, जर्मन मै D को दा बोलते है.
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दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
सुंदर गांव है। अभी घूम रहे हैं। आप ने हमारी बहुत दिनों की इच्छा पूरी की है। गांव के कुछ लोगों को भी साथ के साथ मिलाते जाते तो और अच्छा लगता।
दिनेश जी यह बहुत कठिन है, क्योकि यहां लोग बहुत अलग तरह के है, मिलन सार है अच्छे है, लेकिन जब भी कभी कोई मोका मिला तो अपने साथियो की ओर गांव वासियो की फ़ोटो अपने साथ जरुर लगाऊंगा.
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Sanjeet Tripathi said...
ghum raha hu aapke sath hi aapke gaon me,
shukriya, lekin ek bat bataiye har sadak karib karib sunsan hi dikh rahi hai,aisa kyn?
संजीत जी यहां लोग बहुत कम घर से निकलते है, पहले पहल हम भी हेरान होते थे, देखते थे कोई सडक पर नजर आये अब हम भी घर से बहुत कम निकलते है, महीने मै एक दो बार खरीदारी कर ली, फ़िर सारा दिन घर मै, शहरो मै बाजारो को छोड कर बाकी जगहा यही हाल है, लेकिन टुरिस्ट स्थानो पर खुब रोनक होती है
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नीरज जाट जी said...
भाटिया जी, अपने घर का भी तो फोटू दिखाओ। बल्कि यह तो पहले ही दिखाना चाहिये था।
अरे दिखा तो दिया!!
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दीपक 'मशाल' said...
खूब सारी रोचक जानकारियों के साथ भ्रमण कराया आपने.. बेहतरीन और आदर्श गाँव है.. आभार सर. पर क्या शाम को गोधूली बेला में गायें और धूल होती है? क्या कुंए पर गाँव की महिलायें अपने-अपने घड़े लेकर आती हैं? क्या घर में पाक रही कढ़ी की सुगंध पाकर बगल वाले घर से कोई कटोरी लेकर आता है? क्या वहाँ भी शाम को पंचायत के बाहर बड़े-बूढ़े मिल कर किस्सा कहानियाँ सुनाते हैं? अफ़सोस कि अब ये दुनिया के किसी गाँव में नहीं होता.. भारत में भी नहीं.
बाकी तो नही हां यहां गांव की गोरिया गर्मी के मोसम मै स्विमिंग पुल पर खुब जमा होती है, मुझे तो कोई फ़र्क नही पडेगा, लेकिन अगर वहां के चित्र यहां दुंगा तो अच्छा नही लगेगा, क्योकि कुछ तो बिकनी मै होती है ओर कुछ प्रकिर्ति रुप मै, जेसा भगवान ने वनाया उसी रुप मै, बस अब गर्मिया आने वालिया है:) देखना चाहते हो तो आ जाओ:)
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अन्तर सोहिल said...
मुझे तो आप उस किसान के यहां गायों को नहलाने और देखभाल करने की नौकरी लगवा दें। तभी आ सकता हूं जी आपके गांव में
फोटोज के लिये हार्दिक धन्यवाद
अपने गांव के कुछ दोस्तों और पडोसियों से भी मिलवाते चलें जी, मजा आ रहा है
प्रणाम
किसी खास दिन पर मै जरुर फ़ोटो खिंचूंगा,ओर पोस्ट पर जरुर लगाऊंगा
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पी.सी.गोदियाल said...
भाटिया साहब, हमें तरसाते रहो , अपना गाँव दिखा दिखा कर ! पर जब मैं भी बहुत सारे पैसे वाला हो जाउंगा न तो अपने गाँव को भी ऐसा ही ख़ूबसूरत बनाउंगा !
गोदियाल साहब बस टिकट ले कर आ जाओ, ज्यादा महंगा नही
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dhiru singh {धीरू सिंह} said...
बीयर की दुकाने बहुत है मेरे गांव मे भी कई घर मे कच्ची शराब बनती और बिकती है .
धीरु जी यहां वेसे ही हर चीज सस्ती है, बीयर,शराब, वाईन, सेक्ट, लिकोर, वोदका, जो चाहिये आम आदमी की जेब अलाउ करती है, ओर दुनिया भर की तरह तरह की शराबे, हां अगर हम बीयर वार मै पीते है तो मंहगी होती है, मेरे जेसा तो घर मै ला कर ही पीता है
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- भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...
- बहुत अच्छा लगा आप के गांव के बारे में जानकर. हमारे देश की विडम्बना है कि सरकार यहां तो मुफ्त पढ़ा नहीं पाती और जब विदेशी सरकारें मुफ्त पढ़ाती हैं तो छात्र को अपने खाते में निर्धारित मिनिमम पैसा जो रखना आवश्यक है, उसके लिये भी कर्ज नहीं दे पाती... ,मेरा जो भाई एम०एस०करने के लिये जा रहा है उसके लिये तकरीबन साढ़े पांच लाख रुपये का बैलेन्स अपने खाते में रखना है और उसे इस रकम का कर्ज भी नहीं मिल पा रहा क्योंकि बैंक कहते हैं कि वह फीस के लिये कर्ज देते हैं.... अब जर्मनी में फीस तो लगनी नहीं... खैर हम सब लोग इन्तजाम करने में लगे हैं और सम्भवत वह अगस्त में चला जायेगा.. लेकिन सरकारों के रवैये में अन्तर देखिये...
- आप की टिपण्णी ने थोडा उदास कर दिया, यही बिडम्बना है हमारे देश की कितने ही होन हार बच्चे सिर्फ़ पेसे के लिये रह जाते है, दुसरा हमारे देश भारत मै ऎश करने की चीजे सस्ती है, ओर आम जिन्दगी मै वरताने वाली चीजे हद से ज्यादा मंहगी, जब कि विदेशो मै उलटा है, हमारे यहां ऎश की चीजे मंहगई है, ओर आम रोजाना की जरुरत की चीजे खाने पीने की चीजे बहुत सस्ती पढाई बिलकुल मुफ़त, चलिये आप का भाई जरुर यहां आयेगा, मेरे बच्चे अगले साल जा रहे है युनिवर्स्टी मै, आप अपने भाई को मेरा फ़ोन ना ओर पता देदे मै पुरी मदद करुंगा
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- दीपक 'मशाल' said...
कई बार दिमाग मै आता है कि एक स्कुल खोला जाये भारत मै जहां सब को मुफ़त पढने का मोका मिले लेकिन अब वहां के हालात देख कर डर लगता है, चारो ओर नेता के रुप मै भेडिये है.
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दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
गांव अच्छा लगा। गाँव के लोगों से मिलना बाकी रहा।
जरुर मिलवाऊगां यहां के लोगो से, ओर अपने मित्रो से ओर जल्द ही
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सुलभ § Sulabh said...
इतना सुन्दर और रोचक विवरण की हम बस घूमते रह गए.
सफाई मानव सेवा है... इसे सभी को समझना होगा.
आप मेले के छोटे छोटे विडियो दिखा दे तो और मजा आएगा.
मेले मै करीब ३,४ किलो मीटर का तो जलुस ही होता है, लेकिन मै दो चार विडियो ओर बाकी फ़ोटो जरुर डालूंगा
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अन्तर सोहिल said...
पर्यावरण का इतना ध्यान रखने वाले और अपनी मातृभाषा से प्यार करने वाले नागरिकों को सलाम
आपने तो आखिरी किस्त लगा दी जी, बहुत अच्छा लग रहा था जी आपके गांव के बारे में जानना और तस्वीरें देखना।
"पुरानी छत बदलने पर जुर्माना" यह बात कुछ समझ नही आयी जी।
प्रणाम स्वीकार करें
अमित जी वो इस लिये की यह चाहते है कि वो मकान असली दिखे, ओर अगर छत को बदलवाना है तो सरकार मदद देती है ओर उसी जमाने की छत की ईंटॆ फ़िर से बनवाती है जो बहुत महंगी पडती है, आज कल तो मशीनो से सब ईंटे बनती है
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नीरज जाट जी said...
भाटिया जी,
जब आपने अपने गांव की तस्वीर दिखानी शुरू कर ही दी है तो एक बार घर की भी दिखायें। अन्दर से भी, और बाहर से भी। आज सामने से आपके घर की एक झलक मिली लेकिन वो पर्याप्त नहीं है
।
जरुर दिखाऊंगा मेरा घर करीब १९४२ का बना है, अगले दिनो मै सभी कमरो की फ़ोटॊ भी दिखाऊंगा
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jitendra said...
bahut sundar
post thodi lambi honi chaiye or detail be, man karta hai padthe he jaye.
wahan "kale gore" ki koi baat to nahi hai na ?
male ki or gaon dono ki photo post karyaga .
thanks
पुर्वी जर्मन मै थोडा बहुत होता है, क्योकि वो लोग बहुत गरीब थे ओर रुस के गुलाम थे, फ़िर पश्चिमी जर्मनी ने उन्हे अपने मै मिलाया, ओर वो लोग यहां विदेशियो को सम्पंन्ता पुरण देख कर जलते है, लेकिन पश्चिम की तरफ़ कानून बहुत सख्त है, ओर लोग भी समझ दार है इस लिये आज तक कोई दिक्कत नही आई, हां दोस्त लोग कभी कभी मजाक मै कालू बोल दे तो अलग बात है, क्योकि हम भी उन्हे वेसे ही बुलाते है जेसे किसी भारतिया मित्र को.
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aruna kapoor 'jayaka' said...
सर!...मेरे जर्मनी प्रवास के दरमियान, आपके साथ आपके गांव में घुमने का मजा जो आया था....वह अलग ही था!... यहां इस लेख में आपने आपने लेखनी का जादू चलाया है...सुंदर फोटोग्राफ्स पेश किए है, जो काबिले तारीफ है!...धन्यवाद!
पॄथ्वी जी आप को बहुत याद करतें है!... वे भी आपकी आवाज सुनने के लिए बेचैन है!
अरुणा जी यहां घुम कर ओर हमारे यहां रह कर भी गई थी, ओर बहुत अच्छा लगा था, मै भी इन के घर चाय, भुजिया, बिस्किट, पकोडे, बर्फ़ी ओर पता नही क्या क्या खा कर आया था, बहुत प्यार ओर मान मिला, ओर आती बार मिठाई का डिब्बा भी बच्चो के लिये लाया लेकिन लंडन एयर पोर्ट पर चेकिंग मै फ़ेंकना पडा.
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डॉ टी एस दराल said...
वाह भाटिया जी , आपने बहुत मेहनत से अपना जर्मन गाँव घुमाया । बड़ा आनंद आया । बहुत खूबसूरत है । साफ सफाई , हरियाली , सुविधाएँ , मशीनें , दूध , गाय , सभी कुछ देख लिया ।
इसीलिए विश्व के इस भाग को विकसित कहते हैं ।
लेकिन पूरे विवरण में बस एक बच्ची साइकल चलाते हुए नज़र आई। बाकी सब खाली पड़ा दिखा ।
शायद यही बात वहां खलती होगी । यहाँ तो बाहर निकलते ही आदमी ही आदमी । कभी अकेलापन लग ही नहीं सकता ।
वहां कौन किस से बात करता होगा ।
मैंने भी यह बात कनाडा में महसूस की थी ।
लेकिन अंत में सब कुछ बढ़िया ही लगा ।
दराल साहब अब हम भी बहुत कम निकलते है, अगर किसी से पता पूछना हो तो कोन बतायेगा? यहां बहुत कम बाहर निकलते है, घर से निकले तो कार मै बेठ गये कार से निकले तो फ़िर घर मै, यहां सभी आजाद है, लेकिन दुसरे की आजदी पहले सोचते है, किसी के घर जाना हो तो पहले फ़ोन कर के पुछते है, ओर अब हम देसी भी कुछ कुछ इन जेसे बन गये है, लेकिन सिर्फ़ १०% बाकी तो शुद्ध भारतिया ही है
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पी.सी.गोदियाल said...
भाटिया साहब , मेरा दो सौ रूपये का बिल है ( मेरी ज्यादा की औकात नहीं ) जो खून आपने मेरा अपना गाँव दिखाकर जलाया ! कोरियर से भेज रहा हूँ !
अरे गोदियल साहब बिल को छोडो आप खुद यहां आ जाओ आप को लाल वाईन पिला कर आप का खुन पहले से ज्यादा बना दुंगा, फ़िर आप दस सल ओर जवान नजर आयेगे.
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rashmi ravija said...बहुत ही सुन्दर और शांतिपूर्ण गाँव है आपका....बेहद ख़ूबसूरत तस्वीरें हैं..
बस एक बात भारत और जर्मनी के गाँव में एक जैसी है...श्राद्ध के लिए क़र्ज़ लेना...पर वहाँ शायद ,क़र्ज़ पीढ़ी दर पीढ़ी ना चलते हों..
अजी नही यहां तो कर्ज दो तीन महीने मै उतार देते है, क्योकि जिन के पास श्राद्ध के लिये पैसे ना हो उन को सरकार सहायता देती है, ज्यादा तर लोग अपने श्राद्ध के लिये बीमा करवा लेते है, जो हर महीने थोडे पेसे देने पडते है, ओर मरने पर शॆष बचे परिवार पर बोझ नही होता... लेकिन यहां मरने पर ज्यादा खर्च होता है
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निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...भाटिया जी, आपका गाँव तो वाकई बहुत खूबसूरत है. डिस्कवरी चैनल पर जर्मनी के गाँव और वहां की रिसायकलिंग के बारे में देखा है सो कुछ जानता हूँ. सुना है वहां हर घर में धातु, पेपर, प्लास्टिक, और कांच का कचरा रखने के अलग-अलग डिब्बे होते हैं और किसी भी कचरे को फेंका नहीं जाता.
मैं आपसे यह भी जानना चाहता हूँ कि कई बड़े-बड़े शहरों को छोड़कर गाँव में रहने के पीछे क्या कारण है?
आप ने बिलकुल सही देखा, यहां कचरा अलग अलग डिब्बो मै फ़ेंका जाता है धातु, पेपर, प्लास्टिक, और कांच ओर कांच के तीन चार अलग अलग डिब्बे होते है, लाल, नीला, सफ़ेद, हरा जेसे जेसे ओर सभी लोग सही जगह पर कचरा फ़ेकते है, पुराने फ़टे पुराने कपडे आम डिब्बे मै ओर सही ओर अच्छी हालत वाले कपडे ओर जुते अलग डिब्बो मै, ओर बीच बीच मै कभी कभार डिब्बो की चेकिंग होती है, ओर पकडे जाने पर बहुत जुर्माना होता है,
आप ने पूछा है कि मैने शहर मै रहने की जगह गांव मै रहना क्यो पसंद किया? शहरो मै एक कोने से दुसरे कोने तक पहुचने मै जितना समय लगता है उस से कम समय मै हम गांव से शहर मै पहुच जाते है, शहरो मै लोग बहुत नक चढे है, ओर कानून को हर दम नाक पर रखते है, जेसे दोपहर को १२ से ३ बजे तक शांति, रहे, रात १० बजे के बाद बहुत कम आवाज हो, टायलएट का पानी भी बहुत जरुरत पर चलाओ, कपडे धोने की मशीन, बर्तन धोने की मशीन भी रात दस से पहले पहल चलाओ, ऎसी बहुत सी बाते है, ओर गांव मै यह सब है लेकिन इतनी घुटन नही, फ़िर शोर बिलकुल नही, ताजी ओर साफ़ हवा, बच्चे बाहर कही भी खेले, कार पार्किंग की दिक्कत नही, ओर मन को शांति मिलती है गांव मै, ओर गांव मै किसी चीज की कमी भी नही, दो कारे है जब जहां चाहो पहुच जाओ.
इस संवाद से बहुत सी नयी जानकारियाँ मिलीं। बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteआपके जवाब तो शर्मा जी(सुरिंदर शर्मा) से पूंछो से भी ज्यादा खतरनाक हो गए.. :) बहुत मजेदार जवाबी हमला सर..
ReplyDeletechaliye jo sawal tha uska javab mil gaya, baki to deepak mashal ko ab le hi jao apne gaon ghumaane bas ;)
ReplyDeleteये बढ़िया स्टाईल है जबाब देने का.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपका जवाब देने का अन्दाज़
ReplyDeleteआप का गाँव एक विकसित पूंजीवादी गांव है। लेकिन लोगों के बारे में जानना फिर भी छूट गया। क्यों कि यदि मनुष्य नहीं तो गाँव का क्या? लगता है यह पूंजीवाद लोगों को परिवार तक सीमित कर देता है। बस दो चीजें रह जाती हैं व्यक्ति-परिवार और राज्य। समाज कहीं खो सा गया है। यहाँ भी हम समाज को खोता हुआ देख रहे हैं। परिवार और व्यक्ति तो हैं, और राज्य वह जितना आप के यहाँ जिम्मेदार और प्रभावी है यहाँ गैर जिम्मेदार और निष्प्रभावी। यहाँ वह केवल पैसे वालों के साथ है।
ReplyDeleteसंदेशात्मक बेहतरीन प्रस्तुति है..बधाई !
ReplyDeleteयह भी खूब रही टिप्पणियों का जबाब देने की स्टाईल भाटिया साहब !
ReplyDeleteआप का गाँव , इसकी विस्तृत यात्रा, सुन्दर चित्रण और इतन्ती जानकारी , सभी ने मन मोह लीया....
ReplyDeleteregards
आपके गाँव वाली सभी पोस्टों तथा टिप्पणियों और उनके जवाब पढ़ कर वाकई खूब मजा आया। बहुत प्यारा है आपका गाँव!
ReplyDeleteवाह वाह!!
ReplyDeleteगागर में सागर लगा ये पोस्ट :)
भाटिया साहब पासपोर्ट बनवा रहा हूं, आपके गांव एक बार तो जरूर आऊंगा, यदि ईश्वर ने चाहा तो.
ReplyDeleteटिप्पणियों के जबाब देने का अंदाज़ बहुत ही बढ़िया है...ढेर सारी जानकारियाँ और मिल गयीं...शुक्रिया
ReplyDelete"अच्छा बुरा दोनों है पर मैं तो अच्छाई देखता हूँ| " आपकी यह साफगोई पसंद आयी राज जी| इसी तरह सभी के दिलों पर राज करते रहें|
ReplyDeleteभाटिया जी,
ReplyDeleteमैं भी आपसे प्रेरणा पाकर अपने गांव की तस्वीरें दिखाना शुरू करूंगा। शुरूआत करूंगा जोहड से।
बाकी सवाल-जवाब अच्छे लगे।
टिप्पणियों का ज़वाब देने का यह अंदाज़ बहुत भाया भाटिया जी ।
ReplyDeleteबढ़िया रही ये पोस्ट्स गाँव के बारे में ।
अब तो मैं भी आपने गाँव के बारे में लिखुन्गीं...
ReplyDelete____________
'पाखी की दुनिया' में रोटी का कमाल