यह बात है दो तीन साल पहले की, मेरा घर अलग सा है यानि पडोसी के जाना हो तो सडक पार करनी पडती है, ओर नीचे एक ओफ़िस है, जहां समान बेचा जाता है, ओर गल्ले मै खुब पेसे होते थे, मेरा ओफ़िस पहले वही होता था, फ़िर मैने बदला तो अब मेरा ओफ़िस मेरे घर से ५० मीटर दुर है, ओर मेरा ओफ़िस टाईम ७,०० बजे सुबह से शाम ४,०० बजे है, मै घर से ६,५५ पर निकलता हुं.
एक दिन मै अपने सही समय से निकला ओर सीढियां उतर कर जब आगे कदम बढाने लगा तो मुझे कुछ अजीब सा लगा अपने आस पास का माहोल, दो चार कदम आगे जा कर जब मैने पीछे मुड कर देखा तो मेरे मुंह से चीख निकल गई,क्योकि नीचे वाला ओफ़िस का दरवाजा टूटा हुआ था, ओर खुला था, जब की वहां काम करने वाला मुझे आगे जा कर मिलता था, ओर मै हडबाडा कर कभी इधर देखु तो कभी बीबी को आवाज दुं कि मुझे जल्द से फ़ोन दो, इतनी देर मै पुलिस के दो आदमी जो वर्दी मै नही थे, ओर मेरा चीफ़ ओर एक दो लोग ओर आते दिखाई दिये ओर मुझे इन सब से होस्स्ला दिया, ओर मेरे से बस इतना पुछा कि तुम ने रात को कोई आवाज सुनी? मैने कहां नही, लेकिन एक बार मेरा कुता रात को गुर्रया था तो मेने इसे चुप करवा दिया, ओर उस के बाद मै अपने काम पर चला गया, बाद मै पता चला कि उस दिन हमारे पडोसी के जो कि डा० है उन के जहां भी चोरी हुयी, ओर तीन चार महीनो के बाद पुलिस ने इन चोरो की गतिबिधियो को देखा समझा ओर चोर को रंगे हाथो पकड लिया, मेरे से आज तक इस बारे एक भी सबाल नही किया.
अगर यह सब भारत मै होता तो... यही पुलिस मेरा क्या हाल करती? मेरा क्या मेरे आसपास के पडोसियो मै जिस पर इन्हे शक होता उसे भी पकडती, गालियां. बेज्जती ओर पता नही क्या क्या करती, उस के बाद यह मिडिया भी हर आदमी की पोल खोलते, उन्हे इतना लजिज्त करते की वह आदमी किसी को मुंह दिखाने के काबिल ना रहता... ओर एक दिन आत्म हत्या कर लेता या फ़िर पागल हो जायेगा
अगर हमारे यहां मिडिया किसी भी नागरिक के बारे जब तक वो दोषी करार ना हो कुछ भी नही छाप सकता, अगर कुछ उस के बारे समय से पहले लिखता है तो उस पर मान हानि का मुकद्दमा चलता है, पुलिस बिना सबुत किसी को भी एक दो घंटे से ज्यादा नही रोक सकती, ओर उस के बारे किसी को कुछ भी गलत् जानकारी नही दे सकती, वर्ना पुलिस को भी लेने के देने पड सकते है.
अभी दो चार दिनो से मै "निरुपमा " के बारे मै पढ रहा हुं, कोई उस के मां बाप को दोषी करार दे रहा है, गालिया दे रहा है, कोई उस के दोस्त को दोषी करार दे रहा है, हमारी पुलिस हवा मै हाथ पैर मार रही है, ओर मिडिया ने उस परिवार को उस के दोस्त को कही भी मुंह दिखाने लायक नही छोडा, यह सब कमजोरी हमारी पुलिस की है जो पता नही कैसे पुलिस बन गई... अरे पुलिस हो तो पुलिस की तरह काम करो गुंडो की तरह से क्यो हर किसी को पकड कर वाह वाही लूट रहे है, ओर क्यो मीडिया को बेकार की बकवास करने के लिये मोका देते हो....मीडिया आज ओरो की बाते उछाल रहा है, भगवान ना करे कल हमारे साथ कुछ ऎसा हुआ तो यही मिडिया हमारी भी खिल्ली इसी तरह से उडायेगा,
"निरुपमा" के संग क्या हुआ, क्या नही हुआ किसी को नही पता, तो क्यो हम बेकार मै सभी को दोषी की नजर से देखे, हो सकता है मां बाप ने डांट हो?ओर उस ने आत्महत्या कर ली हो? अगर मेरी या आप की बेटी ऎसी खबर देगी तो क्या आप उसे शावाशी देगे? मै मारुंगा तो नही लेकिन शावाशी भी नही दुंगा... उसे डांटूंगा तो जरुर
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 09.05.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
राज जी यह सब व्यवस्था और उस पर निगरानी रखने वालों के जमीर पर निर्भर करता है / यहाँ भारत में मंत्री का जमीर रुपया खाने से मर चूका है और आम जनता को इन भ्रष्ट मंत्रियों ने इतना अभाव से पीड़ित कर दिया है की उनका जमीर दो वक्त की रोटी के लिए बिक रहा है / यही भारत का दुर्भाग्य है / आप लोग भी अपने स्तर पर इस स्थिति को सुधारने के लिए कुछ कीजिये /
ReplyDeleteराज जी ,
ReplyDeleteआपकी बात ठीक है , मगर इतना तो सच है ही कि उस लडकी की मौत से बहुत दुख पहुंचा है , क्योंकि वो मरने या मारने से बच /बचाई जा सकती थी मगर शायद इसकी कोशिश ही नहीं की गई । और मुझे इस बार भी पूरा विश्वास है कि आरूषि मर्डर केस की तरह कुछ नहीं होने वाला है
भाटिया जी, आप सही लिख रहे हैं... यहां हर कोई अपने लिये गिराने की सीमा तलाश रहा है कि वह कितने नीचे गिर सकता है..
ReplyDeleteभाटिया जी, जर्मनी में जनतंत्र एक आदत बन गया है। जब कि हम भारत में जनतंतर-जनतंतर खेल रहे हैं।
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeleteमातृ-दिवस की बहुत-बहुत बधाई!
ममतामयी माँ को प्रणाम!
सही कहा आपने,
ReplyDeleteअगर भारत होता तो पहले 24घंटे की पूछताछ आपसे ही होती।
फ़िर सुबह एलान हो जाता की दरवाजा तोड़कर
आपने ही.............
इस व्यवस्था को हमारे और हमारे देश के दुर्भाग्य के सिवाय और क्या कहा जा सकता है?
ReplyDelete...प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteरिपोर्ट लिखवाने का बदला पुलिस वाले आप से ही निकालते हैं ।
ReplyDeleteपुलिस की भर्ती के लिए कोई यूं ही लाखों की रिश्वत नहीं चलती यहां. पाई पाई वसूल लेते हैं लोंगों से बस एक बार कोई इनके टंटे में फ़ंसे तो सही.
ReplyDeleteयहां तो मौके ढूंढते रहते हैं. मौका मिला कि दिया सन्नाकर.
ReplyDeleteरामराम.
aadrniy aaj bhaai aap jo likhte hen kaash desh ke log ise maane lgen bs khudaa se yhi duaa he abhi aapne dekhaaa hogaa ki uttrprdesh ke muzffrpur men aek bhaai ko apni behn or uske premi ki htyaa ke jurm men pkda gyaa laash bhi braamd ki gyi or puis nen jurm bhi qubul krvaayaa lekin ab pulis men mrne vaale donon jivit pulis thaane phunch kr pulis ke kaarnaamon pr kaalikh pot rhe hen . akhtar khan akel kota rajasthan my blog akhtarkhanakela.blogspot.com
ReplyDeleteराज जी,
ReplyDeleteयही तो है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की महिमा...जिसे चाहे, जब चाहे गरिया दो...पावर और पैसा, दो चीज़ें होनी चाहिएं बस...आप पर कोई क़ानून लागू नहीं होगा...
जय हिंद...
हालात देखते हुए अजय झा से सहमत हूँ !
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteमातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
वन्दे मातरम !!
सही लिख रहे हैं आप
ReplyDeleteराज साहब,
ReplyDeleteये बात तो ठीक है। आपसे एक गुजारिश है बल्कि एक प्रश्न है। क्या जर्मन कहीं घूमने नहीं जाते? आप भी हमें सप्ताह में एक दिन कहीं घुमा दिया करो।
मीडिया आजकल हर बात को सनसनी बना देता है |
ReplyDeleteभाटिया जी,
ReplyDeleteबहुत ही विचारणीय पोस्ट है. पुलिस नालायक भी है और भ्रष्ट भी तो और क्या उम्मीद रखी जाय?