नमस्कार आप सभी को, युरोप मै पिछले शुक्र बार से हबाई सेवा बंद करनी पडी, जिस के कारण करोडो लोगो को बहुत सी कठिनाईयो का सामना करना पड रहा है, मै जर्मनी के मुनिख शहर के पास रहता हुं, अगर आप के जान पहचान मै , कोई रिश्ते दार, परिवार का आदमी, कोई परिवार, मित्र, बच्चा या महिला मुनिख एयर पोर्ट पर फ़ंसे हो तो मुझे बताये जब तक हालात सही नही हो जाते तब तक वो मेरे मेहमान बन कर रह सकते है, वो आप मै से कोई भी भारतिया हो तो मुझे मेल करे, मै उन्हे इज्जत से अपने घर लाऊंगा एयर पोर्ट से, ओर खाना पीना ओर रहना सब मेरे घर पर, जब हालात नार्मल हो जायेगे तो उन्हे एयर पोर्ट छोड्ना भी मेरे जिम्मे.... वो किसी भी धर्म के हो मुझे सब एक जेसे ही है, मेरा फ़र्ज अपने भारतियो को इस मुश्किल समय मै सहारा देना है.... मै आप के फ़ोन , आप सब के मेल का इंतजार करुंगा.
चित्र आप के मुख पर मुस्कान लाने के लिये दिया है
भाटिया जी, कृपया फाईटें को फ्लाइटें कर लें.
ReplyDeleteआपकी सद्भावना के लिए धन्यवाद.
सद्प्रयास।
ReplyDeleteHUM AAPKE LIKHAWAT KE TRUTIYON KI JAGAH AAPKE BHAWNA KO DEKH YAH SOCHNE PAR WIWASH HAI KI AGAR AAPKI WAKEE AISI SOCH HAI TO AAP KALYUG KE BHAGWAN HAIN.AAP JAISE LOGON SE HI IS KALYUG MAIN INSANIYAT KI RAKCHHA HO RAHI HAI.INDIA MAIN AGAR AAPKO KABHI MANWIY AADHAR PAR SAHAYTA KI JAROORAT PARE TO KRIPA KAR HAMEN JAROOR YAD KIJIYEGA. BLOG KO INSANIYAT KE LIYE PRYOG KARNE KE LIYE DHANYWAD.
ReplyDeleteहमारे मित्र तो यहाँ फंस गये हैं, जा नहीं पा रहे.
ReplyDeletebahut sahi kaha aapne sir ji ....hum sabhi ko aise me logo ki maddat karni chahiye ..
ReplyDeleteबड़ा दिल है आपका ...मुस्कराहट तो बरबस आ जायेगी !
ReplyDeleteधन्यवाद भाटिया जी!
ReplyDeleteअजी हम तो पहले से ही जानते हैं कि आप एक दिलदार आदमी हैं....
ReplyDeleteआपको नमन....
ReplyDeleteshukriya sir.
ReplyDeleteतस्वीर तो मस्त है :) हमारे बॉस फंसे हुए हैं लन्दन में... नहीं आ पा रहे तो आनंद है आजकल !
ReplyDeleteवाह इसे कहते हैं दिलदार
ReplyDeleteओह...!
ReplyDeleteइससे तो प्रवासियों को
बहुत ही परेशानियाँ हो रही होंगी!
आप किसी भी ईमानदार भारतीय के लिए, एक अनुकरणीय उदाहरण है राज भाई ! किसी समय गृहस्वामिनी को अन्नपूर्णा कहा जाता था , अतिथि सत्कार हमारे लिए सौभाग्य का विषय रहा है ! पुत्री को बहुत पहले समर्पित एक कविता की कुछ लाइनें दे रहा हूँ !
ReplyDeleteद्रढ़ता हो , सावित्री जैसी,
सहनशीलता हो सीता सी,
सरस्वती सी महिमा मंडित
कार्यसाधिनी अपने पति की
अन्नपूर्णा बनो, सदा ही घर की शोभा तुम्ही रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी
स्वागत करो अतिथि का पुत्री
मुख पर ले मुस्कान सदा ही
घर के दरवाजे से तेरे ,
याचक कभी न खाली जाए
मान करोगी अगर मानिनी , महिमामयी तुम्ही दीखोगी
पहल करोगी अगर नंदिनी , घर की रानी तुम्ही रहोगी !
बहुत ही बड़ा सत्कार्य कर रहे हैं आप! आपकी यह घोषणा अत्यन्त सराहनीय है!
ReplyDeleteकाश फँसे होते तो आप के यहाँ टिक कर पराँठे खा रहे होते ।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद....
ReplyDeleteभगवान् न करे कि किसी को इस तरह की परशानी झेलनी पद रही हो मगर आपका यह कह लेना मात्र ही एक बहुत बड़ी दिलासा है भाटिया साहब !
ReplyDelete@ राज भाटिय़ा ji ....
ReplyDeleteshreeman hum to aapke yahan ghumne fir kabhi fursat mein hi aayenge :P
nice attempt :)
वाह ये हुई न बात. आपने तो यह कह कर ही दिल जीत लिया. लेकिन जो लोग एसे में फंस गए हैं उनके साथ मेरी भी सहानुभूति.
ReplyDeleteअभिषेक ओझा जी की तो बल्ले बल्ले ही हो गई :)
ReplyDeleteआपकी उदारता के आगे ह्रदय नतमस्तक है...
ReplyDeleteफिलहाल तो शिखा वार्ष्णेय के पतिदेव का वापस लन्दन जाना टलता जा रहा है...शिखा के वापस जाने में अभी वक़्त है
Beautiful gesture !
ReplyDeletesaadar naman aapko
@ honesty project democracy जी, मै भी आप सब की तरह से एक बिलकुल साधारण सा आदमी हु, मुझ मै भी वो सब बुराईयां है जो एक आम आदमी मै होती है, लेकिन किसी के काम आ सकू, किसी का दुख बांट सकूं यह मेरे लिये मंदिर जाने से ज्यादा खुशी देता है...
ReplyDeleteबाकी Jitendra Bagria ,प्रवीण पाण्डेय जी, ओर शेष सभी मित्र गण जब चाहे हमारे यहां आये सब का स्वागत है
इतने नेक विचार ,इस कलयुग में बिरले लोगो के ही हो सकते है |दिल बाग बाग हो गया |
ReplyDeleteवो... क्या नाम है... भाटिया जी.
ReplyDeleteहम फंस गये थे वहां पर। और फंस ऐसे गये थे कि मेल भी नहीं कर पाये।
खैर, रब्ब जी दी किरपा है कि सही सलामत बच गये।
वापस आ गये।