तो यह लेख पढिये.....
रचनाकार अथवा संपादक नियमित लेखक, कवि अथवा ब्लागर नहीं हैं l एक आम आदमी की तरह, आम आदमियों के बीच घूमते हुए, आतंकवादी हमलों के बाद अपने प्रियजनों को खो कर ह्रदय विदारक क्रंदन करते हुए, लुटे हुए आम भारतीय की जो पीड़ा, विवशता, हताशा और छटपटाहट देखी है - वह महसूस तो की जा सकती - परन्तु शब्द - वाणी अथवा लेखनी द्वारा - उस दर्द का १/४ % या १/२ % भी आप तक संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l कहा गया है की "एक चित्र १००० शब्दों से अधिक कहता है" - परन्तु एक अनुभूति को तो सम्पूर्ण शब्दकोष भी संप्रेषित करने में असमर्थ हैं l हर बार के आतंकी आक्रमण के बाद जिस तरह बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता मिल कर भारत की आक्रांत और पीड़ित जनता को बहलाने फुसलाने का काम करते हैं और कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ देखो कैसे भारत की जनता आक्रमण को भुला कर दूसरे ही दिन अपने अपने काम में व्यस्त हो गई है l खून तो तब खौलता है जब ये बिके हुए निर्लज्ज देशद्रोही पत्रकार और नेता लोग आक्रमणकारियों की पैरवी करने लगते है और देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले वीर सैनिकों पर आरोप लगाने का जघन्य और अक्षम्य अपराध करते हैं l
एक आम भारतीय की पीड़ा अपनी संवेदना में मिला कर आप तक पँहुचाने का प्रयास है l जब तक हम सब लोग आपसी क्षुद्र भेदभाव भुला कर अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा के प्रति एकमत नहीं होंगे तब तक ऐसे ही आक्रमण होते रहेंगे और हम लोग ऐसे ही अरण्य-रोदन करते रहेंगे l
मातृभूमि भारत के प्रति देशभक्ति की भावना या रचना पर एकाधिकार अथवा नियंत्रण अवांछित है l प्रत्येक देशभक्त भारतीय अपनी अपनी भाषा में अनुवाद कर के प्रसारित करे l यद्दपि किसी भी प्रकार का "Copy Right" नहीं है - सब कुछ "Copy Left" है; तदापि पाठकगण से नम्र निवेदन है कि अपने मित्रों को प्रसारित (फारवर्ड) करते समय अथवा अपने ब्लॉग पर डालते समय रचनाकार को एक ईमेल द्वारा सूचित कर के अथवा एक लिंक दे कर प्रोत्साहन दें l हमारा मानना है कि - Criticism is Catalyst to Creativity या फिर यूँ समझ लीजिये कि - निंदक नियरे रखिये आंगन कुटी छवाय...... l आपकी सृजनात्मक आलोचना शिरोधार्य होगी - संकोच न करें l
देशभक्तिपूर्ण कविता आपको पसंद आयी तो अवश्य प्रसारित करें अथवा - क्योंकि :
भारत के लोगों में देशभक्ति अक्षरशः "मरघटिया वैराग्य" जैसी है l ज्यों ही भारत पर आक्रमण होता है - जैसा की पिछले २००० वर्षों से होता आ रहा है (कोई नई बात नहीं है - आक्रमण न होना नई बात होगी), लोगों की देशभक्ति उनींदी सी आँखों से जागती हुई प्रतीत होती है - केवल प्रतीत होती है - जागती नहीं है - बस मिचमिचाई हुई आँखों से देख - थोड़ा बड़बड़ा कर फिर सो जाती है - अगले आक्रमण होने तक l मैं तो कहता हूँ कि "मरघटिया वैराग्य" भी बहुत लम्बा समय है - यूँ कहना चाहिए कि सोडा वाटर की बोतल खोलने पर बुलबुलों के जोश जितना या फिर मकई के दाने के गर्म होने पर आवाज कर के फटना और पोपकोर्न बनने की अवधि तक - बस इतना ही - इस से अधिक नहीं l पता नहीं कितने महान लोग भारत को जगाने का असफल प्रयत्न कर कर के मर गए परन्तु पूरे विश्व में केवल भारत के ही लोग हैं जो ठान रक्खें हैं कि हम नहीं जागेंगे l जो जाग जाते हैं उनके साथ ये तकलीफ़ है कि वे दूसरों को जगाने का मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगते हैं - भूल जाते हैं कि उनके पहले भी उनसे लाख गुणा महान आत्माएं सिर पटक के थक गए - परन्तु भारत के लोग नहीं जगे l हम आप जैसे कुछ "मूर्ख" लोग भी भारत को जगाने के प्रयास में सहयोग कर रहें है - संभवतः किसी दिन भारत की अंतरात्मा जाग जाये l चर्मचक्षु खुलने से जागना नहीं होता है - ज्ञानचक्षु खुलने की नितांत आवश्यकता है - Sooner the Better.
जिस प्रकार हम प्रतिदिन शौचकर्म करते हैं, स्नानादि करते हैं, भोजन करते हैं - यह नहीं कहते कि कल तो किया था फिर आज भी क्यों करें - ठीक उसी प्रकार भारत के लोगों की मूर्छित अंतरात्मा को जगाने के लिए प्रत्येक जागरूक देशभक्त भारतीय को प्रतिदिन प्रयत्न करना है l मैं "चाहिए" शब्द के प्रयोग से बचता हूँ l हमें प्रयत्न करना "चाहिए" नहीं - हमें प्रयत्न करना है - और करते रहना है l
क्रमश......
क्रमश......
आनंद जी. शर्मा
मुंबई / दिनांक : १६.०३.२०१०
आपने बिल्कुल ठीक लिखा है...
ReplyDeleteआनंद शर्मा जी के लेख बहुत बढ़िया और सामयिक विषयों पर होते हैं. आपको धन्यवाद..
ReplyDeleteआनंद शर्मा जी का लेख पढ़ा.
ReplyDeleteआपके द्वारा प्रस्तुत लेख पढ़कर बेहद अच्छा लगा. बस हमें सोई हुई चेतना को जागृत करने की आवश्यकता है.
"भारत के लोगों की मूर्छित अंतरात्मा को जगाने के लिए प्रत्येक जागरूक देशभक्त भारतीय को प्रतिदिन प्रयत्न करना है"
- विजय तिवारी ' किसलय '
बहुत ही संवेदनशील पोस्ट...आगे का इन्तजार रहेगा....प्रयत्न करते जाना है.....
ReplyDelete.....आप भी इन पहेलियों को सुलझाने का प्रयत्न करें...................
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विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
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http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
हो मुकम्मल तीरगी ऐसा कभी देखा न था
ReplyDeleteएक शम्अ बुझ गई तो दूसरी जलने लगी
हमें सोई हुई चेतना को जागृत करने की आवश्यकता है।
ऐसा मुर्ख बन्ने का मज़ा ही कुछ और है .... चलिए मूर्खों की लम्बी लिस्ट में अपना नाम भी शामिल कर लें
ReplyDeleteबेचैनी जिसे हर भारतीय की चिंता है.
ReplyDeletebahut prerk lekh hai .aao uthe aur jage aur is shmshan vairagy ko bhgakar sthayi vairagy laye .
ReplyDeleteआनंद शर्मा जी के साथ साथ आपके भी आभारी है आपका योगदान भी सराहनीय और वन्दनीय है
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही कहा है! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! बहुत ही बढ़िया और प्रेरक लेख हैं!
ReplyDeleteसराहनीय है!
ReplyDeleteरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
यह तो सत्य है कि आतंकी हमलों का भोगा दारुण यथार्थ संप्रेषण में अंशमात्र भी व्यक्त करना बहुत बड़ा अनुशासन मांगता है। और सामान्यत: हममें वह होता नहीं है।
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