(बाल-बुद्धि भारतियों पर कवि का कटाक्ष)
अरे - समझौता गाड़ी की मौतों पर - क्या आंसू बहाना था
उनको तो - पाकिस्तान नाम के जहन्नुम में ही - जाना था
मरने ही जा रहे थे - लाहौर, करांची - या पेशावर में मरते
और उनके मरने पर - ये नेता - हमारा पैसा तो ना खर्च करते
और तुम - भारतियों, टट्पुंजियों - कहते हो हैं हम हिंदुस्थानी
जब हिसाब किया - तो निकला तुम्हारा ख़ून - बिलकुल पानी
औकात की ना बात करो - दुनिया में तुम्हारी औकात है क्या - खाक
वो समझौता में मरे तो १० लाख - तुम मुंबई में मरो तो सिर्फ ५ लाख
तुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन, ही अच्छे
देखो कैसे बन बैठे हैं - बिके हुए सिक यू लायर मीडिया के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है - इसलिए - यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में - तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं
जाग जा - अब तो जाग जा ऐ भारत - अब ऐसे क्यूँ सोता है
वो मार दें - और तू मर जाये - लगता ऐसा ये "समझौता" है
प्रियजनों की मौत पर - फूट फूट रोवोगे - वोट नहीं क्या अब भी दोगे
लानत है - ख़ून ना खौले जिस समाज का - वो सज़ा सदा ऐसी ही भोगे
पांच साल में - आधा घंटा तो - वोट के लिए निकाला कर
विदेशियों के वोटों से जीतने वालों का तो मुंह काला कर
सब चोर लगें - तो उसमे से - तू अपने चोर का साथ दे दे
अपना तो अपना ही होता है - परायों को तू मात दे दे
बुद्धिमान है तू - अब अपनी बुद्धि से काम लिया कर
वोट दे कर अपनों को - वन्दे मातरम का उद्घोष कर
आक्रमणकारियों के दलालों का राज - समूल समाप्त कर
ऐ भारत - तू उठ खड़ा हो - निद्रा, तन्द्रा को त्याग कर
अपने भारतीय होने पर - दृढ़ता से अभिमान कर
कुछ तो कर - कुछ तो कर - अरे अब तो कुछ कर
रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
अपने भारतीय होने पर - दृढ़ता से अभिमान कर
ReplyDeleteकुछ तो कर - कुछ तो कर - अरे अब तो कुछ कर
राज जी बहुत बढ़िया कविता प्रस्तुत की आपने जिस दिन से सभी भारतीय ऐसा सोचने लगे भारत की तस्वीर ही बदल जाएगी...बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार
तीखा प्रहार कवि का...बेहद उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteतू न थकेगा कभी
ReplyDeleteतू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
भारतीय होने पर
गर्व कर , गर्व कर , गर्व कर ....
sir blog nahi khulta aapka bahut error aata hai.
ReplyDeleteकवि धर्मेश की जोश दिलाने वाली
ReplyDeleteस्वाभिमान को जगाने वाली कविता है
आभार राज जी
अपने भारतीय होने पर - दृढ़ता से अभिमान कर
ReplyDeleteकुछ तो कर - कुछ तो कर - अरे अब तो कुछ कर
बहुत बढ़िया जोश भरी कविता है..धर्मेश जी की..
इसे पढवाने का बहुत आभार
"अपने भारतीय होने पर-दृढ़ता से अभिमान कर
ReplyDeleteकुछ तो कर-कुछ तो कर-अरे अब तो कुछ कर"
वाह्! लाजवाब!
धर्मेश जी की इस रचना नें तो हमारी रगो में भी जोश भर दिया! लेकिन हिन्दुस्तानी खून है, इसलिए ठंडा भी जल्द ही हो जाएगा (:
सही कटाक्ष...
ReplyDeleteमुझे अब स्वामी रामदेव जी में ही आशा की किरन दिखाई देती है..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
ReplyDeletevaah...vaah.....!!hamri bhi nasen fadakane lagi bhyi.....!!
ReplyDeleteकविता अत्यंत जोशीली है मगर मेरा मानना है कि दोनो तरफ इंसान बसते हैं और कोई भी निर्दोष मरता है तो इंसानीयत ही शर्मशार होती है, नेताओं की तो बात ही क्या।
ReplyDeleteसुंदर कथ्य.
ReplyDeletejosh bhari aur achchhi rachna
ReplyDeleteराज भाई !
ReplyDeleteआपके सन्दर्भ में कुछ लिखा है , कृपया पढ़ लें ...
आदर सहित
बहुत बढ़िया प्रस्तुति दुश्मन को ललकार मारते हुए .......वाह
ReplyDeleteतुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन, ही अच्छे
ReplyDeleteदेखो कैसे बन बैठे हैं - बिके हुए सिक यू लायर मीडिया के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है - इसलिए - यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में - तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं
सच्चाई बयाँ करती कविता .....!!