जेसा कि मेने पिछली पोस्ट मै लिखा था कि हमारे एक मित्र विनोद कुमार जी का स्वर्ग बास २/७/१० को रात को ११,३० पर हुआ, कल ८/३ को यहां सोम बार को उन्हे अग्नि दे दी गई, ओर चोथे के दिन सब ने मिल कर यहां एक स्थान पर प्राथना भी की,
मुश्किल अब हम सब पर यह आ रही है कि यहां पर कोई पंडित जी नही जिन से हम कोई सलाह मश्विरा कर सके, ओर विनोद जी के घर पर भारत मै मां है, जिन की उम्र ९० के करीब है, ऒर वो बेटे का सुन कर बहुत ज्यादा बिमार हो गई ओर कुछ बोल नही सकती, ओर यह परिवार भी एक दम से यहां से जा नही सकता,अब सलाह किस से ले?? तो क्या आप मे से कोई भी हमे यह सलाह दे सकता है कि, हम उन की तेहरवी अभी करे या ना करे, क्योकि कॊई कहता है जब तक पिंड दान ना हो जाये तब तक कोई भी किरया नही करनी चाहिये, ओर शनि वार को उन्हे १२ दिन हो जाये गे, इतवार को कोई तेरहवी नही करता, तो क्या हम शनि बार को बिना पिंड दान किये उन की तेरहवी कर सकते है, ओर उन के अस्त भी अभी गगां मै नही बहाये, तो वो अस्त कितने समय तक गंगा मै बहा सकते है( यानि दो चार महिने बाद बहाये तो कोई दिक्कत तो नही)
जिन्हे भी इस बारे मै जितना भी पता हो क्र्प्या हमे बातये, यह एक तरह से हम सब की मदद होगी, मुझे जितना पता था, वो मेने सब इस परिवार को बताया, लेकिन अब स्थिति थोडी बदल गई है, तो क्या हम विनोद जी की तेहरबी करने के बाद भी पिंड दान ओर अस्त बहा सकते है?? या पहले अस्त बहाये, ओर पिंड दान करे ओर फ़िर तेहरबी करे, लेकिन यहां यह सब आसान नही पिंड दान ओर अस्त बहाने के लिये तो भारत आना पडेगा, ओर उस समय तक तेहरवी की तारीख निकल जायेगी.
आशा करता हुं कि आप सब इस मामले मै इस परिवार की मदद जरुर करेगे, ओर यह सलाह एक के नही हम सब के काम आयेगी, आप सब का मै पहले से ही धन्यवाद कर देता हुं
अंत्येष्टी और उस के द्वादशाकर्म के बारे में इलाकावार परंपराएँ हैं। प्राचीन परंपरा के अनुसार तो अस्थियाँ तीसरे दिन चुन कर उन्हें गंगाजल और दूध में धो कर एक कलश में रख कर सुरक्षित रख दी जाती थीं। कच्चे घर होते थे तो उन की किसी दीवार में चुन दी जाती थीं। इस के बाद द्वादशा कर्म निपटा दिया जाता था। परिवार में जब भी कोई हरिद्वार, या गया जाता था तब उन अस्थियों को ले जाता था और वहाँ पिंडदान कर गया श्राद्ध करवा देता था।
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता कि शनिवार को द्वादशाकर्म करने में कोई आपत्ति है। मृतक की अस्थियाँ एक कलश में सुरक्षित रख दी जाएँ। बाद में जब भी समय हो। उन का पिंडदान या श्राद्ध कर्म किया जा सकता है।
vakeel sahab ki raay mano nishulk bhi hai
ReplyDeletedhanyvaad
भाटिया जी .
ReplyDeleteयहाँ दशगात्र की भी परम्परा है- दसवें दिन पिंडदान करने की ! किन्तु यह साल के भीतर कभी भी कर सकते हैं .और वृत्सोसर्ग भी उसी दिन करते आये हैं -मतलब एक तराह की पशु बलि मगर यह अब कहीं नहीं होता .
तेरहवीं -त्रयोदश संस्कार शनिवार को किया जा सकता है -पिंडदान और अस्थि विसर्जन एक वर्ष के भीतर सुविधानुसार जब चाहें!
कर्मकांडी किसी विद्वान् की राय लें -मुझे लगता पंडित वत्स ,संगीता जी .और सिद्धार्थ जोशी में से किसी से सधे पूंछ कर तदनुसार कार्य कराएं ! जर्मनी में पंडित तो होने ही चाहिए !
राज जी,
ReplyDeleteइस बारे में तो हम ढपोर शंख ही हैं...लेकिन आपकी पोस्ट से ये ज़रूर पता चला कि जड़ों से दूर होने की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है...आपके दिवंगत मित्र की माता जी की हालत सोच कर ही कलेजा मुंह को आता है...ईश्वर
आपके मित्र के परिवार को ये दुख सहने की शक्ति दे...
जय हिंद...
इस घड़ी में आपका धैर्य साथ रहे। दिनेश जी की बात सही प्रतीत होती है।
ReplyDeleteबेहद दुखद , आपके दिवंगत मित्र की आत्मा को इश्वर शांति प्रदान करे.
ReplyDeleteRaj ji,
ReplyDeleteSare sanskar ved riti-desh riti-kal riti aur paristhitiyon ke hisab se tay hote hain. sabhi jagahon ki pramparayen alg-alg hai.
Dashgatra shuddhi ka din hota hai aur uske bad terhi ki ja sakti hai.
asthi visharjan kabhi bhi kiya ja sakta hai.
hamare yahan par tisare din ashthiyon (ful) ko chunkar ganga ji pahunchaya jata hai....agar tisare din kisi karan se nahi ja paye to use piipal ke ped ke niche gad kar us par ek chhed kii huyi pani ki matki tank dete hain jisse bund bund jal asthiyon par girta rahata hai aur us matki me roj subah jal dal diya jata hai.
jab tak vo vishrjan ke liye nahi le jayi jati.....
asthiyan uchit sathan par rakh kar dasven din shuddhi karan ke bad... terhi ka karm kiya ja sakta hai.
fir jab bhi samay mile mah do mah ya ek vrsh bad bhi asthi visharjan ho sakta hai.
आप जैसे मित्र के होते, इस परिवार का कष्ट कुछ तो आसान होगा , शुभकामनायें भाई जी !!
ReplyDeleteद्विवेदी की बात सही लगती है. उनका पालन कराएँ.
ReplyDeleteराज जी, दिनेशराय द्विवेदी जी ने बिल्कुल सही सलाह दी है। अस्थियों को कलश में डालकर सुरक्षित रखा जा सकता है और उचित अवसर मिलने पर उसे गंगा अथवा अन्य पवित्र नदी में विसर्जित किया जा सकता है। अन्य कर्मकाण्ड को मात्र अस्थि विसर्जन न हो पाने के लिये रोकना उचित नहीं है। तेरहवीं अपने नियत दिन में किया जा सकता है।
ReplyDeleteप. वत्स जी से और राय जान ली जाये और जो भी सूटेबल हो वह कर लिया जाये.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत दुःख हुआ! मैं तो यही कहूँगी कि आपके दोस्त की आत्मा को शांति मिले! ये तो खुशनसीबी की बात है जिसे आप जैसे दोस्त मिला! उनके परिवार का हाल समझ सकती हूँ!
ReplyDeleteदिवेदी जी की राय बिलकुल सही है। विदेश मे होने की विडंबना ! उस मा पर और भी अधिक दुख होता है जिसे आखिरी वक्त मे बेटे का मुँह देखना भी नसीब नही हुया। आभार्
ReplyDeletemann se kiya gaya her karya ishwar ke paas se gujarta hai
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ReplyDeleteदिनेश जी की राय से हम भी सहमत
ReplyDeleteनेट पर तो ज्योतिषियों की भरमार है!
ReplyDeleteआपको उत्तर अवश्य मिल गया होगा!
आम आदमी के साथ बहुत दिक्कत है .. परम्परा का निर्वाह भी करना है और .मन की शांति भी पाना है । वरना गान्धी जी की बस्तियाँ बरसों स्टेट बैंक के लॉकर मे रखी रहीं और नेहरूजी की राख व अस्थियाँ भारत के खेतों में बिखेर दी गईं ।
ReplyDeleteअब सारे पंडितों ने सलाह तो दे दी है । हम तो यही कहेंगे कि देशकालानुसार जो विवेक कहे सो करें मन की शांति इसी मे है ।
राज जी,गुणी जनों ने सलाह दे दी है....आशा है...आपको निर्णय लेने में मदद मिली होगी. आपको और आपके दिवंगत मित्र के परिवार को यह अपूर्णीय क्षति सहने की शक्ति मिले,यही गुजारिश है,परवरदिगार से.
ReplyDeleteदिनेश राय जी, अर्विंद मिश्रा जी ओर ललित जी के संग संग मै वत्स जी का भी ओर आप सब का दिल से धन्यवाद करता हुं, वत्स जी से कल फ़ोन पर बात हो गई थी, ओर यह सब सलाह मेने कल उस परिवार तक पहुचा दी थी, मेरी तरफ़ से ओर उस परिवार की तरफ़ से आप सभी को दिल से धन्यवाद
ReplyDeleteमित्रों की सलाह आ चुकी है.
ReplyDeleteआपके मित्र को इस कष्ट को सहने की ईश्वर शक्ति प्रदान करे.
achha bahut achchha laga aapas me ye sahyog aur apnapan dekhkar, sach blog jagat ek parivaar ki tarah hi hai aaj ,har sukh- dukh me saath .
ReplyDeleteमाफ करे देरी से टिप्पणी के लिए | जो जवाब आये है उनसे पता चलता है कि आपकी समस्या का निराकरण हो गया है |
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