नमस्कार, चलिये आप सभी को भारत ले चले, आज शाम को यानि ३१/१ को मेरे बेटे मुझे चार बजे के करीब मुनिख ऎयर पोर्ट पर छोडने आये, फ़िर सब ने उदास मन से विदाई ली, ओर कुछ समय बाद मै ब्रिटिश एयर वेज से लंदन की तरफ़ उड चला. करीब दो घंटो मे हम वहां पहुच गये, फ़िर वहा से रात आठ बजे के करीब हम भारत के लिये बोंइग ७४७ से चल पढे, बाहर घुप अंधेरा था, जब जहाज अपनी उंचाई पर पहुच गया तो हम ने अपनी अपनी जहाज की सीट की बेल्ट खोल दी, ओर थोडी देर मै जल पान आ गया, मेने सोचा चलो एक दो बीयर पी लू,शायद नींद आ जाये..... ओर एक बीयर मंगवाई, फ़िर थोडी देर मै खाना भी आ गया, तब तक मै अपनी बीयर पी चुका था, खाने बाद एक बीयर ओर मंगवाई जो आधी ही पी सका.लेकिन नींद ना आई.
फ़िर फ़िल्म बगेरा देखनी चाही, लेकिन एक अजीब सी उदासी मन पर छाई थी, घर वालो को छोड कर जा रहा था, लेकिन आगे कोई भी अपना नही, अपना देश अब पराया लग रहा था, कभी कभार खिडकी खोल कर देखता, लेकिन बाहर अंधेरा ही था, नीचे ऊपर सब ओर अंधेरा ही अंधेरा.
फ़िर आगे का प्रोगराम बना रहा था, अभी हमारा जहाज अफ़्गानिस्तान ओर रुस के बीच मै ही था, मेने बाहर देखा तो झट से एक चित्र खींच लिया, जमीन से करीब १२ किलो मीटर ऊपर थोडी सी लाली नजर आई, फ़िर अंदर मेने अपने सामने लगे टी वी पर आती हुयी नोटिस का चित्र लिया, जिस मै हमारी जमीन से दुरी,जहाज की रफ़तार ओर बाहर का ताप मान दिखाया गया है.
फ़िर एक चित्र थोदी देर बार खींचा जब मुझे थोडी लाली ओर दिखी, ओर एक चित्र तब खींचा जब लगा की हमारे साथ साथ चंदा मामा भी दोड रहे है, फ़िर मेने बाथ रुम मै जा कर कुल्ला बगेरा किया, थोडी देर मै नाश्ता वगेरा आ गया, ओर फ़िर हम दिल्ली पहुच गये, एयर पोर्ट पर मेरा दोस्त आया था जिस के संग मै कुछ समय के लिये उस के घर गया, एक कप चाप पी कर हम रोहतक की तर चल पडे, पीडा गडी चो्क से हमारे संग दिनेश राय जी साथ हो लिये, ओर अगले दो दिन दिनेश राय जी के संग बीते,
कुछ जरुरी काम दिनेश जी ओर मेने निपटाये, जब कि दिनेश जी के पास बहुत कम समय था, लेकिन उन्होने मुझे पुरा समय दिया, ओर दुसरे दिन रात दस बजे दिनेश जी कॊ छोड कर उदास मन से होटल वापिस आया, ओर तीसरे दिन मेने जाना तो दिल्ली ही था, लेकिन दो दिन ओर रुक गया रोहतक मै, लेकिन दिनेश जी के जाने के बाद एक दिन भुख नही लगी, दिनेश जी का प्यार बार बार याद आ रहा था, दिनेश जी बहुत ही मिलन सार, मधुर भाषी, ओर हितेशी है, ओर उन मे बिलकुल भी नाम मात्र को भी घंमड नही, यानि बहुत अच्छॆ मित्र बहुत अच्छे इंसान है, वो दो दिन मेरे साथ रहे, लेकिन हम इतना मिल जुल गये कि उन्हे मै कही घुमा भी नही सका ओर उन का कोई चित्र भी सही ढंग से नही खींच सका, रात के समय दो चित्र सोने से पहले खींचे, तो एक चित्र यहां दे रहा हुं,काश दिनेश जी जेसे सभी लोग हो तो कितना अच्छा हो.
चलिये पोस्ट ज्यादा लम्बी ना हो इस लिये यही खत्म करता हुं , ओर आगे की पोस्ट मै आप को मिलवाता हुं अमित ( अंतर सोहिल )ओर नीरज जाट जी से
आप किसी भी चित्र को बडा कर के देख सकते है
राज जी आपसे मिलना भी मेरे लिए एक सुखद क्षण था...मैं आगे के वृतांत का इंतज़ार करूँगा और हाँ आप तो बहुत बढ़िया फोटोग्राफर भी है!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति....प्रतीक्षा रहेगी...अगली पोस्ट की...
ReplyDeleteवाह जी, बहुत बढ़िया मजा आ गया, हवाई यात्रा का विवरण पढ़कर।
ReplyDeleteफ़ोटो तो बहुत ही अच्छे लगे।
सबसे पहले तो मैं आपसे माफ़ी चाहूँगा.... कि मैं दिल्ली नहीं आ सका.... बहुत तमन्ना थी आपसे मिलने की.... लेकिन मेरी ट्रेन छूट गई..... और मन मसोस कर रह जाना पड़ा... उम्मीद है कि आप माफ़ कर देंगे....
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ!!
आपकी अगली पोस्ट की भी प्रतीक्षा रहेगी.
ReplyDeleteआप ने चित्र बहुत सुंदर लिए हैं। अफसोस ये है कि मेरे वाले फोटो में वो पैक्ड हुक्का अनपैक्ड दिनेशराय द्विवेदी से अधिक खूबसूरत नजर आ रहा है।
ReplyDeleteआप के साथ बिताया गया वो डेढ़ दिन मेरे लिए भी अविस्मरणीय रहेगा। मुझे लगा कि मैं ने वह वक्त होश संभालने के पहले बिछड़े अपने हमउम्र भाई के साथ बिताया। उस दिन वापस आने का मन नहीं था। मजबूरी न होती तो कम से कम एक दिन और आप के साथ बिताता।
बहुत सुंदर विवरण से शुरुआत की आपने, द्विवेदी जी बडे ही आत्मिय लगते हैं, जब भी बात होती है ऐसा लगता है कि बचपन से दोस्ताना रहा हो.
ReplyDeleteआगे की कथा का इंतजार है.
रामराम.
चैनल राज के प्रसारण जारी रहें
ReplyDeleteकृपया ब्रेक न लगाएं
पर ब्रेक लगाना मजबूरी है
वाहन चलाते समय
रखनी चाहिये
उचित दूरी है।
चैनल राज के प्रसारण जारी रहें
ReplyDeleteकृपया ब्रेक न लगाएं
पर ब्रेक लगाना मजबूरी है
वाहन चलाते समय
रखनी चाहिये
उचित दूरी है।
भाटिया जी, हमें भी समय नहीं मिल पाया..वर्ना दिल्ली की बजाय आपसे रोहतक में मुलाकात होती।
ReplyDeleteअगली बार जब भी भारत आएंगें तो आप को लुधियाना जरूर आना पडेगा..चाहे आप इसे हमारा निमन्त्रण समझ लें या हठ लेकिन कहे देते हैं कि आपको आना तो पडेगा।
बाकी आपका विवरण पढ रहे हैं और अगली पोस्ट की प्रतीक्षा में हैं....
महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!!
मजेदार होंगे ये संस्मरण
ReplyDeleteइंतज़ार रहेगा अगली कड़ी का।
ReplyDeleteइंतज़ार रहेगा अगली कड़ी का।
ReplyDeleteबढ़िया विवरण शुरु हुआ.अच्छा लगा आपका दिनेश जी से मिलना. आगे जारी रहिये.
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा आपका ये पोस्ट ! बधाई!
बहुत अच्छी रही आपकी रपट .. अगली कडी का भी इंतजार रहेगा !!
ReplyDeleteराज जी,
ReplyDeleteआप के सानिध्य ने जो खुशी और बड़े भाई तुल्य स्नेह दिया, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं
किया जा सकता...बस इतना जान लीजिए आप अपनी सादगी से हमारे दिलों को लूटने आए थे और लूटकर ले गए...
जय हिंद...
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteNamashkar, kitni sundar photo . agae bhi intjar rahega aapka.
ReplyDeleteसुन्दर संस्मरण! चित्र भी सभी बहुत सुन्दर हैं!
ReplyDeleteसर, बहुत उम्दा तस्वीरें और विवरण भी.. ये भी तो कहते जाइये की जर्मनी में परिवार के कुछ सदस्यों को छोड़ के आये और भारत में कई मिल गए.. :)
ReplyDeleteजय हिंद... जय बुंदेलखंड...
बहुत सुंदर विवरण
ReplyDeleteregards
मुझे मेरी फोटु देखने का इंतजार है जी
ReplyDeleteप्रणाम
दिनेश जी से तो मिलने का अवसर अभी नहीं मिला।
ReplyDeleteलेकिन राज जी , आपसे मिलकर यही लगा की आप जैसे सज्जन व्यक्ति दुनिया में बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। आपसे मिलकर बहुर अच्छा लगा , दिल से।
बहुत खूबसूरती क़ैद किया है आपने,सुन्दर संस्मरण ........
ReplyDeleteआपसे मिलने का सौभाग्य कभी तो हमको भी मिलेगा .....
swaagat hai
ReplyDeleteआपका हार्दिक अभिनन्दन!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
राज भाई क्या धांसू यात्रा वृतांत शुरू किया है आपने और चार चांद सूरज लगा रहे हैं फ़ोटुएं , बहुत ही बढिया , आपका आना तो यहां इतिहास बना गया , शुभकामनाएं
ReplyDeleteअजय कुमार झा
आपके आने की ख़बर मुझे भी ब्लॉग पर मिली। मैंने उस ब्लॉगर्स मीट को मिस किया।
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