22/12/09

यह तो पहले ही बिके हुये है जी

आज दोपहर को घुमते फ़िरते एक खबर पर नजर अटकी, पढी कुछ सोचा कि इस का लिंक आप को भी दुं, लेकिन फ़िर उसे वही छोड दिया, ओर अन्य खबरे पढ कर फ़िर ब्लांग पर लोट आया, क्योकि ब्लांग के बिना अब सब सूना सूना लगता है, ओर अभी अनिल जी के ब्लांग अमीर धरती गरीब लोग पर गया ओर उन का लेख पढा तो मुझे यह खबर याद आ गई, ओर सोचा अब जरुर इस का लिंक आप सब को दुंगा त्रो पढिये विनोद वर्मा जी का यह लेख... पहले से ही बिके हुए हैं बी बी सी के माद्यम से

21 comments:

  1. दोनों देख आये.

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  2. पहले ही हो आया हूँ. कमेनट भी कर दिया है.

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  3. "लिंक बढ़िया दे दिये हैं, पोस्ट के परिवेश में।
    खूब मेहनत कर रहे हो तुम पराये देश में।।"
    आज के "चर्चा मंच" को अवश्य देखिएगा!

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  4. दे्ख आए, लिंक के लिए शुक्रिया

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  5. भाटिया जी लिंक देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।वो ब्लाग मेरे ही पत्रकार साथी और मित्र विनोद वर्मा का निकला।विनोद और मैने साथ-साथ पत्रकारिता शुरु की थी।विनोद शहर से बाहर निकला और तरक्की की राह पर दौड़ता चला गया।मुझसे न मेरे शहर छूटा और न घर।आपके कारण उसके ब्लाग पर जाना तो हो पाया मगर उसके ब्लाग पर कमेण्ट करना बड़ा कठीन है,मुझसे कमेण्ट हो ही नही पाया।

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  6. दिये गये दोनों लिंक्स के पोस्ट पढ़ लिया। आज अखबारों का उद्देश्य खबरें प्रकाशित करना नहीं बल्कि सिर्फ रुपया कमाना बन कर रह गया है।

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  7. सभी कुछ बिक चुका अथवा इन्होने गिरवी रख दिया ! "गिरवी" को आज के सभ्य ज़माने में कोलोबोरेसन कहा जाता है !

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  8. बढिया ज्ञानारजन हुआ इन लिंक्स से.

    रामराम

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  9. लिंक्स के लिये धन्यवाद

    प्रणाम

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  10. क्या आपके दिल्ली में होटल वाली समस्या सुलझ गई जी?
    पढा है कि आपके वहां तो -30 से -35 डिग्री टेम्प्रेचर हो गया है। आप वहां के बारे में कुछ बतायेंगें तो मेहरबानी होगी। आप लोग कैसे सब काम करते हैं?

    प्रणाम

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  11. दूसरा लेख देखने जा रहा हूं.

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  12. अब तो इतने आदि हो चुके हैं कि ये सब देख, पढकर कुछ भी आश्चर्य नहीं होता.....
    ताऊ के शब्दों में कहा जाए तो सारे कुँए में ही भाँग पड चुकी है.....

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  13. जाकर देखता हूं उत्कंठा का क्या होता है

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  14. इस बिकने बिकाने के युग में ब्लॉग का महत्व बढ़ जाता है - जहां व्यक्ति स्वतन्त्र है!

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  15. ांभी देखते हैं आपका दिया लिन्क धन्यवाद्

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  16. लिंक्स के लिये धन्यवाद ...

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  17. विनोद भैया के लेख मैं ने अनील भैया की पोस्ट से पहले पढ़े थे.लेकिन बीबीसी पर कमेन्ट मैं भी नहीं कर पाया.मैं ने भी बहुत ही निकट से ये दलदल देखा है, सडांध की बू से कई बार नाक भर आई है!

    और आप बिलकुल सही कह रहे हैं, ये सब बहुत पहले से हो रहा है! और हम सब दोषी हैं.खास कर वो जो आज भी पेशेवर पत्रकार हैं अब हम जैसे को उस संसार में पूछता कौन है!!

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  18. Anil Pusadkar जी बहुत खुशी हुयी, यह सब जान कर ओर शहरोज जी आप अपना कमेंट लिख कर छोड से, अगले दिन तक आप का क्मेंट नजर आ जायेगा, कठीन नही है

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नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये