22/12/09
यह तो पहले ही बिके हुये है जी
आज दोपहर को घुमते फ़िरते एक खबर पर नजर अटकी, पढी कुछ सोचा कि इस का लिंक आप को भी दुं, लेकिन फ़िर उसे वही छोड दिया, ओर अन्य खबरे पढ कर फ़िर ब्लांग पर लोट आया, क्योकि ब्लांग के बिना अब सब सूना सूना लगता है, ओर अभी अनिल जी के ब्लांग अमीर धरती गरीब लोग पर गया ओर उन का लेख पढा तो मुझे यह खबर याद आ गई, ओर सोचा अब जरुर इस का लिंक आप सब को दुंगा त्रो पढिये विनोद वर्मा जी का यह लेख... पहले से ही बिके हुए हैं बी बी सी के माद्यम से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
दोनों देख आये.
ReplyDeleteपहले ही हो आया हूँ. कमेनट भी कर दिया है.
ReplyDeletenice
ReplyDelete"लिंक बढ़िया दे दिये हैं, पोस्ट के परिवेश में।
ReplyDeleteखूब मेहनत कर रहे हो तुम पराये देश में।।"
आज के "चर्चा मंच" को अवश्य देखिएगा!
दे्ख आए, लिंक के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteभाटिया जी लिंक देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।वो ब्लाग मेरे ही पत्रकार साथी और मित्र विनोद वर्मा का निकला।विनोद और मैने साथ-साथ पत्रकारिता शुरु की थी।विनोद शहर से बाहर निकला और तरक्की की राह पर दौड़ता चला गया।मुझसे न मेरे शहर छूटा और न घर।आपके कारण उसके ब्लाग पर जाना तो हो पाया मगर उसके ब्लाग पर कमेण्ट करना बड़ा कठीन है,मुझसे कमेण्ट हो ही नही पाया।
ReplyDeleteदिये गये दोनों लिंक्स के पोस्ट पढ़ लिया। आज अखबारों का उद्देश्य खबरें प्रकाशित करना नहीं बल्कि सिर्फ रुपया कमाना बन कर रह गया है।
ReplyDeleteसभी कुछ बिक चुका अथवा इन्होने गिरवी रख दिया ! "गिरवी" को आज के सभ्य ज़माने में कोलोबोरेसन कहा जाता है !
ReplyDeleteबढिया ज्ञानारजन हुआ इन लिंक्स से.
ReplyDeleteरामराम
लिंक्स के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteप्रणाम
क्या आपके दिल्ली में होटल वाली समस्या सुलझ गई जी?
ReplyDeleteपढा है कि आपके वहां तो -30 से -35 डिग्री टेम्प्रेचर हो गया है। आप वहां के बारे में कुछ बतायेंगें तो मेहरबानी होगी। आप लोग कैसे सब काम करते हैं?
प्रणाम
दूसरा लेख देखने जा रहा हूं.
ReplyDeleteachchhi jaankari.
ReplyDeletedekha......
ReplyDeleteअब तो इतने आदि हो चुके हैं कि ये सब देख, पढकर कुछ भी आश्चर्य नहीं होता.....
ReplyDeleteताऊ के शब्दों में कहा जाए तो सारे कुँए में ही भाँग पड चुकी है.....
जाकर देखता हूं उत्कंठा का क्या होता है
ReplyDeleteइस बिकने बिकाने के युग में ब्लॉग का महत्व बढ़ जाता है - जहां व्यक्ति स्वतन्त्र है!
ReplyDeleteांभी देखते हैं आपका दिया लिन्क धन्यवाद्
ReplyDeleteलिंक्स के लिये धन्यवाद ...
ReplyDeleteविनोद भैया के लेख मैं ने अनील भैया की पोस्ट से पहले पढ़े थे.लेकिन बीबीसी पर कमेन्ट मैं भी नहीं कर पाया.मैं ने भी बहुत ही निकट से ये दलदल देखा है, सडांध की बू से कई बार नाक भर आई है!
ReplyDeleteऔर आप बिलकुल सही कह रहे हैं, ये सब बहुत पहले से हो रहा है! और हम सब दोषी हैं.खास कर वो जो आज भी पेशेवर पत्रकार हैं अब हम जैसे को उस संसार में पूछता कौन है!!
Anil Pusadkar जी बहुत खुशी हुयी, यह सब जान कर ओर शहरोज जी आप अपना कमेंट लिख कर छोड से, अगले दिन तक आप का क्मेंट नजर आ जायेगा, कठीन नही है
ReplyDelete