28/10/09

वह जो कहते हैं कि पैसा आने से ज़ात नहीं बदलती. कमीना कमीना ही रहता है.

यह लिजिये कच्चा चिठ्टा हमारे बी बी सी के ब्लांगर वुसतुल्लाह ख़ान जी की कलम से... पढिये जरा मन लगा कर यहां आप चटखा या चटका लगईये..... फ़िर दिजिये अपनी राय लेकिन मुझे तो बात बिलकुल सच लगी......

22 comments:

  1. भाटिया जी मै इस बात को मानता हु

    ReplyDelete
  2. Bilkul sahi farma rahen hain aap....... वह जो कहते हैं कि पैसा आने से ज़ात नहीं बदलती. कमीना कमीना ही रहता है.

    ReplyDelete
  3. आप की बात से सहमत हु .....

    ReplyDelete
  4. यह सही है कि भारत की इतनी बड़ी जनसंख्‍या में से केवल एक करोड़ 15 लाख लोग टेक्‍स देते हैं, तब देश कैसे चलेगा? स्विस बैंकों में जमा धन या तो राजनेताओं का है या फिर नौकरशाहों का। ये दोनों ही देश पर राज कर रहे हैं तो कौर उस धन को वापस लाने की पैरवी करेगा? यहाँ तो ए जन आन्‍दोलन की आवश्‍यकता है। लेकिन जब जनता ही भ्रष्‍ट हो तो आन्‍दोलन भी कैसे होगा?

    ReplyDelete
  5. सच ही तो है हम भी सहमत हैं
    regards

    ReplyDelete
  6. वह जो कहते हैं कि पैसा आने से ज़ात नहीं बदलती. कमीना कमीना ही रहता है.
    कहाँ कहाँ से खोज लाते है आप भी ..!!

    ReplyDelete
  7. वुसतुल्लाह ख़ान जी की बात बिलकुल सही है !
    बल्कि मेरा तो मानना है कि सच इससे भी ज्यादा कुरूप है !

    माओवादी आन्दोलन इसी विचारधारा पर आधारित है !

    ReplyDelete
  8. बिलकुल सटीक बात सहमत हूँ . आभार

    ReplyDelete
  9. "... पैसा आने से ज़ात नहीं बदलती..."

    बिल्कुल सही बातः

    जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
    प्यादे से फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥

    ReplyDelete
  10. हम सहमत हैं. आभार,.

    ReplyDelete
  11. भाटिया साहब, आपका कथन सिर्फ पैसे पर ही नहीं. अगर इंसान इमानदारी से गौर फरमाए तो हर चीज पर लागू होता है ! कमीना कहीं न कही अपनी जात दिखा ही जाता है, चाहे वह अपना ख़ास जिगरी दोस्त ही क्यों न हो !

    ReplyDelete
  12. बिलकुल सही कहा आपने । इस पोस्ट को पढवाने के लिये धन्यवाद्

    ReplyDelete
  13. राज साहब, क्या पोस्ट पढ़वाई आपने...वाह...

    ReplyDelete
  14. आपकी बात सोफी सदी सच है .......... पूरा ittefaak rakhta hun main aapse ............

    ReplyDelete
  15. राज भाई ,
    एक बढ़िया आलेख पढ़वाने का बहुत बहुत धन्यवाद !!

    ReplyDelete
  16. भाटिया जी, बिल्कुल सहमत हैं कि कमीना सदैव कमीना ही रहता है!!!

    ReplyDelete
  17. वाजिब लिखते हैं वुसतुल्लाह ख़ान।

    ReplyDelete
  18. बजा फ़रमाया वुसुतुल्लाह साहब ने. हमारे यहाँ के उद्योगपति(??) कितने मेहनत से दिन - रात एक करके कभी हमारे मोबाइल के बैलेंस में से, कभी साबुन की बट्टी, टूथपेस्ट के ट्यूब में से, कभी सरकारी टैक्स में से और कभी देश के प्राकृतिक संसाधनों में से तिनका -तिनका जोड़ के अपना बैंक बैलेंस भरते हैं और ये साले जर्मन खुद टैक्स भरने का ऑफर देकर गरीब भारतीय उद्योगपतियों को मुंह बिरा रहे है.

    बिलकुल सच है - पैसा आ जाने पर भी जात नहीं बदलती.....कमीना..........

    ReplyDelete
  19. कुछ फ़र्क नही पड़ता है आदमी जब बदलना ही नही चाहे तो क्या हो सकता है...बहुत बढ़िया बात..धन्यवाद!!!

    ReplyDelete
  20. ठिक कहा है उन्होने, और ये तो १००% सच है।


    ईंसान के पास शक्ति आने पर हैवान बन जाता है(पैसा = पावर :)

    ReplyDelete

नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये