28/10/09
वह जो कहते हैं कि पैसा आने से ज़ात नहीं बदलती. कमीना कमीना ही रहता है.
यह लिजिये कच्चा चिठ्टा हमारे बी बी सी के ब्लांगर वुसतुल्लाह ख़ान जी की कलम से... पढिये जरा मन लगा कर यहां आप चटखा या चटका लगईये..... फ़िर दिजिये अपनी राय लेकिन मुझे तो बात बिलकुल सच लगी......
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भाटिया जी मै इस बात को मानता हु
ReplyDeleteBilkul sahi farma rahen hain aap....... वह जो कहते हैं कि पैसा आने से ज़ात नहीं बदलती. कमीना कमीना ही रहता है.
ReplyDeleteआप की बात से सहमत हु .....
ReplyDeleteयह सही है कि भारत की इतनी बड़ी जनसंख्या में से केवल एक करोड़ 15 लाख लोग टेक्स देते हैं, तब देश कैसे चलेगा? स्विस बैंकों में जमा धन या तो राजनेताओं का है या फिर नौकरशाहों का। ये दोनों ही देश पर राज कर रहे हैं तो कौर उस धन को वापस लाने की पैरवी करेगा? यहाँ तो ए जन आन्दोलन की आवश्यकता है। लेकिन जब जनता ही भ्रष्ट हो तो आन्दोलन भी कैसे होगा?
ReplyDeleteसच ही तो है हम भी सहमत हैं
ReplyDeleteregards
वह जो कहते हैं कि पैसा आने से ज़ात नहीं बदलती. कमीना कमीना ही रहता है.
ReplyDeleteकहाँ कहाँ से खोज लाते है आप भी ..!!
वुसतुल्लाह ख़ान जी की बात बिलकुल सही है !
ReplyDeleteबल्कि मेरा तो मानना है कि सच इससे भी ज्यादा कुरूप है !
माओवादी आन्दोलन इसी विचारधारा पर आधारित है !
बिलकुल सटीक बात सहमत हूँ . आभार
ReplyDelete"... पैसा आने से ज़ात नहीं बदलती..."
ReplyDeleteबिल्कुल सही बातः
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे से फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
सही है।
ReplyDeleteहम सहमत हैं. आभार,.
ReplyDeleteभाटिया साहब, आपका कथन सिर्फ पैसे पर ही नहीं. अगर इंसान इमानदारी से गौर फरमाए तो हर चीज पर लागू होता है ! कमीना कहीं न कही अपनी जात दिखा ही जाता है, चाहे वह अपना ख़ास जिगरी दोस्त ही क्यों न हो !
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने । इस पोस्ट को पढवाने के लिये धन्यवाद्
ReplyDeleteराज साहब, क्या पोस्ट पढ़वाई आपने...वाह...
ReplyDeleteआपकी बात सोफी सदी सच है .......... पूरा ittefaak rakhta hun main aapse ............
ReplyDeleteराज भाई ,
ReplyDeleteएक बढ़िया आलेख पढ़वाने का बहुत बहुत धन्यवाद !!
bahut hi sahi likha hai
ReplyDeleteभाटिया जी, बिल्कुल सहमत हैं कि कमीना सदैव कमीना ही रहता है!!!
ReplyDeleteवाजिब लिखते हैं वुसतुल्लाह ख़ान।
ReplyDeleteबजा फ़रमाया वुसुतुल्लाह साहब ने. हमारे यहाँ के उद्योगपति(??) कितने मेहनत से दिन - रात एक करके कभी हमारे मोबाइल के बैलेंस में से, कभी साबुन की बट्टी, टूथपेस्ट के ट्यूब में से, कभी सरकारी टैक्स में से और कभी देश के प्राकृतिक संसाधनों में से तिनका -तिनका जोड़ के अपना बैंक बैलेंस भरते हैं और ये साले जर्मन खुद टैक्स भरने का ऑफर देकर गरीब भारतीय उद्योगपतियों को मुंह बिरा रहे है.
ReplyDeleteबिलकुल सच है - पैसा आ जाने पर भी जात नहीं बदलती.....कमीना..........
कुछ फ़र्क नही पड़ता है आदमी जब बदलना ही नही चाहे तो क्या हो सकता है...बहुत बढ़िया बात..धन्यवाद!!!
ReplyDeleteठिक कहा है उन्होने, और ये तो १००% सच है।
ReplyDeleteईंसान के पास शक्ति आने पर हैवान बन जाता है(पैसा = पावर :)