कल एक लेख पढा था खुश दीप जी के ब्लांग पर, ओर मेने वहा एक टिपण्णी भी छोडी, आज बाकी टिपण्णी पढी तो सोच मै फ़िर से एक टिपण्णी दुं, लेकिन वो सारी बात मै उस टिपण्णी मै नही कह सकता था, इस लिये, मै उस लेख मै टिपण्णी के रुप मे यह लेख लिख कर वो बात कहना चाहता हुं.इस पोस्ट को न पढ़ें...खुशदीप
कई बार स्थितिया कुछ अलग होती है, जिस मै आदमी को वो सब करना पडता है, जो वो नही चहाता, ऎसा ही कुछ मेरे सामने घटा... ओर जो इन घटनाओ से गुजरे वो इन सब बातो को भली भांति समझ सकता है.
एक ८० साल के आदमी ने कई साल पहले एक १६ साल की लडकी से शादी की, जब की उस की पहली बीबी जो उस समय ७४ साल की थी जिन्दा थी, ओर यह शादी उस बुढिया ने अपने हाथो करवाई, बुढा अमीर नही था, लेकिन खाते पीते घर का मालिक था, उस के दो बेटे थे ६० ओर ५५ साल के ओर दोनो बेटो के भी बच्चे थे १४ साल से ले कर २२ साल की उम्र के, इस शादी से परिवार वालो को कोई दिक्कत नही थी.
यह लडकी भी खाते पीते घर से थी, लेकिन अपने पांव पर नही चल पाती थी, यानि अपंग थी, मां बाप को मरे थोडा समय हुया था, अब वो अपने दो भाईयो के संग रहती थी, लेकिन भाभियां हमेशा उसे दुत्कारती थी... ओर एक दिन समाज की परवाह ना करते हुये भाईयो ने अपनी बीबीयो के कहने मै आ कर उस मासुम लडकी को घर से निकाल दिया.उसे दिल्ली से रोहतक छोड गये.......हमेशा के लिये खुले आसमान के नीचे.
दिन तो किसी तरह से उस ने काट लिया रोते धोते, रात धीरे धीरे आई .... ओर उस लडकी ने उस रात उन शरीफ़ लोगो को देखा जो दिन मे उसे बेटी बेटी कह कर उस के दर्द को बांट रहे थे, जब उन दरिंदो की हरकते हद से ज्यादा बढी तो उस के मुंह से चीखे निकली, एक बुढिया ने उन चीखॊ को सुना तो लठ्ठ ले कर घर से बाहर आई ओर उन आवाजो कि ओर गई, फ़िर लठ्ठ चला ओर किसी का सर फ़ुटा, ओर बुढिया उस लडकी को अपनी बेटी की तरह से घर ले आई.
दुसरे दिन कुछ लपंट लोगो ने ओर उन सफ़ेद पोशो ने अपनी करतुत छिपाने के लिये उस लडकी के बारे पुछ ताछ शुरु कर दी, ओर अंट शंट बकना शुरु कर दिया, जब वो बात घर मै लोगो के कानो मै पडी तो बुढिया ने कहा कि बिटिया तुझे इस घर स कोई नही निकाल सकता, लोगो को बक बक करने दो...
दिन धीरे धीरे बीतते गये, ओर लोगो की जुवान लम्बी होती गई... फ़िर घर पर सब ने सलाह कि ओर एक दिन बिलकुल साधारण ढंग से उस गुडिय़ा की शादी उस बुढे से हो गई... लोगो को ओर समाचार पत्रो को कुछ दिनो का लिखने का मसाला मिल गया.... फ़िर सब शांत हो गये, लेकिन उस घर से सब ने नाता तोड लिया.
एक दिन वो बुढा( करीब एक साल बाद ) मर गया, अब लोगो ने अफ़सोस करने के लिये उन के घर आना जाना शुरु किया, ओर जब देखा कि उस लडकी को तो उन्होने अपनी पोती की तरह से रखा है, ओर बहुत प्यार देते है सभी, ओर उस का इलाज भी करवा रहे है, ओर वो लडकी अपने बुढे पति ( बार बार बुढा इस लिये लिख रहा हुं कि इस शव्द के बिना यह कहानी आधुरी सी लगती है)को आज भी सच मै भगवान से ज्यादा पुजती है ओर उतना ही उस बुढिया को जो उसे पहले दिन घर लाई, उस ने दोनो की फ़ोटो भगवान की फ़ोटो कि जगह लगा रखी है.
फ़िर कुछ समय बाद बुढिया भी चल बसी, ओर कई साल बाद उस बुढिया के दोनो लडके भी, आज उस बात को गुजरे करीब ३० साल हो गये, लेकिन आज वो लडकी भी बुढापे मै आ गई है, लेकिन उस भरे पुरे परिवार मै उसे सब इज्जत से देखते है उस का एक शव्द हुकम है, जिसे कोई मना नही कर सकता.
इस कहानी को मेने इतने नजदीक से इस लिये जाना कि इस कहानी मै मेरे परिवार का भी कुछ रोल रहा है, बुढे के मरने के बाद उस लडकी को उस की (सॊतन) मां यानि उस बुढे की पहली बीबी उसे हमारे घर लाई थी, ओर मेरी मां के चरणो मे उसे डाल कर कहा कि बहन जी इसे आप कुछ पढा दो, कोई काम सिखा दो ताकि मेरे मरने के बाद मेरी बेटी बेसहारा ना रहे, वेसे तो मेरे बेटे भी इसे अपनी बेटी ही समझ्ते है,शादी मेरे पति ने इस लिये की थी की लोगो का मुंह बन्द कर सके, ओर बेटो को इस लिये तेयार नही किया कि कही इन की बीबी कही इसे सच मै अपनी सोतन ना समझे.
ओर वो लडकी( अब बुढिया) आज खुद कमाती है,ओर सब बच्चो की शादिया उस ने कर दी , सिलाई कडाई खुब करती है, अब आप इसे कया कहे गे कि ८० साल के आदमी ने १६ साल की लडकी से शादि कर के बुरा किया या अच्छा, शायद ऎसी ही मजबुरी कुछ महावीर की रही होगी? या प्यार हुआ होगा, लेकिन जो भी हुया मुझे गलत नही लगता...
हां कुछ बाते लिखना भुल गया कि कई समाज सुधारको ने , नारी संगठनो ने इन पर केस किया कि एक बुढे ने नाबालिग लडकी से शादी कर के हिदु समाज का मुंह काला कर दिया, पहली बीबी के होते हुये दुसरी बीबी से शादी की, लेकि उस परिवार का कहना है कि हमे हर जगह हमारे सच ने बचाया,
Raj Ji,
ReplyDeleteBahut hi achchha udaharan rakha aapne Khushdeep ji ki post ke samarthan me... Aabhar
Jai Hind
बहुत अच्छा संस्मरण
ReplyDeleteविसंगतियाँ कहाँ नही हैं
भावनाऐं महत्तवपुर्ण है.. रिश्तों को नाम कुछ भी दो.. परिस्तिथियों के अनुसार ही निर्णय होता है.. सही है..
ReplyDeleteअच्छे लोगों की कमी नहीं है दुनिया में....
ReplyDeleteसही संदर्भ लाये हैं.
ReplyDeleteस्तब्ध कर दिया आप ने ! ब्लॉगरी की समृद्धि और शक्ति दोनों दिखाती है यह पोस्ट।
ReplyDeleteसमाज के ठेकेदारों की मानसिकता इतनी विकृत और घटिया है कि उनको एक ही रिश्ता समझ में आता है, पति-पत्नी का। संभवत: यही वजह है कि जब कोई सच्चा इंसान किसी असहाय की मदद के लिए सामने आता है तो उसे उस अहसाय लड़की को पत्नी बनाना पड़ता है। यह शायद इसलिए है क्योंकि समाज के ठेकेदार रात के अंधेरे में खुद गंदगी करने से बाज नहीं आते हैं, ऐसे में उनको कैसे बाप-बेटी या फिर बहन-भाई या फिर कोई और रिश्ता रास आएगा। इनकी नजरों में किसी रिश्ते की कीमत है ही नहीं। इनके लिए तो स्त्री बस नोचने और खसोटने की वस्तु है।
ReplyDeleteअभी दो दिन पूर्व अपने ब्लॉग पर श्री श्याम 'सखा' जी ने एक प्यारी सी गजल प्रस्तुत की थी ! मैं उनसे उनकी उस गजल की चार लाईने यहाँ कट पेस्ट करने की अनुमति चाहूंगा:
ReplyDeleteफेंकते हैं आज पत्थर जिस पे इक दिन देखना
उसका बुत चौराहे पर खुद ही लगा जाएँगे लोग
हादसों को यूँ हवा देते ही रहना है बजा
देखकर धूआँ, बुझाने आग को आएँगे लोग
नम तो होंगी आँखें मेरे दुश्मनों की भी जरूर
जग-दिखावे को ही मातम करने जब आएँगे लोग
बहुत सुन्दर सन्देश देता हुआ संस्मरण लिखा है आपने भाटिया जी! इस संसार में भलाई करने के लिये भी अनेक बार दिखावा करना पड़ता है।
ReplyDeleteनीलकंठ क्या पुराणों में ही हैं?
ReplyDeleteबी एस पाबला
आपका संस्मरण बहुत अच्छा लगा. आभार.
ReplyDeleteराज जी आपके संस्मरण से स्तब्ध भी हूं और हर्षित भी...अगर समाज किसी का दुख कम नहीं कर सकता तो समाज को ही बदल डालो...आप कहीं दूसरी जगह क्यों जाते हैं...आज कथित सुशिक्षित और मॉडर्न घरों में ही झांक कर देख लीजिए कि बूढ़े मां-बाप को किन हालात में रहना पड़ता है...आज संदर्भ ये नहीं है लेकिन मां पर लिखी सतीश सक्सेना जी की पोस्ट पर एक टिप्पणी मैंने की है उसे रिपीट कर रहा हूं...
ReplyDeleteहम मॉर्डन लोग हैं...हमें ज़िंदगी में कभी बूढ़ा थोड़े ही होना है...हमें बस आज की चिंता है...सोसायटी में अपने मान का फिक्र है...जहां हमारा अपना फायदा है, वहां हमारे से ज़्यादा विनम्र कोई नहीं...अब इन बूढ़े मां-बाप की हड़्डियों से हमें क्या मिलने वाला है...सब कुछ तो निकाल कर बेशर्मी का घोटा लगाकर हम पहले ही पी चुके हैं...अब ताली बजाओ...भारत महान की हम महान संतान है या नहीं...
जय हिंद...
यह सत्यकथा अब उस विवाद का हल प्रस्तुत करती है -बहुत आभार भाटिया जी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर संस्मरण है भाटिया जी, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
मुझे इस कहानी ने रोमांचित कर दिया ........
ReplyDeleteप्रेरणास्पद वाकया है ...मगर ऐसे किस्से बहुत कम होते हैं ...
ReplyDeleteएक कहानी मेरे पास भी है आँखों देखी ...जहाँ बुढापे की दहलीज पर बैठा एक आदमी एक एक कर दो पत्नियों के देहावसान के बाद 16 साल की अत्यंत ही गरीब खुबसूरत कन्या को पैसों के बल पर खरीद लाया पत्नी बनाने के लिए ....!!
rochak va prernadayak prasang sunaya aapne...
ReplyDeleteबहा ले गया यह संस्मरण.
ReplyDeleteएक अनूठा ही तरीका निकाला उस बूढ़े ने उस लड़की की मदद करने का। ख़ैर! फिर भी मदद तो की ही। उसे इसका श्रेय भी मिलना ही चाहिये। पर शायद कुछ बेहतर तरीके भी हो सकते थे मदद करने के।
ReplyDeletejeene ke apne apne dhang hote hai jaha sahuliyat nazar aaye usi raste ko apnaaye ,visangtiyaan to aksar paayi gayi hai ,kuchh to log kahenge logo ka kaam hai kahana ,bemal baaton pe awaaz uthti hi hai .sundar aalekh .
ReplyDeleteभाटिया जी सटीक व सार्थक पोस्ट के लिये साधुवाद स्वीकारें...
ReplyDeleteइन्सान हालातों के कभी कभी इतना विवश हो जाता है कि उस समय उसके द्वारा लिए गए निर्णय को किसी भी तरह से गलत नहीं ठहराया जा सकता.......हम उस व्यक्ति की विवशता को नहीं समझ सकते,उसे सिर्फ वही समझ सकता है ।
ReplyDeleteबहुत विचित्र और बहुत मार्मिक!
ReplyDeleteएक शानदार संस्मरण पेश किया है आपने.
ReplyDeleteबहुत सारे गम है जमाने में शादी के सिवा
शादी कर कुछ हुए रुसवा तो किसी ने किया भला !!
- सुलभ 'सतरंगी'