जब हम बहुत छोटे थे तो हवाई जहाज को दुर से देखा करते थे, दिल करता था, काश हम भी कभी इस मे बेठे गे ? पता नही बहुत महंगा होगा ? लेकिन एक दिन इस मै बेठ ही गये, दिल्ली से बम्बई, उन दिनो पालम एयर पोर्ट ही होता था, ओर बम्बई मै शायद सहारा या कुछ ओर नाम हो, वहां तक हवाई जहाज मै, डरे सहमे से, जेसे किसी गरीब को ट्रेन के फ़ास्ट्र कलास मे बिठा दो, घर वालो से पहली बार दुर हुये थे, इस लिये पता ही नही चला कब सफ़र खत्म हुया, क्योकि सारे समय तो आंखो मे आंसु जो थे,
फ़िर वहां से युरोप के लिये शबीना एयर वेज का जहाज पकडना था, मां ने परोठियां घर से बना कर दे दी थी, लेकिन भुख बिलकुल नही थी,कब बेल्जियम पहुचे पता ही नही चला, लेकिन दिन चढ गया था, फ़िर वहा से फ़्रेकफ़ुट के लिये फ़लाईट जो करीब ३५ मिन्ट की होगी.
उस के बाद बहुत बेठे इस हवाई जहाज मै, अब तो बिलकुल भी अच्छा नही लगता, बल्कि सब से बोर यात्रा हवाई जहाज की लगती है, ओर सब से प्यारी यात्रा भारतीया बस की, जिस मै सब दोस्त बन जाते है, ओर वो खचडा बस हो तो ओरभी अच्छा कानो की मेल भी निकल जाती है, लेकिन अब बस मै चढना बहुत मुश्किल है,
लेकिन आज हम आप को विमान को चढता हुआ, ओर फ़िर उतरता हुआ दिखाये गे, चढता हुआ बाहर से, ओर उतरता हुआ, कोक पिट से( पता नही इसे कोक पिट क्यो कहते है) यानि जहा ताऊ ड्राईवर बिना पिये जहाज को चलाता है :) मेर कहने का मतलब आप को पायलेट के साथ कोक पिट से जहाज को उतारता हुआ दिखायेगे.
पहली विडियो चढते हुये जहाज की, दुसरी विडियो कोक पिट से ली है उतरते हुये जहाज की...
सही बात है, जहाज़ में सभी लोग नकचढ़े से दीखते हैं. ऐसे डरे हुए कि कहीं कोई उनसे बात न कर बैठे. पर बस, जहाज़ का रास्ता तय नहीं कर सकती न.
ReplyDeleteबम्बई (अब मुंबई) में उसे सहर एअरपोर्ट कहते थे.
आपने ने अच्छे लिंक दिए हैं.
जमाना बदल गया है . आपने पुरानी यादों को याद करने की कोशीश की है, जरा और कुरेदिये, बहुत कुछ दबा होगा वहां, उनको भी लिखिये.
ReplyDeleteरामराम.
भाटिया जी!
ReplyDeleteहम भी बचपन में आपके जैसे ही
सपने देखा करते थे।
आपकी पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा।
चलिए आपके साथ जहाज के चढ़ने-उतरने का आनंद भी ले लिया. धन्यवाद.
ReplyDeleteमुझे तो उड़ाने में ज्यादा मजा आता!
ReplyDeleteबार बार खोलने पर भी विडियों नही नजर आ रहे है। बाद में देखेगे ।
ReplyDeleteकैलिफोर्निया जाते हुये मेरी फ्लाईट भी दो घन्टे फ्रेंकफु्ट रुकी थी मुझे क्या पता कि ताऊ जी चला रहे हैं तभी कहूँ कि दो की बजये चार घण्टे बाद क्यों चली अच्छा हुआ बता दिया आगे से पता कर के जाऊँगे कि ताऊ तो नहीं चला रहे हैण्
ReplyDeleteरोचक।
ReplyDeleteआपके साथ जहाज के चढ़ने-उतरने का आनंद भी ले लिया. धन्यवाद.वरना अपनी किस्मत कहाँ और जिस सवारी पर जरुरत पड़ने पर उतर कर भगा न जा सके उससे हम डरते हैं
ReplyDeleteजरुरी सूचनाये यहाँ उपलब्ध हैं ::---- " स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से "
बहुत अच्छे विडियो लगाये है । हम जैसे ग्रामीण लोग तो आज भी दूर से ही जहाज निहारा करते है कभी बैठने का मौका ही नही मिला है ।
ReplyDeleteवाह भाटिया जी वाह.... आप तो जहाज में ही बोर होने लगे..
ReplyDeleteवाह...वाह...राज जी बहुत खूब लीं तस्वीरें ......
ReplyDeleteवीडियो तो चल ही नहीं रहा है........
ReplyDeleteयोगेंदर जी सच मै बहुत बोरिंग है, बस एक दो बार अच्छा लगता है इस से अच्छी तो अपने बसे है, हर जगह रोक लो खिडकी खोल कर ताजा हवा लो, लेकिन अब पता नही वेसा ही महोल है जेसा पहले था या बदल गया है
ReplyDeletebahut achhi post .
ReplyDeleteab phle jaisa bus ka safar nhi rha
bhut si rajyo me rajy privhan ko theke par de diya hai aur vo log choti -choti bus chlate hai jime do ki seat par ak aadmi bhi mushkil se baith pate hai .aor itne logo ko bhra jata hai ki sas lena bhi dubhar hai .hmari jo yade hai bas vo hi mithi hai .
bahut achhi post .
ReplyDeleteab phle jaisa bus ka safar nhi rha
bhut si rajyo me rajy privhan ko theke par de diya hai aur vo log choti -choti bus chlate hai jime do ki seat par ak aadmi bhi mushkil se baith pate hai .aor itne logo ko bhra jata hai ki sas lena bhi dubhar hai .hmari jo yade hai bas vo hi mithi hai .
raaj ji
ReplyDeleteaapne sahi kaha , jo aanand apne desh me hai wo aur kahana aur bus ka safar ..wo bhi MP ki sadko par ....wah wah ...
aapki post padkar purane din yaad aa gaye ji .
Aabhar
Vijay
Pls read my new poem : man ki khidki
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html