मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
23/06/09
हवाई जहाज ?
क्या आप ऎसी जगह पर रहने की सोच सकते है, जहां सडक के ट्रेफ़िक से ज्यादा हवाई जहाजो को शोर हो, यानि हर पल आप के सर से एक हवाई जहाज चढे तो दुसरा उतरे... देखिये तो सही....
bhatia jee ...haay ham to mare jaa rahe hain plane kaa shor sunne ko..kambakht yahaan kee blue line bason aur shor machate auto ke shor se achaa hee hoga na..log kahenge..waah plane ke shor se behra hua hai...
ताऊ रामपुरिया की बात बिलकुल सही है। मेरे एक रिश्तेदार का घर मुंबई में लोकल ट्रेन की पटरी के ठीक किनारे है। हर दो मिनट पर एक लोकल ट्रेन धनधनाती हुई निकलती है, और घर की खिड़कियां थर-थरा उठती हैं। जब हम उनके घर रुकते हैं, इन ट्रेनों के कारण पांच मिनट की भी नींद नहीं ले पाते। पर मेरे रिश्तेदार या उनकी सोसाइटी के अन्य लोगों को इन ट्रेनों के शोर की कोई शिकायत नहीं है, वे तो उसे नोटिस तक नहीं करते।
निरंतर शोर वाले परिवेश में रहने पर हमारा मस्तिष्क ऐसे शोरों को नजरंदाज करना सीख जाता है, जिनसे तुरंत कोई खतरा न हो।
यही बात जानवरों में भी पाई जाती है। दक्षिण के मंदिरों के उत्सवों में हाथियों का खूब उपयोग होता है। उत्सवों में आतिशबाजी भी की जाती है। दस-बीस हाथी सज-धजकर लाइन से खड़े रहते हैं, और उनसे दो-तीन फुट की ही दूरी पर भयंकर शोर करनेवाले पटाखे फोड़े जाते हैं। हाथियों के कानों में जू तक नहीं रेंगता। वे मजे से झूमते हुए खड़े रहते हैं। वे इस शोर के आदी हो चुके हैं। वहीं जंगली हाथी पटाखे की ध्वनि से भाग खड़े होते हैं। हाथियों से खेतों की रक्षा के लिए किसान पटाखे फोड़ने का उपाय खूब आजमाते हैं। पर पालतू हाथी इस शोर के आदी हो गए हैं।
पर यह जरूर है कि उच्च डेसिबल वाले शोर के निरंतर प्रभाव से धीरे-धीरे आदमी बहरा हो जता है, और अन्य शारीरिक विकार भी प्रकट होने लगत हैं।
नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये
धन्य होंगे वहाँ के लोग .
ReplyDeleteवो समय जल्दी ही आने वाला है।
ReplyDeleteअभी से आदत डाल लो।
waah
ReplyDeletewaah
kya jagah dhoondhi hai?
saahitya saadhna k liye itnee shaanti aur kahan milegi ?
chalo raajji, vahin chalte hain .......ha ha ha ha
bhatia jee ...haay ham to mare jaa rahe hain plane kaa shor sunne ko..kambakht yahaan kee blue line bason aur shor machate auto ke shor se achaa hee hoga na..log kahenge..waah plane ke shor se behra hua hai...
ReplyDeleteकमाल का चीज आपने दिखाया भाटिया साहब।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
शोर सुनकर ही आदमी मर जायेगा. पर धीरे २ वहां रहने वाले लोगो को इसकी इतनी आदत हो जायेगी कि बिना इस शोर को सुने वो सो ही नही पायेंगे.:)
ReplyDeleteरामराम
Wah Bhatia g
ReplyDeleteकमाल है... कमाल है......
Wah Bhatia g
ReplyDeleteकमाल है... कमाल है......
ताऊ रामपुरिया की बात बिलकुल सही है। मेरे एक रिश्तेदार का घर मुंबई में लोकल ट्रेन की पटरी के ठीक किनारे है। हर दो मिनट पर एक लोकल ट्रेन धनधनाती हुई निकलती है, और घर की खिड़कियां थर-थरा उठती हैं। जब हम उनके घर रुकते हैं, इन ट्रेनों के कारण पांच मिनट की भी नींद नहीं ले पाते। पर मेरे रिश्तेदार या उनकी सोसाइटी के अन्य लोगों को इन ट्रेनों के शोर की कोई शिकायत नहीं है, वे तो उसे नोटिस तक नहीं करते।
ReplyDeleteनिरंतर शोर वाले परिवेश में रहने पर हमारा मस्तिष्क ऐसे शोरों को नजरंदाज करना सीख जाता है, जिनसे तुरंत कोई खतरा न हो।
यही बात जानवरों में भी पाई जाती है। दक्षिण के मंदिरों के उत्सवों में हाथियों का खूब उपयोग होता है। उत्सवों में आतिशबाजी भी की जाती है। दस-बीस हाथी सज-धजकर लाइन से खड़े रहते हैं, और उनसे दो-तीन फुट की ही दूरी पर भयंकर शोर करनेवाले पटाखे फोड़े जाते हैं। हाथियों के कानों में जू तक नहीं रेंगता। वे मजे से झूमते हुए खड़े रहते हैं। वे इस शोर के आदी हो चुके हैं। वहीं जंगली हाथी पटाखे की ध्वनि से भाग खड़े होते हैं। हाथियों से खेतों की रक्षा के लिए किसान पटाखे फोड़ने का उपाय खूब आजमाते हैं। पर पालतू हाथी इस शोर के आदी हो गए हैं।
पर यह जरूर है कि उच्च डेसिबल वाले शोर के निरंतर प्रभाव से धीरे-धीरे आदमी बहरा हो जता है, और अन्य शारीरिक विकार भी प्रकट होने लगत हैं।
पता नहीं आने वाले समय में और क्या क्या मिलेगा देखने को।
ReplyDeleteहमें नहीं रहना है. वैसे ताऊ बिलकुल सही कह रहे हैं.
ReplyDeleteना जी ! हम तो ऐसे ही खुश हैं :)
ReplyDeleteदिल्ली के पालम पर तीसरा रनवे बनने से वसंत विहार वालों का लगभग यही हाल है.
ReplyDeleteहमारे तो इतनी ही देर में कान पक गये.
ReplyDeletebahut hi jagahen aisee hai jahan airport main city mein hi hai...aur logon ko is shor ke sath rahne ki habit ho jaati hai---
ReplyDeleteBharat mein bhi kai shahron mein aise drishya ab aam hote ja rahe hain. Magar kashtdayak to hai hi.
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