मै अकसर समाचार पत्रो मे,टी वी पर सुनता हू कि फ़ंला मंदिर, मस्जिद मै आछुत जा दुसरे धर्म के लोगो के आने से उन का धर्म स्थल गंदा हो गया, ओर फ़िर उसे दोबारा से पबित्र करने के लिये उसे पवित्र जल से, गंगा जल से धोया जाता है, ओर कही कही तो दुध से भी धोया जाता है, लेकिन इन मंदिरो ओर मस्जिदो को तो इंसान ने बनाया है, इसी लिये अपवित्र हो जाते है,अगर इन मै भगवान सच मै रहते हो तो कोई केसे इन्हे आपवित्र कर सकता है.
लेकिन कभी सुना है कि एक पेड की छाया अपवित्र हुयी, कोई नदी, झरना अपवित्र हुये... क्योकि वो सब तो उस कुदरत ने बानये है, तो आज का चिंतन भी इसी बात पर ताकि हम हर इंसान को इंसान की तरह्ही समझे, जात पात से दुर, क्योकि य सब जात पात तो हम ने बनाई है, फ़िर उस भगवान से केसा प्रतिशोध, उस के बनाये इंसानो से केसा दुवेष..चलिये अब उस विचार कि ओर....
एक दिन सुबह सुबह दो ब्राह्माण गगां के घाट स्नान करने गये, ओर वो जल्दी मे लोटा लाना भुल गये, ओर गंगा का बहाव बहुत तेज था, दोनो बहुत परेशान हुये, कुछ दुरी पर ही कबीर जी भी स्नान कर रहे थे, उन्होने स्नान किया ओर देखा कि दोनो ब्राह्माण कुछ चिंतित है माजरा भांपा ओर अपना लोटा उन ब्राह्माणॊ कि तरफ़ बढाया ओर बोले महात्मन आप इस लोटे से स्नान कर ले...... लेकिन कबीर को देख कर उन ब्राह्माणो ने लोटा नही पकडा, क्योकि उन की नजर मै तो कबीर एक आछूत ओर गेर धर्मी थे, ओर कबीर दास जी समझ गये, उन्होने उस लोटे को तीन बार वहां पडी रेत से खुब रगड कर साफ़ किया ओर लोटा उन ब्राह्माणो को दे दिया, अब वो ब्राह्माण उस लोटे को ले कर चल दिये ताकि थोडी दुर जा कर स्नान कर सके, तभी उन्हे पीछे से कबीर जी की आवाज आई .....लेकिन महात्माओ आप से पहले तो मै इन गंगा मै डुबकी भी लगा चुका, अब इस सारी गंगा को ओर इस सारी रेत को केसे पवित्र करु ? इतना सुनते ही उन ब्राह्माणो को अपनी भुल का एहसास हुया ओर उन्होने कबीर जी से माफ़ी मांग ली.
इस लिये हमे अन्य इंसानो को उस के कर्मो से देखना, हमारे कर्म अच्छॆ बुरे हो सकते है, लेकिन हम सब कि जात तो एक ही है, फ़िर क्यो जात पात का झगडा
राज जी ,
ReplyDeleteआपसे पूर्णता : सहमत . जब तक जाती व्यवस्था का पूर्णता: विनाश नहीं होता कल्याण नहीं . ये सब लक्षन तो उस बीमारी के निशान भर हैं .
आम्बेडकर , सावरकर और लोहिया की बात मान , जाती व्यवस्था का नाश ही लक्ष्य हो .उसी में समाधान है .
बधाई हो इस सार्थक पोस्ट के लिए .
सही है ये सब जात पांत का अडंगा मन का है. मन आदमी का साफ़ होजाये तो इस दुनिया की सब तकलीफ़ें ही खत्म हो जाये.
ReplyDeleteरामराम.
जात-पात से ही तो देश में सरकारें चल रही है आप जानते हैं कि भारत में सबसे नीची जात कौन सी है??? मैं बता दूँ वो है नेता! आशा है कि आपके परिवार में सब कुशल होंग़े, पिछले दिनों कहीं आपके भारत आने की ख़बर पढ़ी थी तो अच्छा लगा था आप की माता जी अब स्वस्थ हैं न?
ReplyDeleteसत्य वचन !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! इंसान का मन बड़ा जटिल है! अगर हर इंसान साफ सुथरे दिल से सोचे तो कोई समस्या नहीं होगी!
ReplyDeleteएक सार्थक चिन्तन राज भाई। कबीर तो पुरानी बात है, लगता है हम आज भी उसी जद्दोजहद में उलझे हैं।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबड़े शहरों में जात-पात धीरे-धीरे मिट रहा है। यह अंग्रेजों की देन है। जात-पात का झगड़ा उन्हीं का खड़ा किया हुआ है, हमें कमजोर करने के लिए। उनके आने से पहले जात-पांत स्वयं ही कमजोर पड़ रहा था। इसके अनेक ऐतिहासिक प्रमाण विद्वानों ने इकट्ठा किए हैं। पर अंग्रेजों ने जात-पांत के भेदों को उभाड़ा और हिंदू-मुसलमान का झगड़ा और लगवा दिया।
अब वे गए और ये सब पचड़े भी धीरे-धीरे सुलट जाएंगे। मैं तो आशावादी हूं।
Bahut hi satik uddharan prastut kiya hai aapne.
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट. आभार
ReplyDeleteवैसे मंदिर तो बनाए गये थे जात पात हटाने के लिए .लेकिन शुरुआत वही से हुई.....
ReplyDeleteकितनी हास्यास्पद बात है कि सम्प्रदाय की तो बात बाद में …।॥….।॥….।॥….।…
ReplyDeleteलोग मंदिरों को भी अलग-अलग कहने लगते हैं, हरिजनों का मन्दिर अलग और ब्राह्म्णों के अलग
बहुत सुन्दर चिंतन किया है
नमस्कार स्वीकार करें
मानव हमेशा जात-पांत खड़ी कर लेता है। कबीर ने यह सब तोड़ा, पर उनके बाद कबीर के चेले कबीरपन्थ फॉर्मलाइज कर गये! :)
ReplyDeleteवो मन्दिर , मन्दिर हो ही नही सकता जहा जाती पाती देख कर ही प्रवेश करने दिया जाता हो ।
ReplyDeleteजात पात हर देश में और हर ओर विभिन्न रूपों में है। हम भारत में जिसे जात पात मानते हैं वही क्रिश्चियनों में विभिन्न समुदायों में बंटे होने की स्थिति है, मुसलमानों में भी शिया सुन्नी के अलावा और भी कई विभाजन हैं। ये तो एक वैश्विक दुश्चक्र है।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट।
100 % True jee
ReplyDeleteएकदम सही ।
ReplyDeleteजाति न पूछो मानव की
पूछ लीजिये काम
मानवता कहती यही
हम सब हैं इनसान ।
poori tarah se sahmat hun in vichaaron ke sang
ReplyDeletesaarthak sundar chintan agar insaan aisaa soch le to duniya svarag naa ban jaaye hame adhtatmik honaa achha nahin lagtaa par shaarmik jaldi ho jaate hain sundar post aabhaar
ReplyDeleteBahut sahi likha apne.Jati se pare ham sirf ek manav hain.
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अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें.
antarman pavitra honbaa sabse zyaada zaroori hai.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा जी!!!!
ReplyDeleteसटीक चिंतन है भाई जी...
ReplyDeletenice
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