नमस्कार,
आज कल मै आप सभी के ब्लांग तो पढ रहा हुं, लेकिन टिपण्णी नही दे पा रहा, कारण मन बहुत खिन्न है, अरे आप से नही बल्कि अपने आप से, क्योकि जो जो मेने देखा..... बहुत बुरा देखा, जिस की उम्मीद नही थी वो सब देखा।
चलिये आप को भी बताऊ मै ने अपनी भारत यात्रा के इन ६ दिनो मे क्या क्या देखा, लेकिन किश्तो मै , बताऊगां, जेसे मेने मोत को इन नंगी आंखो से देखा, एक मां को देखा जो तीन होनहार बेटो की मां है, एक बेटी की मां है, लेकिन नर्क मै रह रही है, एक ६,७ साल की बच्ची को देखा, जो २५ साल की मां का रोल अदा कर रही है, अपनी मां को देखा, जो पल पल मोत का इंतजार कर रही है, ओर बहुत कुछ देखा।
ओर बस यह सब देख कर मन खिन्न सा हो गया, ओर बरबस एक गीत याद आ गया .... यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है....
१८-०४ की सुबह मै भारत पहुचा, इस बार मेरा दोस्त मुझे लेने एयरपोर्ट पर आया था, बस मै कुछ ही समय बाद बाहर आ गया, ओर घर की तरफ़ ( रोहतक ) हम चल पढे ओर बाते करते करते कब हम बाह्दुरगढ के पास पहुच गये पता ही नही चला, सुबह का समय ताजी हवा लेकिन गर्मी लिये, साथ मे अपना पन लिये, कार से बाहर चलते लोग बहुत प्यारे लग रहे थे, कोई दुध लेने जा रहा था तो कोई लेकर आ रहा होगा, बच्चे स्कुल जा रहे थे, यानि सभी अपने अपने काम मै मगन थे, एक अजीब सी भागदोड मची थी, ओर मेरा मन करता था कि एक एक से गले मिलूं, खुब बाते करूं, लेकिन फ़िर खुदी सोच कर हंस पडता था अरे क्या पागलो की सी बाते सोच रहा है तुं।
बाहदुर गढ से पहले ही दोस्त ने कार को वाईपास की तरफ़ मोड लिया, ताकि हम शहर की भीड भाड मै ना फ़ंसे, ओर मस्ती से बाते करते स्पीड से जा रहे थे, सडक देख कर दिल खुश हुया, दो तरफ़ा सडक, बीच मै फ़ुल ओर पेड, लेकिन तभी राईट साईड से एक कार आचानक हमारे सामने आ गई, फ़ासला बहुत कम था, ओर हमारी कार पुरी स्पीड से थी, दोस्त ने पुरी जोर से बरेक मारी ओर कार को बचाने के लिये थोडा राईट साईट मै मोडा, इतनी देर मै आगे वाली कार तो बच कर निकल गई, ओर बिना रुके चली गई, लेकिन हमारी कार बीच मै बने उस जगह पर एक साईड से टकराई ओर हवा मै काफ़ी ऊंची उछली, ओर उस समय हमारी आंखो मै , दिल मै ओर कुछ नही था, यानि मरने के लिये हम दोनो तेयार ही थे, लेकिन हमारी कार के राईट साईड वाले पहिये बाड की तार मै फ़ंस गये ओर कार पलटने से बच गई, लेकिन पुरी तरह से बेकार हो गई, जब कार रुकी, तो हम बाहर आये, देखा, फ़िर कुछ स्थानिया लोगो ने हमारी मदद की ओर कार को वहां से निकाला, ओर एक तरफ़ खडा किया।
बाद मै मेने सोचा अगर हमारी कार पलट जाती तो ? कोन सी एमबुलेंस आती हमे बचाने के लिये? कोन सी पुलिस आती हमारी मदद को ?ज्यादा से ज्यादा वहा इकट्टॆ हुये लोगो मै से कुछ लोग मोका देख कर हमारा समान ले जाते, जिस मे मेरी पहचान यानि मेरा पासपोर्ट था, मै वही घंटो पडा पडा मर जाता, घर पर मेरी मां ओर दुसरी तरफ़ मेरी वीवी ओर बच्चे मेरा इन्तजार करते रहते,शायद इन्हे पता भी ना चलता की मै कहां गया।
जब कि मेने यहां से चलने से पहले अपना बीमा बगेरा करवा लिया था कि ऎसे केस मे मुझे वापिस जर्मन मै लाया जाये, लेकिन मै वहा करीब बाद मै भी वहां तीन घण्टे रहा लेकिन ना तो पुलिस के दर्शन हुये, ना ही कोई एमबुलेंस, भगवान का शुकर जान बचा कर वापिस घर आया।
चलिये अगली पोस्ट मे बताऊगा किस तरह चार बच्चो की मां नरक मे जी रही है, ओर एक ओरत किस तरह से दुसरी ओरत की देख भाल कर रही है।
राम राम
भाटिया जी काफी दिन बाद आपकी यह पोस्ट आयी है । अभी माताजी का स्वस्थ्य अच्छा हो गया होगा एसी उम्मीद है । कार दुर्घटना मे आप बाल बाल बच गये यह आपके नेक कर्म किये हुये है उन्हीं की वजाह से आपको चोट नही आयी । भगवान आपको सकुशल रखे राम राम ।
ReplyDeleteआपकी भावनाओं को समझ सकते हैं. अक्सर एक्सीडेंट मे यहां ये ही हालात बनते हैं जो जल्दी बदलने वाले नही हैं.
ReplyDeleteआपने लिखा यह बहुत अच्छा लगा. माताजी का स्वास्थ्य अब कैसा है?
रामराम.
कल आप की जोरों से याद आई। फिर अफसोस हुआ कि आप को फोन नं. ही नहीं दे रखा है।
ReplyDeleteआप हादसें में बाल बाल बचे। यह सब औरों के लिए की गई आप की दुआओँ का फल है। बहुत कुछ बुरा देखा होगा। लेकिन कुछ अच्छा भी देखा ही होगा। दोनों को जानने की इच्छा रहेगी।
प्रभु का लाख लाख शुक्र आप सही सलामत रहे. माता जी के स्वास्थ की सूचना दें. आपसे जर्मनी में बात न हो पाने का दुख है, वजह विस्तार से ईमेल द्वारा.
ReplyDeleteशुभकामनाऐं.
सकुशल बचानें के लिए ईश्वर को शतशः धन्यवाद। बिना किसी विधिवत ट्रेनिंग के ये नवढ़्नाढ्य पगलाए जानवरों की तरह गाड़ी चलाते हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही नहीं लगभग सभी जगह यही हाल है। हाईवे पुलिस या अन्य, इन पर टिप्पड़ी न करना ही श्रेयस्कर है।
ReplyDeleteलाख लाख शुक्र आप सही सलामत रहे. माता जी के स्वास्थ की चिँता रहती है
ReplyDeleteआप सही सलामत है बहुत अच्छा लगा !संस्मरण तो पढेगें ही !
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों में कईं बार पराया देश ब्लॉग पर आया ............लेकिन । मैं आप की स्थिति समझ सकता हूं, भाटिया जी। परमात्मा से यही अरदास है कि आप सपरिवार कुशल-मंगल रहें
ReplyDeleteशुभकामनायें।
आप सकुशल हैं यही सबसे बड़ी बात है।
ReplyDeleteराज जी
ReplyDeleteआपके भारत आने की खबर तो थी पर कोई पता ठिकाना नहीं मिल पा रहा था और ये भी सोचा करता था कि राज जी कहाँ गए है और कोई पोस्ट भी नहीं लिख रहे है . ईश्वर की कृपया और बुजुर्गो के आशीर्वाद से आप सही सलामत है यह बहुत बड़ी बात है . जो घटना हो चुकी है कृपया उसे भूलने की कोशिश करे और समयचक्र के साथ आगे बढे. विगत वर्ष भोपाल और सीहोर के बीच हम लोगो की मारुती ८०० पलट गई थी पर ईश्वर की कृपा से सब कुशल रहे . पहले मै भी उस बात को याद कर बहुत परेशान रहा करता था. पर मेरे दादा ने समझाया भाई जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सुध लो जब से उस घटना को मैंने दिमाग से निकाल दिया है बहुत बढ़िया रहता हूँ .
महेंद्र मिश्र
जबलपुर.
दुर्घटना से आपके सकुशल निकल आने के बारे में जान अच्छा लगा. सुखी व स्वस्थ जीवन की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअरबो की संख्या वाले इस देश में ओर भी बहुत से चमत्कार है भाटिया जी.......
ReplyDeleteराज जी, आपका ब्लॉग पहली बार पढ़ रहा हूँ,
ReplyDeleteसबसे बड़ी ख़ुशी की बात है की आप लोग सकुशल है.....अगर यही मुस्तैदी जिसकी बात आप कर रहे हैं हमारे देश के सरकारी तंत्र में आ जाये तो क्या कहने !
राजजी बहुत दिनों से तक इंतज़ार रहा. आशा है आप सपरिवार सकुशल हैं. ऐसी घटनाएं मन को विचलित कर ही देती हैं.
ReplyDeleteआपकी कुशलता जानकर खुसी हुई ..आशा है माता जी अब स्वस्थ होंगी
ReplyDeleteAre yah to bahut bura hua....chaliye bhagwaan ki kripa ki aaplogon ko koi vishesh sharirik kshati nahi hui...
ReplyDeleteman khatta na karen...in hadson ko jeevan ka abhinn ang maan kar chalen.
यह तो प्रभू का शुक्र है कि आप को चोट वगैरह नहीं लगी। अपनी तरफ से कितनी भी सावधानी से ड्राइव किया जाये पर सामने वाले को क्या कहें।
ReplyDeleteमाताजी कैसी हैं?
भगवान् का लाख लाख शुक्र है की आप बाल बाल बच गए. आपकी दूसरी पोस्ट से दोनों माताओं के बारे में जानकर दुःख हुआ. आपकी यह पोस्ट हम से छूट गयी थी.
ReplyDeleteजान बची सो लाखों पाए। यहां गुजरात के एक्सप्रेसवे में (और शायद देश अन्य एक्सप्रेसवे में भी) 108 वाली ऐंबुलेन्स सेवा चलती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह मिनटों में घटनास्थल पर पहुंच जाती है। पर चूंकि इस सेवा का संबंध सत्यम कंपनी से है, अब पता नहीं यह कितनी कारगर सेवा प्रदान करती है।
ReplyDeleteयहां के एक्सप्रेसवे तो बस नाम के ही हैं। मैंने उनमें गाय-भैंस, ऊंट, बकरी, बैलगाड़ी और यहां तक कि हाथी को भी (मंदिर का हाथी) मजे से जाते हुए देखा है। भारत जैसे घने-बसे देश में शायद सड़कों को केवल मोटर वाहनों के लिए अलग रख छोड़ना संभव ही नहीं है।