ये सवाल पहले भी उठाए जाते रहे हैं कि अगर दुनिया भर के सभी मुसलमान एक ही क़ौम का हिस्सा हैं तो फिर इतने अलग अलग मुस्लिम देश क्यों हैं? अगर आप इस लेख को पुरा पढना चहते है तो यहां चटका लगाये
मै कुछ दिनो बाद फ़िर से आऊंगा, तब तक आप सब को नमस्ते, राम राम, सतश्री अकाल जी, सलाम
पढ़ लिया राज जी अब कहाँ जा रहे है यह पढ़कर उलझन कड़ी हो गई है कृपया स्पष्ट करे भाई साब आभार
ReplyDeleteअच्छे लेख से अवगत कराने के लिए आभार।
ReplyDeleteपर आप कहॉं जा रहे हैं ?
सचमुच विचारणीय !
ReplyDeleteमहेन्द्र मिश्र जी, ओर जितेंदर जी नमस्कार मै भारत आ रहा हुं, इस कारण ब्लांग से दुर ही रहना पडेगा, मजबुरी है.
ReplyDeleteधन्यवाद
आप भारत आ रहे है इससे बड़ी प्रसन्नता की और क्या बात हो सकती है . आपकी यात्रा मंगल माय हो शुभकामनाओ के साथ .
ReplyDeleterajesh joshi ji ki lekhni padhaane ke liye aabhaar
ReplyDeleteबढिया लेख.
ReplyDeleteअपकी भारत यात्रा मंगलमयी हो. वैसे भारत में भी नेट की व्यवस्था है जो आप के लिये कोई बडी बात नही होनी चाहिये.
विचारोत्तेजक लेख।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
इसलाम को इसी आंतरिक तलाश की जरुरत है. भारत यात्रा की शुभकामनाएं.
ReplyDeletejab hajrat dharti par aaye tab bhi inke kunbe alag alag rahe
ReplyDeleteab desh ka fark hai
vajah hai sataa aur sinhasan ki daud
jo kabhi kahin thamti nahi sivay hamaare desh ke.
bharat yatra par dhair saari shubhkamnaye raj ji
ReplyDeleteइस्लाम के अनुयायियों के साथ दिक्कत यह है कि वे छ: सौ साल से चले आ रहे कट्टर धार्मिक मान्यताओं में बदलाव नहीं स्वीकार करना चाहते.
ReplyDeleteभाटिया जी भारत आइए लेकिन यहां आकर भी लगातार लिखिए....
ReplyDeleteवाह... बहुत अच्छा लेख... भारत में आपका स्वागत है.. रोहतक पहुंच कर संपर्क करें ९४६६२०२०९९
ReplyDeleteअच्छा लेख है................जानकारी भी है isme
ReplyDeleteलेकिन सवाल तो अभी भी वैसे का वैसा ही है । आतिश का खयाल थोडा इकतरफा हो सकता है लेकिन मुसलमान महज कुरान के आधार पर ेक नही हो सकता वह अपनी स्थानीय संस्कृति से भी जुडा रहना चाहता है उसीसे जुडा इपना स्वतंत्र अस्तित्व भी बनाये रखना चाहता है ।
ReplyDeleteKAHAAN HO BHATIYA SAHIB NAMSKAR, AAPKI KUSHALATAA KI KAAMNAA KE SAATHA AAPKA INTAZAAR...
ReplyDeleteARSH