24/03/09

माया दीदी चीखी क्यों?

यह कथा हमारे बचपन की है , ओर इस का पहला भाग "हम ने जब फ़ोटो गराफ़री की... " अगर आप ने नही पढा तो यहां पढ सकते है, इस से आगे...

अब हम सब बच्चो ने जब माया दीदी की फ़ोटॊ खींची तो उन की चीख निकल गई, ओर हम मै से कई बच्चे डर गये, तो कई बच्चो ने माया दीदी का मुंह बन्द कर दिया, थोडी देर तो माया दीदी गुस्से से देखती रही फ़िर सब बात उन की समझ मै आ गई, ओर फ़िर हमारी साथी बन गई, ओर उन्हे अब समझ मै आ गया कि जिन बच्चो की फ़ोटो नही खींची वो कमरे से बाहर लाईन मै क्यो खडॆ है, कमरे मै सिर्फ़ वोही बच्चे बेठ सकते थे जिन की फ़ोटो खींच गई हो.

अब माया दीदी अपनी हम उमर की लडकियो को को लाई, फ़िर सभी महिलाओ को भी लगा कि कुछ मजे दार बात है जो भी हमारी तरफ़ आता है, फ़ोटो खींचवा कर बच्चो के पास ही बेठ जाता है, पहले तो बच्चे डर डर कर धीरे धीरे हंसते थे, ओर अब बडे भी खुब ठहके मार कर हंसते है तो बच्चे भी ज्यादा शोर मचाते है, फ़ोटो भी सिगरेट की डिब्बी के दो हिस्से करके उस पर उलटी सीधी लकीरे खींच कर फ़ोटो दे देते थे, लेकिन उन दो तीन दिनो तक हम बच्चो की खुब मोज लगी.

फ़िर हमारा केमरा आस पास के पडोसियो को भी बुला लाया, ओर खुब फ़ोटो खींची गई, अब आप ज्यादा बोर ना हो इस लिये आप को हम अपनी फ़ोटो ग्राफ़री का राज भी बता दे, जिस के सभी दिवाने हो गये थे.

हमारी फ़ोटो खींचनेके लिये कम से कम ८,९ बच्चे चाहिये थे, एक बच्चा जुते के डिब्बे मै ट्राच जला कर बुझाता था, एक बच्चा कमरे की लाईट बन्द करने के लिये,एक बच्च दरवाजे पर कि कोई बिना बुलाये अन्दर ना आये,एक बच्चा नीचे सिरहाना रखने के लिये, ओर एक बच्चा जो इस खेल का मुख्य कला कार होता था, ओर जिसे कोई देख नही सकता था, वो चारपाई के नीचे रस्सी पकड कर लेटा होता था, कार्यकर्म पता नही केसे दिमाग मै आया, हम बच्चो ने बेठने की चोकी पर एक ट्रक, उस के ऊपर आटे का पीपा, उस के ऊपर डालडा घी का खाली डिब्बा, उस के ऊपर जुते के डिब्बे वाला केमरा रखा.

सामने एक मुडा (बेठने के लिये बांस का बना ओर ऊपर रस्सीयो मे बना, नीचे की तरफ़ टायर लगा हुआ) जिसे शायद मूडा या मुढा कहेगे, ओर इस मुढे की कमर मै एक रस्सी बन्द दी, जिस का एक सिरा चार पाई के नीचे लेटे बच्चे के हाथ मै होता था.

अब जिस की फ़ोटो खींचनी है, उसे पहले उस मुढे पर बिठाया जाता, फ़िर केमरा सेट करते जेसे सड्क के केमरे वाला करता था, फ़िर उस बच्चे को दो चार बार उठाया,बेठाया जाता था, फ़िर असली फ़ोटो के लिये सब को तेयार रहने का कोड दिया जाता, ओर उस बच्चे को कहा जाता कि अब मुढे से खडे हो जाओ, जब हम तीन बोले तो तुम ने मुढे पर बेठना है, १,२,३ ओर दो कहते ही कमरे की लाईट बन्द, ओर तीन कहते ही तीन एक्सन होते टार्च की लाईट जले चार पाई के नीचे वाला मुढे को जल्दी से खींचे, ओर एक बच्चा झट से नीचे सिरहाना रखे, ओर जिस बच्चे की फ़ोटो खींचती उसे इन सब बातो का कोई पता नही बेचारा अपनी तरफ़ से मुढे पर बेठता, लेकिन वहा से मुढा तो कब का हट गया होता ओर बच्चा बहुत जोर से नीचे सिरहाने पर गिरता, ओर गिरते ही चीखता डर के मारे, कई बच्चे रो पडते तो साथ बेठे बच्चे उसे चुप करवाते, फ़िर उसे समझाते की देखो अब जब कोई दुसरा आये तो तुम चुप रहना वरना सब तुमहारा मजाक करे गे, सो जब सब ही गिरे गे तो सभी चुप रहेगे कोई किसी का मजाक नही करेगां.

इसी तरह से रोते हंसते बच्चो का खेल चल रहा था तो माया दीदी आई, पहले तो बच्चो ने डर के मारे उन्हे फ़ोटो खींचने से मना कर दिया, फ़िर मार के डर से उन्हे कसम ऊठवा कर उन की फ़ोटो खींची, ओर वो हम सब से लम्बी थी इस लिये बहुत बुरी तरह से गिरी, ओर उतनी ही बुरी तरह से चीखी भी डर के मारे, जब सारा मामाला उन्हे समझ मै आया, यानि हम सब की शाररत समझ मै आई तो खुब हंसी... आगे की कहानी आप ने पढ ही ली है. कुछ ऎसा लगता है जब आप किसी कुर्सी पर बेठे, लेकिन आप के बेठने से आप की कुर्सी कोई पहले ही खिचं ले, ओर आप को यकीन हो कि आप कुर्सी पर बेठ रहे है, ओर जब नीचे गिरे तो.... बस यही कला थी हमारे फ़ोटो खींचने की, सिरहाना इस लिये नीचे रखते थे, ताकि किसी बच्चे को चोट ना लगे, ओर मुढा तो दो कहते ही लाईट बन्द ओर मुढा खींच जाता था, एक तो फ़र्श, फ़िर मुढे के नीचे एक कपडा रखते थे, जिस से खींचने पर आवाज ना करे, ओर एक बच्चा पीछे चार पाई पर बेठ जाता था कि सर कही चार पाई की लकडी मे ना लगे, ओर सभी दो तीन बार गिरते थे,ओर हर बार बेठने वाले कि ही गलती निकालते , अरे तु गलत बेठा, जल्दी बेठा, मुढा तेरे पेर लगने से पीछे खीसक गया वगेरा वगेरा...... यह घटना अचानक ही दिमाग मै आ गई सो आप सब के संग बांट ली.
ऎसी थी हमारी बचपन की शरारते.
धन्यवाद

27 comments:

  1. बचपन के दिनो की याद मजेदार लगती हैं ...

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  2. बहुत खूब! आप तो बहुत ही शरारती थे!
    लेकिन आप सब यह भी ध्यान रखते थे कि किसी को चोट न पहुंचे.फिर लाभी कोई आप की टोली का बच्चा/साथी कभी किसी मोड़ पर सालों बाद वापस मिला??

    मैं भी बहुत शरारती थी.. सारे बच्चों की नेता बनी रहती थी!हा हा हा!
    आप के इस संस्मरण से मुझे भी flashback में पहुंचा दिया.

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  3. शरारत मुबारक हो जी. रामराम.

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  4. बचपन की यादों का सुंदर संयोजन। भाई भाटिया जी बधाई।

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  5. फोटो से नहीं लगता कि इतने ऊधमी रहे होंगे आप।:)

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  6. " ha ha ha ha bachpan ki yado ka ye silsila shrarto se bhra hua bhut kuch yaad dila gya....bhut mjaa aaya pdh kr"
    Regards

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  7. चलिए, आज राज खुल ही गया- चीख का!

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  8. मन कर रहा है कि मैं भी फोटोग्राफर बन जाऊं और सभी घरवालों और मित्रों की इसी तरह फोटो खींचू
    मजा आ गया आपकी शैतानी सुन कर
    नमस्कार स्वीकार करें

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  9. कोई लौटा दे मेरे बचपन के वो दिन.........

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  10. बाबा रे ! बड़े शरारती फोटो ग्राफर थे आप । :)
    पर ये किस्सा था बड़ा मजेदार ।
    आज ही हमने दोनों पोस्ट पढी इसलिए और भी मजा आया ।

    आपके इस किस्से ने कितनी सारी पुरानी बातें ताजा कर दी ।

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  11. आप तो मेरे जैसे ही शैतान थे ..सिर्फ बचपन ही देता है इस तरह की मजेद्रार तरकीबें करने की छूट :)

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  12. yah sansmaran aapka bachpan aankhon ke aage lata hai.....rochak aur natkhat bachpan

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  13. वाह..... क्या लाजवाब दिमाग लगाया था आपलोगों ने...

    रोचक संस्मरण पढ़ हमें भी बचपन के कई किस्से याद आ गए...आभार.

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  14. hahahahaa............raj ji bahut hi majedar kissa pesh kiya aapne...maja aa gaya padh ke..regards

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  15. मिला जुला कर हम भी आप ही की तरह थे :-)

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  16. आपके व्यक्तित्व के बारे में अच्छा पता चला भाटिया जी।
    बढ़िया लगी पोस्ट।

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  17. प्रणाम
    आज आपकी दोनों पोस्ट पढ़ी , अन्तं में राज पता चल तो हँसते-हँसते बुरा हाल हो रहा है .आपने भी बचपन में खूब शरारत की है .

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  18. बचपन के स्मरण अनोखे होते है याद कर दिल खुश हो जाता है .

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  19. शरारती बचपन जिसने नहीं जिया उसने जिन्दगी मे कुछ नहीं किया

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  20. बहुत मजा आया पढकर के । आप को उस समय कितनी हसी आयी इस बात का अन्दाजा पोस्ट पढ्कर हो गया है । इस मीठे बचपन को सलाम ।

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  21. सुन्दर संस्मरण!

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  22. आप के बचपन का संस्मरण गुदगुदा गया अन्दर तक......
    अक्सर अपमा बचपन भी याद आ गया, शरारतों भरा.....मस्ती भरा, बेफिक्र.

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  23. Nice one...!!
    नव संवत्सर २०६६ विक्रमी और नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

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  24. कितने सुंदर होते हैं बचपन के दिन। आपके संस्‍मरण ने एक बार फिर हमें उसी दुनिया में पहुंचा दिया। आभार।

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  25. Bachpan to chala jata hai par yaaden jeevan bhar sath rehti hain.

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  26. चीख का रहस्य जानने की आतुरता ख़त्म हुई. आशा है आने वाली पीढी ऐसे मजाक नहीं करेगी.

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नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये