आज का विचार, कहते है इंसान गलतियो का पुतला है, लेकिन अगर हमे अपनी गलतियां पता लगे, अपनी बुराईया पता लगे तो उन्हे दुर करना हमारा सब का फ़र्ज है, ओर हम यह करते भी है, कई बार हम सोचते है कि हमारे मै अंहकार नही रहा, ओर हम सब से बहुत प्यार से बोलते है, सब के काम भी आते है, लेकिन अनजाने मै ही हम अपने अंदर इस अंहकार को पाल लेते है. तो आज इस छोटी सी कहानी से ही हमे अपनी इस भुल का एहसास हो सकता है....
एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिया भगत कोन है?, अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भगत नराद मुनि की बात, ओर मुस्कुरा कर वोले ! मेरा सब से प्रिया भगत उस गांव का एक मामुली किसान है, यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, ओर फ़िर से एक प्रशन किया, हे भगवान आप का बडा भगत तो मै हुं, तो फ़िर सब से प्रिया क्यो नही??
भगवान विष्णु जी ने नारद मुनि जी से कहा, इस का जबाब तो तुम खुद ही दो गे, जाओ एक दिन उस के घर रहो ओर फ़िर सारी बात मुझे बताना,नारद मुनि जी सुबह सवेरे मुंह अंधेर उस किसान के घर पहुच गये, देखा अभी अभी किसान जागा है, ओर उस ने अब से पहले अपने जानवरो को चारा बगेरा दिया, फ़िर मुंह हाथ थोऎ, देनिक कार्यो से निवर्त हुया, जल्दी जल्दी भगवान का नाम लिया, रुखी सूखी रोटी खा कर जल्दी जल्दी अपने खेतो पर चला गया, सारा दिन खेतो मे काम किया.
ओर शाम को वापिस घर आया जानवरो को अपनी अपनी जगह बांधा, उन्हे चारा पानी डाला, हाथ पांओ धोये, कुल्ला किया, फ़िर थोडी देर भगवान का नाम लिया, फ़िर परिवर के संग बेठ कर खाना खाया, ओर कुछ बाते की ओर फ़िर सो गया.
अब सारा दिन यह सब देख कर नारद मुनि जी, भगवान विष्णु के पास वापिस आये, ओर बोले भगवन मै आज सारा दिन उस किसान के संग रहा, लेकिन वो तो ढंग से आप का नाम भी नही ले सकता, उस ने थोडी देर सुबह थोडी देर शाम को ओर वो भी जल्दी जल्दी आप का ध्यान किया, ओर मे तो चोबीस घंटे सिर्फ़ आप का ही नाम जपता हुं, क्या अब भी आप का सब से प्रिय भगत वो गरीब किसान ही है, भगवान विष्णु जी ने नारद की बात सुन कर कहा, अब इस का जबाब भी तुम मुझे खुद ही देना.
ओर भगवान विष्णु जी ने एक कलश अमृत से भरा नारद मुनि को थमाया, ओर बोले इस कलश को ले कर तुम तीनो लोको की परिकिरमा कर के आओ, लेकिन ध्यान रहे अगर एक बुंद भी अमृत नीचे गिरा तो तुम्हारी सारी भगती ओर पुन्य नष्ट हो जाये गे, नारद मुनि तीनो लोको की परिक्र्मा कर के जब भगवान विष्णु के पास वापिस आये तो , खुश हो कर बोले भगवान मेने एक बुंद भी अमृत नीचे नही गिरने दिया, विष्णु भगवान ने पुछा ओर इस दोराना तुम ने मेरा नाम कितनी बार लिया?मेरा स्मरण कितनी बार किया ? तो नारद बोले अरे भगवान जी मेरा तो सारा ध्यान इस अमृत पर था, फ़िर आप का ध्यान केसे करता.
भगवान विष्णु ने कहा, हे नारद देखो उस किसान को वो अपना कर्म करते हुये भी नियमत रुप से मेरा स्मरण करता है, क्यो कि जो अपना कर्म करते हुये भी मेरा जाप करे वो ही मेरा सब से प्रिया भगत हुआ, तुम तो सार दिन खाली बेठे ही जप करते हो, ओर जब तुम्हे कर्म दिया तो मेरे लिये तुम्हारे पास समय ही नही था, तो नारद मुनि सब समझ गये ओर भगवान के चरण पकड कर बोले हे भगवन आप ने मेरा अंहकार तोड दिया, आप धन्य है
इंसान गलतियो का पुतला है, लेकिन अगर हमे अपनी गलतियां पता लगे, अपनी बुराईया पता लगे तो उन्हे दुर करना हमारा सब का फ़र्ज है'-
ReplyDelete-सत्य वचन!
सही कहा है। कर्म ही पूजा है।
ReplyDeleteआप ने सही कहा।
ReplyDeletebahut sahI kahaa aapane.
ReplyDeleteraamaraam.
bahut sahi sundar baat kahi.
ReplyDeleteअच्छी उदबोध कथा !
ReplyDeleteसुंदर सारगर्भित कथा।
ReplyDeleteकर्म ही पूजा है. सुन्दर मार्गदर्शन.
ReplyDeleteकई बार हम सोचते है कि हमारे मै अंहकार नही रहा, ओर हम सब से बहुत प्यार से बोलते है, सब के काम भी आते है, लेकिन अनजाने मै ही हम अपने अंदर इस अंहकार को पाल लेते "
ReplyDeleteअहंकार हमेशा से ही विनाश का कारण बना है.....बहुत ही प्रेरक कहानी
Regards
अंहकार की निरर्थकता को व्यक्त करती प्रेरक कहानी.
ReplyDelete(gandhivichar.blogspot.com)
बहुत ही अच्छा आलेख सर जी ।
ReplyDeleteजोहार
ReplyDelete"कई बार हम सोचते है कि हमारे मै अंहकार नही रहा, ओर हम सब से बहुत प्यार से बोलते है, सब के काम भी आते है, लेकिन अनजाने मै ही हम अपने अंदर इस अंहकार को पाल लेते है."
एकदम सत्य बात कही आप ने हम सोचते है की हमरे अन्दर अंहकार नहीं है पर वास्तव में वो सोच ही अंहकार के कारण होती है . बहुत अच्छी कहानी .
अच्छी और सच्ची बात कह दी आपने जी।
ReplyDeleteयह सुन्दर बोध कथा याद दिलाने को धन्यवाद भाटिया जी!
ReplyDeleteप्रिय भाटिया जी,
ReplyDeleteआप को ईश्वर ने विशेष कला दी है कि आप अपनी बात लोगों को इस तरह सुना सकें कि वे उसे सुनने में रम जाये.
आज आपकी कहानी पढ रहा था तो मैं एकदम से भावनाओं में खो गया. कहानी का अंत आया तो उसके नैतिक पाठ ने एकदम मन में काम किया. एकदम गहराई तक स्पर्श कर गया.
आज के भोगविलासवादी संस्कृति में आप जैसे लोगों की बहुत जरूरत है जो लोगों के दिल में उतर कर उन से नैतिक-आत्मिक चर्चा कर सके.
लिखते रहें. हम आपके पाठक अधीरता से बैठे हैं कि आपकी स्वर्ण तूलिका से मधु की अगली बूंद टपके जिसका हम पान कर सकें!!
सस्नेह -- शास्त्री
ReplyDeleteसत्य तो यही है, भाटिया जी,
पर अचानक मोबाइल बज गया,
शायद डील पक्की हो गई है, चलता हूँ..
भगवान कौन से भागे जा रहे हैं :)
सचमुच कर्म से बढकर कुछ भी नहीं......इतनी सुन्दर बोध कथा के लिए आभार
ReplyDeletebahut hi badhiyaa kahani,prernadaya..........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कहानी है। बचपन में पिताजी यह और ऐसी ही न जाने कितनी कहानियाँ सुनाते थे। वह समय याद आ गया।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
राज जी नमस्कार और धन्यवाद । आपका मेरे ब्लॉग पर आना और प्रेरणा देना अच्छा लगा। मैं समय के अभाव से ज्यादा कुछ लिख नही पति हूँ। मुझे तो आश्चर्य होता हैं की आप किस तरह समय निकल पातें हैं ? आपके ब्लोग्स मुझे बहुत भाते हैं। मैं कोशिस करूँगीं की ज्यादा से जयादा लिख सकू और वो भी हिन्दी में। आपको होली की शुभ कामनाएं ।
ReplyDeleteप्रेरणादायक (कसौटी वाली नहीं) कथा.
ReplyDeleteगलतियां तो हर किसी से होती हैं और लेकिन सही मायनों में इन्सान वो होता है जो अपनी गलतियों से सीखे
ReplyDeleteइसलिए गलतियां ज्यादा से ज्यादा करो और जिंदगी का आनंद लो
raaj ji aapne meri post par tippani dekar yahi kiyaa shaayad jo aapne kathaanak me likhaa.
ReplyDeletemujh bevkuf ko kisi kaa parichit bataakar kya?
ya holi ki dhoon aapko bhi ......
अच्छी उदबोध कथा
ReplyDeleteRaj ji
ReplyDeletesorry for late arrival , i was on tour.
aaj aapka likha ye lekh padhkar man ko bada sakun mila, is aapa dhapi ki zindagi me , prabhu ka smaran bhi ek bahut badi baat hai ..
main bhi kuch likha hai , jarur padhiyenga pls : www.poemsofvijay.blogspot.com
बहुत अच्छी कथा सुनाई राज साहाब । सच ही है कि हम इसी बात का अहंकार कर सकते हैं कि हम में बिलकुल अहंकार नही है ।
ReplyDeleteभगवान विष्णु जी ने एक कलश अमृत से भरा नारद मुनि को थमाया, ओर बोले इस कलश को ले कर तुम तीनो लोको की परिकिरमा कर के आओ, लेकिन ध्यान रहे अगर एक बुंद भी अमृत नीचे गिरा तो तुम्हारी सारी भगती ओर पुन्य नष्ट हो जाये गे, नारद मुनि तीनो लोको की परिक्र्मा कर के जब भगवान विष्णु के पास वापिस आये तो , खुश हो कर बोले भगवान मेने एक बुंद भी अमृत नीचे नही गिरने दिया, विष्णु भगवान ने पुछा ओर इस दोराना तुम ने मेरा नाम कितनी बार लिया?मेरा स्मरण कितनी बार किया ? तो नारद बोले अरे भगवान जी मेरा तो सारा ध्यान इस अमृत पर था, फ़िर आप का ध्यान केसे करता.
ReplyDeleteभगवान विष्णु ने कहा, हे नारद देखो उस किसान को वो अपना कर्म करते हुये भी नियमत रुप से मेरा स्मरण करता है, क्यो कि जो अपना कर्म करते हुये भी मेरा जाप करे वो ही मेरा सब से प्रिया भगत हुआ...
Raj ji isi tarah sikcha prad khaniyon se hmara marg darshn karte rahen.....!!
बहुत सुंदर ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
ReplyDeleteराज जी ,मैने भी अपनी दादी से ये कहानी सुनी थी। कभी -कभी हम अपने स्वार्थ के लिये झुठी दिलासा देकर अपने मन को बहला लेते है। जैसे-- आज काम करने मे देर हो गई तो पुजा/प्रार्थना नही हो पाई,भला १२ बजे के बाद भी कोई पुजा का टाईम होता है,या आज नहाना नही हुआ तो पुजा नही की। दरअसल ऐसा सोचकर हम अपनी गलतियों से बचना चाहते हैं। अगर ईश्वर हर कही,हर जगह हर किसी मे है तो उसे हर समय याद किया जा सकता है।
ReplyDeleteआपको एवम आपके सपरिवार को हे प्रभु के पुरे परिवार, कि तरफ से भारतीय सस्कृति मे रचा- बसा, "होली" पर्व पर घणी ने घणी शुभकामनाऐ :)(: )(::
ReplyDelete(आज क्षमा करे विषय पर टिपणी न देने के लिये)
[मजाक भरे होलियाना त्योहार पर कुछ मस्ती आपके साथ]
जय हो कि ताल पे ये बार होली है, गुलाल है, जिसको देखो वो ईच लाल है,जो नही है, वो अपनी लाल करने मे लगा बेहाल
है। पएला होली पे दुसरे कू लाल करते थे लोक। पन अबी ये बार खुद कि ईच लाल कर रएले है लोक।
टेशन नही लेणेका बाबा, टेशण देणे का। अभी अपुण आपको होलि का झकास मुबारकबाद दे रहेला है, चुप चाप लेणेका और वटक जाने का ॥ क्या ? बोले तो होली मुबारक॥॥। मेरे यार॥॥
शादी की और होली की आपको डबल बधाई और घणी शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
होली की शुभकामनाएं....
ReplyDeleteआपका लेखन हमेशा से पसंद आता है।
होली की शुभकामनाएं....
ReplyDeleteआपका लेखन हमेशा से पसंद आता है।
होली की अनंत असीम व रंगीन शुभकामनाएं....
ReplyDeletewebduniya मुख पृष्ठ>>फोटो गैलरी>>धर्म संसार>>त्योहार>> होली के रंग भगोरिया के संग ! (Holi - Bhagoriya Festival Photogallery)
ReplyDeletelog on kare aur
bhagoriyaa ke drushyo se avgat ho le
इस तरह के आलेख ब्लॉग पर ढूँढने से कम ही मिलते है..वाकई आपने बिलकुल सही फ़रमाया जब तक हम अपने आप को नहीं समझ सकते तब तक दूसरे को समझना मुश्किल है..
ReplyDeleteज्ञानवर्धन के लिए शुक्रिया...
katha achchi hai. main to sochti hu aap kitna achchha karte hain aisi bodh kathan de kar. isi bahane humlog padh lete hain.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट | दरअसल अंहकार विनाश का कारण बनता है यह बात कई लोंगों को पता है लेकिन समय पर वे भी अंहकार
ReplyDeleteके अधीन हो जातें हैं .आपकी पोस्ट में तमाम प्रेरक बातें हैं जो की वाकई सही जीवन जीने के प्रति सजग करती रहतीं हैं |
सुन्दर बात और सीख .
ReplyDeleteबहुत अच्छी बातेँ आप बहुत अच्छी तरह से सिखा रहे हैँ .
बधाई