यह रचना मेरी नही, किसी ?? नाम की लडकी की है, मुझे अच्छी लगी तो इसे यहां आप सब को दिखा रहा हू, अगर किसी कॊ इस से ऎतराज हुआ तो ( इस के मालिक कॊ ) इसे मै हटा दुंगा...
लेकिन तब तक इस रचना के रचियता को इस सुंदर रचना के लिये मेरा धन्यवाद...
बचपन के दुख कितने अच्छे होते थे,
तब तो सिर्फ़ खिलोने टूटा करते थे.
वो खुशिया भी ना जाने केसी खुशिया थी,
तितली के पर नोंच के उछला करते थे.
पांव मार कर खुद बरिस के पानी मै,
अपनी नांव खुद डुवोया करते थे,
अपने जल जाने का भी एहसास भी ना था,
जलते हुये शोलो को छेडा करते थे.
अब तो ईक आंसू भी रुसवा करता है,
बचपन मै जी भर के रोया करते थे.
आईशा..
बचपन मै जी भर के रोया करते थे...........
ReplyDeleteभाटिया जी,
जिसने भी यह कविता लिखी उसने अपने मन के भावो को इन्ह पक्तियो मे उडेल्ल दिया है
सुन्दर!
काश नाम बता देते तो ॥
Very touching ! Thanks Bhatiya ji !
ReplyDeleteबच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारें छूने दो
ReplyDeleteचार किताबें पढ़कर वो भी हम जैसे हो जाएँगे
इसीलिये कहते हैं , बचपन के आगे शहंशाहों के ताज ठोकर मे हैं.
ReplyDeleteरामराम
कोई लौटा ने मेरे बीते हुऐ दिन..
ReplyDeletebahut achhi lagi rachana shukran.
ReplyDeleteजिसने भी लिखा हो ... बहुत ही अच्छा लिखा है ... पर आपको नाम अवश्य ही लिखना चाहिए था।
ReplyDeleteवाह क्या रचना पढवाई है।
ReplyDeleteइस कविता के लिखने वाले को और आपको धन्यवाद ।
ReplyDeleteus anam ladki ko meri bhi badhaai.........aisi rachna jo sbko samet le yaadon ke talaiye me....
ReplyDeleteवाह्! बहुत ही भावपूर्ण रचना......आपने तो बचपन की यादें ताजा कर दी.
ReplyDeleteतितली के पर नोंच के उछला करते थे.
ReplyDeleteपांव मार कर खुद बरिस के पानी मै,
अपनी नांव खुद डुवोया करते थे,
" bachpan ke vo pal or barish ka pani or vo naav jaise samne aa gye......mausm se vo din yaad dilane ke liye aabhar.,."
Regards
वाकई बहुत भावपूर्ण कविता चुनी आपने. मूल लेखिका को भी बधाई.
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जी.. इसे यहा पढ़वाने के लिए... बहुत ही सुंदर
ReplyDeletebachapn ke din bhoola na denaa
ReplyDeleteye gana yaad dilaane ka shukriyaa
dilchasp.....
ReplyDeletebahut badhiya..
ReplyDeletebachpan ke din bhi kya din they!
kavita achchee hai.
मर्मस्पर्शी!
ReplyDeleteअब तो ईक आंसू भी रुसवा करता है,
ReplyDeleteबचपन मै जी भर के रोया करते थे
क्या सुन्दर रचना आपने प्रस्तुत किया है । इस रचना में उस लड़की ने जो अपनी जिन्दगी के कुछ पल को बयां किया है वह शानदार है आभार
रोचक पोस्ट है भाटिया जी... उद्वेलित करती हुई आप दोनों को बधाई...
ReplyDelete"वो कागज कि कश्ती वो बारिश का पानी" गजल याद आ गयी । बहुत अच्छा लगा । नीचे टैग लगा है घिसी पिटी शायरी का वह गलत है । जंच नही रहा है ।
ReplyDeleteपांव मार कर खुद बरिस के पानी मै,
ReplyDeleteअपनी नांव खुद डुवोया करते थे,
... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!!
बचपन के दुख कितने अच्छे होते थे,
ReplyDeleteतब तो सिर्फ़ खिलोने टूटा करते थे.
अब तो ईक आंसू भी रुसवा करता है,
बचपन मै जी भर के रोया करते थे.
आईशा..
राज साहब,
आइशा जी को बहुत बधाई और आपको धन्यवाद ।
मन को भा गई ये कविता। जिसकी भी है उसे मेरा प्रणाम।
ReplyDeleteआपका आभार।
अब तो ईक आंसू भी रुसवा करता है,
ReplyDeleteबचपन मै जी भर के रोया करते थे.
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सबसे पहले लेखिका को बधाई! जिसने इतनी ख़ूबसूरत हकीक़त बयां की.
और फिर आपका धन्यवाद! इस शानदार रचना को पोस्ट करने के लिए!
Bachapan ke din bhi kya din the!!!! Thanks for the flashback. For few minutes I got lost in the good old days of childhood.
ReplyDeleteachchhi kavita hai bachpan aisa hi hota hai.
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