"कमांडो की उस बटालियन के हेड मेरे पास आए और बोले कि हनीफ़ तू नहीं होता तो ये मिशन कामयाब नहीं होता. ये नरीमन हाउस मुठभेड़ का असली हीरो तू ही है. यहाँ लोग जानते हैं मैंने क्या किया.
यह सोचना एक बड़ी बेवकूफी होगी की इतना योजनाबद्ध हमला, इतनी सटीक रणनीति से विदेश में बैठे कुछ सिरफिरे लोगों ने अकेले ही अंजाम दिया होगा. हमले के पहले की तैयारी, आतंकियों का मुंबई के तट, मछुआरा क्षेत्रो, सड़क-रास्ते, निशाने पर रहे भवनों-होटलों का पूरा ज्ञान, यहूदियों के ठिकानों की सटीक जानकारी (जो अधिकतर कोलाबावासी भी नहीं जानते), तीन दिन तक लगातार चलने वाला असलहा भवनों-होटलों तक पहुंचना, अबू आज़मी का भीषण गोलीबारी और कमांडो संघर्ष के बीच होटल के अन्दर जाना और साउदी अफसर को बाहर लाना........
यह कब्रिस्तान में दो गज ज़मीन भी न देने की बात डैमेज कंट्रोल की कार्यवाही ज़्यादा लगती है, ध्यान बांटने की एक कोशिश........ इमेज मैनेजमेंट जिसे कहते हैं न!
पर हम अभी तक क्यों बेवकूफ बने हुए हैं? आगे आप समझदार हैं.
कुछ भी हो उन लाशो का चील कौवे खा जायें या सड़ जायें, कोई कुछ कहने वाला नही, मगर ऎसे चंद दो कौड़ी के आतंकवादियो के लिये हमारे देश के अमूल्य रत्न कुर्बान हो गये, क्या कहें कुछ भी कहना मुश्किल है, आक्रोश के सिवा दिल में कुछ भी तो नही...
नमस्कार आप सब का टिपण्णी देने के लिये, ओर ab inconvenienti भाई बात तो आप की सही है, है कोई घर का ही भेदी, क्योकि कितने भी नकशे कोई देख ले , एक दम से इतना सब नही कर सकता, फ़िर अबू आज़मी का भीषण गोलीबारी और कमांडो संघर्ष के बीच होटल के अन्दर जाना और साउदी अफसर को बाहर लाना........ यह सब शक की सुईयां है लेकिन बिना सबुत के शक करना ओर सब को उसी नजर से देखना भी उचित नही, यह काम तो अब हमारी सरकार को करना चाहिये. आप का बहुत बहुत धन्यवाद, यही बात मेरे ओर बाकी सभी भारतीयो के दिमाग मै जरुर घुमती होगी
muslim samaaj kae un terrorist ko naa dafnaa nae ki to aaj tv par daekha ki wo keh rahey haen ki is liyae dafan nahin karegae kyuki wo unhey muslmaan hi nahin maantey
ab wo kyaa keh rahey haen yae wo to samjh rahey haen aap aur ham bhi samjh hee jaaye to achcha haen varna kargil to hae hee
आतंक्वादियों की लाशों को हम किसलिए अपनी जमीन दे?.... हो सकता है कि उनकी लाशों को तो चिल-कौवे भी खाने से इन्कार कए दे॑... आपके विचारों से हम सहमत है।...वास्तविकता यही है।
logon ke joote khaane ke liye laa patke inhe aur kuton ko noch khaane den inki laashen, bujdil auraton aur bheed ki aad lete hai aur jihaadi kahlaane ki umang rakhte hai.......
आपका कोटिशः आभार जो आपने इस समाचार को प्रमुखता देते हुए इसे अपने ब्लॉग के माध्यम से प्रसारित किया .किसी भी कौम में सरे लोग अच्छे या सारे बुरे नही होते.इन दिनों मुसलमानों के नाम पर जिस प्रकार से कुप्रचार हो रहे हैं उसके बीच इस प्रकार की खबरों को प्रमुखता से प्रकाश में लाना ही चाहिए,यह सांप्रदायिक सौहाद्र के लिए अत्यन्त आवश्यक है. यह अत्यन्त हर्ष की बात है.ईश्वर हमारे देश में शान्ति भाईचारा और सांप्रदायिक सौहाद्र बनाये रखें.
नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये
"कमांडो की उस बटालियन के हेड मेरे पास आए और बोले कि हनीफ़ तू नहीं होता तो ये मिशन कामयाब नहीं होता. ये नरीमन हाउस मुठभेड़ का असली हीरो तू ही है. यहाँ लोग जानते हैं मैंने क्या किया.
ReplyDeleteऐसे लोगो को नमन करना चाहूँगा !
रामराम !
nsg ke hero hanif ko padhna achha laga,ye hai sachhe deshbhakt,wo chuhe politicians nahi.
ReplyDeleteआभार इन प्रेरक खबरों के लिए !
ReplyDeleteइन लावारिस लाशों को फेंके हुए टायर और मिट्टीतेल डाल कर जला देना चाहिए, मिट्टीतेल भी क्यों बर्बाद करना, टुकड़े कर के समुद्र की मछलियों को खिला दो.
ReplyDeleteपर ये बीबीसी वाले आतंकवादियों को चरमपंथी या बंदूकधारी क्यों लिखते हैं? बिल्कुल अपने एनडीटीवी, स्टार, आजतक और आईबीएन की तरह?
ReplyDeleteइन खबरों की ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteganimat hai ki in aatankwadio ko charampanthi to kaha..hamare kuch channels or neta to inko "gumrah naujawan" keh rahe hai..
ReplyDeleteविचार-मंथन—एक नये युग का शंखनाद: क्षमा करना मेरे पूर्वजों, मैं हिजड़ा बन गया हूँ!
जी हां कल ये पढ़ी थीं। आपने लिन्क दिये, धन्यवाद।
ReplyDeleteहमने भी पढ़ लिया था. लिंक देना आपकी उद्विग्नता को स्पष्ट करता है. हम सब साथ हैं. आभार.
ReplyDeletehttp://mallar.wordpress.com
" thanks for sharing link with us."
ReplyDeleteRegards
आभार आपका भाटिया जी।
ReplyDeleteयह सोचना एक बड़ी बेवकूफी होगी की इतना योजनाबद्ध हमला, इतनी सटीक रणनीति से विदेश में बैठे कुछ सिरफिरे लोगों ने अकेले ही अंजाम दिया होगा. हमले के पहले की तैयारी, आतंकियों का मुंबई के तट, मछुआरा क्षेत्रो, सड़क-रास्ते, निशाने पर रहे भवनों-होटलों का पूरा ज्ञान, यहूदियों के ठिकानों की सटीक जानकारी (जो अधिकतर कोलाबावासी भी नहीं जानते), तीन दिन तक लगातार चलने वाला असलहा भवनों-होटलों तक पहुंचना, अबू आज़मी का भीषण गोलीबारी और कमांडो संघर्ष के बीच होटल के अन्दर जाना और साउदी अफसर को बाहर लाना........
ReplyDeleteयह कब्रिस्तान में दो गज ज़मीन भी न देने की बात डैमेज कंट्रोल की कार्यवाही ज़्यादा लगती है, ध्यान बांटने की एक कोशिश........ इमेज मैनेजमेंट जिसे कहते हैं न!
पर हम अभी तक क्यों बेवकूफ बने हुए हैं? आगे आप समझदार हैं.
सच्चे भारतीय को प्रणाम, और
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद इस लिंक के लिये
क्या फर्क पड़ता है उन्हें जमीन मिले या नही ?किसे परवाह है .......?मेडिकल में बॉडी दे दो ....चीरफाड़ करके कुछ लोग कुछ सीख जायेगे
ReplyDeleteबस यही कहना है,
ReplyDeleteहम एक हैं.........
हम पंछी एक डाल के , अपनी हरियाली के लिए कल भी सचेत थे,आज भी हैं और रहेंगे...
कुछ भी हो उन लाशो का चील कौवे खा जायें या सड़ जायें, कोई कुछ कहने वाला नही, मगर ऎसे चंद दो कौड़ी के आतंकवादियो के लिये हमारे देश के अमूल्य रत्न कुर्बान हो गये, क्या कहें कुछ भी कहना मुश्किल है, आक्रोश के सिवा दिल में कुछ भी तो नही...
ReplyDeleteनमस्कार आप सब का टिपण्णी देने के लिये, ओर ab inconvenienti भाई बात तो आप की सही है, है कोई घर का ही भेदी, क्योकि कितने भी नकशे कोई देख ले , एक दम से इतना सब नही कर सकता, फ़िर अबू आज़मी का भीषण गोलीबारी और कमांडो संघर्ष के बीच होटल के अन्दर जाना और साउदी अफसर को बाहर लाना........
ReplyDeleteयह सब शक की सुईयां है लेकिन बिना सबुत के शक करना ओर सब को उसी नजर से देखना भी उचित नही, यह काम तो अब हमारी सरकार को करना चाहिये.
आप का बहुत बहुत धन्यवाद, यही बात मेरे ओर बाकी सभी भारतीयो के दिमाग मै जरुर घुमती होगी
dhanyawaad. esa ho sakata hai . ek kahawat hai ghar ka bhedi lanka dhaaye. kuch hisambhav hai.
ReplyDeletemuslim samaaj kae un terrorist ko naa dafnaa nae ki to aaj tv par daekha ki wo keh rahey haen ki is liyae dafan nahin karegae kyuki wo unhey muslmaan hi nahin maantey
ReplyDeleteab wo kyaa keh rahey haen yae wo to samjh rahey haen aap aur ham bhi samjh hee jaaye to achcha haen varna kargil to hae hee
इस लिंक के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteमुस्लिम संस्थाओं का यह कदम सराहनीय है ! और वे भटके हुए हत्यारे अपने अंजाम तक पहुँच ही गए हैं !
ReplyDeleteप्रेरक,सराहनीय!
ReplyDeleteआतंक्वादियों की लाशों को हम किसलिए अपनी जमीन दे?.... हो सकता है कि उनकी लाशों को तो चिल-कौवे भी खाने से इन्कार कए दे॑... आपके विचारों से हम सहमत है।...वास्तविकता यही है।
ReplyDeletelogon ke joote khaane ke liye laa patke inhe aur kuton ko noch khaane den inki laashen, bujdil auraton aur bheed ki aad lete hai aur jihaadi kahlaane ki umang rakhte hai.......
ReplyDeleteबेहतरीन व संवेदनशील प्रस्तुति के लिये आभार
ReplyDeleteआपका कोटिशः आभार जो आपने इस समाचार को प्रमुखता देते हुए इसे अपने ब्लॉग के माध्यम से प्रसारित किया .किसी भी कौम में सरे लोग अच्छे या सारे बुरे नही होते.इन दिनों मुसलमानों के नाम पर जिस प्रकार से कुप्रचार हो रहे हैं उसके बीच इस प्रकार की खबरों को प्रमुखता से प्रकाश में लाना ही चाहिए,यह सांप्रदायिक सौहाद्र के लिए अत्यन्त आवश्यक है.
ReplyDeleteयह अत्यन्त हर्ष की बात है.ईश्वर हमारे देश में शान्ति भाईचारा और सांप्रदायिक सौहाद्र बनाये रखें.