आज का चिंतन,हमे हमेशा जरुरत मांगने वालॊ की मदद करनी चाहिये , धन से ,ताकत से, ओर बुद्धि से, जेसे भी हो, क्योकि मदद करना भी एक तरह से भगवान की पुजा ही है, लेकिन जो मदद फ़ल की इच्छा रख कर करी जाये, या अहंकार मै भरकर की जाये वो बेकार है, इसी बात से मुझे एक कहानी जो मेने बचपन मे सुनी थी याद आ गई, जो चिंतन के रुप मे आप के आगे रख रहा हुं, आशा करता हुं आप सब को पंसद आयेगा.
किसी नगर मै एक भिखारी रोज सुबह भीख मांगने जाता था,अब अंधविश्च्वाश के कारण वह घर से निकलने समय अपनी ही झोली मै दो मुठी चावल डाल लेता था, शायद उसे लगता था की खाली झोली से भीख कम मिलती है. आज भी ओर दिनो की तरह से भिखारी घर से निकला ओर अपनी झोली मे दो मुठ्ठी चावल डाल कर चल पडा,
आज त्योहार का दिन था, भिखारी ने सोचा की आज तो खुब भीख मिलेगी,ओर अपने ही ख्यालो मै खोया जा रहा था कि, तभी उसे सामने से एक सज्जन आते दिखाई दिये, पहरावे से कोई बहुत बडा सेठ लगता था, लेकिन यह कया जब वह आदमी भिखारी के पास आया तो अपनी झोली फ़ेला कर भिखारी से ही भीख मांगने लगा, भिखारी ने अनमने मन से उसे कुछ दाने चावल के भीख मै दे दिये,
आज भिखारी को उम्मीद से भी ज्यादा भीख मिली, लेकिन उस का मन सारा दिन उन कुछ चावल के दानो मै उलझा रहा, जो उस ने पहली बार किसी को भीख मै दिये थे. घर आ कर जब भिखारी ने अपनी झोली खाली की तो हेरान रह गया कि जितने दाने उस ने भीख मे दिये थे, उस की झोली मै उतने ही दाने सोने के बन गये थे, अब भिखारी पश्चता रहा था कि उस ने ज्यादा दाने क्यो नही उस आदमी को दिये.
इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है की हमे जरुरत मंद को दान के रुप मे मदद जरुर करनी चाहिये, दान से हमारा धन कम नही होता, लेकिन दान उचित ओर सही लोगो को ही देना चाहिये
हमे जरुरत मंद को दान के रुप मे मदद जरुर करनी चाहिये, दान से हमारा धन कम नही होता, लेकिन दान उचित ओर सही लोगो को ही देना चाहिये
ReplyDelete" bhut sunder skhishaprdh kjhanee, pr kabhe kabhee humare liye ye decide krna mushkil ho jata ha ki mangne wala sach mey hee jrurtmand hai..."
regards
हमे जरुरत मंद को दान के रुप मे मदद जरुर करनी चाहिये, दान से हमारा धन कम नही होता, लेकिन दान उचित ओर सही लोगो को ही देना चाहिये
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित कहानी ! धन्यवाद 1
सही कहा आपने भाटिया जी.मदद का फल ज़रुर् मिलता है चाहे वो किसी भी रूप मे क्योँ ना हो.मेरे भी तीन बडे एक्सिडेँट् हो चुके हैँ और तीनो मे मुझे चोट् नही आई है.शायद ये किसी मदद का फल ही होगा.ऐसा नही है कि मै ये बात पहले नही जानता था,मगर आपको पढ़ कर बहुत प्रेरणा मिलती है.
ReplyDeleteबिना प्रत्याशा के दिया जाने वाला कोई दान या किया जाने वाला कोई काम निसंदेह ही सर्वोपरि है !
ReplyDeleteहमारी स्रृष्टि की रचना ही ऐसी है कि....हर कर्म का फल जरूर मिलता है तो दान देने का फल भी अवश्यही मिलता ही है।... तभी कहते है कि कर्म अच्छा होना चाहिए।...सुंदए शिक्षाप्रद लेख।
ReplyDeletebahut sahi kaha jaruratmand ki help karni chahiye
ReplyDeleteहमे जरुरत मंद को दान के रुप मे मदद जरुर करनी चाहिये, दान से हमारा धन कम नही होता, लेकिन दान उचित ओर सही लोगो को ही देना चाहिये
ReplyDelete..........main bhi ise maanti hun,
bahut achha likha hai
एक और आदर्श और उत्तम चिंतन राज साहब !
ReplyDeleteदान का ऐसा प्रत्यक्ष फल , जैसा की कहानियों और किस्सों में बताया जाता है , न भी हो , तो भी यह तो निश्चित है कि किसी की आप मदद करो , चाहे वह तन , मन और धन किसी भी प्रकार से किया गया हो , तो उसका फल अप्रत्यक्ष तौर पर तो मिलता ही है , जरूरी नहीं कि वह धन के रूप में ही हो , वह किसी प्रकार के सुख के रूप में हमें मिल सकता है।
ReplyDeleteबहुत शिक्षाप्रद कहानी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कथा सुनाई आपने।
ReplyDeleteसच में; दान दिये धन ना घटे, कह गये दास कबीर।
ReplyDeleteऔर यह बोध कथा तो बहुत सुन्दर लगी, भाटिया जी।
मैं सीमा जी के बात से बिल्कुल सहमत हूँ दान तो देना चाहिए मगर उसका इस्तेमाल सही हो और वो सही जगह पे सही लोगों की मिलनी चाहिए ...
ReplyDeleteआभार
अर्श
आदर्श और उत्तम शिक्षाप्रद कहानी.
ReplyDeleteकिसी के सामने हाथ पसारना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। बहुत ही मजबूरी में इंसान को यह कर्म करना पड़ता होगा। पर अक्सर मांगने वाले को उसकी मजबूरी समझे बगैर दुत्कार दिया जाता है। हमारे धर्मग्रंथों में भी कहा गया है कि दान जैसा कोई पुण्य नहीं है, पर दान लेने वाला सुपात्र होना चाहिये।
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति को नमन
ReplyDeleteकमाल के दृष्टान्त लाते हैं आप
इस सारगर्भित कहानी के लिए धन्यवाद! आज नैतिक मूल्यों का अभाव सा है
ReplyDeleteबहुत अच्छा चिंतन पढवाया आपने !! पढकर दिल खुश हो गया !!
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