आज का विचार मां पर, जो हम सब के जीवन को जेसा चाहे बनाये, क्योकि बाप तो सुबह का निकला शाम को ही घर आता है, मां बच्चे के साथ रहने के अलावा दिल ओर आत्मा से भी जुडी है, यही मां बच्चे को डाकू बना सकती है, एक निर्दयी बना सकती है ओर यही मां एक बच्चे को देश का राजा बना सकती है, तो चलिये आज के विचारो का मंथन करते है....
एक किसी नगर मै कोई सेठ गरीबो को कपडे बाट रहा था, ओर वहा पर बहुत लोग कपडे लेने के लिये एक दुसरे को पीछे धकेल कर पहले खुद कपडे लेना चाहते थे, सेठ के नोकरो ने कई बार उन्हे लाईन मै लगवाया, ओर कहा की सब को कपडे जरुर मिलेगे,
तभी उस सेठ की नजर एक १०, १२ साल की लडकी पर गई, जो इस भीड से थोडी दुर खडी सर्दी से ठिठुरती हुयी इस सारे तमाशे को देख रही थी, थोडी देर बाद सेठ ने देखा कि वह लडकी वही खडी है, ओर जब सब को कपडे दे दिये तो सब लोग धन्यवाद कर के अपने अपने घर की ओर जाने लगे , तो सेठ से उस बच्ची को प्यार से अपने पास बुलाया, ओर पुछा बेटे तुम्हे सर्दी लग रही है यह लो कम्बल, तुम इतनी देर से खडी हो पहले क्यो नही आई।
उस १०, १२ साल की बच्ची ने सर्दी से ठिठुरते हुये भी कम्बल लेने से मना कर दिया, तो सेठ ने पुछा बेटा तुम्हे मेरा यह कम्बल पंसद नही आया तो दुसरा लेलो, तो लडकी ने कहा नही सेठ जी ऎसी बात नही लेकिन मेरी मां ने मुझे भीख लेना ओर हाथ फ़ेलाना नही सिखाया, मां कहती है जो चीज हम मेहनत करके कमाये उसी पर हमारा हक है, मै ऎसे ही ठीक हु।
इतनी छोटी सी लडकी के मुहं से यह बात सुन कर सेठ बहुत हेरान हुया, ओर बोला बेटा मै तुम्हारी मां से मिलना चाहता हूं, तो वह बच्ची उस सेठ को अपने झोपडे पर ले गई, सेठ ने देखा झोपडे के सामने एक गरीब ओरत अपने घर के काम कर रही है, लेकिन उस के चेहरे पर एक अलग सी चमक है, तो सेठ ने सारी बात उस महिला से कही, तो वह महिला वोली सेठ जी आप ने बिलकुल सही सुना मेने अपनी बच्ची को यही शिक्षा, यही संस्कार दिये है, क्योकि मेरा मनाना है आदमी को अपने चरित्र ओर संस्कार का धनी होना चाहिये, बाकी यह संसारिक माया तो आनी जानी है, लेकिन संस्कार ओर चरित्र बचपन मै ही जेसे वो दिये बच्चे मै, वही पनपते है, फ़िर उन्हे नही बदला जा सकता।
सेठ ने कहा बहिन आप सच मै महान है, इतने दुखो मे भी तुम ने अपने संस्कार बच्ची मै डाले धन्य है आप, आप जेसी मां ही देश को बडे बडे महात्मा, ओर बडे बडे महान लोग देती है बहिन तुम्हे मेरा प्राणाम।
हम भी बना सकते है अपने बच्चो को इस तरह से चरित्रवान ओर संस्कारी, लेकिन पहले हमे बनाना पडेगा ????
सबसिडी और सरकार की तरफ मुंह फाड़े देखने वालों के लिये अच्छी बोध कथा।
ReplyDeleteपर कोई सुनता है?
शार्ट कट से तरक्की की चाह सब करवाता है,बाकी गुरू जी की बातों से सौ प्रतिशत सहमत हूं ।
ReplyDeleteBeshak..beshak
ReplyDeleteGyan g v Anil g se poori sahmati
aapko sadhuwad
बहुत शिक्षादायक कथा सुनाई ! सबको सबक लेना चाहिए !
ReplyDeleteलेकिन मेरी मां ने मुझे भीख लेना ओर हाथ फ़ेलाना नही सिखाया, मां कहती है जो चीज हम मेहनत करके कमाये उसी पर हमारा हक है, मै ऎसे ही ठीक हु।
ReplyDeleteहम भी बना सकते है अपने बच्चो को इस तरह से चरित्रवान ओर संस्कारी, लेकिन पहले हमे बनाना पडेगा ????
" a story expressing deep moral secret of the life...."
Regards
कुछ लोगो के लिए जीवन एक जिजीविषा सा है
ReplyDeleteबहुत सुंदर और ज्ञानदायक कहानी !
ReplyDeleteआदमी को अपने चरित्र ओर संस्कार का धनी होना चाहिये, बाकी यह संसारिक माया तो आनी जानी है,
ReplyDeleteमहोदय बहुत ही शिक्षाप्रद और प्रेरणास्प्रद आलेख है . धन्यवाद .
जीवन की अपनी परिभाषाएं हैं ....जो सबके लिए अपनी जगह पर सही हैं. अच्छी प्रेरक कथा.
ReplyDeleteहम भी बना सकते है अपने बच्चो को इस तरह से चरित्रवान ओर संस्कारी, लेकिन पहले हमे बनाना पडेगा ????............................
ReplyDeleteसौ बात की एक बात कही आपने.
kabhi nahi bana payege.. kyonki hum khud hi kabhi aisa nahi ban payege aur woh bhi aaj ke daur mein an mumkin
ReplyDeleteNew Post :
खो देना चहती हूँ तुम्हें..
अति सुंदर ! बहुत बढ़िया रहा ये तो माँ के साथ-साथ अच्छी प्रेरणा भी.
ReplyDeleteबच्चो को संस्कारवान बनाने के लिए पहले स्वयम को संस्कारवान बनना पड़ेगा. बच्चो को चरित्रवान बनाने के लिए माँ की अहम् भूमिका होती है . हे माँ तुम्हे प्रणाम . बहुत सुंदर पोस्ट के लिए आभार .
ReplyDelete@हम भी बना सकते है अपने बच्चो को इस तरह से चरित्रवान ओर संस्कारी, लेकिन पहले हमे बनाना पडेगा ????
ReplyDelete......... ख़ुद को चरित्रवान ओर संस्कारी.
bahut achha raaj Bhai !
ReplyDelete