चिंतन मन मन्दिर
हम सभी हर धर्म को मानने वाले, हिन्दु, मुस्लिम, सिख, इसाई ओर अन्य धर्म, हम सब के अपने अपने इष्ट देव है, अपने अपने ढग से उस ऊपर वाले को मानते है, उसे चारो ओर ढुढते है, लेकिन हमे कभी नही मिलता, हम साधु संतो, सुफ़ी मोला ओर फ़कीरो के दर पर भटकते है लेकिन .... ओर युही भटकते भटकते मर जाते है,ओर आज तक वह किसी को नही मिला, किसी ने उसे महसुसु नही किया,अगर आप मिलना चाहते ....... तो चलिये आज का चिंतन इस विषय पर ही एक कहानी के रुप मै.
बहुत समय पहले किसी गाव मे एक परिवार रहता था,पति पत्नि ओर उन का जवान बेटा साथ मे बेटे की बहू , बहु का नाम था सुखी, ओर सुखी को भगवान से आटुट प्यार था, सुखी उठते बेठते हर समय भगवान का नाम जपती ओर घर के काम ढंग से ना कर पाती, सास नास्तिक तो ना थी लेकिन वह मंदिर ओर हर समय भजन करना भी उचित ना समझती, इस कारण वह कई बार सुखी को डांट देती,सुखी अपने घर मे बहुत ही सुखी थी इस बात के सिवा उसे कोई अन्य दुख ना था, हां उस के मन मे एक इच्छा जरुर थी की वह ऊपर पहाडी पे बने मंदिर मै भगवान के दर्शन कर के अपना जीवन सफ़ल बना ले ओर यह उस की पहली ओर आखरी इच्छा थी.
लेकिन अपनी इस सासु से जो इन सब को ऊचित नही मानती थी उस से इजाजत केसे लै, उस से इजाजत मागने का सवाल ही नही पेदा होता था,एक बार सुखी के पति व्यापार करने दुसरे देश गये, अब सुखी समय बीताने के लिये घर का काम भी करे साथ मे भजन भी मन ही मन करे.
एक दिन सुखी उस मंदिर मै जाने के लिये भगवान से प्राथना के रुप मे भजन मे इतनी मगन हो गई की घर का कोई काम सही नही किया, सास ने जब देखा तो उसे बहुत गुस्सा आया, ओर सास ने उसे एक पेड से बांध दिया ओर कहा जा अपने भगवान से कह तुझे खोल दे, सुखी थी तो पक्की भगत सो वह मन ही मन भ्गवान को याद करने लगी, कहते है भगवान भी अपने भगतो को दुखी देख कर दुखी हो जाते है,
भगवान को अब दया आई तो वह सुखी के पति का रुप धारण करके सुखी के सामने आये, हाल चाल पुछा ओर पुछा मां ने तुम्हे यह सजा क्यो दी, तो सुखी ने सारी बात बताई की मै मंदिर मे भगवान के दर्शन करना चाहती हुं, ओर वह भुल गई की पति कई दिनो बाद आये है इन की सेवा पहले करु, तो भगवान के भेस मे पति ने कहा तुम जाओ मंदिर मै ओर अपने भगवान के दर्शन कर आओ, सुखी बोली लेकिन मां को पता चल गया तो, तो भगवान रुपी पति बोले डरो मत मै तुम्हारा रुप्धारण करके तुम्हारी जगह खडा हो जाऊगा.
अब सुखी आजाद थी, ओर चली गई पहाडी वाले मंदिर की ओर, घर मे सास सुखी को जली कटी सुना रही है, ओर भगवान चुपचाप सुन रहै है ओर मन ही मन मुस्कुरा रहै है, उधर सुखी मंदिर मै पहुची पत्थर की बडी सी मुर्ति के सामने माथा टेका लेकिन उसे कही भी भगवान का एहसास नही हुआ काफ़ी देर बेठी लेकिन उसे तो सामने एक पत्थर ही नजर आया कही भी भगवान या उस के होने का एहसास नही हुआ, ओर बुझे मन से घर की ओर चल पडी, अब गाव वालो ने जब सुखी की सास को बताया की उन्होने सुखी को मंदिर मे देखा है, तो सास झट से घर आई , अरे सुखी तो यहा बंधी है मंदिर मै कैसे हो सकती है, अब गाव बालो को भी कुछ समझ ना आया, उन्होने वहां भी सुखी को देखा ओर यहा भी सुखी ???
दो दो सुखी केसे हो सकती है, तभी सुखी वहा पहुचती है, अब सब फ़िर से दो दो सुखी सामाने देख कर हेरान थे, ओर सुखी जब भगवान बने पति के सामने पहुची तो पति बोले देख लिया अपने भगवान को, सुखी बोली नही वहां तो बस एक पत्थर की मुर्ति है, मुझे वहां भगवान नही मिले ओर साथ ही वह भगवान को पहचान गई ओर फ़िर भगाव्न से बोली मै कितनी पागल हू आप को कहा कहा खोज रही हु, आप तो हर प्राणी के मन मै बसे है, लेकिन प्राणी मन मै नही झांकता.तभी तो कहते है मन मंदिर
सुखी के साथ साथ उस की सास ने ओर गाव बालो ने भी भगवान के दर्शन कर लिये.
**ऎसी कथा सिर्फ़ अच्छी सीख देने के लिये होती है, ओर कलप्निक होती है, लेकिन लेने वाले तो एक सेब के गिरने से भी सबक ले लेते है.
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुंदर कथा है।
ReplyDeleteदीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएँ।
यह दीपावली आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए।
बहुत सुंदर कहानी !
ReplyDeleteआपको परिवार व इष्ट मित्रो सहित दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
bahut sundar khaani hai aapke! aapko or aapke priwar waale ko dipawli ki haardik shubhkamnaye!
ReplyDeletehriday sparshi
ReplyDeleteaaj to aap ko bhagwaan ki yaad aa gayee hai kya baat hai ?
khair tyohaaron ke vakt dharm aur sanskruti dono yaad aate hi hai
ek achchi bhavnatmak kahaani ke liye dhanywad
happy diwaali
बिल्कुल सही बात कही है आपने भाटियाजी इस किस्से के जरिये:
ReplyDeleteकस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे वन माहिं। ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नांहि।|
दीपावली की शुभकामनायें !
घट-घट में ईश्वर का वास होता है। प्रेरक कथा रही।
ReplyDeleteदीपावली ki हार्दिक शुभकामनाएं
सुंदर लिखा है. दीपावली की शुभ कबहुतामनाएं.
ReplyDeleteबढ़िया कथा.
ReplyDeleteदीपावली पर आप के और आप के परिवार के लिए
हार्दिक शुभकामनाएँ!
राज भाई !
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएं स्वीकार करें !
आप और आप के परिवार में सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteसुन्दर! हम ढ़ूंढ़ते बाहर हैं और वह होता मन में है!
ReplyDeleteसर /बहुत दुंदर बी उपदेशात्मक /इतने बारीक अक्षर हैं की आतिशी शीशा लगा कर पढ़ना पड़ा
ReplyDelete****** परिजनों व सभी इष्ट-मित्रों समेत आपको प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। मां लक्ष्मी से प्रार्थना होनी चाहिए कि हिन्दी पर भी कुछ कृपा करें.. इसकी गुलामी दूर हो.. यह स्वाधीन बने, सशक्त बने.. तब शायद हिन्दी चिट्ठे भी आय का माध्यम बन सकें.. :) ******
ReplyDeleteकहा जाता है कि " कण कण में भगवान का निवास रहता है " बढ़िया सीख देन वाली कहानी बांटने के लिए आभार .दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteकहा जाता है कि " कण कण में भगवान का निवास रहता है " बढ़िया सीख देन वाली कहानी बांटने के लिए आभार .दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteपरिवार मेँ सभी से मेरी ओर से दीपावली की बधाईयाँ दीजियेगा और मिठाई भी खाइयेगा :)
ReplyDeleteस्नेह सहित,
- लावण्या
बहुत ही प्रेरणादायक कहानी/आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें/
ReplyDeletebahut badhiya kahani rahi,diwali mubarak ho.
ReplyDeleteसुन्दर! दीपावली के इस शुभ अवसर पर आप और आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteपरिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteपिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
आपकी सुख समृद्धि और उन्नति में निरंतर वृद्धि होती रहे !
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
हम तो सेब के गिरने से सबक वाले लोगों में तो नहीं आपकी कथा से जरुर....ले लेते हैं.
ReplyDeleteआपके एवम आपके स्नेही जनों के प्रगति पथ पर एक दीप हमारी भी शुभकामनाओं का...
समीर यादव