29/09/08

एक लघु कथा

गेंद
यह तो आप सब को मालुम हे की पांडव पांच भाई थे,सब से बडा युधिष्ठिर, फ़िर भीम, अर्जुन ,नकुल ओर सब से छोटा सहदेव, एक दिन यह सभी भाई हाथ से बनी कपडे की गेंद से खेल रहे थे, ओर खेल मे सभी को बहुत मजा आ रहा था, कि अचानक गेंद सहदेव के हाथ से कुयें मे गिर गई, ओर खेल मे रुकावट आ गई, पांचो भाई अभी बच्चे थी, खेल रुक जाने से बहुत दुखी हुये,

ओर सोचने लगे की कुंये से गेंद केसे बाहर निकाले ? गेंद दिख तो रही थी, लेकिन पानी बहुत नीचे होने के कारण, कोई भी उपाये काम नही कर रहा था, फ़िर पांचो भाई थक हार कर उसी कुयें की मुंडेर पर चुपचाप बेठ गये, सभी चुप चाप एक उदासी सी सब पर छाई हुयी थी।

तभी वहां से एक ब्राहमण गुजरा ओर उसने देखा सभी बच्चे चुप चाप बेठे हे ओर काफ़ी उदास भी हे, उसे यह सब आजीब लगा, ओर फ़िक्र भी हुयी, उस ने सभी बच्चो से इस चुपी का कारण पुछा तो, बडे भाई युधिष्ठिर ने जबाब दिया, हम पांचो भाई हे, ओर यहां गेंद से खेल रहे थे,कि अचानक हमारी गेंद इस कुंय़े मे गिर गई,ओर हम उसे निकाल नही पा रहे,

उस ब्राहमण ने कहा बच्चो उदास नही होते आ मे निकाल दु तुम्हारी गेंद, ओर उस ब्राहम ने यह कह कर धनुष पर तीर चढाया ओर गेंद पर निशाना लगा कर तीर छोडा फ़िर दुसरा तीर पहले तीर के उपर छोडा इस तरह से कई तीर छोडने के बाद सब से उपर वाले तीर को पकड कर गेंद कॊ कुयें से बाहर निकाल लिया, ओर पांचो भाई बहुत खुश हुये ब्राहमण को प्राणाम करके उन का धन्यवाद किया।

शाम को जब यह बात अपने ताऊ धृतराष्ट्र को बताई , तो धृतराष्ट्र ने उस ब्राहमण् को अपने बेटो ओर भतीजो को धनुष विध्द्या सिखाने का काम इन्हे सोंप दिया।

पहचाना यही थे गुरु द्रोणाचार्य

19 comments:

  1. अब आश्रम का ज़माना कहां रहा भाटिया जी,अब तो कोचिंग और ट्यूशन क ज़माना है,

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  2. "bhut sunder story, dhnush vidya ka zmana hee kuch or tha, isee vidya ke share na jane kitnee yudh lde gye or harey or jeety gye"

    Regards

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  3. तब और अब में कोई खास बदलाव नहीं आया है। तब भी इंम्प्रेस कर ट्युशन हासिल की गयी थी और आज भी वैसे ही अपना काम निकाला जाता है।
    वैसे द्रोण पहले ऐसे गुरु थे, जिन्होंने अपनी स्वार्थसिद्धी के लिए अपनी विद्या बेची थी।

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  4. यह कथा एक विद्या की दूसरे क्षेत्र में उपयोगिता के रूप में मुझे याद है। हर विद्या के केवल जाने-पहचाने उपयोग से संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिये।
    आपने यह प्रस्तुत कर बहुत अच्छा किया।

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  5. चमचमाते ब्लॉग के कुंए की ये कथा बड़ी रोचक है अल्बाता ये अलग बात है की ये बचपन की उन कथायो में से है जो अब तक स्मृति में है....फ़िर से बांटने का शुक्रिया

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  6. आपने इस कहानी को रोचक अंदाज मे पेश किया है ।

    न तो अब वैसे शिष्य होते है और न ही गुरु ।

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  7. भाटिया साहब की जय हो ! कहानी बड़ी रोचक और शिक्षाप्रद है ! लेकिन ताऊ तो यहाँ भी मौजूद है !
    क्या हर युग में ताऊ थे ? :) बहुत धन्यवाद !

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  8. बहुत ही सुंदर भूतकाल की कथा है ! इसीलिए सही कहते हैं की
    अगर सबक लेना हो तो भूत (बीता हुवा)
    की भी उपयोगिता हमेशा रहती है !

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  9. हमारी पौराणिक कथाओं का अपना अलग ही महत्‍व है। अपने में निहित शिक्षा और सदाचार के तत्‍व से ये चरित्र निर्माण में सहायक होती हैं। ऐसी कथा सुनाने के लिए आभार।

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  10. mahalya ke din aitihasik katha sunna rochak raha........

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  11. अति सुंदर घटना ! धन्यवाद इस उपयोगी घटना के लिए ! असल में ये किस्से कहानियां सभी की पढी हुई तो होती हैं ! पर यादों पर समय की धूल जमती जाती है ! ये दोहराव ऐसा ही जैसे धूल झाडना !
    ब्लॉग चमचमा रहा है ! रंगाई पुताई बढिया हो गई है ? :) टिपन्नी से बैक ग्राउंड का काला कलर हटा देंगे तो
    टिपणी पढ़ने में आँखों पर जोर नही पडेगा !

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  12. इतिहास से परिचित कराने के लिए आभार.

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  13. अच्छा लगा पढकर !!

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  14. तीरन्दाजी की ऐसी अचम्भित करने वाली कहानियाँ सुनकर कभी-कभी शक होता है कि कहीं ये गप न हो।

    बाँटने का आभार।

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  15. भाटिया जी...जिस गेंद में इतने तीर घुस चुके हों उसकी क्या हालत हुई होगी ...याने कम से कम एक तीर तो आर पार हो ही गया होगा...हो सकता है फ़िर पांडव फटी गेंद से खेलने लग पड़े हों...रोचक कथा.
    नीरज

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  16. नीरज गोस्वामी जी वह गेंद कपडे की बनी थी, जिसे गींडो भी कहते हे, उस मे तो एक तीर ही लगा था....
    बाकी हमारी नीब तो यह कथाये ही हे, ओर हमे इन से बहुत ही शिक्षा मिलती हे,सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी, हमारे भारत ने बहुत ज्यादा तरक्की की थी, यह रामायण ओर महाभारत मे जॊ इतनी किस्म के तीर चलते थे वह तीर नही राकेट होगे, हनुमान उडे नही , किसी यंत्र से ही यात्रा पुरी की होगी...
    आप सब का धन्यवाद

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  17. कहानी अच्छी लगी. हमने तो पहले नहीं सुनी थी. आभार.

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