22/08/08

उपकार का बदला

यह कहानी एक ऎसे बच्चे की हे,जो.... आप खुद ही पढ ले.....
विश्र्वनाथ जी सीरी पुर गांव मे रहते थे, वह अध्यापक थे, ओर इस काम को पुजा की तरह से मानते थे,बच्चो को अच्छी तरह से पढाना, अनुशासन सिखाना, ओर अच्छे संस्कार बच्चो मे डालना, इस कारण विधार्थी ओर उन के मां बाप भी विश्र्वनाथ जी का पुरा आदर ओर सम्मान करते थे,

विश्र्वनाथ जी की पत्नि लक्षमी भी बहुत ही सुशील सयानी थी, हर विषय मे अपने पति का साथ देती थी, ओर बच्चो को भी कई बाते समझाती थी, इन का एक ही बेटा था, जिस का नाम चॆतन्य था, जिसे दोनो ने बडे लाडप्यार से पाला, ओर अच्छे संस्कार भी दिये.

अब गाव की पढाई समापत करके चॆतन्य, शहर मे गया ओर वहा उच्च शिक्षा प्राप्त की ओर फ़िर वही पर अपने लिये एक अच्छी नोकरी भी ढूढं ली, ओर शहर मे ही रहने लगा. एक दिन माता पिता को पता चला की उन के इकलोते बेटे ने शहर मे शादी भी कर ली हे,

यह जान कर विश्र्वनाथ जी को बहुत ही धक्का लगा, ओर अपनी बीबी से बोले अगर हमारा बेटा हमे बता कर शादी करता तो हम मना थोडे ही करते,बल्कि हमे बहुत खुशी होती, किसे नही होती अपने बेटे की शादी की, चलो अब हमे हमारा बेटा अजनबी समझता हे, हम पराये हो गये हे, ओर विश्र्वनाथ जी की आंखो मे आंसु आ गये, तो लक्षमी ने भरी आवाज मे कहा अब क्या कर सकते हे, चलो जो हुआ उसे भुल जाओ.

एक बार गरमियो की छुट्टियो मे विश्र्वनाथ जी पत्री समेत तीर्थ यात्रा पर हरिद्वार आ़ए, ओर कुछ दिन वही रहे, एक दिन पुजा के पश्चात जब विश्र्वनाथ जी मन्दिर के बाहर बेटे भजन सुन रहे थे, तो एक ९,१० साल का बालक भीख मांगता हुआ उन के सामने आ गया ओर भीख मांगने लगा,विश्र्वनाथ जी ने उस बालक से कहा बेटा यह उम्र तो तुम्हारी पढने लिखने की हे, तुम इस उम्र मे भीख क्यो मांग रहे हो? तुम्हारे माता पिता कहा हे.

यह सब सुन कर बच्चे ने कहा, कुछ समय पहले मेरे माता पिता एक नाव दुर्घटना मे चल बसे, मे ओर मेरे बुढे दादा जी ही बच्चे, हम बहुर गरीब परिवार से हे, अब खाने को चाहिये , ओर दादा जी काम कर नही सकते इस लिये मे भीख मांग कर अपना ओर दादा जी का पेट भरता हू,

विश्र्वनाथ जी ने उस लडके को अपने पास बुलाया ओर प्यार से पुछा कया नाम बेटे तुम्हारा ?बच्चे ने अपना नाम मल्लिक बताया,विश्र्वनाथ जी ने पुछा क्या तुम पढोगे? बच्चे नए कहा जी जरुर लेकिन... विश्र्वनाथ जी ने कहा बेटा मे तुम्हे पढाऊगा, ओर तुम्हारे दादा जी भी हमारे साथ रहे गे, तो बच्चा खुश हो गया, ओर विश्र्वनाथ जी जी ने अपनी पत्री से भी सलाह मांगी ओर उस बच्चे को ओर उस के दादा जी को अपने गांव ले आये.

ओर फ़िर मल्लिक खुब मन लगा कर पढा, ओर समय भी तेजी से बढता रहा, इस बीच मल्लिक के दादा जी का देहांत हो गया ओर मल्लिक इन दस सालो मे, खुब अच्छा पढ गया ओर... एक दिन विश्र्वनाथ जी का देहान्त हो गया, मल्लिक ओर लक्षमी जि के साथ साथ पुरा गाव ही विषाद सागर मे डुब गया, चेतन्य को खबर दी गई लेकिन वह या उअस का परिवार इस समय नही आ पाये , ओर विश्र्वनाथ जी का किर्या कर्म मल्लिक ने ही किया.

दो हफ़्तो बाद जब चेतन्य गाव आया ओर उसे पता चला कि पिता जी ने सारी जायदाद मल्लिक के नाम कर दी हे, तो उसे बहुत ही क्रोध आया, ओर इस बारे जब वह अपनी मां से बात करने के लिये बिमार मां के कमरे की ओर जा रहा था तो उसे कमरे से कुछ आवाजे आई, ओर वह ध्यान से सुननए लगा.

मल्लिक कह रहा था मां जी गुरु ने मुझे शिक्षा दी हे उस शिक्षा के बल पर मे कोई भी नोकरी ढुंढ लूगां,ओर आप ने भी मुझे मां की ममता दी हे,आश्रय दिया, शिक्षा दी हे, ओर आप की हर तरह से सेवा करना मेरा कर्तव्य हे.मेरी जिमेदारी हे, ओर गुरु जी ने जो जायदाद मेरे कॊ दी हे वह मे आप के बेटे कॊ सोंप दुगां,इस के लिये मुझे आप की इज्जात चाहिये,यह सब बाते बाहर खडा चेतन्य सुन रहा था, ओर उस ने मसुस किया की मल्लिक का दिल कितना साफ़ हे.

ओर वह अन्दर आया ओर मल्लिक का हाथ पकड कर बोला तुम मेरे भाई के समान हो,तुम ने साबित कर दिया कि कोई जनम लेने मात्र से ही पुत्र नही होता, इस लिये मेरे से ज्यादा हक इस घर पर तुम्हारा हे,ओर अब यह सारी जयादाद भी तुमहारी हे, मां मेरे साथ शहर नही आना चाहती, इस लिये मां की सेवा भी तुम ने ही करनी हे

लक्षमी जब तक जीवत रही मल्लिक के साथ ही रही,ओर मल्लिक ने अपना वचन निभाया, ओर जिस पाठशाला को विश्र्वनाथ जी शुरु किया उसे मल्लिक ने आगे बढाया

21 comments:

  1. बहुत ही प्रेरणा स्पद आलेख.. बहुत आभार आपका भाटिया साहब

    ReplyDelete
  2. sach me kuch log aise bhi hote hai raj ji.....

    ReplyDelete
  3. jeevanopayogi sabak padhkar achchaa laga.
    naitik adharbhoot shiksha ki sthali bharat hi hai
    iske vardhan men badhe kadam thame naa..........

    ReplyDelete
  4. bahut badhiya bhaisaab, hansate hansate aapne to rula hi diya

    ReplyDelete
  5. भाटिया साहब थोड़े बहुत मलिक हैं
    इस दुनिया में ! तभी तो यकीं है
    लोगो में ! बहुत प्रेरणा दायक
    प्रसंग है ! धन्यवाद !

    ReplyDelete
  6. बहुत प्रेरक प्रसंग है !
    आनंद आया !

    ReplyDelete
  7. kahte hain khoon ka rishta...rishta to yah hai,prapya se pare kartavya ki misaal.....kafi achhi seekh aapne is katha ke madhyam se di hai

    ReplyDelete
  8. आपको कई दिनों से अपनें ब्लॉग पर देख रहा हूँ पर यह सौभाग्य मुझे आज ही प्राप्त हुआ की आपके ब्लॉग पर टिपण्णी करूं। लेख तो बहुत ही प्रिय लगा इस लेख में जिसनें मुझे सबसे ज्यादा प्रेरित किया उसमें सबसे पहले तो उस गुरु की महानता और दूसरे यह की खुनी रिश्तो से बढ़कर सदा ही व्यावहारिक रिश्ते हुआ करते हैं । वास्तव में बहुत ही सुंदर आलेख ।

    ReplyDelete
  9. प्रेरणा दायक प्रसंग
    आभार

    ReplyDelete
  10. प्रेरणादायी कथा के लिए आभार। सचमुच आदमी जन्‍म से बड़ा नहीं होता, कर्म ही उसे महान बनाता है।

    ReplyDelete
  11. bhatiya sahab
    kuch rishte khoon se badh kar hote hain. aapne aik aise hi rishte se ru-b-ru kraya.
    shaandar rachna! badhai

    ReplyDelete
  12. इस घोर कलियुग मे इसी तरह की रचनाएं मन भिगो जाती हैं।

    ReplyDelete
  13. बहुत प्रेरणा दायक प्रसंग है, धन्यवाद.

    ReplyDelete
  14. दो दिन हुये छुट्टी कहतम कर के आये ,आते ही अत्यंत प्रेरणा परक कहानी पढी अच्छा लगा ,सत्य है भाटिया जी जहा दिल मिले वही रिश्ता है !!

    ReplyDelete
  15. एक बार फिर प्रेरक !

    ReplyDelete
  16. .

    एक सकारात्मक पोस्ट,
    अच्छाई व अच्छे लोग पर ही आपसी विश्वास की बुनियाद मज़बूत है !

    ReplyDelete
  17. आप सभी का धन्यवाद

    ReplyDelete

नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये