आज का चिंतन यानि हमारे विचारो का मंथन ,अगर हम मे आत्म शाक्त्ति हो, आत्म विशवास हो तो हम जिन्दगी का रुख भी बदल सकते हे,ओर अगर आत्म विशवास की कमी हे तो हम कितना ही पढ ले, लेकिन तरक्की नही कर सकते, हम मे आत्म विश्वास जरुर होना चाहिये, अगर आत्म विश्वास हे तो हम एक भर्ष्ट सरकार भी बदल सकते हे, जितने भी कारन्तीकारी हुये हे वह आत्म विश्वास से ही हुये हे... तो आज के चिंतन की ओर चले.......
बहुत पुरानी बात हे , एक बार मिथिला देश के राजा जनक ने अपने यहां अश्च्व्मेघ यग्या करवाया, ओर इस आयोजन पर अपने आसपास के सभी राजाओ को, ओर पुरी विश्व के विद्दानॊ को बुलाया, यह आयोजन काफ़ी दिनो चला, ओर बहुत दिनो तक विभिन्न विषयो पर खुब चर्चा हुयी, विचार विमर्श हुया,बह्स हुयी, ओर आयोजन शन्ति पुर्वक समापन हुआ.अन्तिम दिन राजा जनक ने सभा मे ऎलान किया की बाहर मेदान मे एक हजार गाय खडी हे, आप मे से जो अपने आप को सर्व श्रेष्ठ विदुवान समझता हे ओर अपने को सिध्द कर दे तो, वह इन सब गायो को अपने साथ ले जा सकता हे,अब पुरे दरबार मे सन्नाटा छा गया.
सभी विदुवान एक दुसरे को देख रहे थे,बात ही ऎसी थी कि कोन आदमी अपने आप को सर्व श्रेष्ठ कहे, फ़िर जब की एक से बढ कर एक विदुवान उपास्थित हो, ओर अब कोन कहे कि मे सब से सर्व श्रेष्ठ हु.कफ़ी समय सभा मे सन्नाटा छाया रहा, लेकिन एक भी विदुवान अपने आप को सब से सर्व श्रेष्ठ ना कह सका, इस के साथ ही राजा जनक को भी चिंता हुयी ओर बोले क्या इस सभा मे एक भी ऎस विदुवान नही जो सर्व श्रेष्ठ अपने को नही घोषित कर सका,क्या एक भी ऎसा विसुवान नही जो इन सब गायो का स्वामी बन सके.
पुरी सभा मे बिलकुल शान्ति छा गई, थोडी देर बाद एक नोजवान विदुवान उठा ओर (उस नोजवान विदुवान का नाम महरिष याग्ज्ञवल्क्य था)उस ने अपने शिष्य समीक से कहा कि तुम सारी जाय हांक कर ले जाओ ओर अपने आश्रम मे बांध दो, उस नोजवान का इतना कहना था कि वहां उपस्थित अन्य बुजुर्ग विदुवानो मे कान फ़ुसी शुरु हो गई, ओर सब ने ऎतराज किया कि यह विदुवान उम्र मे सब से छोटा हे, ओर इस का दावा गलत हे,ओर फ़िर वहां उपस्थित बुजुर्ग विदुवानो ने राजा जनक से कहा, महा राज यह हम सब से उम्र मे छोटा हे यह कल का बालक हम सब से सर्व श्रेठ केसे हो सकता हे.
अब महरिष याग्ज्ञवल्क्य बोले, महा राज मे जानता हू कि मे कल का बच्चा हू, ओर मुझ से सर्व श्रेष्ठ विदुवान यहां बेठे हे,वह मुझ से बहुत ही ज्यादा ज्ञाणी हे , विदुवान हे, साथ मे मे उन से क्षमा चाहता हू, लेकिन उन मे आत्म विश्च्वास की कमी हे, वह अपने आप को सर्व श्रेष्ठ विदुवान कहते हुये डरते हे,ओर जिसे अपनी विदुता पर विशवास नही वह ज्ञाणी हो कर भी आज्ञाणी हे, ओर इस के साथ ही राजा जनक ने सब गायो को महरिष याग्ज्ञवल्क्य को साथ ले जाने की आज्ञा दे दी
धन्यवाद
aapne mera aatma vishwas badha diya, warna bloging ki duniya ko thik se samajh hi nahi pa raha tha.
ReplyDeleteआप वाकई बहुत प्रेरक विचार लेकर आते हैं, हौंसला बढ़ता है। बहुत-बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteलेकिन उन मे आत्म विश्च्वास की कमी हे, वह अपने आप को सर्व श्रेष्ठ विदुवान कहते हुये डरते हे,ओर जिसे अपनी विदुता पर विशवास नही वह ज्ञाणी हो कर भी आज्ञाणी हे
ReplyDelete" ya sir, very well said, really a very motivating story"
Regards
बहुत बढिया भाटिया साहब, ये वाकई इतने ऊँचे आत्मविश्वास के
ReplyDeleteधनी थे और शाश्त्रार्थ में तो विशेषग्य थे ! जब कहीं भी
ऐसा काम कभी पङता था ये शिष्यों से कहते - तुम गायें
आश्रम ले चलो मैं सभा जीत कर आता हूँ ! बिरले ही
उदाहरण इनके जैसे मिलेंगे !
ऐसे प्रेरणा देते वाकये लिख कर आप बहुत अच्छा कर रहे हैं...गिरते इंसानी किरदारों को ऐसी प्रेरणाओं की सख्त ज़रूरत है, उम्मीद है, आगे भी इसे जारी रखेंगे.
ReplyDeleteआपकी लेख पढ़कर सचमुच पाठकों का भी आत्मविश्वास बढ़ जाता है। धन्यवाद।
ReplyDeleteपूज्य पिताजी को नमन करते हुए आपको बधाई देता हूँ कि उनका स्केच आपने बनवा कर लगवाया है ! मेरे पिता का कोई चित्र मेरे पास नही है, उनका चेहरा भी याद नहीं है, अतः यह तकलीफ मैं महसूस कर सकता हूँ राज भाई ! इनके चित्र को पुनः व्यवस्थित करते हुए ऊपर कि तरफ़ लायें तो अच्छा लगेगा !
ReplyDeleteशुक्रिया राज जी.....
ReplyDeleteऐसे लेखों से आप लोगों में आत्मविश्वाश जगाने का महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं भाटिया साहब
ReplyDeletegreat!!!
बहुत अच्छी रचना प्रस्तुत की आपने ।मेरा आत्मविश्वास बढ गया है! कोरा आभार व्यक्त कर अपनी समिपता को कम नही करना चाहुंगा मेरा प्रणाम स्वीकार करे!!
ReplyDeleteसुन्दर! याज्ञ्यवल्क्य का आत्मविश्वास सदैव प्रेरणास्पद रहा है!
ReplyDeleteआत्म विश्वाश तो जरूरी है ही... प्रेरक रहा ये प्रसंग भी.
ReplyDeleteआत्म विश्वास और दृढ मानसिक इच्छा शक्ति ही हमेशा सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है और सफलता की कुंजी है . बहुत बढ़िया प्रेरक आलेख के लिए राज जी आभार
ReplyDeleteसुंदर प्रेरणादायक लेख के लिए आभार.सत्य है आत्मविश्वास ही सामर्थ्य का आधार है.
ReplyDeleteकमाल है..Bhatiya g
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, प्रेरक, अनुकरणीय दृष्टांत...
बहुत सुन्दर और प्रेरक पोस्ट. बहुत बहुत आभार.
ReplyDelete.
ReplyDeleteअरे भाटिया .... ऒऎ मेरे मुंडे...
तू पराये देश में बैठ यह लंतरानियाँ छाँट रहा है,
यहाँ भारत महान में बचे खुचे याज्ञलव्यों ने धर्म परिवर्तन कर लिया है,
आत्मविश्वास खोयी हुई पीढ़ी केवल अख़बार बाँच कर खुसुर पुसुर कर
लेती है.. राजा जनक बेचारे भी मूक बने ताक रहें हैं ।
वैसे आपने बड़े मौके पर याद दिलाया, अब देखो....
Bahut accha, aabhar.
ReplyDeleteअत्यंत प्रेरक कथा की चर्चा आपने की है.
ReplyDeleteइसके माध्यम से आपने आत्मविश्वास जैसे उर्जावान तत्त्व को जीवन में गहरे उतारने का जो सन्देश दिया है, मूल्यवान है.
chaliye naye vichar sabhyataa ko samarpit to hue , padhkar achha lagaa , lagaa ki rishi sanskruti bharat se door rahkar bhi ytaad ki jaa sakti hai
ReplyDeletesadgun apki agli peedhee men jaaye yahi shubh apekshaa
आपका लेख पढ के उस बच्चे की तरह मेरा भी आत्म विशवास बढ गया है। अब मै हिन्दी लीखने खूब गलतीयां करूंगा।
ReplyDeleteबहुत प्रेरक विचार ...
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