अब मेरे पास शेष दो दिन ही बचे थे, लेकिन दिल नही मान रहा था मां को अकेले छोड कर जाने को भाई तो था लेकिन मां के पास से जाने को दिल नही मान रहा था, ओर आखरी दिन बहुत सी बाते हुई, पिता जी जब आखरी बार गले लग कर बेहिसाब रोये थे मे उस घडी को भी याद करके उदास होगया था, लेकिन मन की बात , दिल की उदासी मां से छुपा कर मां के सामने खुश होने की कोशिश कर रहा था, आज मां भी शायद मुझे ज्यादा हिम्मत दिखा रही थी, जो दिन मे चार बार कमरे मे घुमने के लिये बिस्तर से उठी, ओर सारा दिन मां के पास ही रहा, बार बार हिम्मत बधाई, मां भी समझती थी मजबुरी अब पेट पालने के लिये काम भी जरुरी हे,फ़िर सब ने समझाया मुझे भी ओर मां को भी, हम मे से कोई नही रोया ना उदासी ही दिखाई, लेकिन उस दिन खाना मेने ओर मां ने सही ढंग से नही खाया, बहुत सी बाते की फ़िर मां से वादा किया जब भी दिल उदास हो मुझे बुला लेना मे जल्द से जल्द आ जाऊ गा, ओर जल्द ही तुम्हारे पोतो को भी लाउगां, ओर बहु को भी,
फ़िर आया वह दिन जब मेने मां से विदा ली, मां गले लग कर बहुत रोई मेने भी चुप नही करवाया जब काफ़ी देर रोती रही तो, मेने मां से पाव छु कर विदा ली ओर मुड कर पीछे नही देखा, मेरा भाई मुझे छोडने आया था, ओर एक दिन मुझे अपनी ससुराल मे भी रहना था, सारा दिन ससुराल मे, फ़िर सालो के यहां, फ़िर सालियो से मिला, लेकिन दिल ओर दिमाग दो तरफ़ बटां था, एक तरफ़ मां दुसरी तरफ़ बच्चे,सुबह ८,३० पर मेरी फ़्लाईट थी, ओर मुझे आज घडी भी अच्छी नही लग रही थी, सभी ने अच्छे अच्छे खाने तेयार किये थे,लेकिन मुझे सब कुछ वेस्वाद लग रहा था,
फ़िर मुझे मेरे दोस्त शर्मा जी का फ़ोन आया ओर बोले घर से एक दो घण्टे पहले निकल जाना कल गुजरो का धरना हे चारो ओर के रास्ते बन्द होगे, वेसे तो मेने ६,०० बजे निकलना था, लेकिन मे फ़िर शर्मा जी के कहने से सुबह ४ बजे ही निकल गया, पाचं बजे तक एयर पोर्ट पहुच गया, बोर्डिगं कार्ड ओर इमिग्रेशान के बाद मे अन्दर चला गया, मुझे यहा भी कुछ नही अच्छा लग रहा था, फ़िर जेसे तेसे समय गुजरा, इस दोरान कई बार सोचा मां से बात करू, वीवी से बात कर, लेकिन मन मसोस कर रह गया,मां को थोडा मजबुत होने दु, ओए वीवी तो अभी सो रही होगी वहा तो अभी तीन ही बजे होगे,
चलिये अब हम प्लेन मे बेठ गये मेरे साथ एक ओर नोजवान बेठे थे,शायद मेरे बारे सोच रहा होगा केसा बोर आदमी मेरी बगल मे बेठा हे जर्मनी तक हम ने तीन बार ही बात की माफ़ करना, धन्यवाद, जेसे शवद बस. फ़िर हम मुनिख उतरे ठीक १,३० पर ओर तभी मेने वीवी को फ़ोन किया की मे आधे घण्टे मे घर पहुच रहा हू, ओर घर आ कर सब से पहले मां को फ़ोन किया ....., फ़िर बच्चो से ओर वीवी को देखा अरे सब कमजोर से हो गये थे, मेरा हेरी आज बहुत खुश था (हेरी मेरा प्यारा कुता हे जिसे हम सब बहुत प्यार करते हे)लेकिन इस बार भारत से लोट कर आया तो लगा मे बहुत कुछ छोड आया हु, काफ़ी नाता टुट गया हे, बस एक पतली सी तार मां के रुप मे रह गई हे, तो क्या मां के बाद सब नाते खत्म ???????
आज यहां से मां के लिये मेने एक कुर्सी भेजी हे जिस से मां घर मे हर तरफ़ घुम फ़िर सकती हे बाजार जा सकती हे बिना किसी के सहारे के.... लेकिन मे चाहता हु मेरी मां अपने पाव पर फ़िर से चले. ओर जल्द ही फ़िर आउगां मां से मिलने, अगर मेरी किसी बात से किसी को कोई दुख पहुचा हो,या किसी ने ऎसा मसुस किया हो तो मुझे जरुर लिखे, मेने बेगांना बन कर अंहकार मे भारत या किसी
विशेष व्यक्ति के बारे अपनी तरफ़ से कुछ गलत नही लिखा जो देखा मासुस किया, अपना दर्द, अपने लोग, अपना देश समझ कर लिख दिया, मे आज भी आप के ही समाज का एक अंग हु,कुछ गलत लगे तो जरुर लिखे मे आप से माफ़ी माग लुगां
****अनामी टिपण्णी बालो से प्राथना हे जो भी टिपण्णी करे, मेरे बलाग पर ही करे मेरे नाम से , मेरे नाम से दुसरे के बलाग पर मेरे बारे टिपण्णी करके मेरा ओर दुसरे का समय खारब ना करे, आप मेरी बुराई भी करे गे तो सर माथे, मे बुरा नही मानुगां ****
ओर यह गीत मेरी मां के नाम
aapka bharat yatra ka anubhav batne ke liye shukran,maa ke liye kursi bheji bahut achha laga,mataji jaldi phir unke kadmon pe chale yahi shubkamna.
ReplyDeleteआपके लिखने के अंदाज़ की मैं फैन हूँ...बहुत ही प्रभावशाली लिखते हैं आप, गीत बहुत ही प्यारा है, बस आप लिखते रहें...
ReplyDeleteसर, मैं आपका भारत वर्णन पूरा पढा मगर इस सारे पोस्ट पर पहला कमेंट कर रहा हूं.. मेरी नजर में आपने किसी का दिल नहीं दुखाया है.. सच्ची बात सच्चे मन से कही है.. कुछ दिन पहले मैंने अपने ब्लौग पर मां के ऊपर एक कविता लिखी थी उसे पढें.. मेरा मानना है कि वो आपको जरूर पसंद आयेगा..
ReplyDeletehttp://prashant7aug.blogspot.com/2008/06/blog-post_6708.html
राज जी पोस्ट पढ़कर ओर गीत सुनकर भावुक हो गया हूं...वैसे भी इस गीत में मै जितना रोया था ....शायद आज तक कभी नही रोया...आपके पास हैरी है ओर मेरे पास रुस्तम है.....बाकी बस एक दिल है....
ReplyDeletesundar geet ko sunane ke liye aabhar.
ReplyDeleteआपकी कलम में सचमुच एक जादू है.. इसे पढ़ कर ऐसा लगता है की शायद हमने कोई बहुत बडा पुण्य किया हो जिसका फल हमें मिल रहा है..
ReplyDeleteबहुत अपना सा, सरल सा लगा इन सभी पोस्टों में, भाटिया जी। जैसे कोई अपना दिल उघाड़ कर रख रहा हो।
ReplyDeleteक्या कहूँ!! भावुक हो गया हूँ. माँ के जाने के बाद पिता जी को छोड़ कर निकलने का अहसास है मुझे.
ReplyDeleteसब याद आ गया. आप सही कह रहें हैं. बस, वहीं तक मजबूत धागे हैं फिर तो...जाने आने की रस्मे अदायगी.
माँ की गोद कभी नहीं भूलती।
ReplyDeleteBhatia Ji, Bahut achhi tarah se aapne apna anubhav ham sabke ssath share kiya. Aise hi likhate rahen
ReplyDeleteDhanyavaad
यात्रा का अन्तिम भाग बहुत भावुक कर गया.
ReplyDeleteAap ki post pad un logon ko Maa ke mahatav ka pata lag jana chaheye jo maa ke paas hote huye bhi us se door hain.
ReplyDeleteMain habut bhgyashali hoon ki meri Maa mere sath hai aur main us ke sath.
Baki, in benami tippaniyon ka mamla samajh nahin aaya. Khair, potton se daadi ke lagatar baat karwate rahen, Maa prasann ho jayegi.
mataji jaldi phir unke kadmon pe chale yahi shubkamna.
ReplyDeleteयात्रा का समापन दिल को छू लेने वाला है। बधाई।
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद, आप सब की दुआ से मां जल्द ही ठीक हो जाये भगवान से यही प्राथना करता हु, ओर आज मां को मेरी भेजी व्हील चेयर( कुर्सी ) मिल गई, ओर भाई, मां ओर सभी बहुत खुश थे,आप सब का फ़िर से धन्यवाद
ReplyDelete