30/06/08

भारत यात्रा ३

आज सुबह मे जल्दी उठ बेठा,गर्मी भी काफ़ी थी ओर मच्छर भी काफ़ी थे, ओर सुबह उठ कर भगवान से यही प्राथना करता था हे भगवान मुझे बिमार मत होने देना( क्योकि हर बार भारत आने पर बिमार होता हू ) ओर फ़िर सुबह सुबह अपने आप से वादा करता था, बाजार का बना कुछ नही खाउ गा, पनीर की सब्जी, आईस क्रीम.या कुछ भी नही खाउगा, ओर ना ही बिना उबला पानी पिउगा, ओर सच मे मेरे भगवान ने मेरी सुनी ओर सभी काम मेने पुरे किये.
आज पापा का चोथा था, सुबह उठे स्नान किया फ़िर सब मर्द लोग शमशान घाट गये, वहां पर जान पहचान के सभी लोग हमारे साथ ही पहुच गये, फ़िर थोडी पुजा पाठ ओर रस्मे निभा कर हम दोनो भाईयो ने पिता जी की आस्तिया उठाई,मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था, बस भरी आंखो से सब करता रहा, फ़िर सभी आस्तिया एक बरतन मे डाल कर राख वगेरा साफ़ की, ओर उन्हे एक साफ़ कपडे मे रख कर शमशान घाट मे एक निश्चिन्त जगह पर रख दिया, लेकिन मेरा दिल करता था कि यही बुझी चिता के किनारे बेठा रहु शायद मेरी बात हो जाये पिता जी से, फ़िर सभी लोग एक पीपाल के पेड के नीचे इक्ठठे हुये, वहां पडिंत जी ने कुछ मन्त्रो से पुजा की, ओर फ़िर घोषाण की कि तेरहवी इस तारीख को इस स्थान पर होगी, ओर हम दोनो भाईयो ने इस दुख मे हमे सहारा दिया इस के लिये सभी का धन्यावाद किया, फ़िर पंडित जी ने कुछ पुजापठ की ओर अपनी दक्षिणा के लिये कहा,मेने बिना उन के बोले उन्हे पिता जी के नाम से दान दे दिया, फ़िर सब घर आ गये.
( मे या पिता जी इन सब बातो को नही मानते थे,लेकिन मां के कारण मेने यह सब किया, कि कही मां के दिल को ठेस ना लगे,)
ओर घर आ कर सब ने नाश्ता वगेरा किया, ओर सब धीरे धीरे चले गये बस हमारा परिवार ओर कुछ रिस्तेदार ही घर मे रहे,सभी उदास भी थे, फ़िर पिता जी के आन्तिम समय की बाते शुरु हुयी,फ़िर आगे कया कया करना हे, पहले तो चोथे पर ही सब करने की योजना थी, लेकिन मां ने अपने दिल की बात मुझे कह दी थी, ओर मेरे सामने मेरी बात कोई नही काट सका, फ़िर हरिद्वार जाने के लिये बहस छिड गई, कोई बोला कल चलो, कोई बोला १० दिन से पहले जाना बेबकुफ़ी हे उस से पहले कुछ नही होता, फ़िर से शोर सा मच गया, इस बारे मुझे कुछ नही मालुम था,जब कुछ बात नही बनी तो मेने कहा हम २३ मई को सुबह चले जाये गे, ओर २४ मई को वापिस आ जाये गे, २५ की क्रिया हे, जब यह बात सभी को मंजुर होगई तो, एक रिश्तेदार बोले हमारी कार मे पेट्रोल डलवा देना, ओर उसी मे चले जाना,जिन्हे मे बचपन से जानता था, मेने उन्हे हां ठीक हे कहा, फ़िर बाद मे भाई से कहा जेसे भी चलना हो मे जाने के लिये तेयार हू, लेकिन इन के भारोसे मत रहना, फ़िर उस दिन सारा दिन भागदोड मे ही बीत गया,

शर्मा जी पिता जी के बहुत अच्छे दोस्त थे, शाम कॊ मुझे वह दिखे तो मेने कहा शर्मा जी आप ने तो पिता जी के बाद हम से नाता ही तोड लिया, साथ ही मेने उन के पांव भी छुये,तो उन्होने कहा नही बेटा मे रोजाना आता हू, तुम्ही घर नही थे, तुम अपना सारा फ़र्ज निभा रहे हॊ, जब से आये हो भाग दोड मे लगे हो इस कारण तुम मुझ से नही मिल पाये, फ़िर शर्मा जी ने बहुत गहरी सांस ली ओर बोले हम तीन दोस्त थे दो चले गये अब मेरा नम्बर हे मुझे यहां कुछ अच्छा नही लगता, ओर फ़िर रुआसे से हो गये,अब मेने मां को जबर्दस्ती चलाना शुरु कर दिया था, ओर मां भी अब चलने तो नही लेकिन पहले से ज्यादा चुस्त हो गई थी, अब काफ़ी समय बेठी रहती थी, ओर हाथ पाव भी हिलाने शुरु कर दिये थे, ओर दोनो भाईयो के कंधो पर दो चार कदम चल भी लेती थी,

ओर हमारे सुभाष नगर के सभी लोग बहुत ही मिलन सार हे, हर समय मदद कॊ तेयार रहते हे, लेकिन मुझे पता नही पिता जी ने केसी आदत डाली हे कि मे अपने सभी काम खुद करना चाहता हू, ओर सभी काम हो भी जाते हे,मे सारा दिन दोपहर को भी सभी काम के लिये बहिर जाता था,मेरे कपडे भी खुब गन्दे हो जाते थे, क्योकि सुबह शाम ओर रात को भी वही कपडे पहन कर सो जाता था सुबह ५,०० बजे जाग जाना, रात को १,२ बजे सोना, पता नही मेरे कपडो से बदबु भी आती होगी, मेने वहा दो ही कपडो के जोडे पहने वाकी सब वेसे ही पेकिंग वापिस ले आया, क्यो कि मुझे नही पता मेने कोन से कपडॆ पहनने हे, कोन सी जुराबे, कोन सा रुमाल, इन सब बातो के लिये बीबी ने मुझे अपना गुलाम बना रखा हे,जब मां की नजर पडती थी तो मुझे टोक देती थी ओर मे कपडे बदल लेता था,
यहां अब मुझे कुछ भी अच्छा नही लगता था बस एक सनक थी की पिता जी के अधुरे काम पुरे करु, ओर सभी रश्मे पुरी करु ओर सही ढंग से करु. अब शर्मा जी ने कहा की बेटा पिता जी का बेक का हिसाब किताब ओर पिता जी की पेन्शन अपनी मां के नाम करवा कर जाना,मां ने एक दिन पहले ही मुझे कुछ ऎसा कहा था कि तुम दोद्नो भाई पिता के जमा पेसे आधे आधे बाटं लो, तो मेने मां से मना कर दिया था, लेकिन शर्मा जी की बात मेरी समझ मे आ गई, ओर मे अपने भाई को ले कर बेक( उस बेक का नाम किसी कारण बसन ही लिख रहा ) मे गया साथ मे शर्मा जी भी थे भाई बोला यहा भारत मे काम करवाना बहुत मुश्किल हे इस कारण वह जान पहचान ढुडता रहा, पिता जी ने जो वसियत की थी बह बेक बालो ने नही मानी, तो मे सीधा मेनेजर के कमरे मे चला गया, ओर सारी बात उन्हे बताई, मेनेजर श्री वाधवा जी हे, उन्होने हम से बहुत ही प्यार से बात की ओर मुझे ओर भाई को बेठने के लिये स्थान दिया, ओर सभी कुछ समझा दिया की कोन कोन से पेपर ( कागज) हमे चहिये, साथ ही यह भी बता दिया की मेनेजर साहिब यानि वह अगले सपते यहा नही ओर आज शुकर वार हे जो भी करना हो आज ही करबा लो, मेने श्री वाधवा जी का धन्यवाद किया, अब भाई थोडा थक गया था...
बाकी कल...

10 comments:

  1. भाभी कुछ ज्यादा ही अच्छी हैं कि आप को कपड़े बदलना भी भुला दिया।

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  2. raj ji namaste,achchalaga aap ko wapas blog par dekh kar-
    -aap ki yatra ke baare mein padh rahe hain.

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  3. समझ नही आ रहा क्या कहु... बस पढ़ रहा हू...

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  4. राज जी आपके दोनों पिछले पोस्ट पढ़े... लिखते रहे, आपकी कमी खली बहुत दिनों तक.

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  5. aage ka vrutant padh ke achha laga,good aap bimar nahi huye.

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  6. राज जी , नमस्ते. मुझे जब आप के पिता जी के निधन के बारे में पता चला तो समझ ही नहीं पाया कि कैसे आप से कंटैक्ट करूं । बेहद अफसोस जनक हुया यह सब.....मैं भी पिछले पंद्रद दिनों तक ब्लागिंग से दूर रहा । आज अभी अभी आया तो आप की यह पोस्ट देखी तो इस के साथ ही आप की पिछली तीनों पोस्टों बड़ी बेचैनी से पढी। दोस्त, आप ने कहा कि आप की इच्छा हो रही थी कि आप अपनी पिता जी की अस्थियों के साथ ही बैठ जायें. मेरे साथ भी ऐसा ही हुया था, भाई, जब मेरे पिताजी का दाह-संस्कार गोहाना रोड रोहतक वाले शमशान घाट पर हुय़ा था तो मै अगले दिन अकेला ही शाम को वहां पहुंच गया और कुछ समय बैठ कर रोता रहा । मैं आप का दुख समझता हूं।
    भाई, उस परम पिता परमात्मा से यही अरदास है कि बिछड़ी रूह को सदगति प्रदान करे और स्वर्ग में वास करवाये।
    डियर माताजी कैसी हैं ? लिखना.....।
    परमात्मा परिवार में सब को राजी-खुशी रखे.
    शोक-संतृप्त बंधु
    प्रवीण

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  7. पढ़ते जा रहे हैं बस....

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  8. bas padh rahe hai rj ji...aisa lagta hai sab kuch aankho ke samne ghatit ho raha hai...bank manager achhe nikle.

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  9. आँखे भीग गयी

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  10. दिनेश जी कभी आप से मिलना हुया तो आप मेरे परिवार से मिल कर यह नही मसुस करेगे की यह परिवार विदेश से आया हे, सभी वो सस्कारं जो एक भारतिया परिवार मे होते हे, मिले गे इस परिवार मे,आप सब का धन्यवाद

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नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये