मेने भाई को हिम्मत दी ओर कहा अब हम सीधे कोर्ट की तरफ़ चलेगे, तो हम जल्द ही कोर्ट पहुच गये ओर वहा से पक्के कागज ओर स्टम पेपर लिये, फ़िर उन पक्के पेपरो पर जो लिखबाना था वहां पहुचे लेकिन काफ़ी जगह धक्के खाने पर किसी के पास भी बह प्रोगराम नही मिला, फ़िर एक सज्जन ने कहा की वह इन कागजो को तेयार कर देगा लेकिन कल मिलेगे, ओर फ़ीस भी २५० रु, मेने कहा मुझे अभी चहिये तो उन्होने मना कर दिया, तो मेने भाई से कहा मे इसे अपने लेपटाप पर बना लेता हू ओर प्रिन्ट यहा करवा लेते हे, क्योकि यहां मेरे पास प्रिन्टर नही था, भाई नही मान रहा था बोला बहुत काम हे मेने कहा यह काम सिर्फ़ १० मिन्ट का हे, फ़िर भाई को मनाया तो हम दो चार दुकानो पर गये लेकिन सभी का कहना था आप के लेपटाप पर हमारा प्रिन्टर केसे इन्स्टाल होगा मेने वहा उन को बहुत सम्झाया लेकिन कोई नही माना तो, वपिस सब से पहले बाले के पास आ गये ओर मेने बडे प्यार से पुछा भाई आप ने कितने पेसे बोले थे, हमारे कागज बनाने के लिये तो बोला २५० रुपये , मेने झट से कहा मे आप को ४०० रुपये दुगां आप हमे एक घन्टे मे यह कागज बना दो, अगर चाहॊ तो मे भी आप की मदद करता हु, वह भाई मान गया ओर हम ने उन्हे सभी कागज दिये ओर घर की तरफ़ चल पडे, घर जा कर खाना खाया, फ़िर सभी कागज ले कर बेक मे गये, एक कागज गलत था सो भाई जल्द ही वह कागज भी बनवा लाया, मेनेजर जी ने हमे कुछ समोसे ओर ठण्डा वगेरा दिया, फ़िर चाय भी पिलाई, अब मां के साईन की जरुरत पडी तो वह काम भी मेनेजर जी ने खुद ही करबा दिया, बातो ही बातो मे मेने मेनेजर साहिब से कहा आप को मन्दिर मे जा कर पुजा करने की कोई जरुरत नही, जो काम आप कर रहे हे यह उस पुजा से भी बडा हे, अब गवाहॊ के हस्तक्षर रह गये थे, वह दुसरे दिन भाई ने करवा दिये थे, ओर मे सोचता रहा ऎसे लोग भी हे भारत मे जो बिना स्वार्थ के अपना काम करते हे,
मेने घर आ कर पहले शर्मा जी के पाव छुये जब शर्मा जी को पता चला की सारे काम कुछ ही घन्टो मे हो गये तो उन्हे विश्वास नही आया फ़िर बोले यह काम कम से कम ६ महीने मे होना था, फ़िर मेनेजर को बहुत सी दुया दी, फ़िर हम दुसरे दिन हरिद्वार के लिये निकल गये (हा बताना भुल गया वो कार वाले रिश्तेदार का भाई को एक दो दिन फ़ोन आया मेरे को यह काम हे मेरे को वो काम हे लेकिन मे २२ मई शाम तक पहुच जाऊ गा, भाई ने पुछा तो कया मे जो कार बुक करके आया हु उसे मना करदु, मेने पुछा क्यो तो वोला वह(रिश्तेदार) अपनी कार लाने वाला हे, ओर मे हसं पडा ओर कहा भाई तुम उस की कार मे बेठ जाना लेकिन जो कार तुम मेरे लिये बुक करके आये हो उसे बुक ही रहने दो, ओर शाम को हमारे रिश्ते दार बस मे हमारे यहां आये ओर बोले मे अपने जरुरी काम छोड कर आया हू , बोलो सुबह कितने बजे चलना हे, मेने उसे कहा आप का बहुत बहुत धन्यवाद आप ने हमारे लिये अपने जरुरी काम छोडे, लेकिन हमारी कार मे जगह नही हे , लेकिन आप आये हे तो कल ओर बहुत से काम हे, हम ने क्रिया के लिये हलवाई घर मे ही बिठाया हे तो यह लिस्ट ओर यह दुकान हे यहा से समान ले आना, पेसे आप से बो नही मागे गा.
अब घर मे फ़िर से भाई की बीबी बोलने लगी बेचारा स्पॆशल आया हे, अपने काम छोड कर लेकिन मेरे सामने नही बोली, थोडी सी देर बाद मां ने मुझे बुला कर कहा की बेटा मे सब समझती हू लेकिन इसे भी साथ ले जाओ, मेने मां से कहा साथ ही मां का हाथ अपने सर पे रखा ओर बोला मां अब बताओ कभी इन्होने हमारे दुख मे हमारा साथ दिया हे????, तो मां ने मना कर दिया, फ़िर मेने कहा मेने तो हरिद्वार मे कुछ भी नही करना भाई ने ही चिता को आग दी थी तो यह ओर भाई चला जाये मे घर पर ओर काम निपटा लेता हु, मां समझ गई कि मे उसे किसी भी किमत पर नही लेजाना चहाता, दुसरे दिन हम सुबह ४,०० बजे घर से निकल गये शमशान से पिता जी की अस्थिया ली ओर चल पडे हरिद्वार की ओर, साथ मे भाई का लडका भी था,
मदन था हमारे ड्राईवर का नाम, मे उन्हे मदन जी कह कर बुलाता था, मेने मदन जी से कह दिया था जब भी आप ने कुछ खाना हो या चाय वगेरा पीनी हो तो कार बिना पुछे रोक सकते हो, हमारा नाश्ता हरिद्वार से २० किमी के आस पास होगा, जब आप को लगे की हरिद्वार यहां से नज्दीक हे तो नाश्ते के लिये कार रोक लेना, बाकी चलते रहॊ,रोहतक से गोहाना होते हुये हम चलते गये लेकिन कही भी मुझे सडक के किनारे सफ़ाई नही दिखी, हरिद्वार के पास जाते जाते तो ओर भी बुरा हाल था, सडको के चारो ओर गन्दगी ही गदन्गी नदी नालो से गन्दगी निकाल कर सडको के किनारे डाल रखी थी,सडको का बुरा हाल, सडको पर चलने का कोई नियम नही, सफ़ाई का कोई नियम नही, बस यही तरक्की मुझे लगी की भारत मे सभी के पास दो दो मोबाईल फ़ोन थे, चाहे वो भिखारी हो, या कोई राजा,हरकते सब की एक सी सभी को आजादी गन्दगी फ़ेलाने की, शोर मचाने की,ओर ट्रेफ़िक नियम तोडने की.
ओर हरिद्वार से १६ कि मी दुर एक ढाबे पर हम ने नाशता किया, ओर फ़िर मेरे मामा जी के लडके को जो जबला पुर रहता हे फ़ोन किया भाई तुम हमे कहां मिलोगे, फ़िर निश्च्चित स्थान पर हम मिले, हरिद्वार पहुचने से पहले मेरे दिल मे था कि यह हमारा पबित्र ओर पुजनिय शहर हे सफ़ाई के लिहाज से बहुत सुन्दर ओर साफ़ होगा, लेकिन यह शहर तो बहुत ही गन्दा दिखा,फ़िर हम सब उस चोक से आगे गये तो एक पुल से पहले जाम लगा था, मामा जी का लडका यहां सब जानता था, तो उसने एक मोड गन्दे नाले के साथ साथ ले लिया जहा बाबा राम देव का पंतशील आश्रम भी था, ओर वहा से हम उस स्थान के नजदीक पहुच गये जहां पर अस्थियां प्रवा ( गगां मां को अर्पित करते हे)
बाकी कल...
आप जरूर धरती पर इन्सान की शक्ल में देवता हैं... तभी तो परमपिता आपका ख्याल रखते हैं
ReplyDeleteरिद्वार में पांडे ओर भिखारी देखे आपने ....ओर गंगा तो खैर मैली हो चुकी...अब सब कुछ धंधा है .....
ReplyDeleteअपनी यात्रा का अच्छा संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं आप. अच्छे लोग तो हर जगह मिल ही जाते हैं... मोबाइल वाली बात बिल्कुल सच है.
ReplyDeleteआप यात्रा का अच्छा संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं .
ReplyDeleteसुनील भाई मे बिलकुल आप की तरह ही हु, बस सच का साथ नही छोडता चाहे कितना भी नुकसान क्यो ना हो जाये,ओर गलत कॊ गलत ही कहता हू,चाहे सारी दुनिया मुझे ठुकरा दे, बाकी गुस्सा भी हे, नफ़रत भी हे मुझ मे सब अबगुण हे मुझ मे, आप सभी का बहुत ध्न्यावाद,अनुराग जी आप के सवालो का जवाव कल की पोस्ट मे ...अभिषेक जी ओर महेंद्र जी आप का भी धन्यावाद
ReplyDeleteपढ़ रहा हूँ आपके भारत प्रवास के अनुभव. अच्छे बुरे लोग हर तरफ हैं.
ReplyDeleteआप तो हमारा मन ही मोह रहे हैं. :)
ReplyDelete"भारत मे जो बिना स्वार्थ के अपना काम करते हे,"
ReplyDeleteऐसे लोग मुझे भी कई बार मिलते है.. आपको बस पढ़े जा रहे है..
भारत मे सब कुछ अच्छा हैं और सुंदर हैं . हम सब जो भारत मे रहते हैं वोह ही इसको समझ सकते हैं . मदन को मदन जी यहाँ सब कहते हैं , आज भी घरो मे अपनी उमर से बडे कामगारों को अम्मा , माई ही कहा जाता हैं . यहाँ आपातकाल मे सब दुसरे की मद्दत करते हैं और मौत पर आज भी खाना पड़ोस से बन कर आता हैं क्योकि घर मे चूल्हा नहीं जलता . जितने लोग ड्राईवर रखते वोह सब लॉन्ग ड्राइव पर ड्राईवर का नाश्ता पानी ख़ुद करवाते हैं . ये सभ्यता हम सब मे हैं और आप जिस तरह आलेख दे रहे उसमे कहीं ना कही एक टंच हैं भारतीय लोगो के ख़िलाफ़ . बुरा मत माने क्योकि मौका आप के पिता की मृत्यु का था तब भी आप एक व्यक्ति को क्षमा करके अपने साथ नहीं ले जा सके , अपनी माँ के कहने पर भी , जान कर बहुत आश्चर्य हुआ . आप तो उस परिवार को कुछ दिन के बाद छोड़ कर वापस चले गए पर माता जी आज भी वहाँ ही हैं , उनके सम्बन्ध उनकी इच्छा का सम्मान आप ना कर सके और आगे आने वाले समय मे उन्हे अगर उसी व्यक्ति का साथ मिले या लेना पडे तो ??? आप विदेश मे बस गए , कारन बहुत से होगे , मज़बूरी भी होगी पर जब आप पिता की मृत्यु तक भी माँ के पास नहीं पहुचे तो .......... ?? लिखे लिखते रहे पर अपनी को अच्छा और दुसरो को अपनी से कमतर ना आंकी तो व्रतांत लगेगा वरना केवल आतम मुग्धता लग रही हैं .
ReplyDeleteअनाम मित्र
आप तो उस परिवार को कुछ दिन के बाद छोड़ कर वापस चले गए पर माता जी आज भी वहाँ ही हैं , उनके सम्बन्ध उनकी इच्छा का सम्मान आप ना कर सके और आगे आने वाले समय मे उन्हे अगर उसी व्यक्ति का साथ मिले या लेना पडे तो ??? आप विदेश मे बस गए , कारन बहुत से होगे , मज़बूरी भी होगी पर जब आप पिता की मृत्यु तक भी माँ के पास नहीं पहुचे तो .......... ??
ReplyDeleteअनाम भाई,आप सच मे मेरे शुभचिंतक हे, फ़िर नाम छुपाने की क्या जरुरत, आप की टिपण्णी से तो मेने यही महसुस किया हे कि आप मेरे से उम्र मे ओर तजुर्वे मे बडे हे, लेकिन कई बाते मे यहा लिख नही पाता, मां तो मां हे उसे कोई भी प्यार से दो शव्द बोला कर लुट सकता हे, लेकिन अगर आप मेरी जगह होते तो जरुर झगडा कर बेठते, यह तो मे ही हु जो पत्थर दिल पर रख कर बहुत कुछ सहन कर के आया हु, क्योकि आप की उपर लिखी बाते मेरी सोच से मिलती हे, वरना आज के वुजुर्गो का कया हाल हे इस भारत मे मेने आंखो से देखा हे,एक बात बताऊ मां को अपने पास बुला रहा हू, दुसरी बात खोटा सिक्का कभी भी काम नही आता सिर्फ़ जेब फ़ाडने के सिवाय, तो मे क्यो उस आदमी का ख्याल करु जिसने हमेशा ही हमारे काम बिगाडे हो, ओर जहा १ रुपये से काम चले वहा २० खर्च करवाये,
आप की टिपण्णी सच मे मेरे दिल की आवाज हे , मे भी भारत को उन लोगो को उतना ही प्यार करता हु जितना आप,लेकिन हम अपनी बुराईयो को छुपा कर गलती करते हे, आप ने एक अच्छे दोस्त की तरह से मेरी बात मेरे सामने रखी, सच मे बहुत अच्छा लगा, बस इतना ही कहुगा मुझे जिन्दगी मे ऎसे लोगो ने इतना रुलाया हे की अब आंसू ही सूख गये हे.
धन्यवाद