03/05/08

पता नही कोन किस रुप मे मिल जाये

बात आज से करीब १५,२० साल पुरानी हे,मे भारत कुछ दिनो के लिये आया था, पुराने यार दोस्त तो मिलते ही नही, शायद सभी अन्य शहरो मे चले गये थे, या फ़िर बचपन की शकल भी बदल जाती हे सो हमीं ना आपस मे पहचान पाते हो, लेकिन मे हमेशा खोजी नजरो से ढुढता रहता हु पुराने मित्रो को, कभी कभी गलत को भी पकड लिया, पिछली बार एक रिटाय्रर प्रिन्शीपल साहिब को ही बडे प्यार से रोक लिया जो बाद मे मेरे अच्छे दोस्त बन गये, चलिये अब असली बात पर आता हूं.
रोहतक मे मॆ बाजार मे घुमने के लिये गया,मे मेरा छोटा भाई एक दुकान के सामने खडे थे,तभी एक नोजवान जो मेरे से लम्बा था आ कर आचनक मेरे पेरो को पकड के झुक गया,मे यह सब देख कर ओर एक अन्जान व्यक्ति को यह सब करते देख कर थोडा चकित भी हुया ओर मेने झट से दोनो हाथो से उसे उपर प्यार ओर इज्जत से उठाया,देखा तो उस की आखंऒ मे आंसू की कुछ बुदें थी, मेने उसे कहा देखओ भाई आप को गलत फ़हमी हुई हे,मे तो बिलकुल साधारण सा आदमी हु,ओर मेने तो तुम्हे पहले कभी देखा भी नही, अगर पेसो की मदद चहिये तो यह सब करने की जरुरत नही ४०, ५० रुपये मे तुम्हे वेसे ही दे देता,अब उस आदमी के बोलने से पहले ही पिछे खडे दुकान दार ने कहा बाबु जी यह आप कॊ १०,१५ सालो से ढुढ रहा था, अब फ़िर से चोकने की मेरी बारी थी,ओर मेने बहुत धयान से उसे देखा लेकिन मुझे कुछ भी ऎसा नही लगा कि वो मेरी जान पहचान मे कही हो (मेरे दोस्तो मे हर तब्के के लडके होते थे अमीर गरीब ओर हम सब दोस्त होते थे सिर्फ़ दोस्त ना कोई धर्म ना अमीर ना गरीब ).
मुझे परेशान सा देख कर झट से वह नोजावान बोला ,आप ने मेरी जिन्दगी ही बदल दी मे आप को नही भुल सकता, तो मेने कहा भाई मेने आज तक ऎसा कोई काम नही किया जिस से मेरे सिवा किसी ओर की जिन्दगी बदल जाये,ओर फ़िर जो बात उस ने बताई तो मेरी आंखॊ मे सारी यादे ताजा हो गई.बात २०, २२ साल पहले से शुरु होती हे जब मे भी १७,१८ का था,यह समय उस वक्त के हिसाब से हे,यानि आज के हिसाब से ओर भी पुरानी.तो आये चले इस बात की जड मे...

हमारा घर एक नयी आबादी मे बना था,ओर एक घर से दुसरे के घर मे बहुत फ़ासला होता था, सभी एक दुसरे का ओर एक दुसरे के घर का बहुत ख्याल रखते थे,अचानक हमारे मुहल्ले मे चोरिया होनी शुरु हो गई,चोरी बडी नही होती थी, लेकिन होती तो चोरी ही थी, किसी का कपडा , किसी का बर्तन, यानि छोटी मोटी चोरिया रोज होने लगी, तो लोग तगं आ गये, उस जमाने मे लोगो के पास इतना फ़िजुल पेसा भी नही था तो खर्च भी ध्यान से करते थे, मेने जिद कर के अपने लिये एक नयी कमीज ओर बेल्बाट्म बनाई, कपडा लेकर दर्जी के पास सारी रात बेठ कर बनबाई,ना खुद सोया ना उसे सोने दिया, दुसरे दिन घर लाया तो हमारी मां पुराने विचारो की हे सो पहले उसे धोना हे फ़िर पहनना,हम ने मां की बात माननी ओर पहले उसे धुलवाया फ़िर बाकी घर के काम करने दिये,अब नये कपडो को सुखाने के लिये तार पर डाल दिया,ओर हर दो मिण्ट मे उसे देख लेता के सुखे के नही,मां ने कहा पागल १,२ घण्टे लगे गे उसे सुखने मे, क्यो दिवानॊ की तरह से बार बार देख रहा हे,साथ मे ही चारपाई पडी थी, कब लेटा पता ही नही चला ओर कब सोया यह भी पता नही चला, जब मां ने दोपहर के खाने पर उठाये तो पता चला की १,३० बज गया हे जब तार की ओर देखा तो कपडे वहां नही थे,
क्रमश...

11 comments:

  1. बहुत सुंदर और रोचक,,आगे का इंतज़ार रहेगा.

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  2. पढने में बहुत आनंद आ रहा था लेकिन क्रमश: देख कर दिल की धड़कने रुक गयी हैं.. इंतजार रहेगा..

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  3. लगता है आपने भी इब्ने सफी बी.ए. के उपन्यास पढ़े हैं मेरी तरह। सस्पेंस बनाए रखते हैं।

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  4. bahut khub magar climax par kramasha aa gaya,aage ka intazzar rahega.

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  5. बड़े सस्पेंसी मोड़ पर लाकर कहानी रोकी है-अगला तो पढ़ने के लिये फंस ही गये हैं कि बेलबाटम का हुआ क्या-चोरी गया या कुछ और??

    -आप तो सिरियल की कहानियाँ लिखने लगो. आपको पूरा आईडिया है कि कहानी कहाँ रोकना है. मेरी शुभकामनायें.

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  6. राज जी
    रोचक अनुभव लग रहा है। आगे प्रतीक्षा रहेगी।

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  7. आगे की कडी का इँतजार रहेगा,
    राज भाई साहब -
    रोचक किस्सा बयान किया आपने
    -लावण्या

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  8. ये क्रमश पढ के अचानक झटका सा लग गया।
    अगली कडी का वैसे ही ईंतजार रहेगा जैसे आप उस कपडे के शूखने का ईंतजार कर रहे थे

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  9. jaldi likhiye agala bhaag.. :)

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  10. बहुत ही रोचक ..अभी यहीं तक पढ़ा है आगे पढ़ना पड़ेगा अब :)

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  11. आप सभी का धन्यवाद, यह मेरी जिन्दगी के कुछ भुले बिसरे पेज हे जो यादो मे बसे हे, मुझे अच्छा लगा यह आप सब को पसन्द आये,कल क्रमश नही आये गा.

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