27/04/08

इन दोनो आधिकारियो मे कया फ़र्क हे?

बात शुरु करने से पहले यह बता दु यह दोनो घटनाये बिलकुल सच्ची हे,ओर मेरे साथ गुजरी,ओर मे अन्याय के खिलाफ़ हमेशा बोल पडता हू, लेकिन फ़िर भी इन घटनाओ ने मुझे सोचने पर काफ़ी मजबुर किया, अगर आप मे से भी किसी के साथ ऎसी घटना घटी हो तो जरुर बताये,


यह बात आज से करीब ६,७ साल पुरानी हे,तब स्वीस एयर लाइन भारत आती थी, अब तो पता नही,हम सभी परिवार समेत भारत ( दिल्ली )पहुचे,

फ़िर प्लेन से उतर कर जब हम इमीग्रेशन पर पहुचे तो वहां काफ़ी लम्बी लाईन लगी थी, हम भी लाइन मे लग गये,मेरे आगे एक जर्मन खडा था,अचानक उस ने जेब से सिगरेट निकाली ओर सुलगा कर पीने लगा( यानि सुटा मारने लगा) मेने उसे सिगरेट पीने से बहुत ही आदर से मना किया, लेकिन उस ने जान कर अन्देखा किया तो फ़िर से मेने उसे थोडा दवाव भरे लहजे मे मना किया तो बोला मेने ८ घण्टे से सिगरेट न्ही पी, तब मेने उसे उस तरफ़ इसारा किया जहां लिखा ओर छपा था No Smoking लेकिन उस ने बहुत ही बतमीजी से मुझे जवाव दिया, तो मे भी भडक उठा ओर उसे अच्छी तरह से गुस्से मे समझाया, तो उस ने झट से सिगरेट पेर से दबा कर बुझा दी,मेने उसे कहा कि तुम अपने देश मे भी कया ऎसे ही गन्दगी डालते हो,अगर नही तो इस सिगरेट को यहा से उठाओ, अब इतनी देर मे एक इमीग्रेशन आफ़िसर आया, ओर उस गोरे जर्मन से दातं निकाल कर ही ही कर के बोला सारी सर,फ़िर मेरी तरफ़ देख कर बोला शर्म नही आती, अभी वो अफ़िसर बोले जा रहा था कि मेने उसे रुकने का इशारा किया ओर बोला शर्म तो मुझे आ रही हे तुम पर, यह कया लगता हे तुम्हारा यहा का कानुन मेरे ओर इस के लिये बराबर हे, ओर वो वहा से भिन्भिनाता हुया चला गया, अब मेरे साथ सभी बाकी लोग भी उसे बुरा भला कहने लगे थे.

दुसरा सीन...

वापसी पर हमारी फ़्लाईट पहले जुरिख जानी थी, वहा से फ़िर मुनिख आनी थी, जुरिख एयर पोर्ट पर पर हमे करीब एक घण्टा रुकना था,हम सभी थके थे, सो सब वहां पडी कुर्सियो पर बेठे थे, कि मेरी वीवी बोली देखो जी वह आदमी सिर्फ़ रगं दार ( यानि हम जेसे )लोगो को ही चेक कर रहा हे एक गोरे को भी उस ने नही पुछा,फ़िर मे भी उसे ध्यान से देखने लगा, हा यह बात ठीक लगी, वो सिर्फ़ हमारे जेसे लोगो को ही चेक कर रहा था, फ़िर मेरे पास भी आया, ओर आते ही बोला पासपोर्ट, मेने कहा क्यो ? ओर वो मेरा मुहं देखने लगा, बोला मे पासपोर्ट आधिकारी हू, ओर यह मेरा काम हे, मेने उसे जर्मन भाषा मे कहा कि मेरे पास कया सबुत हे कि तुम पासपोर्ट अधिकारी हो, पहले आप अपना परियच पत्र दिखाओ, ओर हा अपनी कमीज पर मुझे लगता हे आप अपना नाम टागनां भुल गये हे, वो भी लगाओ, हमारे जर्मन मे कोई भी किसी प्रकार की चेकिगं करता हे तो पहले अपना परिचय पत्र दिखाता हे उस का नाम भी उस की कमीज पर टगां होता हे,ओर ओफ़िसर जल भुन कर बोला मे थोडी देर बाद आता हु ओर चला गया,करीब २० २५ मिन्ट बाद मेरे पास आया ओर उसने अपना परिचया पत्र मुझे दिया , मेने ध्यान से देखा ओर देखा उस की कमीज पर नाम भी टगां हे फ़िर मेने उसे कहा मे माफ़ी चहाता हु लेकिन मेरा आधिकार हे कि जिसे मे अपना पासपोर्ट दिखाउ उस के बारे पहले जानु,फ़िर मेने उसे चारो पासपोर्ट दिये, जो उस ने बिना देखे ही मुझे वापिस कर दिये ओर मेरा धन्यवाद करके चला गया,

9 comments:

  1. मेरा तो एक बार भारतीय रेल में एक टिकट निरीक्षक से उसका परिचय-पत्र दिखाने के आग्रह पर बहुत बड़ा विवाद हो गया था।

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  2. हमारे परिचय पत्र देखने दिखाने के मसले पर बबाल मच जाता है . अधिकारों की आड़ मे झाड़ लगाये जाते है .
    आपका लेख अच्छा लगा धन्यवाद

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  3. इंफीरियॉरिटी और सुपीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह कॉम्प्लेक्स भारत में बहुत होता है।

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  4. बहूत मह्त्तवपूर्ण जानकारी दी है मूझे तो पता ही नही था की पासपोर्ट दीखाने से पहले उस अधीकारी का पहचान देखें।
    ऎसे ही जानकारीयां और दे कर मेरा गयान बढाऎं।

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  5. कमाल है, आप तो बडे वो हैं.......... वैसे अनुभव अच्छे थे, ऐसे अनुभव हमसे बाँटते रहें, आभार होगा.

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  6. आप के जैसे अनुभव बहुतों को हुए होंगे और गोरी चमडी वालों के प्रति उदारता सिर्फ़ भारत में नहीं बल्कि सभी एशियाई देशों में होती होगी....

    मानसिक रूप से गुलाम हैं वे सब ---जो भी ऐसा पक्षपात करते हैं.

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  7. राज जी आप जैसे लोग जब तक रहेगे ..हमारे देश का मान ओर गौरव सुरक्षित रहेगा.....मेरा सलाम आपको....

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  8. आप सभी का बहुत धन्यवाद, अल्पना जी एयर पोर्ट के ओर भी कई अनुभव हे, धीरे धीरे एक एक कर के लिखुगां,आप सब को सलाम.

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  9. बहुत बढ़िया बात कही भाटिया साहब.. ऐसे अनुभव बाँटते रहिए..

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