मुझे शिकायत हे,यह पंक्तिया हमे सावधान करने के लिये हे, हम जाने अन्जाने मे कई बार दुसरो के लिये मुसिबत बन जाते हे,ओर सामने वाला शिष्टा वशं हमे कुछ कह नही पाता,ओर हमारी यही बेबकुफ़ी हमे दुसरो से दुर ले जाती हें,ओर कई बार हमारी हँसाई भी हो जाती हे.
मुझे शिकायत हे.उन लोगो से जो किसी की कार मे बेठते ही,उस कार मे लगे मुजिक सिस्टम को छेडना शुरु कर देते हे, जिस से कार चलाने वाले का ध्यान उस की हरकतो की तरफ़ जाता हे ओर दुर्घटना का भय बना रहता हे.
जो सज्जन ऎसा करते हे, उन्हे यह सोचना चहिये,कार हमारी नहीं, ओर हमे कोई हक नही किसी की निजी चीजो को छेडने की,
बिल्कुल ठीक कहा भाटिया साहब आपने.. वैसे मुझे तो शिकायत है उन लोगो से जो किसी के फोन नही उठाने पर भी बार बार फोन करते रहते है.. ये भी नही सोचते की सामने वाला व्यक्ति व्यस्त हो सकता है.. इसी प्रकार बिना पूछे मेरा मोबाइल उठा लेते है कई लोग.. और देखने लग जाते है.. अरे भाई कम से कम पूछ ही लो.. वैसे गुलज़ार साहब की कही एक लाइन याद आ गयी .. 'आदतें भी अजीब होती है' कुछ लोगो की आदतें ही होती है जो शायद ही बदले..
ReplyDeleteबहुत सही बात कही है आपने..
ReplyDeleteबहुत ही सामान्य सी लगने वाली बात है पर है तो एक समस्या ही !
सही है शिकायत। और भी अनेक होंगी शिकायतें इस प्रकार की।
ReplyDeleteye to bahut sahi baat hai,bina puche kisi ke bhi niji vastu ko lena nahi chahiye.
ReplyDeleteसही है बिना पूछे किसी की चीज इस्तेमाल नही करनी चाहिए। पर बहुत से लोग हर एक की चीज पर अपना जन्म सिद्ध अधिकार सम
ReplyDeleteपते की बात है !
ReplyDeleteमुझे भी उन लोगो से शिकयत है राज जी जो हमेशा high बीम पे रात मे गाड़ी चलाते है ,किसी जाम मे पीछे खड़े नही होते ओर टेडा खड़ा करके ओर मुसीबत बढ़ा देते है.
ReplyDeleteफाण्ट के बारे मे आपकी जिज्ञासा का उत्तर:
ReplyDeleteकिसी अज्ञात फान्ट की का नाम जानने लिये एक तरीका है कि जिस वेब पेज को आपने खोला है, उसका सोर्स HTML देखिये. इसमे 'family' के लिये खोज कीजिये । जहाँ family आता है वहीं पास में फ़ान्ट का नाम दिया रहता है।
बिलकूल सही बात कही है आपने। मे कीसी का सामान बीना पूछे नही छूता।
ReplyDeleteबिल्कुल जायज शिकायत है भाया.
ReplyDeleteआप सही हैं।
ReplyDeleteमै बहूत सोचा की ईसका सामाधान कैसे नीकाला जाए फीर एक मस्त आईडीया आया
ReplyDelete"कार से मयूजीक सीस्टम ही नीकाल दीजीये और वो जो भी छूवे उसे नीकाल के पीछे रख दीजीये और अगर फीर भी नही माने तो कहीये की लो अब तूमही कार चलाओ और अब आप कार मे रखे सामानो को छूने लगीये फीर देखीये क्या कितना मजा आता है"
Aap ki is 'shikayat' se mujhe yaad aaya jab maine apne college samay mein apni 'Fiat' car mein apne hathon se 'Do's & Don't ki lambi pher hist likh kar lagayee thi.
ReplyDeleteaaj bhi us list ko yaad kar hansi choot jati hai. Us list ka blog par prakashan abhi shesh hai.
दिल से आप सब का धन्यवाद, मुझे खुशी होती हे आप के आने से.
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