आज कई दिनो बाद आप से मिलने आया हुं, कारण... हमारी साली साहिबा हमारे यहां आई थी, जिन के संग सारा दिन आवारा गर्दी, कभी यहां घुमने गये तो कभी वहां, यानि पुरा युरोप एक बार फ़िर से घुम लिये पिछले १० दिनो मे, बीच बीच मे जब भी समय मिलता मै नेट पर कुछ देर के लिये जरुर आता था, ओर दिन मे एक टिपण्णी जरुर दे देता था, फ़िर साली साहिबा अपने बाल बच्चो के संग वापिस चली गई, हमे छोड के ... जब कि मोसम बहुत अच्छा था तो हम ने अपने गार्डन मे ही थोडी बहुत नही... बहुत ज्यादा सफ़ाई कर ली, ओर क्यारी तेयार कर ली, जिस मे कल धानिया, पुदिना, हरी मिर्च के बीज ओर सरसो वो दुंगा, यहां माली भी तो खुद बनाना पडता हे,ओर यहां का धानिया उतना अच्छा नही होता जितना खुश्बु दार अपना धानिया होता हे, ओर पुदिना तो बहुत किस्म का मिलता हे, लेकिन अपने वाला ही हमे पसंद हे, इस लिये वोही वो लेते हे, फ़िर सरसो तो यहां खेतो मे खुब होती हे, लेकिन उस पर दवा बहुत छिडकते हे, दुसरा उसे हम तोड भी नही सकते बिना पुछे, क्योकि वो चोरी हुयी इस लिये हम उसे भी वो लेते हे, थोडी जगह मिलती हे तो उस मे हरी मिर्च, ओर प्याज वो लेते हे, बाकी जगह पर फ़ुल ओर घास , हां गमलो मे टमाटर भी तो बोते हे, ओर कद्दू भी बोते हे, एक बार हमारे यहां कद्दू २५ किलो का हुआ था.
हम जब भी यहां अपना खाना( भारतिया) खाते हे तो दांत पीले पड जाते थे, बच्चो ने तो सब्जी खानी ही छोड दी या बिना हल्दी के सब्जी बनती थी, किसी ने बताया की हल्दी मे यह रंग डालते हे, जो सब्जी मे रंगत लाता हे, ओर हमे तो स्वादिस्ट सब्जी चाहिये बिना रंग के, तो भाई पिछली बार हम साबूत हल्दी १ किलो लेते आये भारत से, अब इसे यहां पीसे कैसे, पहले हथोडी से तोडनी चाही, लेकिन बिखर जाये, फ़िर पेपर मे लपेट कर तोडनी चाही, वो भी काम नही बना जो थोडी बहुत टूटी उसे पीसना बहुत कठिन, पुरे सप्ताह मे दो चम्मच ही पीस पाये.
लेकिन भारतिया दिमाग जुगाड से ही काम चलता हे ना, जैसे हमारा देश भी तो जुगाड से.... तो जनाब हमने पुरानी जींस का एक हिस्सा जेब की तरह से सिल कर उस मे हल्दी को पहले तोड कर ( हाथोडी से) छोटा किया, फ़िर उसे अपनी छोटी कुंडी मे थोडा ओर छोटा किया, फ़िर उसे अपनी चक्की मे पीस कर बारीक किया, ओर फ़िर उस से सब्जी बनाई जिस मे स्बाद बहुत अच्छा बना सब्जी का, ओर रंग बिलकुल भी नही, दांत बिलकुल साफ़, आप भी देखे हमारी चक्की नीचे सब चित्र दे रहा हुं.
वैसे हम गर्म मासाला, ओर अन्य मसाले भी घर पर ही पीस लेते हे, बाजार से पीसे समान से डर लगता हे, वैसे तो यहां मिलाबट नही होती लेकिन अपने लोग रंग तो मिला ही देते हे... चलिये अब हमारी चक्की देख ले, वैसे इस चक्की वाली मोटर से हम सब्जियां भी काट लेते हे, आटा भी गुथ लेते हे, चिपस, भी बनाती हे कीमा भी बन जाता हे, ओर फ़लो का जुस भी इसी से निकला जा सकता हे.
इस मशीन मे दो बार इस हल्दी को डाला पहली बात चने जितनी बडी हल्दी थी, जब बार निकली तो काफ़ी बारीक थी, फ़िर दोबारा डाली तो पाऊडर बन कर निकली, आधा किलो को समय करीब १ घंटा लगा, साबूत से पाऊडर बनाने मे लेकिन बिलकुल साफ़ सुधरी ओर बिना रंग के. बताई केसी लगी.
वैसे आप लोग भी सब मसाले घर मे ही पीसे तो कितनी मिलावट से बच सकते हे, गर्म मसाला जो पिसा पिसाया बाजार मे मिलता हे उस मे क्या क्या मिलाया जाता हे अगर यहां लिख दुं तो आप आज खाना नही खायेगे:) आज तो घर घर मे मिक्सर हे, तो घर मे ही गर्म मसाले ओर मिर्च ओर अन्य समाग्री पीस ले हल्दी भी घर मे ही किसी से पिसवा ले, मिलवटी खाने से कुछ तो बचता हो.
आज भी मेहमान आ रहे हे, कुछ ही समय के बाद, पता नही कितने दिन रहेगे, हमे तो खुशी होती हे, मेहमान आने पर, लेकिन उस के कारण आप सब से दुर हो जाता हुं, चलिये अब कपडे बदल लुं पता नही कब डोर बेल बजे... राम राम
आप तो मेहमान नवाजी कीजिये ..हल्दी की पिसाई कुटाई बढ़िया रही ...घर के पिसे मसालों की बात ही कुछ और है ...हम भी घर में ही पीसते हैं ..पर हल्दी नहीं पिसती ...बाकी सब मसाले घर में ही बनाये जाते हैं ...अच्छा तरीका बताया हल्दी पीसने का ...
ReplyDeleteबोते हैं, उगाते हैं, काटते हैं, घूमाते हैं, पीस कर प्रैक्लिकल दिखाते हैं और तो और खतनाक टाइप के समाचार (पिछली पोस्ट) पढ़कर चटखारे लगाते हैं...राज साहब आप तो कमाल करते हैं। आपको कौन बुढ्ढा कहेगा! आप तो चिर युवा हैं।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत रोचक संस्मरण ....अब पता चला की आप खेती भी कर लेते हैं .....आपके मसाले ...खुशबु हिमाचल तक बिखेर गए ...आपका आभार
ReplyDeleteचोखा रंग.
ReplyDeleteबड़ी रोचकता से आपने यह विषय प्रस्तुत किया।
ReplyDeleteआप की वर्णन शैली बेहद रोचक ....
ReplyDeleteमसाले तो घर में ही पीसते हैं ,बस ये हल्दी ही हल्दीघाटी के युद्ध की याद दिला जाती थी । आपसे सीखने के बाद हल्दी की भी खैर नहीं रहेगी ....आभार !
haldi pisne ka achchha yantra dikhaya aapne aur use pisne ke tarike bhi bataye jise padhkar achchha laga ,iski rasoi me aham bhoomika hai .
ReplyDeleteक्या बात है भाटिया जी । जर्मनी में भी खेती बाड़ी कर रहे हैं । या साली गई तो माली बन गए ?
ReplyDeleteएक दो फोटो भी छाप देते घरेलु खेतों का , तो और मज़ा आ जाता जी ।
up me yah yantra mil jaayega kya..
ReplyDeleteभाटिया साहब ,मजेदार पोस्ट लगा दी आपने तो | हल्दी को अगर तवे पर गर्म करके तोड़ा जाए तो यह बहुत आसानी से टूट जाती है और बिखरती भी नहीं है | आगे से किसी भी प्रकार का आइडिया चाहिए तो मै हूँ ना आपकी सहायता के लिए | जर्मनी में आपने बाजरे की खिचड़ी खाई है या नहीं ?अगर नहीं तो मै बताऊंगा की आप इसे जर्मनी में कैसे बना सकते है | अगर वंहा बाजरा उपलब्ध हुआ तो |
ReplyDeleteब्लॉग परिवार पर आपके खूबसूरत गीतों का आनन्द लेकर लौट जाते थे..रसोईघर आधा डॉक्टर होता है, इसलिए हल्दी का नाम देखा तो इधर पहुँच गए.. बहुत रोचक जानकारी मिली..आभार
ReplyDeleteबड़ी रोचकता से आपने यह विषय प्रस्तुत किया। धन्यवाद|
ReplyDeleteअरे ब्लोगर मित्रों ! देखा आपने "जीजू" शब्द कितना लचीला(नर्म दिल ) है !!!! :)
ReplyDeleteघर की पिसी हल्दी का तो जवाब ही नहीं!
ReplyDeleteयह हर दृष्यि से स्वास्थ्यवर्धक है!
हम तो बाजार से साबुत हल्दी खरीदकर उसे अपने सामने चक्की में पिसवाकर लाते हैं!
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5 किलो चने की दाल सुखाकर वेसन भी अपने सामने ही पिसवाकर लाते हैं!
हल्दी पुराण रुचि के साथ पढ़ा, बड़ा स्वादिष्ट लगा।
ReplyDeleteविदेशी धरती पर भारतीय रसोई ! प्रेरक प्रयास है आपका.
ReplyDeleteऐ ल्योजी आप तो हल्दी पाकर पूरे पंसारी ही बन गए :)
ReplyDeleteभाटिया जी, आपने तो वाकई बहुत मेहनत की है। वैसे जहाँ आप इतनी सारी दूसरी चीज़ें उगाते हैं वैसे ही हल्दी भी घर में उगा सकते हैं।
ReplyDeleteहल्दी पीसने की मशीन अच्छी लगी ...आम मिक्स़र से कुछ अलग है ..
ReplyDeleteघर में उगाई गयी सब्जियों की तो बात ही क्या है ...एक दो तस्वीरें उनकी भी होनी चाहिए थी !
आदरणीय भाटिया जी
ReplyDeleteनमस्कार !
......रोचकता से आपने यह विषय प्रस्तुत किया।
दराल सर ने बढ़िया टाइटल दिया है...फिल्म बननी चाहिए...
ReplyDeleteसाली गई तो बने माली...
वैसे हल्दी से इतना मोह तो शादी से पहले चेहरे वगैरहा पर लगाने के लिए होता है...राज जी इरादे क्या हैं...
जय हिंद...
पराये देश में अपने देश के स्वाद को जिन्दा रखने की चाहत में आधी खेती तो आपको आ गई ।
ReplyDeleteहल्दी की वास्तविक रंगत को बनाये रखने के खटकरम काफी लगे लेकिन अंततः लक्ष्यपूर्ति हेतु बधाई...
पराये देश में हल्दी की कुटाई पिसाई .... बहुत बढ़िया .....यह देसी स्वाद सदा बना रहे ...
ReplyDeleteचलिए हल्दी लगकर भी रंग चोखा !
ReplyDeletewaah... badhiyaa raha haldi ka pisna, ab darwaza kholiye mehmaan aa gaye hain
ReplyDeleteहमने तो घर में एक चक्की ला रखी है, उसमें गैहूं, मसाले सभी पिस जाते हैं। हल्दी को पहले कूटना अवश्य पड़ता है। आपने आखिर सफलता प्राप्त कर ही ली।
ReplyDeleteवाह क्या जुगाड़ भिड़ाई है, मज़ा आ गया खा कर, ओह, सॉरी पढकर।
ReplyDeleteजहां चाह वहां राह!
वाह जी वाह बढ़िया काम है ये तो ..इसे घरेलु उद्द्योग धंधे में भी परिवर्तित किया जा सकता है.फिर बाकी लोगों को भी बिना मिलावट मसाले मिलेंगे.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जी. हल्दी बिना खाना अधूरा है. पोस्ट पढ़कर मज़ा आया. आप मेहमानों का स्वागत कीजिये :))
ReplyDeleteबहुत ही रोचक |
ReplyDeleteबिलकुल सही और सच्चाई को उजागर किया है आपने ! ताऊ जी ...कभी - कभी आप की लेखनी के जबाब नहीं ! वैसे यूरोप के असली जिंदगी को आपने अच्छी तरह सामने रखा दिया !
ReplyDeleteबढ़िया हल्दी पीसी आपने :-)
ReplyDeleteआनंद आ गया आपकी सरल भाषा शैली बड़ी सोनी लगती है भाई जी ! मनोरंजक पोस्ट के लिए आभार !
राम राम ....
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने ...ताकि अपने देश का स्वाद बना रहे
शिखा जी की बात पर गौर फरमायें।
ReplyDeleteकिसानी, बढईगिरी, मिस्त्री
आप सारे काम कैसे कर लेते हैं, हैरानी होती है जी
प्रणाम
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ReplyDeleteWow ! Great cook !
Glad to know you are master in all trades.
Bhatia ji , You are a Champion !!!
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अन्तर सोहिल भाई, यहां बाहर से काम करवाना बहुत महंगा पडता हे, पहले पहल गोरे मित्र हाथ बंटा देते थे, फ़िर उन्हे देख कर सब सीख गया, यहां सभी लोग घर के काम खुद ही करते हे, घर की सफ़ेदी, रंग रोगन, छोटा मोटा रिपेयर का काम, बाश मशीन की थोडी बहुत रिपेयर,यह काम मुश्किल भी नही, जुते भी हमी पालिस करते हे घर मे, ओर साईकिल मे पंचर भी खूद ही लगाओ, उस की रिपेयर भी खुद ही करो... सारे काम खुद करो अगर कोई काम नही आता तो साथी को बुला लेते हे, जब वो काम करता हे तो हम ध्यान से उसे देख लेते हे, बदले मे उसे नगद या होटल मे खाना खिला दिया, बियर पिला दी... जिन्दगी इसी का नाम हे, ऎश करो अपनी कमाई से, लेकिन पहले बचत करो ऎसे, यह गुर हे गोरो का, जो मैने भी अपना लिया, फ़िर अपना काम करने मे शर्म केसी
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने ...ताकि अपने देश का स्वाद बना रहे
ReplyDeleteदो जी के बीच में फंसे राज जी ( यानि जीजाजी ) , वैसे राज जी भारत में भी २ जी में फंसा राजा है |
रोचक संस्मरण ....
ReplyDeleteरोचक और उपयोगी रही ये हल्दी पीसने की कथा ...
ReplyDeleteआपने सफलता प्राप्त कर ही ली...
घर के पिसे मसालों का कोई जबाब नहीं
ghar me pise masalon ki bat hi aur hai....aapne itani mehnat ki aur vo mehnat asli rang layee bina milavat ke badhai...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा जान कर कि आप बगीचे में भी सब्जिया संवयम उगाते और घर का मसाला इस्तेमाल करते है ..
ReplyDeleteराम-राम जी,
ReplyDeleteये जान कर बहुत ही अच्छा लगा कि आप ज्यादातर कार्य स्वयं ही करने में रुचि रखते हो।
मैंने भी बाइक में पंचर लगाना सीख लिया है, आप वाले बाकि कार्य तो जाट खोपडी को पहले से करने आते है, जो नहीं आते, वहाँ जुगाड से काम चलाते है।
bahut achha laga ye post jankari se bhari hui rahi....achha kaha aapne milavati vastu se bachna hai to ghar par ki chuna hua taiyara kiya khady samgri istemal kiya jana achh hai........
ReplyDeleteइतने दिनों की गैर-मौजुदगी का राज आज जाकर खुला। नहीं तो ध्यान तबीयत ही पर पहले जाता है। चलिए चिंता दूर हुई। बीच-बीच में खैरो-खैरियत लेते रहिएगा।
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