जापान के समाचार आप सब दिन भर टी वी पर देखते ही होंगे, हमारे यहां हर घंटे मे कम से कम एक बार जापान के बारे समाचार आते हे, सच मे उन लोगो पर बहुत सारी विपदा एक साथ आई हे, देख कर दिल उदास हो जाता हे, हम टी वी पर देख कर ही डर जाते हे, जिन पर बीत रही होगी, जिन की जिन्दगी भर की कमाई इस तबाही मे खो गई, पुरे का पुरा परिवार खो गया उन पर क्या बीती होगी....
चलिये अब असली बात पर आता हुं, सारा दिन जब जापान के समाचार टी वी पर देखते हे, तो हर जगह उन के साईन बोर्ड, दुकानो के, सडको के हाई वे के सब के सब सिर्फ़ जापानी भाषा मे ही हे, ओर जो लोग(विदेशी) वहां गये होंगे उन्हे बहुत कठिनाई होती होगी..... जापान ने हमारे साथ ही अपनी यात्रा शुरु कि थी, वो भी दुसरे विश्व युद्ध मे पुरी तरह से तबाह हो गया था..... आज हम कहां हे ओर जापान कहां? हम ने अग्रेजी की बेसाखियां पकड ली, ओर अपनी मात्र भाषा को नीचे रद्दी की टोकरी मे फ़ेंक दिया, भारत मे जहां भी नजर दोडाओ सब तरफ़ अग्रेजी ही अग्रेजी.... हिन्दी कही कोने मे या किसी साईन बोर्ड मे अग्रेजी के नीचे पतले से अक्षरो मे लिखी मिल जाये गी, वो भी गलत, हमे बस दो ही बाते आती हे, पहली अग्रेजी इंट्नेशनल लेंग्वेज हे जरुर सीखनी चाहिये, दुसरी.... अग्रेजी के बिना देश तरक्की नही कर सकता, वाह एक नजर देखे अपने देश को हम ने जापान के मुकाबले कितनी तरक्की कर ली हे इस अग्रेजी की बेशाखी के सहारे, अगर हमारे देश मे भी हिन्दी राजकिया भाषा हो, ओर सब लोग जापानियो या अन्य देशो के लोगो कि तरह सिर्फ़ अपनी भाषा बोले , लिखे तो कितनी हस्तिया हे भारत मे जो नये से नये आबिषकार करने वाले हे, वो सिर्फ़ इस अग्रेजी के कारण आगे नही आ पाते,
दुनिया कि कोई भी भाषा सीखना गलत नही, बल्कि हमे जितनी भी अधिक भाषाऎ आये, उतना अच्छा हे, लेकिन उन भाषाओ को अपनी मात्र भाषा बनाना उचित नही, जापान की बनी चीझे दुनिया भर मे प्रसिद्ध हे,उन के हर पाकेट पर आज से २० साल पहले सिर्फ़ जापानी लिखी मिलती थी, ओर अब जापानी के संग सिर्फ़ अगेजी नही ओर भी बहुत सी भाषाऎ लिखी मिलती हे, तो क्या जापानियो ने हम से कम तरक्की की हे बिना अग्रेजी के, हां जापान ने हमारी तरह से गुलाम नही बनाये जो अग्रेजी सीख कर फ़िर इन गोरो के देश मे जा कर गुलामी ही करे, बहुत कम जापानी हे जिन्हे अग्रेजी तो आती हे लेकिन बोलते नही, हमे इन जापानियो से ही बहुत कुछ सीख लेना चाहिये, टी वी पर देखा चार चार दिन के भुखे हे, खाना मिलने पर सभी लाईन मे शांति से आते हे, कोई मार धाड नही, कोई झीना झपटी नही,आज से ९ साल बाद... यानि २०२० मे हम दुनिया की ताकत बनाने के सपने देख रहे हे... ३०२० तक भी हम यह सपना पुरा नही कर सकते, अगर हम ने अपने को नही बदला, जब तक हम अपनो से अपनी भाषा मे बात नही करेगे, अपनी भाषा को दिल मे स्थान नही देगे तब तक हम सिर्फ़ सपने देख सकते हे, सीखॊ इन जपानियो से...ईंडोनेशिया, मलेशिया, थईलेंड ओर यह अन्य छोटे छोटे देश ही हम से अच्छॆ हे जहां कम से कम यह लोग अपनी भाषा को इज्जत ओर मान से देखते हे, बोलते हे....
जिन पर बीत रही होगी, जिन की जिन्दगी भर की कमाई इस तबाही मे खो गई, पुरे का पुरा परिवार खो गया उन पर क्या बीती होगी....
ReplyDeleteis ghatna ne sabko hila diya ,aur jo gujara hai is daur se uska kya haal hua hoga bas soch hi sakte hai .badhiya likha hai .
बात तो सही है !
ReplyDeleteहर तरह से विचारणीय बात ......
ReplyDeleteभाटिया जी,
ReplyDeleteसादर निवेदन यह है कि ...
1. हम पसन्द करें या न करें, अंग्रेज़ी सच्चे मायनों में एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनकर उभरी है। जापानियों में भी अंग्रेज़ी सीखने और उन जैसा बनने का बडा क्रेज़ है, बस उनके लिये यह सब भारत जैसे हो नहीं पाता है।
2. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान की सुरक्षा का ज़िम्मा अमेरिका ने लिया जबकि भारत का विभाजन होकर उसे अपने ही एक टुकडे से निरंतर युद्ध मे जूझना पडा। साथ ही चीन जैसे दानव से युद्ध, नेपाल, श्रीलन्का, मालदीव की अस्थिरता आदि समस्याओं से जूझना आसान नहीं था। इन सबके बावज़ूद भारत ने जितनी प्रगति की है उस पर किसी भी भारतीय को गर्व होना ही चाहिये।
मेरा भारत महान!
सही बात है जो अपना और अपनी भाषा का सम्मान नहीं करेगा वह क्या दूसरों के सम्मान की रक्षा करेगा...हिंदी को हमारे देश के भ्रष्ट और कुकर्मी राजनेता अपने बेईमानी के धंधे के चलते प्रचारित व प्रसारित नहीं होने देना चाहते हैं....
ReplyDeleteयह सचमुच दुखद है हम अपनी भाषा का विकास नहीं कर सके -निज भाषा उन्नति अहै सब भाषा को मूल
ReplyDeleteसमाज का दो प्रतिशत उच्च वर्ग स्वयं को विशेष बताने के लिए अंग्रेजी की वकालात करता है इसी कारण भाषा के चक्कर में न जाने कितनी प्रतिभाएं आगे नहीं आ पाती। देश प्रगति तो तब करेगा जब बौद्धिक सम्पन्न लोग आगे आएंगे।
ReplyDeleteयहाँ भाषा सीखना मुद्दा नहीं लेकिन किसी एक भाषा को तरजीह देना और अपनी भाषा को उसके बाद का दर्जा देना कहाँ की समझदारी है ...आपके मत से सहमत हूँ भाटिया जी
ReplyDeleteहिन्दी को मान मिले, राह भी निकलेगी।
ReplyDeleteभारत में पहले संस्कृत को मार दिया, अब हिन्दी समाप्ति की ओर है. उर्दू को जरूर जीवित रखा जा सका है, सरकारी प्रयासों के चलते.
ReplyDeletebilkul sahi kaha
ReplyDeleteसही मायने में तरक्की चाहिए तो जापानियों के progressive attitude से बहुत कुछ सीखना होगा ।
ReplyDeleteकुछ लोग है जो यह चाहते है की हम अपनी भाषा पर गर्व ना करे इस विदेशी भाषा पर ही आधारित रहे | विदेशी कम्पनीयों की गुलामी करे |अगर नजर दौड़ा कर देखा जाए तो हमारे पास इतने साल बाद भी हमारी शिक्षा पद्धति नहीं है ,कानून भी विदेशी ही चल रहा है |फिर भी झूठा गर्व कर रहे हम विक्सित हो रहे है |हम ब्लोगर लोग भी हिन्दी को ठीक से अब तक इंटरनेट की दुनिया में वो मुकाम नहीं दिला पाए जो की इसे मिलना चाहिए था |भाटिया साहब हिन्दी बिना,भारतीय वैसे ही जैसे बिन माँ का बच्चा |
ReplyDeleteटीवी पर एक कार्यक्रम देखा था काफी पहले जिसमे बताया गया था की जब जापानियों को अंग्रेजी नहीं आती थी तो उन्हें बाहर के देशो में अपना सामान आदि बेचने में काफी मुश्किल आती थी सुभाष चन्द्र बोस के वहा जुड़ने के कारण वहा भारतीयों से काफी लगाव था सो भारत से कुछ अंग्रेजी जानने वालों को बुलाया गया ताकि वो अपना व्यापर विदेशियों से कर सके ये भारतीय परिवार समेत वहा रहने लगे इन २०० लोगो को वहा बड़े सम्मान और हर सुविधा के साथ रखा गया वो अब भी जापान में ही बसे है | किसी भी भाषा को सीखन बुरा नहीं ही पर अपनी भाषा का अपमान नहीं करना चाहिए उसे हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए | वैसे भारत में तो लोगो की कोई एक मात्री भाषा तो है नहीं |
ReplyDeleteयहाँ तो हम लोग बस एक सीधा सा जबाब देते है विविधता में एकता ! राष्ट्र भाषा क्या है, संविधान में भी स्पष्ट नहीं है और तमिलनाडु जैसे प्रदेश है जहां या तो तमिल बोला या फिर अंगरेजी अगर गलती से हिन्दी बोल दी तो .....!
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट है जी, आभार
ReplyDeleteयहां बहुत सारे सरकारी कागजों (फार्मों)को केवल अंग्रेजी में तैयार किया जाता है, जबकि उन फार्मों पर जो सूचना आदि देनी होती है वो आम जनता को देनी होती है।
सरकार द्वारा उपलब्ध बहुत सारी सूचनायें केवल अंग्रेजी में ही दी जाती हैं।
स्कूलों के एडमिशन फार्म भी केवल अंग्रेजी में ही होते हैं।
यानि कि अपने देश में ही अपनी भाषा को सम्मान नहीं मिल रहा है।
प्रणाम
अच्छा लिखा है. बधाई
ReplyDeleteजागरूकता आ रही है उम्मीद पर दुनिया कायम है ..आशा है अपनी भाषा की कद्र करना सीखेंगे हम.
ReplyDeleteवाकई ! हिन्दुस्तान में हिन्दी सबसे उपर रहना चाहिये लेकिन या तो क्षेत्रीय भाषाएँ या फिर अंग्रेजी के वर्चस्व के चलते हिन्दी भाषा अपने ही देश में पिछड रही है यह दुर्भागयपूर्ण स्थिति लगती है ।
ReplyDeleteसटीक और सार्थक लेख ...आज भी हम अंग्रेज़ी के गुलाम ही हैं
ReplyDeleteआपकी बात तो सही है पर जापानियों के पास एक ही भाषा है 'जापानी'. हमारे यहां तो ढेरों भाषाएं हैं और उस पर तुर्रा ये कि यह भाषाएं वोट हथियाने के काम भी आती हैं तो ऐसे में 'न तेरी न मेरी' के सिद्धांत के चलते भारतीयों की दुनिया अंग्रेज़ीमय तो दिखती ही है फिर इसके चलते बड़प्पन की डींग हांकने का भी मौक़ा मिल जाता है सो अलग:)
ReplyDeleteभाषा और संस्क्रुती छोडने वाली कौमे अपना वजूद ही खो देती हैं
ReplyDeleteनिज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
ReplyDeleteअपनी भाषा से ही उन्नति संभव है।
आपसे सहमत।
आप सभी ला धन्यवाद, आप सब के विचारो का स्वागत हे,
ReplyDelete@ Kajal Kumar जी आप की बात सही हे, लेकिन भारत जैसे हर देश मे हर बीस मील पर भाषा बदल जाती हे, यहां जर्मन भाषा जो राष्ट्रिया भाषा कहलाती हे , वो बोलने ओर लिखने मे पुरे जर्मनी मे एक हे, लेकिन इन की हर स्टेट की भाषा बोलने चालने मे अलग हे, ऎसे ही जापान मे भी जापानी भाषा तो एक हे, लेकिन वहां भी जरुर अलग अलग स्टेट की अलग बोलने की भाषा होगी,हिन्दी राष्ट्रिया भाषा हो ओर दुसरे स्थान पर अपने अपने राज्य की भाषा हो, इस से भारत को ओर भारत के नागारिको को ही लाभ होगा, अग्रेजी, ओर अन्य भाषाओ का हमे ग्याण हो अच्छा हे... लेकिन अपने देश मे अपने लोगो से अपनी भाषा मे ही बात करे, अपने आफ़िस मे अपनी भाषा मे ही लिखे पढे, तभी हम तरक्की भी कर सकेगे,
राज जी,
ReplyDeleteइतनी बड़ी आपदा के बाद भी जापान और वहां के लोगों ने जो हौसला दिखाया है, उसकी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलती...मैं एक अखबार में छपी दो तस्वीरें देख कर हैरान रह गया...ग्यारह तारीख को भूकंप और सुनामी के बाद जापान का एक हाईवे बुरी तरह चरमरा गया...जैसे किसी खिलौने को तोड़-मरोड़ दिया जाता है...लेकिन दस दिन बाद उसी हाईवे की तस्वीर में वो फिर पूरी तरह चमकता हुआ दुरूस्त हालत में नज़र आ रहा है....यानि दस दिन में ही जापान के इंजीनियरों ने हाईवे को फिर वैसा ही बना दिया जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो...क्या ये हमारे देश में हो सकता है...
जय हिंद...
भारत की हर समस्या की जड़ आबादी है.
ReplyDeleteजब तक आबादी का बढना नहीं रुकेगा.
हमारी भाषा ही नहीं,हर चीज़ का ह्रास होता रहेगा.
आपने बिलकुल सही फरमाया है राज जी!....जर्मनी मे भी मैने देखा कि इंग्लिश में किसी से कुछ पूछ्ने पर लोग जवाब नही देते बल्कि मुंह फेर लेते है लेकिन अगर हिंदी मे पूछा जाए तो बडे आदर से पेश आते है,मुस्कुराते है और समझने की कोशिश करते है!...इंग्लिश को न जाने क्यों हमारी भारत सरकार ने सिर पर उठा रखा है!
ReplyDeleteबिलकुल सही फरमाया
ReplyDeleteविचारणीय बात ......
आपने सही कहा है ... जब तक हम अपनी पहचान पर गर्व नही करते ... उसे सबसे उत्तम नही मानते .... कुछ भी नही कर सकते ...अपनी भाषा .. अपना देश ... अपनी सभ्यता ... सभी को पॉनरस्थापित करना और उसपे गर्व करना होगा ...
ReplyDeleteजाट देवता की राम राम।
ReplyDeleteभारत में उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम चारों कोनों में तींन हजार किलोमीटर से ज्यादा का फ़ासला है। सबसे बढकर घटिया राजनीति नहीं होने देगी, हिन्दी को देश की बिन्दी ।
सरकार जहाँ पार्क बनवाने अरबो रूपये बर्बाद कर रही है ,वही हिंदी में कंप्यूटर बनाने की कोई पहल नही है
ReplyDeleteयह तक हिंदी बोलने वाले को दुसरे स्तर का समझा जाता है ,उसकी तरकी का कोई मौका नही है
बिलकुल सही फरमाया है आपने...
ReplyDeleteयहाँ भाषा सीखना मुद्दा नहीं लेकिन किसी एक भाषा को तरजीह देना और अपनी भाषा को उसके बाद का दर्जा देना कहाँ की समझदारी है ..
ज़बरदस्त और सही बात उठाई है आपने.
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