मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
09/11/10
जब बेटा/बेटी जवान होने लगे तो....
आज एक सवाल का जबाब, जिस का जबाब मुझे नही मिल रहा आप सब से जानना चाहता हुं....
जब २० साल के बेटे/बेटी के पर्स मे आप को कंडोम दिखे तो हमे अपने बेटे/बेटी से केसी बात करनी चाहिये? उसे केसे समझाये? इस बारे उस से क्या बात करे?ओर केसे शुरुआत करे?
शादी से पहले और शादी के बाद...हमें नेतिकता का पालन करना चाहिए ....बाकि उन पर छोड़ देना चाहिए ..क्योंकि व्यभिचार हमारी संस्कृति नहीं है ...तो जेब में कंडोम का प्रश्न ही नहीं उठता ...?..
अच्छा है कि इसी आयु में हम अपने बच्चों को शिष्टाचारिक नियमों, सामाजिकरीति रिवाजों को सीखाएं. सबसे पहले माता- पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए पवित्रता तथा नैतिकता का उदाहरण बने ताकि बच्चे उनसे इसे सीख सकें। अगर बचपन मैं सही शिक्षा दी जाए तो युवावस्था मैं अधिक दिक्क़तों का सामना नहीं करना पड़ता है
बड़ी कठिन स्थिति है. लेकिन मित्रवत व्यवहार करते हुये इस आचरण के दुष्परिणामों को बताना ही श्रेयस्कर होगा.. बाप बेटी के साथ उतना खुलकर इन्ट्रैक्ट नहीं कर सकता यद्यपि बेटे के साथ भी कमोबेश यही स्थिति है. फिर भी समझदार बेटे-बेटी को इशारा ही पर्याप्त है. पश्चिमी संस्कृति का बहाव विचलित तो कर सकता है लेकिन बहा नहीं सकता.
प्रारम्भ में यह तो बताना ही पड़ेगा कि क्या देखा और कहां देखा. और यह भी कि हमारे संस्कारों के अनुरूप यह सब नहीं है. चार बातें ही पर्याप्त हैं और मुझे लगता है कि वे सब समझ जायेंगे. इति शुभम.
जवान होते बच्चो की जेब टटोलनी ही नही चाहिये विदेश की संस्क्रति के हिसाब से . और अपनी संस्क्रति में यदि उसकी जेब में कंडोम है तो वह काफ़ी समझदार है यह मानना चाहिये
हमें तो नीरज का जवाब पर बड़ी हँसी आ रही है। सच है राम राम ही भजना चाहिए। हम ऐसे तो कर नही सकते कि उसके पर्स से निकालकर अपने पर्स में रख लें? इशारे से समझाया ही जा सकता है। प्रश्न बहुत सार्थक है लेकिन उत्तर शायद किसी के पास नहीं। क्योंकि हम उस संस्कृति के वाहक है जहाँ विवाह के पवित्र बंधन के बाद ही गृहस्थी का प्रारम्भ होता है इसलिए हम तो इन सबकी कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन आधुनिक संस्कृति में विवाह और गृहस्थी दोनों ही समाप्त होते जा रहे हैं तो यही सब नवीन पीढी को ठीक लगता है। इसलिए पहले कहा जाता था कि जेनेरेशन गेप है लेकिन अब मैं तो कहती हूँ कि संस्कृति का अन्तर है।
नीरज के जवाब से मुस्कुरा उठा। लेकिन उसने सहज शब्दों में बड़ी गंभीर बात कह दी। राम राम भजने से ही इस समस्या का हल निकल सकता है। आज की युवा पीढी का सोचने का अपना ढंग है। वे दुनिया को अपने नजरिए से देखते हैं। एक पिता द्वारा इस विषय पर अपने पुत्र से चर्चा करना बड़ा ही कठिन है। इतना खुला पन हमारे समाज में अभी नहीं आया है। इसलिए राम राम भजना ही ठीक है।:)
पाश्चात्य देशों में यह बहुत आम बात है ...वहाँ इस उम्र के बच्चे वर्जिन होते हैं तो उनकी मित्र मंडली में शंका की दृष्टि से देखा जाता है ....ऐसा मैंने सुना है ...भारत की संस्कृति अलग है ...लेकिन आज कल यहाँ भी पाश्चात्य शैली की छाप दिख रही है ...यदि आपको लगता है की आपकी बात का कुछ असर होगा तो आप इस विषय पर खुल कर बात करें , नहीं तो राम रम ही भजना सही है ..
हम बेटे-बेटी को इतना ही बता सकते हैं कि शारीरिक सम्बन्धों के लिये समाज और कानून द्वारा शादी का नियम हैं और शादी के बिना ऐसे सम्बन्ध बनाना भविष्य में हानिकारक हो सकता है।
वैसे तो मै कुवारा हु सतान के पछ का तो पता नही यदि मेरे जेब में कंडोम निकल आये तो इनता पता है मेरे पिता जी को दुःख होगा और मुझे भी शर्म आएगी साडी से पहले उसकी कोई जरुरत ही नही
पर जैसे मेरे कुछ दोस्त मित्र इस लाइन में जाये तो इसका प्रयोग भी जरुरी है
बच्चों के साथ मित्रवत संवाद होते रहना चाहिए..यह संवाद पिता करे या माता मगर किसी न किसी को यह जिम्मेदारी तो निभानी ही पड़ेगी. माँ के साथ बच्चे अधिक खुल कर बात करते हैं अतः उचित होगा कि यह काम माँ ही करे। किशोरावस्था तक यह संवाद जारी रहता है तो ऐसी स्थिति नहीं आती...बाकी हारे को हरि नाम..
अब आश्चर्य कैसा? सुप्रीम कोर्ट के बताये रास्ते पर ‘लिव-इन’ टाइप जिंदगी में आगे चलने की तैयारी कर रहे बच्चे यदि अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं तो क्या किया जा सकता है? बस राम-राम...।
समझाना हमारा कर्तव्य है , संस्कारी बच्चे माँ बाप की बात ध्यान से सुनते भी हैं, ऐसा मेरा मानना है। सही दिशा निर्देश करना आवश्यक है और हमारे बच्चे इसे समझेंगे भी , ये तयशुदा बात है।
हमारे हाथ केवल इतना ही है कि हम बच्चों को अच्छे बुरे का ज्ञान बचपन से ही करते रहें,इसके आगे बच्चे अपने परिवेश से क्या ग्रहण करेंगे और क्या नहीं,इसपर हमारा अधिक वश नहीं...
बस ईश्वर से उनके सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करते रहना चाहिए और क्या कर सकते हैं..
अप कंडोम की चिंता छोड़ कर ये पता करो के आपके बच्चे के सम्बन्ध किसके साथ हैं ! फिर आप कंडोम्स के बारे में बात करने की बजाये उसे प्यार से ये बताओ के आपको उनके संबंधो के बारे में जानकारी है ! आगे का रास्ता आपको खुद मिल जायेगा ! अगर आप कंडोम न देखते तो आपको कभी पता न चलता के आपका बच्चा... अब उसके बारे में आपको पता है, आप समझदारी से काम लीजिये ! 09653654549
नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये
शादी से पहले और शादी के बाद...हमें नेतिकता का पालन करना चाहिए ....बाकि उन पर छोड़ देना चाहिए ..क्योंकि व्यभिचार हमारी संस्कृति नहीं है ...तो जेब में कंडोम का प्रश्न ही नहीं उठता ...?..
ReplyDeleteराम राम भजना चाहिये।
ReplyDeleteअच्छा है कि इसी आयु में हम अपने बच्चों को शिष्टाचारिक नियमों, सामाजिकरीति रिवाजों को सीखाएं. सबसे पहले माता- पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए पवित्रता तथा नैतिकता का उदाहरण बने ताकि बच्चे उनसे इसे सीख सकें। अगर बचपन मैं सही शिक्षा दी जाए तो युवावस्था मैं अधिक दिक्क़तों का सामना नहीं करना पड़ता है
ReplyDeleteबड़ी कठिन स्थिति है. लेकिन मित्रवत व्यवहार करते हुये इस आचरण के दुष्परिणामों को बताना ही श्रेयस्कर होगा.. बाप बेटी के साथ उतना खुलकर इन्ट्रैक्ट नहीं कर सकता यद्यपि बेटे के साथ भी कमोबेश यही स्थिति है. फिर भी समझदार बेटे-बेटी को इशारा ही पर्याप्त है. पश्चिमी संस्कृति का बहाव विचलित तो कर सकता है लेकिन बहा नहीं सकता.
ReplyDeleteप्रारम्भ में यह तो बताना ही पड़ेगा कि क्या देखा और कहां देखा. और यह भी कि हमारे संस्कारों के अनुरूप यह सब नहीं है. चार बातें ही पर्याप्त हैं और मुझे लगता है कि वे सब समझ जायेंगे. इति शुभम.
ReplyDeleteजवान होते बच्चो की जेब टटोलनी ही नही चाहिये विदेश की संस्क्रति के हिसाब से . और अपनी संस्क्रति में यदि उसकी जेब में कंडोम है तो वह काफ़ी समझदार है यह मानना चाहिये
ReplyDeleteपुरानी कहावत हैः
ReplyDelete"जब बाप का जूता बेटे के पाँव में पूरा आने लगे तो उसके साथ बराबरी का और दोस्ती का व्यवहार किया जाना चाहिए!"
ऐसे समय में मौन धारण करना ही श्रेयस्कर होगा जी!
ReplyDeleteइन प्रश्नों का उत्तर सबको चाहिये। संस्कृतियाँ अपना प्रवाह दिखाती हैं।
ReplyDeleteहमें तो नीरज का जवाब पर बड़ी हँसी आ रही है। सच है राम राम ही भजना चाहिए। हम ऐसे तो कर नही सकते कि उसके पर्स से निकालकर अपने पर्स में रख लें? इशारे से समझाया ही जा सकता है। प्रश्न बहुत सार्थक है लेकिन उत्तर शायद किसी के पास नहीं। क्योंकि हम उस संस्कृति के वाहक है जहाँ विवाह के पवित्र बंधन के बाद ही गृहस्थी का प्रारम्भ होता है इसलिए हम तो इन सबकी कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन आधुनिक संस्कृति में विवाह और गृहस्थी दोनों ही समाप्त होते जा रहे हैं तो यही सब नवीन पीढी को ठीक लगता है। इसलिए पहले कहा जाता था कि जेनेरेशन गेप है लेकिन अब मैं तो कहती हूँ कि संस्कृति का अन्तर है।
ReplyDeleteनीरज के जवाब से मुस्कुरा उठा। लेकिन उसने सहज शब्दों में बड़ी गंभीर बात कह दी। राम राम भजने से ही इस समस्या का हल निकल सकता है।
ReplyDeleteआज की युवा पीढी का सोचने का अपना ढंग है। वे दुनिया को अपने नजरिए से देखते हैं। एक पिता द्वारा इस विषय पर अपने पुत्र से चर्चा करना बड़ा ही कठिन है। इतना खुला पन हमारे समाज में अभी नहीं आया है।
इसलिए राम राम भजना ही ठीक है।:)
यह बड़ा कठिन दौर होता है हर माता पिता के लिए........ मुझे लगता है खुलकर बात कर लेनी चाहिए........
ReplyDeleteपाश्चात्य देशों में यह बहुत आम बात है ...वहाँ इस उम्र के बच्चे वर्जिन होते हैं तो उनकी मित्र मंडली में शंका की दृष्टि से देखा जाता है ....ऐसा मैंने सुना है ...भारत की संस्कृति अलग है ...लेकिन आज कल यहाँ भी पाश्चात्य शैली की छाप दिख रही है ...यदि आपको लगता है की आपकी बात का कुछ असर होगा तो आप इस विषय पर खुल कर बात करें , नहीं तो राम रम ही भजना सही है ..
ReplyDeleteअजित जी और संगीता जी दोनो का कहना सही है बाकि प्रश्न ही ऐसा है कि सभी को मूक कर दे।
ReplyDeleteGood taht they are careful!
ReplyDeleteहम बेटे-बेटी को इतना ही बता सकते हैं कि शारीरिक सम्बन्धों के लिये समाज और कानून द्वारा शादी का नियम हैं और शादी के बिना ऐसे सम्बन्ध बनाना भविष्य में हानिकारक हो सकता है।
ReplyDeleteप्रणाम
इस मामले को घर में ही सुलझाना चाहिए ।
ReplyDeleteजब २० साल के बेटे/बेटी के पर्स मे आप को कंडोम दिख जाय तो वैसे कुछ करने को रह ही नहिं जाता।
ReplyDeleteलेकिन अवसर देखकर आत्म संयम के लाभ जरूर बताए जा सकते है। फ़िर भी निर्णय तो उसका ही होगा।
इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है | जब बच्चे बड़े हो जायंगे तब सोचेंगे |
ReplyDeleteअरे! वह तो समझदार हो गया है! अब और क्या समझाना।
ReplyDeleteइस उम्र में संतानों के पास अपनी सोच, अपना चिंतन, अपना तर्क होता है। वे समझाने पर शायद नहीं समझेंगे। वैसे, खुल कर चर्चा कर लेने में कोई हर्ज नहीं है।
ReplyDeleteवैसे तो मै कुवारा हु
ReplyDeleteसतान के पछ का तो पता नही यदि मेरे जेब में कंडोम निकल आये
तो इनता पता है मेरे पिता जी को दुःख होगा और मुझे भी शर्म आएगी
साडी से पहले उसकी कोई जरुरत ही नही
पर जैसे मेरे कुछ दोस्त मित्र इस लाइन में जाये तो इसका प्रयोग भी जरुरी है
बच्चों के साथ मित्रवत संवाद होते रहना चाहिए..यह संवाद पिता करे या माता मगर किसी न किसी को यह जिम्मेदारी तो निभानी ही पड़ेगी. माँ के साथ बच्चे अधिक खुल कर बात करते हैं अतः उचित होगा कि यह काम माँ ही करे। किशोरावस्था तक यह संवाद जारी रहता है तो ऐसी स्थिति नहीं आती...बाकी हारे को हरि नाम..
ReplyDeleteअब आश्चर्य कैसा? सुप्रीम कोर्ट के बताये रास्ते पर ‘लिव-इन’ टाइप जिंदगी में आगे चलने की तैयारी कर रहे बच्चे यदि अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं तो क्या किया जा सकता है? बस राम-राम...।
ReplyDelete.
ReplyDeleteसमझाना हमारा कर्तव्य है , संस्कारी बच्चे माँ बाप की बात ध्यान से सुनते भी हैं, ऐसा मेरा मानना है। सही दिशा निर्देश करना आवश्यक है और हमारे बच्चे इसे समझेंगे भी , ये तयशुदा बात है।
जो न समझे वो उसका दुर्भाग्य है।
.
हमारे हाथ केवल इतना ही है कि हम बच्चों को अच्छे बुरे का ज्ञान बचपन से ही करते रहें,इसके आगे बच्चे अपने परिवेश से क्या ग्रहण करेंगे और क्या नहीं,इसपर हमारा अधिक वश नहीं...
ReplyDeleteबस ईश्वर से उनके सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करते रहना चाहिए और क्या कर सकते हैं..
एक दोस्त बन बात करनी चाहिए !
ReplyDeleteबेटी या बेटी को मित्र मान कर बात और व्यवहार आरंभ कर देना चाहिए।
ReplyDeleteअप कंडोम की चिंता छोड़ कर ये पता करो के आपके बच्चे के सम्बन्ध किसके साथ हैं ! फिर आप कंडोम्स के बारे में बात करने की बजाये उसे प्यार से ये बताओ के आपको उनके संबंधो के बारे में जानकारी है ! आगे का रास्ता आपको खुद मिल जायेगा ! अगर आप कंडोम न देखते तो आपको कभी पता न चलता के आपका बच्चा... अब उसके बारे में आपको पता है, आप समझदारी से काम लीजिये ! 09653654549
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