यह साथ वाला चित्र किसान के घर का है जो दुर से लिया है, लिजिये आज बाते कम होंगी ओर आप को अब ले चलते है एक किसान के यहां, जहां से हम ताजा दुध भी खरीदते है, जब हम दुध लेने जाते है अगर किसान वहां हो तो तो हमे दुध नाप कर दे देता है, ओर हम उसे उतने पेसे दे देते है ( एक लीटर ०,५० Cent) ओर अगर किसान वहां ना हो तो हम अपने आप जितना दुध चाहिये बर्तन मै डाला, ओर हिसाब से पेसे डाले , अगर हमारे पास नोट है तो बाकी पेसे अपने आप निकाले ओर घर आ गये.
यह चित्र हम ने किसान के घर के पिछले हिस्से से लिया है, जहां इस के काम आने वाले कुछ यंत्र पडे है, ओर कुछ गंदा घास.
यह साथ वाला चित्र उस कुये का है जिस मै किसान के जानवरो के बाडे का गंद जमीन के अंदर ही अंदर इस कुये तक पहुच जाता है, जिस मै जानवरो का गोवर, मुत्र, ओर वहां का पानी शामिल होता है. ओर जो यह आसमानी रंग का मोटा सा पाईप नजर आ रहा है, इसे टेंक से जोड कर, उसे इस गोबर से भर कर खेतो मै छिडका जाता है खान के स्थान पर, ओर रासायनिक खादो का प्रयोग बहुत कम किया जाता है
यह किसान के घर का समाने का हिस्सा है, कुछ हिस्से मै वो रहता है बाकी हिस्से मै जावरो के रहने का इंतजाम है, उस के घर की दो खिडकियां ही इस चित्र मै आ पाई सब से पहले वाली, उस का रहने वाला घर भी काफ़ी बडा है
इस दवडॆ मै वो गाय है , जो अभी दुध नही दे रही या फ़िर जल्द ही बच्चे को जन्म देने वाली है, हर गाय का एक एक नाम है, ओर हर गाय नाम से झट कान खडे करती है, अभी हरी घास का मोसम है इस लिये मजे से खा रहि है हरी घास
ऊपर वाला चित्र, साथ वाला चित्र ओर नीचे वाला चित्र एक ही कमरे का है
यह है हमारा किसान भाई, बहुत अच्छे स्व्भाव का, ओर इस कमरे मै सारा दुध अपने आप इन पाईपो के जरिये आता है
गायो का दुध मशीनो से निकल कर इन पाईपो के रास्ते इस बडे से ड्रम मै भर जाता है, इस ड्र्म मै दुध को ठंडा करने की मशीन भी लगी है, ओर इस ड्रम मै करीब ६ से ८ सॊ लिटर दुध आ जाता है
यह सब दुधारू गाये है चित्र को बडा कर के देखे पिछली ओर कई तरह के पाईप लगे है, कोई पानी का है तो कोई दुध को दुसरे कमरे मै रखे ड्रम मै भेजने के लिये, साथ वाला चित्र लेफ़ट साईड का है ओर नीचे वाला चित्र राईट साईड का
यह चित्र बीच से लिया है, अभी गमी के कारण सारे दरवाजे खोल दिये गये है
यह लेफ़ट वाला चित्र गायो के पिछले की तरफ़ वाला लिया है, आप इस चित्र को बडा कर के देखे गायो का गोबर, मुत्र, ओर साफ़ सफ़ाई के बाद सारा पानी इस जाली दार नाली से बाहर कुये मै चला जाता है, ओर बाद मै यही सब खाद के काम आता है, यहां जमीन का पानी भी पीने के काम आता है, क्योकि कोई भी किसान आंखे बन्द कर के रास्यनिक खाद को अपने खेतो मै नही डाल सकता, ओर साल मै दो तीन बार जमीन के पानी को जगह जगह से चेक किया जाता है, ओर किसानो की फ़सलो ओर इस के जानवरो के दुध को भी चेक किया जाता है
जो सामने सुखा सा दिख रहा है यह पिछले साल की मक्की की फ़सल है, जिसे भुट्टॆ समेत काट कर ओर सुखा कर यहा स्टोर कर लिया जाता है, ओर फ़िर पुरी सर्दियो मै यही खाना चलता है, ओर साथ जो हरी रंग की घास दिख रही है, वो आज ही आई है, ओर इसी तरह से सारे साल का इंतजाम कर लेते है यहां के किसान
आज तो गाऊ माता ताजा ओर हरा घास खा रही है, साल मै तीन चार बार सरकारी कर्मचारी आ कर इन के जानवरो के दवडे को चेक करते है, जानवरो के खाने को भी चेक करते है, ओर इन की साफ़ सफ़ाई पर भी ध्यन देते है
इस ट्राली मै भी चारा ही लाया जाता है,
यह सुखी लकडियां है जो सर्दियो मै घर को गर्म करने के लिये जलाई जाती है, ओर किसान को यह उस के जगल से मिल जाती है मुफ़त मै
इस चित्र मै जो थोडी दुर लेफ़ट साईड मै जो सफ़ेद रंग के पाकेट दिख रहे है इस मै भी गाय के लिये कटी हुयी सुखी मक्की पेक कर रखी है, जो नयी फ़सल तक चलेगी, ओर वही सामने जितने भी पेड दिख रहे है सब पेड सेव के है
इस चारे के आलावा भी यहा जानवरो को गेंहुं, ओर बाजार का बना खाना भी देते है, ओर एक गाय का दुध ३०, ४० किलो तक हो जाता है.
तो बताईये केसा लगा हमारा गांव? मेने जिन्दगी ज्यादा यहां बिताई है, इस लिये यह देश भी मुझे उतना ही प्यारा लगता है जितना भारत, यहां के लोगो मै हम अब रस बस गये , ओर कभी नही लगता कि हम विदेशी है, इन लोगो से हम वेसे ही बात करते है जेसे किसी भारतीया से,हमारे बच्चे वेसे ही शरारते करते है जेसे हम बचपन मै करते थे, ओर आप को इस किसान के घर से निकलते ही कही भी बाहर इस के कारण गंदगी नही दिखेगी,
कल हम फ़िर से अपने ही गांव की सडको ओर गलियो मै ले जायेगे, काश मेरा भारत भी ऎसा ही होता, लेकिन मै जब भी भारत जाता था, अपनी सडक को ऎसे ही चमका देता था, मेरे घर के आसपास ऎसे ही सफ़ाई होती थी.
बहुत अच्छा लगा आप के गांव को देखकर. मेरा एक भाई भी जर्मनी जा रहा है शिक्षा ग्रहण करने. उसे भी आपके और आपके गांव के बारे में बताऊंगा..
ReplyDeleteकाश! हमारे हिंदुस्तान में भी ऐसे ही गाँव होते.......
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुती / आपने तो हमसब को फ्री में जर्मनी के गाँव में घुमा दिया ,धन्यवाद आपका / उम्दा तस्वीरें /
ReplyDeleteउम्मीद पर दुनिया कायम रखते हैं कि कभी ना कभी तो तरक्की की लहर यहाँ भी आएगी ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा आपका गाँव देखकर
वाह सर.. मुझे ऐसी प्राकृतिक चीजें बड़ी पसंद हैं.. यहाँ तो देखने को मिली नहीं.. अलबत्ता जर्मन गायें देख लीं अब आपके द्वारा.. :) हमारे भारत में भैंसों का दूध मिलता है और यहाँ गायों का.. देखिये तो..कई सारी रोचक जानकारियाँ दीं आपने आभार..
ReplyDeleteअच्छा है जी,,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteउम्दा पोस्ट !
गाँव की उन्नति के इस स्तर को देख कर लगता है कि हम अभी बहुत पीछे हैं। हमें तो अभी आपस में लड़ने के लिए फौजें पैदा करने से ही फुरसत नहीं है।
ReplyDeleteभाटिया जी,
ReplyDeleteआज अपने देसी गांव के बारे में कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि मुझे अपने गांव की धूल से, गांव की गन्दगी से, असुविधाओं से बेहद प्यार है।
हां, आपका गांव देखकर लगा कि तकनीकी इन्सान का काम कितना आसान कर देती है।
हम तो जी आज के समय में भी चिलम भरना, दूध दुहना, खाट बुनना, भैंस के ऊपर बैठकर जोहड में जाना जानते हैं।
नीरज भाई मैने भी भारत मै गांव मै यह सब किया है, वो भी अच्छा है ओर यह भी अच्छा है
ReplyDeleteदादा जी
ReplyDeleteअच्छा वर्णन
आभार
great, badhiya ghuma rahe hai varnan ke sath aap apna nivas wala gaon....
ReplyDeleteaccha lag raha hai bhatija ji..
सुन्दर! बहुत सुन्दर्! आपकी मेहनत और आपकी हिंदी दोनों के लिये आभार! पराये देश में भी अपने देशवासियों और अपनी मिट्टी से आपका जुडाव काबिले तारीफ है! स्टार एंकर पर आपकी वो लंबी सी कमेंट मैंने पढी, और आपसे सहमत हूं! क्योंकि विनम्रता ही बडप्पन की निशानी है!
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
nice
ReplyDeleteअच्छा लगा जर्मनी के ग्रमीण जीवन के बारे में विस्तार से जानकर, आभार.
ReplyDeleteBhatia sahab , kabhi plot-walot kat rahe hon to bataana, majaak nahee kar raha.
ReplyDeleteराज जी बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार...
ReplyDeleteकितना साइंटिफिक और कितना ईमानदार है जर्मनी का ग्रामीण जीवन...किसानों के साथ सरकार भी पशुओं के स्वास्थ्य के लिए कितनी सजग है, ये आधा सेंट भारतीय रुपये में कितना बैठता होगा...
जय हिंद...
कितना प्रगतिशील है जर्मनी और जर्मनी के किसान काश हमारे भारत देश में कुछ इस तरह की क्रांति हो और हमारे देश के किसान और व्यवस्था ऐसी हो..आधुनिकता और बढ़िया व्यवस्था राज जी आपके गाँव की यह प्रस्तुति बहुत बढ़िया लगी..धन्यवाद इस बेहतरीन पोस्ट के लिए
ReplyDeleteहर गाय का एक एक नाम है, ओर हर गाय नाम से झट कान खडे करती है....
ReplyDeleteपोस्ट देख कर बहुत अच्छा लगा।
बहुत सुन्दर और जानदार वर्णन -मन करता है मैं भी वहीं आ जाऊं !
ReplyDeleteऐसे किसान की कल्पना भी भारत मे मुश्किल है !
उम्दा पोस्ट.
ReplyDeleteगाँव का सचित्र वर्णन पढ़कर हम बनारस वाले आँखे फाड़ने और बड़ा सा मुँह बाने के सिवाय क्या कर सकते हैं?
मेरा एक यादव मित्र है, उसके पास ३५ भैस हैं, उसको दिखाऊंगा तो बोलेगा ...रहे दs यार ई जर्मनी ना हौ..!
कभी बड़ा तो कभी छोटा करके चित्र देखा ..आनंद आ गया .. वहाँ की गायों की आँखें भी कैसी जर्मनियों जैसी हैं..! नही..!
आप वहीँ रहिये राज साहब ..और हमें दुनियाँ दिखाते रहिये...सम्पूर्ण धरती अपनी है..
.वसुधैव कुटुम्बकम.
..उम्दा पोस्ट के लिए एक बार और बधाई.
मैं हमेशा सोचती हूं, खेती-बाड़ी से दूर जा रहे लोगों से, ऐसा लगता है अब यहां खेती भी निजी कंपनियां ही करेंगी। गांव और डेरी की ये तस्वीर बताती है हमें अभी विकास की राह पर लंबी दूरी तय करनी है।
ReplyDeleteमेरे यहा तो दो गाय है एक ५ किलो दूध देती है दूसरी ९ किलो
ReplyDeleteजर्मनी और भारत के किसानो मे एक समानता है क्या आपने कभी मह्सूस किया .....
............ मैने किया दोनो को अंग्रेजी नही आती :)
मेरे यहा तो दो गाय है एक ५ किलो दूध देती है दूसरी ९ किलो
ReplyDeleteजर्मनी और भारत के किसानो मे एक समानता है क्या आपने कभी मह्सूस किया .....
............ मैने किया दोनो को अंग्रेजी नही आती :)
bharat mey gayon ki durdasha par ek upanyaas likh rah hoo.ab vah poora ho gayaa hai,lekin usme kahi n kahi ab jarman ke is kisan ki gaushaalaa ka zikra karana hi hoga.ap[ne desh mey bhi yah sab ho sakataa hai, lekin yahaan to gaay ka matalab hai keval 'duhana''. gaay ko behatar haalaat dene ki mansikataa hi nahi hai. kharcha hoiga n. yahaa kamaaee par nazar jyaadaa rahati hai isiliye gayey badhal hai. dhanyvaad aapko ki aapne sundar gaanv aur pragatisheel kisan ke baare mey itani sundar jankaree di.
ReplyDeleteआज आपके किसान मित्र के घर गौशाला और फसले देख मन प्रसन्न हुआ...
ReplyDeleteभारत में भी कम से कम सफाई पर विशेष ध्यान तो दिया ही जा सकता है.... तकनीक तो देर सवेर सबके पास आ ही जायेगी.
sahi mayano me yahi bloging hai sir ji
ReplyDeleteहमने तो ऐसे गांव फिल्मों में ही देखे थे जी
ReplyDeleteयहां भारत की गाय तो अधिकतम 10 किलो दूध ही देती हैं
प्रणाम
@ खुशदीप सहगल जी( एक लीटर ०,५० Cent) यानि ५० cent, एक € मै १०० cent होते है, अभी तो € का रेट काफ़ी नीचे चला गया है वेसे यह १€= ६० रुपये यानि ३० रुपये का एक लीटर दुध, हमारे यहां महंगाई बिलकुल नही है
ReplyDeleteभाटिया जी, आज तो आपने कमाल कर दिया. ऐसी ही जानकारियों और चित्रों की अपेक्षा है. जर्मनी के आम मजदूर और किसान के जीवन के बारे में जानें तो समझ में आता है कि जान की परवाह न करते हुए भी लोग पूर्वी जर्मनी के किसान और मजदूर वहां के शोषक कम्म्युनिस्ट बंदूकचियों से बचकर इधर क्यों आना चाहते थे.
ReplyDeleteधूम लिया भाई साहब आपका गांव... यह गांव है कि शहर। जो भी हो अच्छा है।
ReplyDeleteaasma bhi vhi , jmi bhi vhi
ReplyDeletemehnt vha bhi vhi mehnt yha bhi vhi
frk hai to tkniki ka .
aise post ki daqumentri bnni chahiye jisse ki log labhanvit ho ske .
वाह..... ऐसी एक .गौशाला यहाँ भी है ,ISCON मंदिर वालों की
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट...चित्र और इतनी रोचक तरह से दी गयी जानकारी के लिए आभार...
ReplyDeleteअंग्रेजी उपन्यासों में विदेशों के गाँव के बारे में बहुत पढ़ा है...कुछ ऐसी ही तस्वीरे खींचती थी...पर आज आँखों देखे वर्णन ने उसे सम्पूर्ण कर दिया
जानकारी बहुत ही रोचक है और चित्र तो बहुत ही जानदार है | आप से इसी प्रकार की पोस्ट की उम्मीद है |
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