01/01/10
वाह वाह कहते है शहीदो की चितऒ पर लगेगे हर वर्ष मेले(श्रद्धांजलि या उत्सव)
इस साल की पहली पोस्ट, ओर उस मै भी विरोध, अब करुं तो क्या करू, झुठ मुझे भाता नही, ओर सच बोले बिना, सच देखे बिना रह नही पाता, आज फ़िर एक खबर पर नजर पडी, दो चार दिन पुरानी है,अजी नही करीब एक महीना पुरानी है, लेकिन भारत के समाचार पत्रो मै तो शायद ही किसी एक कोने मै ऎसी खबर छपे सोचा आप से बांट लू.....तो लगाईये इस साल का पहला चटका ओर पढिये इसे
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ReplyDeleteसंवेदनाएं मर चुकी हैं...और क्या कहे......बस दिखावा रह गया है और वह भी बेहूदा दिखावा...
ReplyDeleteकिस नजर से देखूँ, ए जिन्दगी तुझको..
ReplyDeleteदोष तेरा है या कि फिर मेरी नजर का...
-समीर लाल ’समीर’
-सुर कोठे पर भी सजते हैं और मंदिर में भी-फर्क होता है.
मैं इस आलेख की भावना से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ, क्षमाप्रार्थी हूँ. मुझे लगता है पूरा प्रश्न नज़रीये का है.
इसलिए ही तो गौतम बुद्ध उदासीन हो गए थे ....
ReplyDeleteआज शोक किसे होता है? शोक भी तो एक दिखावा बन कर रह गया है। दिखावे की दौड़ ने हमारी भावनाओं तथा संवेदनाओं को खत्म कर के रख दिया है।
ReplyDeleteआप और अन्य सभी को नववर्ष की मंगल कामनाएँ!
बनावटी शोक सभाओं पर खूब नजर गयी आपकी ....!!
ReplyDeleteदिखावा, आडम्बर और नक़ल मार गई इस देश को भाटिया साहब !
ReplyDeleteशायद संज्ञा शुन्य हो गये हैं.
ReplyDeleteरामराम.
नई इन पीढ़ियों मे अब, बढ़ी कृतघ्नता कितनी।
ReplyDeleteशहीदों की मजारों पर मनाने लग गये पिकनिक।।
hamaara culture ab raha kahan...ham doosron ki zindgi ji rahe hain...aise mein unhi ki tarah insenstive hojana fitri hai...hairani kaisi?
ReplyDeleteबस दिखावा रह गया है और वह भी बेहूदा दिखावा...
ReplyDeleteकुछ सही या गलत नहीं होता सिर्फ अपना अपना अलग नज़रिया होता है. हमारी संस्कृति में शव को बैंड बाजों के साथ मरघट ले जाने की रस्म है, वहीँ पश्चिम में शादी भी ख़ामोशी में होती है. हम बस अलग हैं.
ReplyDeleteaaj jab sab kuch bnavati ho gya hai to shok sbhaye kaise achuti rhegi ?
ReplyDeleteमैं समझ नहीं पाई क्या कहना चाहते हैं ......शहीद हमारे देश शान होते हैं उनके सम्मान में अगर ऐसा आयोजन हो तो बुरा क्या है .....?
ReplyDeleteधर्म-वर्म, वाद-आद सब आज ढकोसला है! और देशभक्ति तो उस समय गायब हो जाती है जब मिलियन में देश का धन अवैध जमा किया जाता है.हाँ एक सम्प्रदाय विशेष को गलियाने में लोग ज़रूर देशभक्ति समझते हैं.
ReplyDeleteबेईमान रहो.भ्रष्ट रहो
लेकिन उन्हें गलियाते रहो
आप सब से बड़े देशभक्त हैं!
मेला--धेला से अच्छा हो की हम उनके बताये रास्ते पर किंचित भी चलने का यत्न करें.भगत सिंह को याद तो किया जाता है , मूर्ति या तस्वीर को हार पहनाने के लिए.लेकिन उनकी किताबों को उनके साहित्य को सार्वजनिक नहीं किया जाता.उनकी बातों का प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता.!
आप की पकड़ समय की नब्ज़ पर रहती है, बहुत विशवास मज़बूत होता है अपना!
hame itna bhi nahi badalna chahiye ki apni pahchan kho de ,dikhave me sachchai chhali jaye .bahut sundar post lagi .
ReplyDeleteबनावटी शोक सभाओं पर खूब नजर गयी आपकी ...
ReplyDeletemai gayaa tha ek fauji jagah par.
ReplyDeleteshaheedon ke naam vahaan jal rahe the deepak.
jab jab bhi veerataa ka paigaam dena tha deepak sandesh dete najar aate the.
shaheedon ke naam lage ye mele maine dekhe.
han ek baat ka dukh jaroor hai ham civilians ki duniyaa in jajbaaton se behad door hain.
दिखावा और झूठे आडंबर ही रह गये हैं आज ........ शर्म आती है .........
ReplyDeleteहम तो अब आदी हो गए है इन चीजों के ,आप को अजीब सा लगता है |
ReplyDeleteवाकई ! बहुत सटीक और सही लिखा है भाई जी !
ReplyDeleteमन तो जरूर व्यथित होता है,जब सिर्फ झूठा आडम्बर ही रह जाता है, और शहीदों ने किसलिए शहादत की..इसे सब भूल जाते हैं.
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने!
वाकई आपकी नज़र दूर से भी सब कुछ देख रही है। इन शोक सभाओं का क्या कहें शहीदों का तो नाम होता है बस । मनोरंजन अधिक है श्रद्धाँजली कम धन्यवाद
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteऔर हां स्वागत है भाटिया जी, रोहतक आएं तो बताएं....... बताएं क्या हमारी कुटिया में आएं संपर्क ०९८९६२०२९२९ और ०९४६६२०२०९९