गरीब रथ या जनता रथ था उस रेल का नाम जिस पर मै २ अगस्त को दोपहर करीब १,२० पर बेठा, मुझे सब ने बहुत मना किया कि भाई आप टेकसी से या अपने दोस्त की कार से ही चले जाये, रेल आप को उतने की ही पडेगी, क्योकि घर से रेलवे स्टॆशन तक , फ़िर एसी का किराया ( रोहतक से दिल्ली) २३० रुप्ये के करीब, फ़िर आगे दोवारा से टेकसी,
लेकिन हमारे दिमाग मै तो कुछ ओर ही योजना बन रही थी, एक तो यह कि देखे लालू महा राज ने कितनी तरक्की कर दी इस रेलवे विभाग की, दुसरी बात यह कि जब अगली बार बच्चो के संग भारत आऊंगा तो दुरी की यात्रा भी रेल से ही करेगे, हवाई जहाज को छोड कर.
तो जनाब हम ने करीब ३० साल बाद बेठना था रेल गाडी छुक छुक मे, भाई ने जा कर कही से टिकट बुक कर दी, उस बुकिंग बाले ने शायद १० रुपये लिये जो हम यहां अपने नेट से कर सकते है, हमारी टिकट डिना ४ पर छप कर हमे मिल गई, जिस मै सीट ना० बोगी ना० सब लिखा था, ओर समय वा पलेट फ़ार्म ना० भी, साथ मै पहुचने का समय भी, हमे फ़िर से सब ने रोका कि मत जाओ , लेकिन हम जिद्द पर आडे रहे.
तो जनाब हम २ अगस्त ११,०० पर तेयार होगे जाने के लिये वेसे भी अब घर मै दिल तो लग नही रहा था, फ़िर अडोसी पडोसियो से मिल कर करीब ११,४५ पर चल पडे ओर १२,०० बजे के करीब पहुच गये स्टेशन पर, देखा अरे यहां तो कुछ भी नही बदला, सब कुछ तो पहले जेसा ही है, फ़िर एक कुली आया तो भाई ने कहा नही मै आप की अटेची ऊठा लुंगा, फ़िर अंदर गये तो सामने ही समय सारणी पर हमारी ट्रेन का पलेट फ़ार्म ना० लिखा था कि अब गाडी पलेट फ़ार्म ना० १ के वजाये ३ पर आयेगी, फ़िर दोनो भाई पुल पार कर के ओर उस भारी अटेची को उठा कर दुसरी तरफ़ गये, २ ना० पर कोई गाडी आराम कर रही थी.
सीटे तो बहुत खाली थी लेकिन कुछ पर लोग सोये थे तो कुछ सीटॊ पर लोगो ने अपना समान रखा था, भाई वोला आप बेठोगे, मेने कहां भाई कोई जगह नही खाली, तो बोला खाली करवानी पडती है, मेने भाई को मना कर दिया,किसी तरह टहलते टहलते हमारी गाडी का समय हो गया, तो मेने भाई से कहा कि यह खटारा यहा खडी है, तो हमारी ट्रेन कहा आयेगी.....
तभी पलेट फ़ार्म पर भागदोड मच गई, मेने सोचा शायद आतंकावादी आ गये, जिस का मुह जिधर वो उसी तरफ़ भाग रहा है, कुछ लोगो ने सामने खडी उस खाटारा मै जा कर दुसरी तरफ़ छलांग लगा दी..... अरे बाबा यह क्या हो रहा है कोई कुछ तो बताओ? तभी भाई आया ओर बोला भाई जल्दी करो हमारी गाडी तो छुटने वाली है वो पुल के दुसरी तरफ़ आई है, अब क्या करे? समझ मै नही आया, मेरी अटेची भी बहुत भारी थी, भाई बोला वो सामने खडी गाडी मै चढ कर दुसरी तरफ़ उतर जाओ, मै आटेची लाता हुं, मुझे भी कुछ नही सुझा ओर मै झट सेउस गाडी मै घुस गया ओर दुसरी तरफ़ उतर गया, अब उस गाडी का कोई दरवाजा ना खोले, अजीब भागदोड मच गई.
एक डिब्बे का दरवाजा खुला था मै उस मै चढ गया ओर दुसरी तरफ़ से भागा अपने डिब्बे की तरफ़, मुझे मेरा डिब्बा जल्द ही मिल गया, अब मेरे चढते ही उस मै जो गार्ड था, मुह मै सीटी ले कर ओर हरी झंडी लेकर बाहर जाने लगा, मेने पुछा कहा बोला समय हो गया सिंगनल दे दुं तब आप की सीट देखता हुं, मेने झट से उस के हाथ से हरी झंडी छीन कर कहा अरे यह सब क्या हो रहा है मेरा समान अभी नही आया, कोई घोषाणा भी नही की, ओर अब ... नही पहले मेरा समान आयेगा तभी चले गी तुम्हारी यह रेल,
इतनी देर मै भाई मेरा अटेची ले कर आ गया, भाई से गले मिला ओर भीगी आंखॊ से उसे विदा किया, तो गार्ड बोला जी अब चले... मैने कहा जी अब चलिये,,, सीटी बजी ओर हरी झंडी दिखी ओर हमारी ट्रेन चल पदी दिल्ली की तरफ़, मेने उन साहब से माफ़ी मांगी कि मेने आप को तंग किया, तो वो हंस कर बोले नही यह आप की गलती नही हमारा रेलवे विभाग ही निक्कमा है.
अब रोहतक से दिल्ली का किराया आम तॊर पर २२ रुपये के करीब है हम ने खर्च किये २०० से ज्यादा तो हमारी सोच भी उसी तरह से थी कि हमे सीट तो मजे दार मिलेगी, लेकिन जनाब अंदर घुसते ही हमे चक्कर आ गये, बीच रास्ते पर ही लोगो ने अपना अपना समान रखा है, बहुत से लोग बीच रास्ते पर ही खडे भी है, किसी तरह से हम अपना अटेची ले कर अपनी सीट तक पहुच गये, ओर सीट भी टुटी हुयी, चलिये अब कुड भी नही सकते थे, सो बेठे रहे, टी टी साहब ने पुछा कोई पहचान का कागज है तो मेने कहा जी है, लेकिन उन्होने देखा नही.
तभी हमारे मोबाईल की घंटी बजी ओर हाम्रे दोस्त ने कहा कि तुम निजामु दीन स्टेशन पर उतर जाना मै बाहर खडा मिलूगां, हम वहा उतरे लेकिन दोस्त नजर नही आया, एक कुली को समान ऊठवाया ओर चल पडे बाहर, बाहर जा कर देखा तो कुळी बोला जनाब निकाले ६० रुपये? अरे ६० ? तो बोला निकाले ५०, मेने उस से ज्यादा बहस नही कि ओर झूठ बोला कि ठहरो वो देखो मेरा दोस्त गाडी खडी कर के आ रहा है तो बोला बाबू जि अब तीस तो दे ही दो, मेने उसे तीस दिये, लेकिन यह दोस्त कहा गया..... फ़ोन करने पर पता चला कि दोस्त दुसरी तरफ़ खडा है, फ़िर कुली किया, लेकिन उस से पहले पुछ लिया कितना तो उस ने २० रुपये बोले, दुसरी तरफ़ पहुच कर मेने उसे ४० रुपये दिये तो वो सलाम कर के ओर एक सुंदर सी मुस्कान दे कर चल गया, ओर हम अपने दोस्त के घर की तरफ़ चल पढे
hahahahahaha.....bahut badhiya laga yeh sansmaran.... sab kuch aisa lag raha tha ki live chal raha hai....
ReplyDeleteक्या बड़े भाई ............आपने तो सफ़र में भी suffer कर लिया !
ReplyDeleteअद्भुत परिहास बोध आपके आलेख में एक ताक़त भरता है।
ReplyDeleteto mazaaaaya na gareeb rath mein?
ReplyDelete" भाई जल्दी करो हमारी गाडी तो छुटने वाली है वो पुल के दुसरी तरफ़ आई है, "
ReplyDeleteयही त्रासदी पिछले दिनों डॊ अरविंद मिश्र भी झेल चुके है और रेलगाडी छूट गई थी :)
पहले टिप्पनी मार देता हूं फिर पढता हूं।
ReplyDeleteवैसे अभी दूसरे पैराग्राफ पर हूं जहां आप जिद पर अडे हूवे हैं।
:)
हा...हा.... आपने बहुत बढीया तरह से लिख दिया है
ReplyDeleteये बिलकुल लाइव सीन टेलीविजन पर चलता हुआ लगा.
ReplyDeleteआपे पास ढेरों संस्मरण हैं.. सारे सुनेंगे हम Ha Ha (Ye Indian Railway bhi Majedaar Cheez hai...)
भाईसाहब , आपके संस्मरण पढ़ कर तो आनंद की अनुभूति होती है.
ReplyDeleteकठोर दैनिक यथार्थ का रोचक चित्रण।
ReplyDeleteबढ़िया चित्रण रहा यात्रा का!! कुली से सस्ते मे छूटे!!
ReplyDeleteवाह जी भाटिया जी वाह... मजा आ गया..
ReplyDeleteजरा फॉण्ट साईज बढ़ाईये,....भारत से आँख का ऑपरेशन करा आये हैं क्या??
ReplyDeleteअरे भाटिया साहब, अगस्त की बात नवम्बर खतम होने पे आया अब बता रहे हो :) वैसे सच कहू तो प्रोब्लम तो हर जगह है मगर ट्रेनों में यह मारा मारी मैंने ज्यादातर उत्तर भारत में ही देखी खासकर यह उ प ,हरियाणा और पंजाब की बेल्ट पर!
ReplyDeleteपूरा मजा आ गया यात्रा का।
ReplyDelete--------
क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।
हम तो रोज ही यह सफर (या सफ्फर) करते हैं:) मेरे डेढ घंटे के सफर में मुझे कभी-कभार ही बैठने के लिये जगह मिलती है।
ReplyDeleteगरीब रथ या जनता रथ हमारी यानि कि रोहतक-दिल्ली वाली लाईन पर नही चलती है जी
वो गाडी जनता एक्सप्रैस रही होगी शायद, वैसे यही हाल यहां की हर गाडी में होता है।
प्रणाम स्वीकार करें
अभी तो आपने 25-30 किलोमीटर की ही या़त्रा की है काश आप दिल्ली से त्रिवेंद्रम गए होते...
ReplyDeleteलो बोलो अब हरयाणवियों के साथ ये ना हो तो किसके साथ होगा?:)
ReplyDelete@ उडनतश्तरी
ctrl+ करिये ..अक्षर बढाईये.:)
रामराम.
आप क्या आशा लगाए थे?
ReplyDeleteगरीब-रथ तो एसा ही होता है।
वाह बहुत रोचक यात्रा संस्मरण है । ये गरीब रथ भी कया कहने शुभकामनायें
ReplyDeleteजैसे आपको ट्रेन में तकलीफ हुई, वैसे ही CRTL+++ कर यह पढ़ रहा हूं जी!
ReplyDeleteमै अक्षरो को बढा करने की कोशिश मै हुं जी
ReplyDeleteऐसी रेल यात्रा शशि थरूर जी को करनी चाहिए. वे कैटल क्लास का अर्थ समझ जायेंगे.
ReplyDelete:)
ReplyDeleteयह लोहे का घर है भाटिया जी और यह घर की बात है .. अच्छा लगा ।
ReplyDeleteचलिए आपने भी भारतीय रेल का आनन्द ले लिया... वैसे आपकी हिम्मत की दाद देनी पडेगी कि टी.टी. से झंडी छीन के गाडी को चलने से रोक दिया... वैसे वो टी.टी भी जरूर कोई भला मानुष ही होगा :)
ReplyDeleteवाह भाटिया जी .... apki yaatra to nahi par sansmaran jaroor achha likha hai aapne ... hasy se bharpoor ... मजा आ गया..
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