यह बात काफ़ी पुरानी है, तब मेरा अपना काम था, आज मे नोकरी करता हूं. ओर महीने मै दो तीन बार आना जाना हो जाता था लंडन का,लंडन मेरे घर से करीब १२०० किमी दुर है, ओर आते समय बहुत थकावट हो जाती थी, ओर अकेले जाने पर खर्चा भी बहुत होता था.लेकिन अगर किसी को साथ लेजाता तो मेरे विजनेस( व्यावसाये) के सारे राज खुल जाते, ओर जो समान मे अपनी मर्जी से बेचता था, उसे फ़िर सस्ता बेचना पडता.
एक बार मुझे मां ने कहा कि कोई हमारे शहर का ही जर्मन मै रहता है, ओर वो मिलना चाहता है, मेने मां को कहा कि मेरा फ़ोन ना० उसे दे दें.
दो चार बार बात हुयी, बोलने मै भाई साहब बहुत मीठे, ओर वो मेरे से करीब ८०० कि मी दुर रहते थे, एक बार हमारे यहां आये, ओर बातो बातो मे उन्होने इच्छा जताई की वो भी कपडे का काम करना चाहते है,लेकिन उन्हे इस बारे कुछ नही पता, तो मेने पहले घर मै बीबी से बात करी कि यह तो बहुत दुर रहते है, इस लिये इन्हे सब पत्ते लग भी जाये तो कोई डर नही, फ़िर दोनो मिल कर समान लायेगे तो मेरा खर्चा भी आधा होगा, ओर एक रात रास्ते मै इन के यहां रुक जाया करुगां, तो थकावट भी कम होगी.क्योकि कार( मेटा डोर टाईप ) सारा दिन चलाना आसान नही था. १० १२ घंटे से भी ज्यादा.
मेने अगले ट्रिप मे भाई साहब को साथ ले जाने के लिये हां कर दी, ओर ठीक समय पर मै उन्के घर बच्चो समेत गया, बच्चो को उन के बच्चो के पास छोडा, हम तीन ( एक उन का दोस्त भी साथ तेयार हो गया) सुबह घर से निकले करीब ६०० कि मी दुर था लंडन हम दोपहर तक पहुच गये, फ़िर सभी ने समान खरीदा, ओर मेरी गाडी फ़ुल भर गई, रात हम ने होटल मे बिताई. दुसरे दिन....
हमारे पास फ़िर थोडे पेसे बच गये, तो मेने कहा कि मे तो अपने बच्चो के लिये, दो सोने की चेन खरीदुगां, ओर बीबी के लिये भी कॊई सोने की चीज ,
हम तीनो साऊथ हाल (लंडन के पास) जिसे लिटल इन्डियां भी कह सकते है, बिलकुल भारत जेसा माहोल, वेसे ही गन्दगी,,)) गये ओर वहां पहले नाश्ता किया, ओर फ़िर एक दुकान मै सोने की चीजे देखने लग गये, मेने दो चेन दोनो बच्चो के लिये, ओर एक सेट बीबी के लिये खरीदा, मेरे साथ जो आये थे जिन के घर पर बच्चो को छोड कर आया था, उन्होने भी कुछ समान खरीदा.
समान खरीद कर हम बाहर आये, तो थोडी दुर आने पर मेरे प्यारे सज्जन बोले राज तुम्हारी दाई जेब मे एक सोने की अंगुठी पडी है, जरा मुझे देदो, जब मेने जेब मे हाथ डाला, मेरे हाथ मे एक अंगुठी आ गई,निकाल कर मेने देखा तो...
अरे यह तो वोही अंगुठी है जो उस दुकान दार की गिर गई थी, ओर वो उसे ढुढ रहा था, ओर इअतनी देर मे साहब ने मेरे हाथ से वो अंगुठी ले ली, मै पागलो की तरह से उसे देख रहा था, ओर मेरी समझ मै कुछ नही आया, फ़िर मेने उसे कहा चलो उसे वापिस कर दे,शायद जब गिरी तो मेरी जेब मे गिर गई होगी.
तो उन सज्जन ने कहा अरे नही मेने ही तुम्हारी जेब मे डाल दी थी, ओर मुझे उस समय गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन मै कुछ नही कर पाया, लेकिन चलने से पहले मेने बीबी को बोल दिया की घर पहुचते ही हम ने चलना है, इस लिये तेयार रहना.
जब यह बात मेने अपनी बीबी को बताई तो... ओर उस का रजल्ट सोच कर ही हम घबरा गये, कि अगर पकडा जाता तो मै, फ़िर बाहर आ कर लडाई करता तो कसूर बार भी मै, ओर उस के बाद कई बार उन सज्जन का ओर उन की बीबी का फ़ोन आया, हम ने एक दम से उन से नाता तोड लिया, अब जब भी कभी उस समय की याद आती है , तो रोंगटे खडे हो जाते है, अगर दुकान दार तलाशी लेता तो चोर कोन होता ?, पुलिस आती तो पकडा कोन जाता ? नाम किस का बदनाम होता ? ओर मै किस किस को अपनी बेगुनाही का सबुत देता, कहा से लाता सबूत.
इस लिये हमे सब को गलत आदमी से दुर ही रहना चाहिये, मै जब भी कभी फ़ंसा हुं, अपने लालच के कारण चलो थोडा बच जायेगा, लेकिन हर बार जो बचाना है उस से दस गुणा नुकसान ऊठाया, इस लिये अब कई सालो से लालच ओर थोडा बचाना बन्द कर दिया, ओर सच मै पहले से ज्यादा सुखी हो गया,
यह मेरी आप बीती है........ अब अगर किसी ओर को बुरा कहूं तो मेने भी तो लालच किया की मेरा खर्चा बचेगा, होटल का, खाने का, पेट्रोल का, ओर अगर फ़ंस जाता तो????
aap to bache hi bache hame bhi naseehat ho gayee aisa chor aadmi khabhi lalach me is se aage bhi jaa sakta haikai bhagvaan kaa bahut 2 dhanyvaad aap bach gaye
ReplyDeleteखतरनाक लोग हैं!
ReplyDeleteक्या मिलिये ऐसे लोगों से जिनकी फितरत का पता नहीं!
क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे
ReplyDeleteनकली चेहरा सामने आए असली सूरत छुपी रहे...
बच गए राज साहेब...जरा सा लालच बहुत महंगा पड़ जाता आपको...अच्छी सीख मिली आप से हम सब को...
नीरज
इसलिए कहा गया है कि जबतक अच्छे से न जानों किसी से दोस्ती न करो....शुक्र भगवान का कि उस दिन इज्जत बच गयी।
ReplyDeleteकभी कभी सोचता हूँ कि किसी पर भी विशवास ना करुँ पर विशवास किए बगैर भी काम नही चलता। खैर मुझे दोस्ती में सहायता करके पछताना पड़ा है। खैर अनुभव से ही सीखता है आदमी।
ReplyDeleteओह, आप बच गए फँसते तो बचने का कोई रास्ता नहीं मिलता।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बच ही गये वरना तो कोई इस कहानी का भरोसा भी न करता और बदनाम करने में वो ही सज्जन सबसे आगे आगे सबको बताते.
ReplyDeleteईश्वर ने आपकी नेकनीयती के कारण ही आपको बचाया.....और आशा है, आपकी आपबीती से लोग भी सबक लेंगे.
ReplyDeleteसही कहा गया है,
दुष्ट संग जनि देई विधाता....
विश्वास करना ही बहुत मुश्किल है आज कल चलिए शुक्र है आप बच गए
ReplyDeleteबच गए या कहे पुण्य थे कोई जो बचा ले गए . कल्पना करिए रस्ते मे यह जादू आप पर करते तो हम लोग जान भी नही पाते कोई राज जी जर्मनी से ब्लॉग भी लिख कर हिन्दी का परचम उठाये है
ReplyDeleteअच्छी seekh मिली. हम लोगों का एक मित्र ऐसा ही है. aadat से lachaar. हम लोगों की nigahen रहती हैं उस पर, जब भी vo साथ रहता है. abhar.
ReplyDeleteइस लिये हमे सब को गलत आदमी से दुर ही रहना चाहिये-बिल्कुल पते की बात ! बाल बाल बचे !
ReplyDeleteइसलिए कहते है मूर्ख की संगति सबसे खतरनाक होती है .
ReplyDeleteHum sab ko aapke anubhav se sikh lene ki jarurat hai.
ReplyDeleteकैसे-कैसे भयानक लोग होते हैं....और शर्म भी नहीं,
ReplyDeleteआप तो बुरे फंसते.........
आपके और आपके परिजनों के पुण्य प्रबल थे। अन्त भला सो सब भला। आप बच गए। सबसे अच्छी बात यह कि आपने उनसे नाता तोड लिया।
ReplyDeleteप्रेरक आपबीती है।
बच गए राज साहब। न जाने क्या होता? फिलहाल पास्पोर्ट ज़ब्त और ज़मानत की तलाश.. चलिए छोड़िए। डराना नहीं चाहता। मेरे साथ भी एअरपोर्ट पर कुछ ऐसा ही होने लगा था। ७०वें दशक की बात है। एक छद्मवेषी हरे कृष्ण का गोरा भक्त, धोती कुर्ता पहने, श्रीला प्रभूपाद जी की किताबें लिए हुए अंगरेज़ी में बोला, 'मेरे पास वज़न ज़्यादा हो गया है, कुछ किताबें आप लेलें, दिल्ली में आपसे वापस लेलूंगा।' मैंने उसके चेहरे पर गौर किया तो चेहरे पर पीलापन था। एक दम मुझे महसूस हुआ कि यह कृष्ण-भक्त नहीं है कोई जंकी (ड्रग सेवन करने वाला) है। मैंने मना कर दिया। बाद में पता लगा कि किताबों के अंदर कुछ ऐसे खाने बनाए हुए थे जिसमें ड्रग्स रखी हुई थी। अब आप सोच सकते हो अगर ले लेता तो मेरा क्या हाल होता। जेल में ही कृष्ण की माला का जाप करता। तो भाई, हर जगह सावधानी बरतना आवश्यक है। शुक्र है कि आप भी बाल बाल बच गए।
ReplyDeleteअरे भगवान्, ऐसे चलते पुर्जे के तो पास से गुज़रना भी खतरनाक है.
ReplyDeleteबच गये ये क्या कम है..
ReplyDeleteयही आदत दूर हो जाये तो फिर हम भारतीय रहे कहां
ReplyDeleteपंजाबी में एक कहावत है कि 'माल खाण नूं बांदरी ते डंडे खाण नूं रिच्छ" यानि के चोरी तो उस व्यक्ति ने अपने क्षुद्रलाभ हेतु की, ओर अगर कहीं पता चल जाता तो फंसते सिर्फ आप.ईश्वर का धन्यवाद कीजिए कि समय रहते बच गए.
ReplyDeleteयदासत्सड्गरहितो भविष्यसि भविष्यसि।
तदासज्जनगोष्ठिषु पतिष्यसि पतिष्यसि।।
अर्थात जब पापी,लोभी,चोर,कामी इत्यादी बुरे व्यक्ति की कुसंगत से बचोगे तब जानो जीओगे, और जो दुष्टों की संगत में कहीं पड़ गए तो समझो मृ्त्यु को निमंत्रण दे बैठे।
अरे बाप रे ऐसे लोगों से भगवान् बचाए .
ReplyDeleteसच कहा आपने …
ReplyDeleteऐसे लोगों से दूर ही रहा जाय तो अच्छा नही तो एक दिन आप को भी …
शराफत से कमाई गई सूखी रोटी और कुछ नही तो कम से कम सर उठाकर जीने का अधिकार तो देती है। कितने घोटाले रोज होते होंगे पर कभी न कभी तो नज़र में आते ही हें भले देर से ही सही। फिर क्या इज्ज़त रह जाती है?
ReplyDeleteआपके अनुभवों से हमने भी कुछ सीखा है, धन्यवाद।
आपकी यह आपबीती हमें भी सीख देने वाली है.
ReplyDeleteजब एक बार यह स्पष्ट हो जाये कि एक व्यक्ति की नीयत खराब है तो उससे दोस्ती तोड देना ही सर्वोत्तम है.
ReplyDeleteलेकिन यदि यह भी प्रमाणित हो जाये कि वह अपने आप को बचाने के लिये आप को धोखा दे सकता है (आपको खतरे में डाल सकता है) तो उसकी छाया से भी बचना चाहिये.
सस्नेह -- शास्त्री