कहानी पढ कर लग कि उन गृहणी मे विवेक की कमी है इसिलिये किसी की कही बाते उनपर इतनी हावी है कि वो सोचना समझना भुल गयी है इसिलिये उन्हे बार-बार यह याद दिलाने की कोशीश ना की जाये की य घर तुम्हारा है अपना काम करो इत्यादि ,इन कठिन परिस्थियो मे भी उन महानुभव को उनका अधिक ध्यान रख कर उनके साथ सहज होना चाहिये जैसे कुछ हुआ ही नही तब शनैः-शनैः बात बन जायेगी ॥
और उन्हे खुले मे बैठ्कर अपनी पुरी भडास निकाल लेनी चाहिये नही तो अब तक यह जहर अंदर रहेगा बात नही बनने वाली ॥भडास से कुछ हो या ना हो मन हल्का जरुर हो जाता है और इसके बाद मन सच और झुठ का भी अंतर कर सकता है । मेरे घर मे मैने ऐसा ही देखा है अपने पापा जी को करते इसिलिये कह रहा हु शायद उनके काम का हो
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भाटिया जी ।
ReplyDeleteकहानी पढ कर लग कि उन गृहणी मे विवेक की कमी है इसिलिये किसी की कही बाते उनपर इतनी हावी है कि वो सोचना समझना भुल गयी है इसिलिये उन्हे बार-बार यह याद दिलाने की कोशीश ना की जाये की य घर तुम्हारा है अपना काम करो इत्यादि ,इन कठिन परिस्थियो मे भी उन महानुभव को उनका अधिक ध्यान रख कर उनके साथ सहज होना चाहिये जैसे कुछ हुआ ही नही तब शनैः-शनैः बात बन जायेगी ॥
और उन्हे खुले मे बैठ्कर अपनी पुरी भडास निकाल लेनी चाहिये नही तो अब तक यह जहर अंदर रहेगा बात नही बनने वाली ॥भडास से कुछ हो या ना हो मन हल्का जरुर हो जाता है और इसके बाद मन सच और झुठ का भी अंतर कर सकता है । मेरे घर मे मैने ऐसा ही देखा है अपने पापा जी को करते इसिलिये कह रहा हु शायद उनके काम का हो